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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
पंचेन्द्रिय सामान्य
पर्याप्त अपर्याप्त
एकेन्द्रियके उपरोक्त सर्व विक
99
विलेयके उपरोक्त सर्व विकल्प
पंचेन्द्रिय सामान्य
पर्याप्त
मार्गणा
33
"
३. काय मार्गणा :
सूक्ष्म
"1
पृथिवी कायिक सामान्य बादर पृथिवी
अपु
अपर्याप्त
:
11
11
""
39
११.
पर्याप्त
अपर्याप्त
सामान्य
पर्याप्त
अपमति
>>
कायिक सामान्य
गुणस्थान
१
१
१
ष, खं.
३
१४
ॐ१०
२३१४
२-१४२३६०
१०
७
७
19
द्रव्यकी अपेक्षा
19
प्रमाण
अस.
अनं.
बर्स.
असं.
।
असं.
""
यस असं लोक.
39
प.सं.
특히
ចុះ
७
३४
३६ ट
७
घ. ३ / पृ. ३३४
""
11
क्षेत्रकी अपेक्षा
द्वीन्द्रिय सामान्यवत
पयो
अपर्याप्त
"
प्रमाण
(विशेष च ३/१२/००/२२४-२४८) (.आ./ १२०५-१२०६) (ति. १/५/२००); (मो.जो../२०४-२९४/४६२-४६६)
असं लोक.
ध. ३/पृ. ३३४
प्ररूपणाका कोई उपाय नहीं
७ইউৰ
उपरोक्त सामान्य विकल्पोवत्
ज. प्र. (सूचयगुन / असं )
२
ज. प्र + ( सूच्यं गुल / सं ) २
ओषत प्रसूत/असं)
असं का प्रमाण
प्र + ( सूर्यगुल / अस ) 2 प्ररूपणाका कोई उपाय नहीं
३३५६
३३१४
11
३६१७'
ध. ३ / पृ. ३३४
७হ ध. ३/पृ. ३३४
::::
कालकी अपेक्षा
प्रमाण
असं उत. अब से अपहृत
39
19
अनं उत. अब से अनपहृत
अस उत. अब से अपहृत
असं उत. अत्र से अपहृत
:
असं, उत. अब से अपहृत
प्ररूपणाका कोई उपाय नहीं।
असं उत अत्र से अपहृत
प्ररूपणाका कोई उपाय नहीं
37
39
संख्या
१००
३. संख्या विषयक प्ररूपणा