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४८ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ
१९२२-२३) उद्घाटनके लिए निश्चित किया गया। बादमें स्व. पं० देवकीनन्दनजी सा० तो कारंजा चले गये तथा पू० वर्णोजी, स्व० श्री बंशीधरजी और पिताजी अपने-अपने स्थानोंको लौटते समय रास्ते में कटनी रुके। वहाँ जिन मन्दिरमें जाकर सबने दर्शन पूजन किया। बादमें दोनों विद्वान् तो सामायिक करने लगे और पिताजी कर्मकाण्ड का स्वाध्याय करने लगे। - इसके बाद पू० वर्णीजीके सामायिकसे निवृत्त होकर वहाँ आने पर पिताजीने उनके सामने चौकी व कर्मकाण्ड ग्रन्थ रख दिया । पर अपने स्वभावके अनुसार उन्होंने पिताजीको ही प्रवचन करनेके लिए प्रेरित किया। पिताजीके बहत मना करने पर भी वे नहीं माने । अन्तमें पिताजीको ही प्रवचन करनेके लिए बाध्य
गाम्मटसार (कर्मकाण्ड) पिताजीका पठित विषय तो था ही इसलिए उन्हें उसका प्रवचन करने में कोई कठिनाई नहीं हई । इसी समय स्व० श्री बंशीधरजी भी सामायिक परी करके वहाँ आ गये। पू० वर्णीजी उनसे बोले, 'भैया यह लड़का तो बहत होशियार दिखता है।' पंण्डितजीके समर्थन करने पर वर्णीजी बोले, 'भैया ! श्रुत पंचमीके दिन तुम जबलपुर अवश्य आ जाना। तुम्हारी अध्यापक पद पर हमने नियुक्ति कर ली है । अपने गुरुजीके पास पढ़ना भी व पढ़ाना भी।'
उनकी आज्ञानुसार पिताजी श्रुतपंचमीको जबलपुर पहुँच गये और शिक्षा मन्दिरका उद्घाटन होने पर वे अपने नियत कार्य में लग गये । पर वहाँको व्यवस्थाकी सम्यक देख-रेख न होनेसे पिताजी ७-८ महीनेके भीतर ही शिक्षा मन्दिर छोड़कर बनारस चले गये।
जबलपुर में ही रहते हए पिताजीका बाबू फूलचन्द्र जी, (जो बादमें जज हुए) से अच्छा स्नेह हो गया था । बाबू फूलचन्द्र जी उस समय शिक्षा मन्दिरमें ही रहते थे व कॉलेज पढ़ने जाते थे। उनके साथ एक बड़ी आकर्षक घटना घटी। वे नल पर स्नान करने गये थे। स्नानके पहले उन्होंने गलेसे सोनेकी चेन निकालकर एक तरफ रख दी जिससे उसपर किसीकी नजर न पड़े। फिर उनके ध्यानसे यह बात उतर गयी व चेन वहीं छोड़कर वे चले आये और कॉलेज चले गये। कुछ समय बाद पिताजी निवृत्त होने वहाँ गये और हाथ धोनेके लिए मिट्टी खोजते समय उस चेन पर उनकी नजर पड़ गई । लगभग १० तोलेकी उस चेनको पिताजीने गलेमें पहन लिया व कुर्तेके बटन बन्द कर लिए जिससे किसीको दिखाई न दे । शिक्षा मन्दिरमें लौटने पर बाबू फुलचन्द्र जी बड़े हताशसे दिखाई दिये और उन्होंने अपनी चेन भूल जानेकी बात बताई। वे अपनी माँ की डाँटसे बहुत डर रहे थे । पिताजीने उनसे कहा कि चलो खोजते हैं और वहाँ जाकर दोनों हूँढने लगे। काफी देर हो जाने पर जब पिताजीने देखा कि बाबू फूलचन्द्र जी बहुत हताश हो चुके हैं और आँखोंमें आँसू भर आये हैं तो पिताजीने अपने कर्तेके बटन खोल लिए जिससे कि चेन बाहर निकल आयी। कुछ देर में ब नजर पिताजी पर पड़ी तो चेन दिखाई दे गई और वे बोले कि तुमने पहले क्यों नहीं बताया। इस पर पिताजीने कहा कि तुम्हें फिर परेशान कैसे करते ।
बनारसमें पू० बड़े वर्णीजीसे पिताजीको पुनः भेंट हो गई। उन्होंने पिताजीको विशेष बुद्धिमान समझकर उनकी विशेष वृत्ति २५) रु० महोना निश्चित कर दो। २-३ महीने तक वे वहाँ पर रहे । गर्मीकी छट्रियोंमें घर लौट आये। किन्तु उसी समय पिताजीका विवाह हो गया। उनकी धर्मपत्नीने जीवन भर उनकी बहुत सेवाकर अपने सौभाग्य, शोलका अच्छा परिचय दिया। घरकी स्थितिको समझकर स्व० पूज्य पं० देवकीनन्दनजीके अनुरोधपर उन्होंने साढ़मल विद्यालयका प्रधानाध्यापकका पद स्वीकार कर लिया। किन्तु ७-८ महीने बाद बनारस विद्यालयके विशेष आमंत्रणपर वे साढमलका पद छोड़कर सन् १९२४ में धर्माध्यापक होकर बनारस चले गये। वे बनारस हिन विश्वविद्यालयमें भा प्रति शनिवारको धर्मको शिक्षा देनेके
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