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विवाह-क्षेत्र-प्रकाश
रहकर एक आर्यिकाके पाससे श्रावकके १२ व्रत ग्रहण किये, जिससे उसकी नीच परिणति पलटकर उच्च तथा धार्मिक वन गई, और वह चारुदत्तकी माता तथा स्त्रीकी सेवा करती हुई नि सकोच भावसे उनके घरपर रहने लगी। जव चारुदत्त विपुल धन-सम्पत्तिका स्वामी बनकर विदेशसे अपने घरपर वापिस आया और उसे वसन्तसेनाके स्वगृहपर रहने आदिका हाल मालूम हुआ तब उसने बडे हर्पके साथ वसन्तसेनाको अपनाया-उसे अपनी स्त्रीरूपसे स्वीकृत किया। चारुदत्तके इस कृत्य पर--एक वेश्या जैसी नीच स्त्रीको खुल्लमखुल्ला घरमे डाल लेनेके अपराधपर-उस समयकी जाति-विरादरीने चारुदत्तको जातिसे च्युत अथवा बिरादरीसे खारिज नहीं किया और न दूसरा ही उसके साथ कोई घृणाका व्यवहार किया गया। वह श्रीनेमिनाथ भगवानके चचा वसुदेवजी-जैसे प्रतिष्ठित पुरुपोसे भी प्रशसित
और सम्मानित रहा। और उसकी शुद्धता यहाँ तक वनी रही कि वह अन्तको उसके दिगम्बर मुनि तक होनेमे भी कुछ बाधक न हो सकी। इस तरह एक कुटुम्ब तथा जाति-विरादरीके सद्व्यवहारके कारण दो व्यसनासक्त व्यक्तियोको अपने उद्धारका अवसर मिला।
इस पुराने शास्त्रीय उदाहरणसे वे लोग कुछ शिक्षा ग्रहणकर सकते हैं जो अपने अनुदार विचारोके कारण जरा-जरा-सी बातपर अपने जाति-भाइयोको जातिसे च्युत करके-उनके 'धार्मिक अधिकारोमे भी हस्तक्षेप करके उन्हे सन्मार्गसे पीछे हटा रहे हैं और इस तरह अपनी जातीय तथा सघशक्तिको निर्बल और नि सत्त्व बनाकर अपने ऊपर अनेक प्रकारकी विपत्तियोको बुलानेके लिये कमर कसे हुए हैं। ऐसे लोगोको सघशक्तिका