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अलाबः-बः (बालाघवम् कु० २१ अधजली लकड़ी
अलस (वि०) न० त० लस+क्विप ] न चमकने वाला। | अलिपकः [ न० त०11. कोयल 2. भौंरा 3. कुत्ता। अलस (वि.) [ न लसति व्याप्रियते-लस्+अच् ] 1. | अलिमकः= दे० अनिमक।
अक्रिप, स्फूतिहीन, सुस्त, आलसी 2. थका हुआ, अलिम्पक-वक-दे० अनिमक। श्रान्त, क्लान्त, मार्गश्रमादलसशरीरे दारिके--माल- अलीक (वि.) [अल+वीकन 11. अप्रिय, अरुचिकर 2. वि०, ५, अमरु० ४।९०, विक्रम० ३२, गगन- असत्य, मिथ्या, मनगढन्त. -अलीककोपकान्तेन-का. मलसम्-मा० १।१७, 3. मृदु, कोमल 4. ढीला, १४७, °वचन-अमरु० २३, ३८, ४३,-कम् 1. मन्द (गति में)-...श्रोणीभारादलसगमना -- मेघ०८२,। मस्तक 2. मिथ्यात्व, असत्यता।
सम-ईक्षणा वह स्त्री जिसकी मदभरी दृष्टि हो। अलोकिन् (वि.) [ अलीक+इनि] 1. अरुचिकर, अप्रिय अलसक (वि०) [ अलस-+कन् ] अकर्मण्य, सुस्त,-कः |
2. मिथ्या, छलने वाला। अफारा, पेट का एक रोग।
अलुः [ अल्-+उन् ] छोटा जल-पात्र । अलातः--तम् [न० त०] अंगार, अधजली लकड़ी! अलक, समासः [ नास्ति बिभक्तेः लुक् लोपो यत्र] एक
| समास जिसमें पूर्व पद की विभक्ति का लोप नहीं अलाबुः-बः (स्त्री) [न-लम्बते; न+लम्ब-|-उ.-...- होता, उदा०--सरसिजम्, आत्मनेपदम ।
णित नलोपश्च वद्धि:-तारा०] लंबी लोकी-ब। अले, अलेले (अव्य०) [ अरे, अरेरे इत्येव रस्य ल: ] (नपुं०) 1. तुमड़ी का बना पान-पात्र 2. तुमड़ी का बहुधा नाटकों में प्रयुक्त निरर्थक शब्द जो पिशाची हलका फल जो पानी पर तैरता है--कि हि नामैतत बोली में पाये जाते हैं। अम्बुनि मज्जन्त्यलाबूनि ग्रावाणः प्लवन्त इति-महा- | अलेपक (वि०) [न० ब० कप् ] बेदाग-क: परब्रह्म। वी० १, मनु० ६।५४ । सम०--कटम् लौकी का अलोक (वि०) [न.ब.] 1. जो दिखाई न दे-जैसा
कसा हुआ चूरा,-पात्रम् तुमड़ी का बना बर्तन । कि-लोकालोक इवाचल:-रघ० १०६८[न लोक्यत अलारम् [ ऋ---यड्, लुक् +अच् रस्य लः ] दरवाजा।।
इति अलोक:-मल्लि.] 2. जिसमें लोग न हों 3. अलिः [अल+इन् ] 1. भौंरा 2. बिच्छु 3. कौवा 4.
( अच्छे कर्म न होने के कारण) जो मृत्यु के उपरांत कोयल 5. मदिरा। सम०----कुलम् भौंरों का झंड,
किसी दूसरे लोक में नहीं जाता,-क:-कम् °संकुल मक्खियों के झुंड से भरा हुआ--अलिकुल
[ न० त०] 1. जो लोक न हो, 2. संसार की समाप्ति सङ्कुलकुसुमनिराकुलनवदलमालतमाले-पी० "सकुल
या नाश, लोगों का अभाव--रक्ष सर्वानिमाल्लोकान कुब्ज नामक पौधा,-जिह्वा,-जिह्वका गले के भीतर
नालोकं कर्तुमर्हसि--रामा० । सम-सामान्य असाका कौवा, घांटी, कोमल ताल-प्रिय जो भौंरों को
धारण, असामान्य । अच्छा लगे (-यः) लाल कमल, (-या) बिगुल
अलोकनम् [न० त०] अदृश्यता, दिखाई न देना, अंतजैसा फूल,--माला भौंरों का समूह,-विरावः,
ान होना। –रुतम भौंरों का गुंजार,-वल्लभः= प्रियः तु०।
अलोल (वि.) [ न० त०] 1. शान्त, क्षोभरहित 2. दृढ़, अलिकम् [अल्यते भूष्यते---अल+कर्मणि इकन ] मस्तक,
स्थिर, 3. अचंचल 4. जो प्यासा न हो, इच्छा रहित । ..---अलिकेन च हेमकान्तिना--भामि० ११७१, | अलोलप (वि.) [न० त०] 1. इच्छाओं से मुक्त 2. जो विद्धशा० ३।६। ।
लालची न हो, बिषयों से उदासीन। अलिन् (पुं०) [ अल-इनि ] 1. बिच्छु 2. भौंरा,- मलि- | अलौकिक (वि.) [स्त्री०-की][न० त०] 1. जो लोक
निमालिनि माधवयोषिताम्-शि०६।४, -नी भौंरों में प्रचलित न हो, असाधारण, लोकोत्तर 2. जो का झुंड,-अरमतालिनी शिलीन्ध्र-शि० ६१७२, सामान्य भाषा में प्रचलित न हो, धर्म-लेखों के लिए अलिनीजिष्णुः कचानां चय:- भर्त० ११५ ।
विशिष्ट, श्रेण्य साहित्य में अप्रयुक्त, वैदिक 4. प्राक्काअलिगर्दः । दे० 'अलगर्द' ] एक प्रकार का साँप ।
ल्पनिक, त्वम किसी शब्द का विरल प्रयोग–अलौअलिङ्ग (वि०) [ न० ब०] 1. जिसका कोई विशिष्ट किकत्वादमरः स्वकोषे न यानि नामानि समुल्लिलेख, चिह्न न हो, चिह्न रहित 2. बुरे चिह्नों वाला 3. विलोक्य तैरप्यधुना प्रचारमयं प्रयत्नः पुरुषोत्तमस्य(व्या० में) जिसका कोई लिंग न हो।
त्रिका० । अलिञ्जरः । अलनम् --अलि: अल =इन् तं जरयति इति अल्प (वि०) [अल+प] 1. तुच्छ, महत्त्वहीन, नगण्य ___+अच पृषो० मुम् ] जलपात्र, दे० 'अलंजर' । (विप० महत् या गुरु) मनु० १११३६, 2. छोटा, अलिन्दः [ अल्यते भृष्यते, अल-कर्मणि किंदच | 1. घर थोड़ा, सूक्ष्म, जरा सा (विप० बहु)-अल्पस्य हेतोके दरवाजे के सामने का चबूतरा----मखालिदतोरणम् बहु हातुमिच्छन्-रघु० २१४७, १, २, 3. मरणशील -मालवि० ५, 2. दरवाजे पर बनी चौकोर जगह। । जो थोड़ी देर जीवे 4. कभी-कभी होने वाला, विरल,
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