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( १०१ ) १३७, 4. समान होना, योग्य होना-न ते गावाण्य- सजाना, 2. योग्य या सक्षम होना 3. रोकना, दर पचारमर्हन्ति-श० ३।१८, सर्वे ते जपयज्ञस्य कलां रखना, दे० अलम् । नार्हन्ति षोडशीम्-मनु० २१८६, 5. योग्य होना, | अलम् [अल+अच्] 1. बिच्छू का डंक जो उसकी पूछ अनुवाद 'सकता'-न मे वचनमन्यथा भवितुमर्हति- में होता है 2. पीली हरताल । श० ४ 6. पूजा करना, सम्मान करना नोचे प्रेर० दे० अलक: [अल+क्युन्] 1. धुंघराले बाल, जुल्फें, बाल-- 7. (मध्यम पुरुष के साथ-कभी-कभी अन्यपुरुष के ललाटिका चन्दनघूसरांलका-~कु० ५।५५,अलके बालसाथ भी-तुमुन्नन्त का प्रयोग होता है), 'अर्ह" धातु कुन्दानुविद्धम्-मेघ०६७, (यह शब्द नपुं. भी है मृदु आदेश, शिष्ट प्रार्थना तथा परामर्श के लिए | जैसा कि मल्लिनाथ केउद्धरण-स्वभाववक्राण्यलकानि प्रयुक्त होता है इसका अनुवाद होता है :--कृपा तासाम्- से प्रकट होता है) 2. मस्तक के घूघर 3. करना, अनुग्रह करना, प्रसन्न होना-द्विवाण्यहा- शरीर पर मला हुआ केसर,-का 1. आठ से दस वर्ष न्यर्हसि सोढुमर्हन्-रघु० ५।२५, कृपया प्रतीक्षा तक की आयु की कन्या 2. यक्षों के स्वामी कुबेर कीजिए; नार्हसि मे प्रणय विहन्तुम् - २।५८, की राजधानी-विभाति यस्यां ललितालकायो [प्रेर० या चु० पर०] सम्मान करना, पूजा करना, मनोहरा वैश्रवणस्य लक्ष्मी:-भामि० २०१०, गन्तम्या ---राजाजिहत्तं मधुपर्कपाणिः-भट्टि० १।१७, मनु० ते वसतिरलका नाम यक्षेश्वराणाम्-मेष.७। सम. ३।११९।
--अधिपः, ईश्वरः,---पतिः अलका का स्वामी; मह (वि.) [अर्ह + अच्] 1. आदरणीय, आदर योग्य,
कुबेर-अत्यजीवदमरालकेश्वरो-रघु० १९।१५, पात्र, अधिकारी-अविभोजयन् विप्रो दण्डमर्हति माष- ----अन्तः शृंघर का किनारा या लट,-सदा 1. गंगा, कम्-मनु० ८।३९२, 2. योग्य, दावेदार, अधिकारी,
गंगा में गिरने वाली नदी, 2. आठ से दस वर्ष के बीच (कर्म०, तुमुन्नन्त, तथा समास में)-नैवाहः पैतृकं
की आय की लड़की,-प्रभा कुबेर की राजधानी, रिक्थं पतितोत्पादितो हि सः-मनु० ९।१४४, संस्कार- -संहतिः घुघरों की पंक्तियां-शि०६।३।। महंस्त्वं न च लप्स्यसे-रामा०, तस्मानाहीं वयं हन्तुं अलक्तः-क्तकः[न रक्तोऽस्मात्, यस्य लत्वम्--स्वार्षे कन धार्तराष्ट्रान् स्वबान्धवान्-भग० ११३७, इसी प्रकार –तारा०] कुछ वृक्षों से निकलने वाली राल, लाल मान वध दंड आदि 3. सुहावना, उचित, उपयुक्त रंग की लाख महावर (प्राचीन काल में स्त्रियों द्वारा —केवलं यानमहं स्यात् –पंच. ३, (संबं के साथ शरीर के कुछ अंग इसके द्वारा रंगे जाते थे-विशेषरूप भी)-स भृत्योर्हो महीभुजाम् पंच० १९८७-९२, से पैरों के तल और ओष्ठ)-(दन्तवाससा) पिरो4. उचित मूल्य का, कीमत का, दे० नीचे,-ह: 1. ज्झितालक्तकपाटलेन-कु० ५।३४, मालवि. ३१५, इन्द्र 2. विष्णु 3. मूल्य (जैसा कि 'महार्ह में)- महार्ह- अलक्तकाङ्कां पदवी ततान-रघु० ७७, स्त्रियो शय्यापरिवर्तनच्युतः-कु० ५।१२, (महान) यस्याः हतार्थं पुरुषं निरर्थं निष्पीडितालक्तकवत्त्यजन्ति-मच्छ. -मल्लिनाथ) हा पूजा, आराधना।
४।१५ । सम०--रसः महावर, लाक्षारस-अलक्तरअहंणम्-णा [अर्ह +भावे ल्युट्] पूजा, आराधना, सम्मान, सरक्ताभावलक्तरसजितो, अद्यापि चरणौ तस्याः पय
आदर तथा सम्मान के साथ व्यवहार करना-अर्हणा- कोशसमप्रभौ-रामा०,-रागः महावर का लाल रंग। महंते चक्रुर्मुनयो नयचक्षुषे-रधु० १५५, शि० अलक्षण (वि०) [न० व.] 1. चिह्नरहित 2. परिचायक १५।२२।
चिह्न से हीन, परिभाषारहित, 3. जिसमें कोई अच्छा त (वि.) [अर्ह +शत] योग्य, अधिकारी, पूजनीय- चिह्न न हो, अशुभ, अपशकुन-क्लेशावहा भर्तुरल(पुं०) 1. बुद्ध 2. बौद्धधर्म की पुरोहिताई में उच्चतम क्षणाहम्-रघु० १४१५,----णम् 1. बुरा या अशुभ पद 3. जैनियों के पूज्य देवता, तीर्थकर--सर्वज्ञो जित- चिह्न 2. जो परिभाषा न हो, बुरी परिभाषा। रागादिदोषस्त्रलोक्यपूजितः, यथास्थितार्थवादी च देवोऽ | अलक्षित (वि.) [न० त०] अदृष्ट, अनवलोकित-अलईन् परमेश्वरः ।
क्षिताभ्युत्पतनो नृपेण---रघु० २।२७ । महन्त (वि.) [अर्ह +झ बा०] योग्य, अधिकारी,-त: अलक्ष्मीः (स्त्री०) [न० त०] दुर्भाग्य,बुरी किस्मत, निर्धनता । 1.बुद्ध 2. बौद्धभिक्षु ।
अलक्ष्य (वि.) [न० त०] 1. अदृश्य, अज्ञात, अनवमहंन्ती (स्त्री०) पूजा के योग्य होने का गुण, सम्मान, लोकित 2. चिह्नरहित, 3. जिस पर कोई विशिष्ट पूजा,-श्रोत्रार्हन्तीचणगुण्यैः-सिद्धा० ।
चिह्न न हो 4. देखने में नगण्य 5. जिसमें कोई बहाना मह्यं (स० कृ०) [अर्ह +ण्यत्] 1. योग्य, आदरणीय, 2. न हो, छल-कपट से रहित 6. अर्थों को दृष्टि से प्रशंसा के योग्य ।
गौण। सम० ---गति (वि.) अदृश्य रूप से अल (भ्वा० उभ०) [अलति-ते, अलितुम्, अलित] 1.. घमने वाला, जन्मता अज्ञात जन्म, अप्रकटक जन्म
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