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कर युद्ध करने वाला योद्धा (जो कि स्वयं. रथी' के ] अर्य (वि.) [ ऋ+यत् ] 1. श्रेष्ठ, बढ़िया 2. आदरसमान कुशल नहीं होता)-रणे रणेऽभिमानी च विमुख- णीय,--यः 1. स्वामी, प्रभु 2. तीसरे वर्ण का व्यक्ति, श्चापि दृश्यते, घणी कर्णः प्रमादी च तेन मेऽर्धरथो मतः वैश्य, ..यी वैश्य की स्त्री। सम०--वर्यः सम्माम्य महा०, --रात्र: आधीरात-अथार्धरात्रे स्तिमितप्रदीपे वैश्य ।
-रघु० १६१४,-विसर्गः,--विसर्जनीयः क ख | अर्यमन (0) [ अयं श्रेष्ठं मिमीते-मा-कनिन नि.] तथा प फ से पूर्व विसर्गध्वनि,--वीक्षणम् तिरछी | 1. सूर्य 2. पितरों के प्रधान—पितृणामर्यमा चास्मि चितवन, कनखी,-वृद्ध (वि.) अधेड़ उम्र का, - भग० १०।२९, 3. मदार का पौधा ।। --नाशिकः कणाद का अनुयायी (अर्धविनाश का | अर्याणी [ अर्य+डीष, आनुक] वैश्य जाति की स्त्री। तार्किक)--वंशसम् आधा या अपूर्णवध-कु० ४।३१, | अर्वन (पं०) ऋ+वनिप 11. घोडा,-इलथीकृतप्रग्रह-मासः वृत्त में केन्द्र से परिधि तक की दूरी,
मर्वतां व्रजा:-शि०१२।३१, 2. चन्द्रमा के दस घोड़ों -बातम् पचास,-शेष (वि०) जिसके पास केवल
में से एक 3. इन्द्र 4. गोकर्णपरिमाण-ती 1. घोड़ी भाषा ही शेष रहा है,-इलोकः आधाश्लोक या
2. कुटनी, दूती। श्लोक के दो चरण,-सीरिन (पुं० 1. बटाईदार,
अर्वाच (वि.) [ अवरे काले देशे वा अञ्चति अञ्च+ अपने परिश्रम के बदले आधी फसल लेने वाला किसान
क्विन् पृषो० अर्वादेश: ] 1. इस ओर आते हुए -याज्ञ. १३१६६, 2. =दे० अधिक,-हारः ६४
(विप० परञ्च) 2. की ओर मुड़ा हुआ, किसी से कड़ियों का हार,-हस्वः लघु स्वर का आधा।
मिलने के लिए आता हुआ 3. इस ओर होने वाला 4. मक (वि.) [अर्ध+कन् ] आधा, दे० 'अर्घ' ।
नीचे या पीछे होने वाला 5. बाद में होने वाला, बाद का अधिक (वि.) (स्त्री--की) [अर्धमर्हति-अर्ध+ठन् ] -क (अव्य) 1. इस ओर, इधर की तरफ 2. किसी
1. आधी नाप रखने वाला 2. आधे भाग का अधि- एक स्थान से 3. पहले (समय या स्थान की दृष्टि से ) कारी,—कः वर्णसंकर, वैश्यकन्यासमुत्पन्नो ब्राह्मणेन --यत्सृष्टेरर्वाक सलिलमयं ब्रह्माण्डमभूत्-का० १२५ तु संस्कृतः, अधिकः स तु विज्ञेयो भोज्यो विर्न अर्वाक संवत्सरात्स्वामी हरेत परतो नृपः -याज्ञ० संशयः--पराशर।
२।१७३, ११३, ११२५४, 4. नीचे की ओर, पीछे, मणिम् (वि०) [अर्ध-इनि ] आधे भाग का साझीदार। नीचे (विप० ऊर्ध्व) 5. बाद में, पश्चात् 6. (अधि० मर्पणम् [ऋ+णिच् + ल्युट् पुकागमः ] 1. रखना, स्थिर के साथ) के अन्दर, निकट---एते चार्वागुपवनभुवि करना, जमाना,-पादार्पणानुग्रहपूतपृष्ठस्---रघु०
छिन्नदर्भाङ्कुरायाम्-श० १६१५ । सम-काल: २१३५, 2. बीच में डालना, रखना, 3. देना, भेट बाद में आने वाला समय,--कालिक (वि०) आसन्तकरना, त्यागना, स्वदेहापंणनिष्क्रयण-रघु०२।५५,
काल से संबंध रखने वाला, आधुनिक, °ता आधुनिकता, मुखार्पणेषु प्रकृतिप्रगल्भाः -१३।९, तत्कुरुष्व मदर्प
उत्तरकालीनता,--कलम नदी का निकटस्थ तट । णम्-भग० ९।२७, 4. वापस करना, देना, लौटा | अर्वाचीन (वि.) [ अर्वाच+ख ] 1. आधुनिक, हाल का देना यास अमर० 5. छेदना, गोदना-तीक्ष्णतुण्डा- 2. उलटा, विरोधी,-नम् (अव्य०) (अपा० के पणीवां नखैः सर्वा व्यदारयत्-रामा० ।
साथ) 1. इस ओर 2. के बाद का---यदूर्व पृथिव्या अपिसः [ +णि+इसुन् पुकागमः ] हृदय, हृदय का
अर्वाचीनमन्तरिक्षात्-शत० । मांस।
अर्शस् (नपुं०) [ऋ+असुन व्याधौ शुट च ] बवासीर । भर्व (म्वा० पर०) [ अर्बति, आनर्ब, अबितुम् ] 1. सम-न (वि.) बवासीर को नष्ट करने वाला की ओर जाना, 2. वध करना, चोट मारना।
(-इनः) सूरण, भिलावा (क्योंकि कहते हैं कि यह (d):-दम् [ अर्ब (व.)+विच्-उद्-इ+ बवासीर नाशक है)। 11. सूजन, (नाना प्रकार की) रसौली 2. दस | अर्शस (वि.) [अर्शस्+अच् ] बवासीर से पीड़ित। करोड की संख्या 3. भारत के पश्चिम में स्थित आबू / अई, (म्बा० पर०) [अर्हति, अहिंतुम, आनई, अहित] पहार, 4. सांप, 5. बादल 6. मांस पिंड 7. सांप जैसा (भार्ष प्रयोग-आ०, रावणो नाईते पूजाम्-रामा०) राक्षस जिसे इन्द्र ने मारा था।
1. अधिकारी होना, योग्य होना (कर्म० तथा तुमु. नर्मक (वि.) [अर्भ+कन् ] 1. छोटा, सूक्ष्म, थोड़ा 2. नन्त के साथ)-किमिव नायुष्मानमरेश्वरान्नाहति
दुबला, पतला 3. मूर्ख 4. बच्चा, छौना,-क: 1. -श०७, 2. अधिकार रखना, अधिकारी बनना-ननु बालक, बच्चा-श्रुतस्य यायादयमन्तमभक:-रषु० गर्भः पित्र्यं रिक्थमईति-श०६, न स्त्री स्वातन्त्र्य३३२१, २५, ७६७, 2. किसी जानवर का बच्चा महति-मनु. ९।३ 3. योग्य होना, पात्र बनना 3. मुखं बड़।
-अर्थना मयि भवद्भिः कर्तुमर्हति नै०५।११३, दश.
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