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--यविरूपाक्षमलक्ष्यजन्मता-कु० ५/७०,-लिंग ) यथेष्ट, काफी (संप्र० या तुमुन्नन्त के साथ)-तस्याल(वि.) जो वेश बदले हुए हो, जिसका नाम पता छिपा | मेषा क्षुधितस्य तृप्त्य-रघु० २।३९, अन्यथा प्रातहो,-वाच (वि.) किसी अदृश्य बस्तु को संबोधित राशाय कुर्याम त्वामलं वयम्-भटि०८१९८, (ख) करके बोलने वाला--कु० ५।५७ ।
समकक्ष, तुल्य (संप्र० के साथ) दैत्येभ्यो हरिरलम् अलगदः [लगति स्पशति इति लग+क्विप, लग अर्दयति सिद्धा, अलं मल्लो मल्लाय--महाभा० 2. योग्य,
इति अर्द + अच्, स्पृशन् सन्, अर्दो न भवति ] पानी सक्षम (तुमुन्नन्त के साथ)-अलं भोक्तुम-सिद्धा०, का साँप।
वरेण शमितं लोकानलं दग्धं हि तत्तपः--कु०२५६, अलघु (वि.) [स्त्री० घु-ध्वी ] [न० त०] 1. जो (अधि के साथ भी)----त्रयाणामपि लोकानामलमस्मि
हल्का न हो, भारी, बड़ा 2. जो छोटा न हो, लम्बा निवारणे--रामा० 3. बस, बहुत हो चुका, कोई (छंदः शास्त्र में) 3. संगीन, गंभीर 4. गहन, प्रचण्ड, आवश्यकता नहीं, कोई लाभ नहीं (निषेधात्मक बल बहुत बड़ा । सम०-उपलः चट्टान,-प्रतिज्ञ (वि.) रखना), करण० या क्त्वान्त के साथ, ----अलमन्यथा गंभीर प्रतिज्ञा करने वाला।
गृहीत्वा--मालवि० ११२०, आलप्यालमिदं बभ्रोर्यत्स अलखकरणम् [अलम्++ ल्युट् ] 1. सजावट, सजाना दारानपाहरत्-शिव० २।४०, अलं महीपाल तव
2. आभूषण (शा० तथा आलं.)--सृजति तावदशेष- श्रमेण---रघु० २।३४, कु० ५।८२, अलमिद्भिः
गुणाकरं पुरुषरत्नमलङ्करणं भुव:-भत० ११९२।। कुसुमैः-श०४, इतने फूल पर्याप्त है, 4. (क) पूर्णअलङ्करिष्णु (दि०) [अलम++इष्णु च ] 1. आभूषणों रूप से, पूरी तरह से--अर्हस्येनं शमयितुमल वारि
का शौक़ीन, 2. सजाने वाला, सजाने की क्रिया धारा सहस्रः--मेघ० ५३, त्वमपि विततमज्ञः स्वगिणः में कुशल ।
प्रीणयाऽलम्-श० ७।३४, (ख) बहुत, अत्यधिक, अलङ्कारः [ अलम्++घन ] 1. सजावट, सजाने या
बहुत ही अधिक,---तुदन्ति अलम का०२, यो गच्छत्यलं अलंकृत करने की क्रिया 2. आभूषण (आलं० से भी)
विद्विषतः प्रति-अमर० । सम-कर्मोण (वि०) -अलङकारः स्वर्गस्य-विक्रम०१,3. अलंकार जिसके
कार्य करने में सक्षम, दक्ष, कुशल, -- कृ दे० 'कृ' के शब्द, अर्थ तथा शब्दार्थ के अनुसार तीन भेद हैं
नीचे,—जीविक (वि०)जीविका के लिए यथेष्ट,-धन 4. काव्य के गुण दोष बताने वाला शास्त्र। सम०
(वि.) यथेष्ट धन रखने वाला, धनवान,—निरा-शास्त्रम् काव्य कला तथा साहित्य शास्त्र,—सुवर्णम्
दिष्टधनश्चेत्तु प्रतिभूः स्यादलंधनः-मनु० ८।१६२, आभूषण घड़ने के लिए सोना।
-धूमः अधिक धूआँ, धूम्रपुज, धुएँ का अंबार,-पुरुषीण अलकारकः [ अलम्++घञ, स्वार्थे कन् ] आभूषण,
(वि०) 1. जो मनुष्य के योग्य हो, मनुष्य के लिए सजावट मनु० ७।२२०, [अलम् + +ण्वुल ]
पर्याप्त हो,-बल (वि.) पर्याप्त बल शाली, यथेष्ट सजाने वाला।
शक्तिशाली, बुद्धिः पर्याप्त समझ,--भूष्ण (वि.) अलडकृतिः (स्त्री०) [अलम+-+क्तिन् ] 1. सजावट
योग्य, सक्षम--विनाप्यस्मदलंभूष्णुरिज्याय तपसः 2. आभूषण, कर्णालङकृति:--अमरु०१३, 3. साहित्यिक
सुतः-शि० २१९ । आभूषण, अलंकार-तददोषौ शब्दार्थों सगुणाबन- | अलम्पट (वि.) [न० त०] जो लंपट या विषयी न हो, लडाकृती पुनः क्वापि-काव्य०१; यो विद्वान्मन्यते शुद्ध चरित्र वाला,-टः अन्तः पुर । काव्यं शब्दार्थावनलडकृती, असौ न मन्यते कस्मादनुष्ण- अलम्बुषः [ अलं पुष्णाति इति—पुष ।-क पृषो० पस्य बः ] मनलं कृती--चन्द्रा० सालङकृतिः श्रवणकोमलवर्ण- 1. वमन, दि, 2. खुले हुए हाथ की हथेली। राजि:--भामि० ३१६, (यहाँ अद्वितीय तथा तृतीय अलय (वि.) [ न० ब०] 1. गहहीन, आवारा 2. नाश अर्थ प्रकट करता है)
___ न होने वाला, अविनश्वर,--यः [ न० त०] 1. अनअलजक्रिया [अलम् ++श+टाप् ] अलंकृत करना, नश्वरता, स्थायित्व 2. जन्म, उत्पत्ति ।
आभूषित- करना, सजाना। (आल ० भी)। अलर्कः [अलम् अयंते अय॑ते वा अर्क+अच, अर्च+घन अलाघनीय (वि.) [न० त०] जो लांघा न जा सके, पार वा शक० पररूपम् ] 1. पागल कुत्ता या मदोन्मत
न किया जा सके, जहाँ पहुँचा न जा सके, पहुँच के | व्यक्ति 2. सफेद मदार। बाहर।
अलले (अव्य०) [अर+रा+के रस्य ल:] बहधा नाटकों अलजः [अल-+जन्+ड] एक प्रकार का पक्षी।
में प्रयुक्त होने वाला पैशाची बोली का शब्द जिसका अलञ्जरः, ---जुरः अलं सामर्थ्य जणाति-ज+अच् पुषो० कोई अपना तात्पर्य नहीं।
उत् तारा ] मिट्टी का बर्तन, मर्तबान, घड़ा। | अलवालम् [न० त०] वृक्ष में पानी देने के लिए जड़ में अलम् (अव्य०) [अल+अम् बा०] 1. (क) पर्याप्त, । बना हुआ स्थान दे० 'आलवाल'।
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