Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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मुनि श्रीमिश्रीमल 'मधुकर' : जीवन-वृत्त : ६३
(राजीमती से विवाह करने के लिये जाते समय मार्ग में बाड़ों में और पिंजरों में संरुद्ध पशु और
पक्षियों को देखकर भगवान् नेमिनाथ का सारथी से पूछना-) भगवान् कैसे मचाया शोर जीवों ने, कैपे मचाया शोर ॥ ध्रुव ।। वनचर जीव को बन है प्यारा, मुरझ रहे पंखों-वार।।
देख रहे चहूं और ॥ जीवो ने ।। तड़फ रहे हैं प्राण इनों के, प्रबल सहाय न दी जिनों के ।
किम मेले किये इन ठौर ।। जीवों ने ॥ सारथी-सारथी सज्जन वाक्य सुणी के, दयाभाव है हृदय जिन्हीं के।
अरज करे कर जोर ।। जीवों ने ।। कारण आप विवाह के मांई, भोजन काज हनेंगे ताई।
सांच कहूं शिरमोर ॥ जीवों ने ॥ भगवन् ! भारी दीन दयाला, सब जीवों के हैं रखवाला ।
बंधन दिये सब खोल ॥ जीवों ने ॥
उपदेशी भजन श्राप मुवाँ जग सूना है तो ही पाप करत नर दूना है। ध्रुव० ॥ पुह कहावत सब नर भाखे, इन का भाव न घट में राखे।
जैसे आहार अलूना है। आप० ॥ मुख से कहना वैसा करना, इन बातों से होवे तिरना।
धरना चित्त में करुणा है। आप० ॥ जाना है जग में नहीं रहना, उत्तम मारग में नित रहना ।
समजो आप सलूना है। आप०॥ [जैन-रामायण के अनुसार किष्किधा के स्वामी बाली ने संयम ग्रहण किया था,
उस अवसर पर प्रस्तुत रचना]
राज तज बाली भए मुनिराज ॥ध्रुव ॥ राज-काज सब त्याग दियो है, साम्य-सुधा-रसपान कियो है।
छोड़ विषय के साज ॥राज० ॥ समिति गुप्ति शुद्ध आराधे, मनसा नित हित साधन साधे ।
सब जंतु हित काज ॥ राज० ॥ अष्टापद गिरि श्राप पधारे, विषम भाव सब दूर निवारे ।
तारण - तरण जहाज । राज०॥ सुर-नर मुनि की सेवा करत है, कर्म मैल निज दूर हरत है।
सेवत भव्य-समाज ॥ शज. ।।
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