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प्रगट कर्ता
भावुक भामा
मुंबई
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पंडित श्रीकांतिविजयजी विरचित
शील सत्त्व माहात्म्यमय
श्री महाबल मलया सुंदरीनो रास.
यथामति शुद्ध करीने
सम्यक् दृष्टि जनाने वांचवाने अर्थ
श्रावक भोमसी माणकें
श्री मोहमयी पत्तन मध्ये
शान्ति सुधाकर प्रेसमा छपादी
प्रसिद्ध कर्यो छे.
( आवृति वीजी )
संवत् १९६३ महानुद१ सन्ने १९०७
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॥ ॐ श्री परमगुरुभ्यो नमः ॥
॥
॥ अथ पंडित श्रीकांतिविजयजी कृत || ॥ श्री महाबल मलय सुंदरीनो रास प्रारंभ ॥
॥ दोहा ॥
॥ स्वस्तिश्री सुख संपदा, पूरण परम उदार ॥ था दीसर आनंद निधी, प्रणमु प्रेम अपार ॥ १ ॥ फणी मणि मंकित नील तनु, करुणारस जरपूर ॥ पारस जलधर पल्लवो, बोध बीज अंकूर ॥ २ ॥ शासन ना यक साहेबो, गिरुd गुण विलसंत ॥ हरिलंबन हियमे धरु, महावीर जगवंत ॥ ३ ॥ गणधर मुख मंरुप व से, विहम महिमा जेह ॥ ांतर तिमिर विनासिनी, समरुं सरसति तेह ॥ ४ ॥ चतुमंगल वरत्यां हवे, प्रगट्यो वचन प्रकाश ॥ निज इछा पूर्वक पणे, जाषु वारू जास ॥ ५ ॥ धर्म सहित कौतुक कथा, कवि ता कहतो सार ॥ निज जीदा पावन करे, विकसे मति परिवार ॥ ६ ॥ कार धुर संब्यो, चवेदा चोसाल ॥ तिम पुरुषारथ धुर धरयो, धर्म एक सुर साख ॥ ७ ॥ डुरगति पकता जीवने, धारणथी ते ध
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(२)
म ॥ नाणादिक त्रण रत्नमय, कहीयें ताहि सुमर्म ॥ ॥७॥ नाणादिक जिन उपदिस्या, निर्मलता गुण हेतु ॥ पण विशेष नाणज कह्यो, सोधितणो संकेतु ॥ ॥ अकल पदारथ सोधिये, परमारथथीनाण॥ निरुपाधिक लोचन नवु, त्रीजुं नाण प्रमाण ॥ १०॥ निःकारण बंधव समो, नवजल तरण उपाय ॥ ख लता पुरगति खाममें, आलंबन निरपाय ॥ ११ ॥ अंतर तिमिरने नेदवा, नाण दीप निरबाध॥नरता दिक नृप नाणथी, नवजल तरया अगाध ॥ १२ ॥ नाण विपदथी उछरे, नाण दीये सवि थोक ॥ मल यसुंदरी जिम सुख लही, चित्तधरी एक सलोक॥१३॥ किम आपदथी उतरी, किम पामी सुख गय॥ तास चरित्र चौपै कडं, सुणजो सहु चित्त लाय ॥ १४ ॥ थालश निझा परिहरी, उभी विकथा मित्र ॥ सुणतां मलयानी कथा, करजो करण पवित्र ॥ १५ ॥ ॥ ढाल पहेली ॥अजितजिणंदसुंप्रीतमी॥ए देशी॥ ____॥ जंबूद्वीप सोहामणो, सोहे सोहे हो सवि बीप विचाल के, लवण समुझे वींटी, साख जोय
हो वरतुल जिम थालके ॥ जं० ॥ १॥ तेमांदे क्षेत्र हरत अछे, खटखने हो मंमित सुविशाल नव नव
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(३.)
संपद भूमिका, ते साधे दो चक्री बोगाल ॥ जं० ॥ २ ॥ दक्षण जाग चंद्रावती, नगरी तिढ़ां दो बाजे निकलं क ॥ अलकापुरि उपर गई, लंकावली हो सायर जस संक ॥ जं० ॥ ३ ॥ विस्तर चटा चिहुं दिसें, चोरा सी हो चावा जिहां खास ॥ सायर तजी जल डूष थें, जाणे लखमी हो तिहां कीधो निवास ॥ जं० ॥ ॥ ४ ॥ फटिक रतनमय सौधनी, रुचि उल हो प सरेराम ॥ त्र्यंधारें पख पण नहीं, तिणे रहेवा दो क्षण तिमिरनो ठाम ॥ जं० ॥ ५ ॥ किहां कर्णे घर चंद्रकांतनां, परिबिंबे हो तिहां चंद्र मरीच ॥ श्र स्खल जल परनालना, वरसालो हो परगट करे सी च ॥ जं० ॥ ६ ॥ गयणंगतल पूरती, अटारी हो उंची कैलाश ॥ गोखें ग्रोखें रहे गोरमी, जाणे अपवर हो करे रंग विलास ॥ जं० ॥ ७ ॥ मरकत विद्रुम कांचने, के रचिया हो मंदरना जाल ॥ दिसिदिसि तेज जलामजे, होये दिन दिन हो सुर धनुष अकाल ॥ ॥ जं० ॥ ८ ॥ कुंकुम मृगमद वासीया, जलपूरें हो दगगें प्रनाल || जमर जमे रसीया परें, रस लंपट हो करता ढक चाल ॥ जं० ॥ ए ॥ गढ़विंटी चिह्न दसि पुरी, परिपूरी हो सुखी एसविलोग ॥ डुखिया
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(४) थालंबन लहे बहु, पामे पामे हो नव नवला जोग ॥ जं० ॥ १० ॥ कंटक कंटक तरु रह्या, दो जीहा हो विषहर कहेवाय ॥ खल दाखीजे खेतमां, मंमदीजे हो सुर मंदिर गय ॥ ज०॥ ११॥ करछेदन नृप जे ग्रहे, तिम कुसुमे हो बंधन उपचार ॥ कुटिल पणो केसे ग्व्यो, नव दीसे हो कोश लोक मजार ॥ जंग। ॥ १५ ॥ निर्मल सरवर जल नरयां, के दर्पण हो दि सिनां मनुहार ॥ जोगी नमर जीले घणा, घण महके हो कमलोनो सार ॥ जं॥१३॥ वनवामी आरामनी, बबि नीली हो अमती चिहुंउर । स्वर्गपुरी जीतण न णी, कसी नीड्यो हो बखतर हठ जोर ॥ जं॥१४ ॥ अतुलबली बली नृप समो, रिपुमृगने हो त्रासन जे सहि ॥ दाता ताता साहसी, न्याये धोरी हो गुण वंत अबीह ॥ जं ॥ १५ ॥ सबल प्रतापें तापव्या, रिपु वसीया हो सीतल गिरि कुंज ॥ वनफल नखी निजर पीयें, मुनिवृत्तें हो जीवे उःख पूंज ॥ जंग । ॥ १६ ॥ लखमी करकमले वसी, मुख एहने हो स रसती विलसंत ॥ विण आदर रहवो किशो, जस कीरति हो गश् कोपी दिगंत ॥ जं० १७ ॥ हेलें धनुष नमामतां, शिर नमिया हो अरिनां तत
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(५)
काल ॥ वीरधवल नामे तिहां, करे राजा हो निज राज संजाल ॥ जं० ॥ २७॥ देशावर नृप नेटणा, बहु आवे हो हय गय रथ कोमि॥ चतुरंगी सेनाधणी, नवि श्रावे हो तहनी कोई जोमि ॥ जं० ॥१५॥को मल चंपक दल जिसी, घर राणी हो रतिने अनुहार॥ चंपकमाला तेहने, शीलादिक हो गुण मणि नंमार ॥ ॥जं ॥२०॥ बीजी कनकवती अबे, सोहागिण हो नृप प्रेम निधान ॥ विलसे रंगे रायसुं, सुखलीणी हो बे चढते वान ॥ जं॥१॥पुर वर्णनी परगमी, ईम कांते हो कही पहेली ढाल ॥ सुणो श्रोता जीजी क री, आगल ले हो अतिवात रसाल ॥ जं ॥ १२ ॥
॥दोहा॥ ॥वीरधवल पालें प्रजा, निज संतति परें तेह ॥ पुःख दोहग दूर करे, दिनदिन धरतो नेह ॥१॥ एक दिन चिंतातुर थर, बेगे तेह नूपाल ॥अतिहिं श्रामण दूमणो, नीची दृष्टि निहाल ॥ ॥ श्राद र नवि दे केहने, दिलगिरी दिल मांद ॥ नमी बय खें नवनवी, रागरंगनी चाह ॥३॥ वदनकमल जां खुं थयु, पुरबल थयुं शरीर ॥ चिंता मायणी आग खें, धीरज कुंण सहे धीर ॥ ४ ॥ चिंता मायणि
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मनवसी, क्षण क्षण पंजर खाय ॥ तिल तिल करी जे संची, ते तोले तोले जाय ॥५॥ संतापें ता प्यो घणुं, न सुणे केहनी वात ॥ अन्न उदक रुची परिहरि, जोगीसरज्युं ध्यात ॥ ६ ॥ चंपकमाला पे खी, इणे अवसर नरनाद ॥ आश् तुरत पणे ति हां, सत्रम जर चित्तचाह ॥ ॥ राय बागल उन्नी रही, धरती राग विशेष ॥ करजोमी बोली प्रिया, णीपरें अवर उवेख ॥ ७॥ ॥ ढाल बीजी॥ करजोमी मंत्रि कहे ॥ ए देशी॥
॥ करजोमी राणी कहे, अरज सुणो महाराज हो प्रीतम ॥ पूर्बुबु बंदे रह्या, कहेता मत करो लाज हो ॥ प्री० ॥ कर ॥ १॥ बोलो नहीं मन मेलवी, खोलो नहीं सदनाव हो ॥ प्री० ॥ श्रावतां श्राव कहो नहीं, जातां कहो नहीं जाव हो ॥ प्री० ॥ करण ॥२॥ थश्वेग अण उलखू, न धरो कांश् सने ह हो ॥ प्री० ॥ वारी जाउं लखवार हूं, मुजरोख्यो गुण गेह हो ॥ प्री० ॥ कर ॥ ३ ॥ दासी हूं पा यें पहुं, थे महारा सिररा मोम हो ॥ प्री० ॥ थे जी वणरी उषधी, कुण करे तुमची हार हो ॥प्री० ॥ करण ॥४॥ किम सरसे बोल्या विना, प्रगटे डे थ
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म ताप हो ॥ प्री० ॥ मौन सी केणे कारणे, चिं तातुर थर आप हो ॥ प्री० करत ॥५॥ केणे तु म कथन की नहीं, कुणे उहव्या महाराय हो । प्री० ॥ के कांता को दिल वसी, चिंतो तास उपा य हो ॥ प्री० ॥ कर ॥ ६ ॥ के कोइ अरिअण जागी, चिंता पेठी तास हो ॥ प्री० ॥ के जोगी जंगम मल्यो, कीधा तेणे उदास हो ॥ प्री० ॥ क र० ॥ ७॥ के को बाधा उपनी, अंगे जीवन प्रा ण हो ॥ प्री० ॥ के इणे वेला सांजरयो, अरिक्षण वयरी पुराण हो ॥ प्री० ॥ कर० ॥ ७॥ कवण अ डे ते राजी, जे बांधे तुमसुं तेग हो ॥ प्री० ॥ पं चायण गिरि गाजते, मृग नासें करे वेग हो ॥ प्री० ॥ कर ॥ ए॥ के केणे पुरजने नाखीजे, अणहंतो श्रम दोष हो ॥ प्री० ॥ के किणदिक अपहरि लीजे, नवलो लखमी कोश हो ॥ प्री० ॥ कर ॥ १० ॥ के मनमान्यो साजरयो, परदेशी को मित्त हो ॥ प्री० ॥ सुरत समयनुं बोलहुँ, के खटक्यो को ६ चित्त हो ॥ प्री ॥ कर ॥ ११॥ के मारग सं बेगनो, नेदाणुं सरवंग हो ॥ प्री० ॥ मनमेलु साचुं कहो, श्राशय एह अनंग हो ॥ प्री० ॥ कर० ॥
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(ज) २२॥ यद्यपि न नांजे अम थकी, चिंता मोटी कां य हो ॥ प्री० ॥ तो पण एकांगे रही, समतायें विं हचाय हो ॥ श्री० ॥ कर० ॥ १३ ।। एम सुण्या ध रणी धवे, हृदयें स्त्रीना बोल हो ॥ प्री० ॥ सरिसा मन नदन नला, मधुरा अमृतनें तोल हो॥प्री० ॥ ॥ कर ॥ १४ ॥ कहसे हवे राणी प्रतें, ए थ बी जी ढाल हो ॥ प्री० ॥ कांति कहे धन ते त्रिया, जे लहे पति चित्त चाल हो ॥ प्री० ॥ करण ॥ १५ ॥
॥दोहा॥ ॥ वयण सुणी उग जर, बोल्यो तव नूपाल ॥ चिं ता कारण चित्तधरी, सुण सुंदरी सुकुमाल ॥ १ ॥ जे तें पूज्या विविध परें, नहीं तेहनी मुज चिंत ॥ शुद्ध स्वनावे सर्वथा, तिण वातें निश्चिंत ॥ ५ ॥ ए मुज चिंता उमटी, अकस्मात बलवंत ॥ मूल थकी मामी कहूं, सुपरें सवि विरतंत ॥३॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ धिगधिग विषय विटंबना ॥ए देशी॥
॥ण पुरमां व्यवहारिया, निवसे डे गुणवंतो रे॥ लोननंदी लोनाकरा, बे ना धनवंतो रे ॥ १॥ धि गधिग लोन विटंबना, लोने लक्षण जाय रे, लोने नर पीमा लहे, लोने पुरगति थाय रे ॥ धि०॥२॥
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बांधव नेह धरे घj, मांहो मांहे बेहो रे, जेद न पामे ए कदा, खीर नीर परें तेहो रे॥ धि० ॥ ३॥ लोनाकरने सुत थयो, नाम दी गुणवर्मा रे ॥ लोजनंदी परण्यो फरी, पण सुत नही पूरव का रे ॥ धि० ॥४॥ एक दिवस बेठा मली, हाटें वे हु जेवारो रे ॥ परदेशी एक पंथीयो, थायो तेथ तिवारो रे ॥ धि ॥ ५॥ जज प्रकृति उन्नो रह्यो, तेहने को न पिळगणे रे ॥ दीगे शेवें एकलो, उत्तम पुरुष प्रमाणे रे ॥ धि० ॥६॥ बोलाव्यो गौरव पणे, थागत स्वागत कीधो रे॥ आदरसुं आगल नलो, श्रासण बेसण दीधो रे ॥ धिम् ॥ ७ ॥ पू शेठ किं हां रहो, किम श्राव्या शण गामे रे ॥ जात किसी जे तुमतणी, नीकलिया किणे कामे रे ॥ धिण् ॥ ज॥ कहे पंथी दत्रि अबुं, परदेशी असहायो रे ॥ देश देशावर देखतो, फरतो हुँतो शहांबायो रे॥धि०॥ ए" शेठे निजघर तेमी, नोजन नगत नलेरी रे ॥ कीधी वली के दिन लगें, राख्यो जातो घेरी रे ॥ धि ॥ १० ॥ विश्वासे हलि मलि रह्यो, अंतर कांश न राखे रे ॥ देश विदेश तणी घणी, वात जली न सी लाखे रे ॥ धिण ११॥ अन्य दिवस कहे पंथी
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(१०) यो, ए तुंबी मुज लीजे रे ॥ पाली देजो शेठजो, जि ण दिन फरी मागीजे रे ॥ धि ॥ १५ मुखमुखा गाढी करी, शेठ तणे कर दीधी रे॥ऊंची बांधी तुंब मी, हाट मांहे तेणे सीधी रे ॥ धिम् ॥ १३॥ बे नाश्ने तेणे कह्यो, करजो एहनी संजाल रे ॥ ते कहे हुँ जीव न समो, एह ने तुमचो माल रे॥धि०॥१४॥ चतुर विदेशी चूकी, रोप्यो अनरथ मूल रे॥ कांति विजय कहे ढाल ए, त्रीजी थश् अनुकूल रे॥ धि०॥ १५ ॥
॥दोहा शोरेगी। ॥ तुंबी लागोताप, अवर वस्तुनो आकरो॥ वाध्यो रसनो व्याप, जरवा लागी जटकसुं ॥ १॥ दोहा ॥ तुंबीमाथी रस गली, हेठ बंधायें बंद ।। खोह कोश नीचे पमी, सिंचाणी निरमंद ॥२॥ लोह दिशा लघु बगंमी ने, हेमंदर्जु गुतिमंत | हाट कोण जलिमलि रह्यो, मोड्यो तिमिर तदंत ॥ ३॥ दृष्टि पड्यो दो सेग्ने, सो वन साचे रंग ॥ चमत्कार चित्त पामी, जाएयो रस नो संग॥४॥ अतिलोने बांधा हया, तुंबी ले नि स्संक ॥ गुपत पणे मूकी गृहे, न गएयो काल कलंक ॥ ॥ ५॥ मायावी मन हरखीया, लोनें वाह्या लुंग ॥ कुलवट वहेती मूकीने, कीधो कारज लुंग ॥ ६ ॥थ
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ति उन्धक पंथी थयो, साचो चालण संच ॥ तुंबी मा गी ते कन्हें, विनय वचन परपंच ॥२॥ मायावी मृड वचनसुं, बोट्या बे मुरबुद्धि ॥ व्यग्रपणे तुज तुंबिनी, कीधी कां न सुधि ॥ ॥ उछत उंदर श्राफले, ग म गम प्रचंम॥ काढ्यो बंधण तुंबिका, पमी थर श तखंग ।। ए॥कोश्क दिन तसु कटकमा, दीठा पम्या अनेक ॥ श्रम दिलमें अति पुःख हुर्ज, चिंताये व्यति रेक ॥१०॥समसगरांकरी साचज्यु, कृतिम करे फुःख लार ॥ अपर तुंबीना खंग ले, देखामया तेणी वार ॥ ॥ ११॥ वैदेशिक विलखो थयो, खोइ सघली श्राथ। हाहा दैव किशु कीयो, नूमि पमया बे हाथ ॥ १२॥ दक्ष पणे जाएयो तेणे, ए नहीं तेहना खंम ॥ जिम तिम तुबी उलवी, सम काढे लंग ॥ १३ ॥ किहां जालं कहने कडं, किशो करुं हुंसूल ।। दगो दिळ उष्टें बुरो, लीधो तुंब अमूल ॥ १४ ॥ कहुँ कदाचित राय ने, तोपण रस ले तेह ॥चिंति चुंपे चित्तमें, श्म बोले गुण गेह ॥ १५ ॥
॥ ढाल चोथी॥ विडियानी देशी॥ ॥ मोरी तुंबी दी शेठजी, इंतो कहुंडं गोद बि गय रे॥ काम न कीजें कांश तेहवो, जेणे मान महा
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(१५) तम जाय रे॥ मो० ॥ १ ॥ अरे परदेशीनु उलवी, एह जीवन लीधो मुज रे॥जण वीससीथा नीसा समो, जुःख होसे सही तुऊ रे ॥ मो० ॥ ॥ वली तुम सरिखा जो श्म करे, जन निंदित मागं काम रे॥ तो संतति विना नू लोकमां, सत्य रहेवानो कुंण गम रे । मो० ॥३॥ जलनिधि रहे मर्यादमां, धरणि शिर शेष वहंत रे॥ अति सूर तपे नहीं श्राकरो, ते म हिमा डे सत्यवंत रे ॥ मो ॥४॥ सत्यें सुर सानि ध कर, हाय सत्ये पुरुष प्रमाण रे ॥ जग उत्तम स त्य राखण जणी, निज प्राण करे कुरबाण रे ॥ मो० ॥५॥ कांश हांसुं न कीजें हेलथी, ए घर खोयानुं ग म रे॥ परतावो हासे तुम मने, श्ण वातें खोसो मा मरे ॥ मो॥६॥श्म जूठा सम खातां थकां, ना ठी तुमची किहां लाज रे ॥ नर उत्तम हाम वहे न ही, करतां जूंमां एहज काम रे । मो० ॥ ७॥ हवे लोन बसें लहेता नथी, एह वावो बो विष वेलि रे ॥ तुम अनरथ फल देसे घणा, हुंकहुं हुं खड़ा मेलि रे । मो० ॥ ७ ॥ बिंडं शेठ कहे सुण पंथिया, कांश सुद्धि ग तुझा रे॥ जग वामिन चोरे चीनमां, दिल बूज विचारि अबूज रे ॥ मो॥ ए॥ श्म जूगे दोष
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चढावीने, तुं खोवे कां निज गम रे ॥ किहां सुणिया शाह शिरोमणी, ए करतां जुमा काम रे॥मो॥१०॥ फिट लाजे नहीं कां बोलतो, अणडंति एम गमार रे॥जो होंस होये राउल नणी, तो जर आवीयें ए वार रे ॥ मो० ॥ ११॥अति काठगे उत्तर श्म दी उ, शेवें करी कपट जिवार रे॥ ते पंथिक निरास प को ग्रही, कोप्यो अति जोर तिवार रे ॥मो० ॥ १२॥ कांश साची सीखामण यूं हवे, श्म बोल्यो तेणीवार रे ॥एक विद्या बगेमी थंजणी, ते थंच्या घरने बार रे॥ ॥ मो० ॥ १३ ॥ तव संधे संधे बंधित थया, न खिसे त्यांथी तिल मात रे ॥ बिडं चित्र लिखित परें थिर रह्या, मन मांदे घणुं अकुलात रे ॥ मो॥ १४ ॥ तेह ऊठी चल्यो परदेशियो, फुःखजाल बंधाणा बेद रे॥ श्हां चोथी ढाल सोहामणी, श्म कांतिविजय कही एह रे ॥ मो॥ १५ ॥
॥ दोहा शोरठी ॥ ॥ सोचें सूधा शेठ, बेहु ऊना बारणे ॥ दैवें दीधी वेठ, पेट मसली पीमा करी ॥ १॥ श्राव्या लोक थ नेक, थंन जिशा थिर देखीने॥तरिया बल बेक, श्म बोले अचरिज नरया ||॥सुणतां लोक सुजाण ॥
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( १४ )
शेठ कड़े संकट पड्या ॥ करुणा करी को जाए, श्र मने बोने इहां थकी ॥ ३ ॥ श्रमे न जाएयो एइ, श्र पद से करी ॥ दुःखजर दाधी दे, प्राण हुआ बे प्राणा ॥ ४ ॥ कीजे कवण उपाय, मरतांने मा रथा दिवें ॥ जो किम लूट्यो जाय, तो काम न कीजे एहवो || ५ || लोक इसे लख कोमि, कै रोवे कै कूकु ए || देता दह दिसि दोन, कौतुक निरखे कइ जणा ।। ॥ ६ ॥ हुई ते दादाकार, पुर मांदे प्रबल पणे ॥ वा त तो विस्तार, जाण्यो सघले जुगतिसुं ॥ ७ ॥ दोहा || गुणवणे अवसरे, ग्रामांतरथी गेह ||
यो वात कुटुंबथी, जाणी सघली तेह ॥ ८ ॥ पि ता पिताबांधव बेहु, द्वारे थंच्या देखि ॥ लाज्यो मनमांदे घणो, दुःख पाम्यो सविशेष ॥ एए ॥ कु मर कड़े सुणो तातजी, म करो चिंता कांय ॥ विधि सुं तुम बोजणी, करसुं कोमी उपाय ॥ १० ॥ चींतातुर तव कुमर ते, सोधे नवनव बुद्धि ॥ कार न
वी कांति, जोवे तांत्रिक सिद्ध ॥ ११ ॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ अबला किम जवेखीये रे ॥ एदश ॥ ॥ ॥ कुमर हवे उनमत थयो रे, सोधे नवनव ठाय रे ॥ मांत्रिक तांत्रिक भेलवा रे, मांगे को मि उपाय रे ॥
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( १५ )
तातने बोवा ॥ करता ढील न कांय रे, पुरमांडे फरे ॥ जोवे जुगति बनाय रे, बंधण तोवा ॥ पण नावे को य दाय रे, तातने बोमवा ॥ १ ॥ गाम नगर पुर क aah रे, जमतो नासे रे आम || जे अम तातने बो ha रे, तो मुंह माग्या धुं दाम रे ॥ ता० ॥ २ ॥ व चन सुणी उव्या तिसे रे, विविध वैद्यना पुत्र ॥ सिद्ध बुद्ध at धरा रे, जणता निज निज सूत्र रे ॥ ता ॥ ३ ॥ केइ जंगम के जोगीधा रे, केइ तापस अवधूत ॥ जाप जयंता विया रे, चाढी शीस विनूत रे ॥ ता० ॥ ४ ॥ कै कापिल के कापमी रे, के सन्यासी जक्त ॥ के बांजण वली वेदीआ रे, कै ध्याता शिव शक्ति रे || ता० ॥ ५ ॥ ब्रह्मचारी केता मिल्या रे, केताइक श्रीपा त ॥ के निरंजन पंथना रे, केश्क चरक कहात रे ॥ ता० ॥ ६ ॥ केइ दिगंबर दोमीया रे, जरकाने जगवंत ॥ के त्रिदंगी मुंदिया रे, आगल कीध महंत रे ॥ ता० ॥ ७ ॥ राउल रंगे उमट्या रे, दोड्या केइ दरवेश || जगने फंदे पारुवा रे, करता नवनव वेश रे ॥ ता० ॥ ८ ॥ इष्टधरा अभिचारका रे, जतन करावे को मि ॥ श्रावी विध विध उपचरे रे, करता होगा दोन रे ॥ वा ॥ ए ॥ एक कहे आहुति दियो रे, बलियो एक
॥
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(१६) कहंत ॥ श्ष्ट मनावो कोई कहे रे, मंगल को विरचंत रे ॥ता ॥ १० ॥ एक कहे धूणावीयें रे, एक कहे दीजे मंज ॥ एक कहे शिर {मीने रे, करिये तंत्र अचंज रे॥ ता ॥ २१॥ एक कहे जल गंटीयें रे, मंत्री एहने अंग ॥ एक कहे ए यंत्रथी रे, थासे पहला चंग रे॥ ता॥१२॥ एक कहे ग्रह पूजिने रे, करसुं साजा श्रांहिं॥ एम अनेक शब्दे करी रे, कोलाहल ह त्यां हिं रे ॥ ता० ॥ १३ ॥ उद्यम सवि निःफल थयां रे, को न आव्यो तंत ॥ रणनी ऊखर नूमिका रे, जिम जलधर वरसंत रे,॥ता॥१४॥ जिम जिम युगति उपच स्या रे, तिम तिम वाधे वीमसायर जल उमा जि हां रे, तिहां वमवानल नीम रे॥ ता॥१५॥ पुर्ज न परे मंत्रादिकें रे, कीधा तेद निरास ॥ऊठी गया निज निज थले रे, साथ मनोरथ तास रे॥ता ॥१६॥ कुमर इस्यो मन चिंतवे रे, उठी जेहथी बाग॥समसे तेहथी तहने रे, आणु उद्यम लाग रे ॥ता॥१७॥ उपलक्षक साथें लीन रे, तव नर एक सखाय॥चाल्यो नर सोधण नणी रे, कुमर करी चित्त गय रे॥ताणार॥ सेठ रह्या बांध्या तिहां रे, करशे कुमर सहाय ॥ ढाल कही ए पांचमी रे, कांतिविजय सुख दायरे ॥ताणारए॥
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॥ दोहा॥ ॥ वनगिरि गुहिर पुर नगर, निसदिन तेह लमं त ॥ पग पग पूरे पंथमें, पण खबर न कोई कहं त ॥१॥ विकटपंथ श्रमथी पम्यो, मांदो तेह स हाय ॥ मूकी कोश्क नगरमां, कुमर चल्यो असहा य ॥२॥ पुर अटवी उखंघतो, पोहोतो एकण दे श ॥ निरमानुष मोटो तिहां, (मनुष्यनी वस्तिविना नो) दीगे नगर विशेष ॥ ३॥ उंचां मंदिर जलहले, जाणे गिरि कैलास ॥ गम गम सुंनी पमी, मणिमा णिकनी रासि ॥४॥धानपंज पंखी चणे, वस्त्र उ मामे वाय ॥ श्रीफल फोमीने वानरां, खांत करीने खाय ॥ ५॥ त्रूटा ध्वज धरणी पमयां, ढोल्या मदिरा माट।फूल पगर बाबे नयां, सुंना दीसे हाट ॥६॥ कुमर तव विस्मित पणे, कीधो नगर प्रवेश ॥ दीगे नर तिहां एक अति, सुंदर तरुणे वेश ॥ ७ ॥ बोल्यो तरुणो कुमरनें, कुण तुं महानाग ॥ याव्यो कि हाथी किहां रहे, साचो कहे अम आग ॥७॥ कु मर कहे सुण माहनां, हुं पंथी असहाय ॥ पंथकरी थाको घणुं, थाव्यो बुं इंणे गय ॥ ए ॥ तुं कुंण दीसे एकलो, बेगे ले किण काम ॥ रुछिनरी सुनी
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( १८ )
किसें, कुण नगरीनुं नाम ॥ १० ॥ ततक्षण नर बोल्यो इशुं, सुण बांधव गुणवंत ॥ मूलथकी कहुं मां मीने, सकल परें विरतंत ॥ ११ ॥
॥ ढाल बही ॥ कपूर होये प्रतिजजनुं रे ॥ ए देशी ॥
॥ कुशवर्द्धन पुर ए जलं रे, स्वर्ग पुरी उपमान ॥ राजासूरें शोजतो रे, दिन दिन चढते वान || सुगुण नर सांजल मोरी वात ॥ १ ॥ पुत्र हुआ बे सूरनें रे, जयचंद्र ने विजयचंद्र ॥ बे बांधव वाला घणुं रे, कुवलयने जेम चंद्र ॥ सु० ॥ २ ॥ मुज बांधव जय चंद्रने रे, ताते दीधुं राज || लागे लाब्यो हुं रहुं रे, न लढुं काज काज ॥ सु० ॥ ३ ॥ स्वर्गे तात स धारियो रे, मुज मन बेठी चींत || सघला दिन नहिं सारिखा रे, जग सहु एम कहंत ॥ सु० ॥ ४ ॥ बां धव आणा किम बहूं रे, आणी एम अंदेश ॥ श्र जिमाने दुंनी सरयो रे, जोवा देश विदेश ॥ सु०॥ ५ ॥ जोतो जोतो नवनवा रे, देश विदेश चरित्त ॥ एक दि वस चंद्रावती रे, पुरी वन मांहे पहुत्त ॥ सु० ॥ ६ ॥ सोम्य सुरूप सोदामणो रे, कोइक विद्या सिद्ध ॥ दीगे नर में ततखणें रे, प्रणपति विनयें कीध ॥ सु० ॥ ७ ॥ पीमा तनु तस आकरीरे, रोग विकट अतिसार ॥ क्षी
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(१ए) ण अंग लागे नहीं रे, उठण सक्ति लगार॥सुजाता मुज मन करुणा उपनी रे, कीधा बहु उपचार ॥थो मा दिन मांहे थयो रे, रोग सकल परिहार ॥ सु०॥ ॥॥प्रसन्न थई मुज पुरी रे, नामादिक सवि तेण॥ विद्या बेदीधी नली रे, नक्ति विमोहे एण ॥ सु॥ ॥१०॥ थंजकरी एक वशिकरी रे, बीजी सूधी पाठ॥ विगत बताई जूजूई रे, जोमी जाचा गठ॥ सुण॥१९॥ रस तुंबी दीधी वली रे, सेवा साची जाण ॥ चतुर तु रत श्म बोली रे, मुज उपर हित आण॥सु०॥१॥ गाढी खप करतां लह्यो रे, अति पुर्खन रस एह ॥ लोह थकी कांचन करे रे, तिलजर फरश्यो जेह ॥ सु० ॥ १३ ॥ ते आप्यो तुऊने रे, करजे कोमीज तन्न ॥ फिरि फिरि लहेतांदोहिलो रे, जेहवो दिव्य र तन्न ॥सु०॥१४॥ मात पिता जिम बालने रे, देईसीख सुजाण ॥ श्रीपरवत नेटण जणी रे, तेह गयो गुण खाण ॥ सु॥१५॥ तिहाथी हुँ चाल्यो वली रे, जो वा देश विशेष कौतुक रंगे नवनवां रे, अचरज दीठ अलेख ॥ सु०॥१६॥फिरिश्राव्यो चंदावती रे, केतेक दिवस अटत ॥ जोग मले नवितव्य, रे, विधिना जेह घटत ॥ सु० ॥ १७ ॥ पुरनां कौतुक निरखतो
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(२०) रे, थायो मध्य बाजार ॥ लोजाकर लोजनंदीनेरे, हाट गयो सुविचार ॥ सु०॥ १७ ॥ दक्षपणे बेहु बां धवें रे, हरी लीधो मुज मन्न ॥ हलीमली तस घर हुँ रह्यो रे, विश्वासें निसदिन्न ॥सु०॥ १५ ॥ ते तुं बी थापण धरी रे, जाणीसाचा शाह ॥केता दिवस विलंबीयो रे, पुर पेखणरी चाह ॥ सु०॥२०॥ज ननी दर्शन उमह्यो रे, कीधो चालण संच ॥ पहेलो शेठे जाणीयो रे, तुंबीनो परपंच ॥ सु॥१॥तुंबी मागी ततखणे रे, करता निजपुर सिफ॥ लोलग्रसित बेबांधवें रे, कूमो उत्तर दीध॥सु०॥२॥कही न शकुं जोरें किस्युं रे, दीप्योक्रोध अपार ॥जुगतो कूमाने शी रें रे, कीधो में प्रतिकार ॥ सु० ॥२३॥ आयो क्षण पुर वेगशुं रे, दीगे शून्य समग्र॥मुज मन ताप वधा रणी रे, पेठी चीता उदग्र॥सु० ॥ २४ ॥रति नाठी पुःख उमट्यो रे, विरु विरह निपट्ट ॥ ढाल बही कांती कही रे, कुमर वचन परगट्ट ॥ सु० ॥ २५ ॥
॥दोहा॥ ॥ गुणवर्मा चीते इस्युं, ए नर तेहिज होय ॥ वि घाबले जणे कोप करि, बांध्या बांधव दोय ॥१॥ समग्रपरे जाणुं नहीं, ज्यां लगे सघली वात ॥ त्यां स
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( 22 )
में प्रगट करूं नहीं, श्रतम गत अवदात ॥ २ ॥ इम निश्चयकरी चित्तसुं, पूढे वली ससनेह ॥ पढी थ्यो सुं साहेबा, हितकरी सर्व कहेह ॥ ३ ॥ कुमर कहे हुं दुःख जरयो, फरियो नगर अशेष ॥ विस्मय सहित कुटुंबनी, व्यापि चिंत विशेष ॥ ४ ॥ शून्यपुरी सब निरखतो, नृपकुल पोहोतो जाम ॥ राजभुवन रमणि यद्युति, उपरें चढी ताम ॥ ५ ॥ दीन वदन विष्ठा य तनु, करती चिंत अपार ॥ बेटी दीठी एकली, ति हां वम बांधव नार ॥ ६ ॥ में बोलावी हेजसुं, या वी साहमी धाय ॥ नयणे श्रावण जमी लगी, हीयमे दुःख न समाय ॥ ७ ॥ मधुर लपा मुज आगलें, मू के बेस पीठ ॥ वात विगत पूढण जणी, हुं तस नि कट बईठ ॥ ८ ॥ रीति की सी एह नगरीनी, पुरव स्थि त किमया ॥ म पूढयो में ततखिणें, बोली वा त विराम ॥ ५ ॥
ढाल सातम । ॥ मोरासाहेबहो श्री शीतलनाथ के । एदेशी
,
॥ मोरा देवर हो सुए दुःखनी वात के, कहेतां द रुं थरहरे | वाल्हाने हो या अवदात के कया वि कहो किम सरे ॥ १ ॥ एक दिवसें हो ई पुर उद्यान के, तापस कोइक श्रावीयो ॥ रक्तांबर हो घर
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तो शिव ध्यान के, मास दिवस तप जावीयो॥॥ तस सांजलि हो महिमा निरपाय के, लोक सकल आवी नमे ॥ केश् चरचे हो नक्तं करी पाय के, केशर चंदन कुंकुमे ॥३॥ केताएक हो सेवे तस पास के,अहे निशि शिष्य जेम तेहनां ॥ केताएक हो स्तु ति मांगी खास के, लोक ते गहेला नेहना ॥ ४ ॥
आमंत्रे हो केश जोजन हेत के, पण नावे तेहने घ रे॥तुज बांधव हो एकदिन सुचि चेत के, पारण काजे मुंहतरे ॥५॥ ते तापस हो मानी नृप वयण के, श्राव्यो पारण कारणे ॥ नृप बोले हो श्म विकसित नयण के, अंब फल्यो श्रम बारणे ॥ ६ ॥ ते बेगे हो जिमण जणी वार के, मुजने श्म नूपें कह्यो । जो नाखे हों तुं पवन प्रचार के, ए तापस पुण्ये ल ह्यो ॥ ॥ में जुगतें हो वींज्यो झषी वाय के, रागें श्रागें बेसके ॥ जाणंती हो करुणानिधि आज के,प्र सन्न करुं दिल पेसके ॥ ॥ ते पापी हो मुज रूप निहाल के, पाखंमी चित्तमा चल्यो ॥ चाहतो हो मु ज संगम व्याल के, कामाकुल मन टखवल्यो॥ ए॥ निज थानक हो पोहोतो दृढ शोग के, शाल वस्यो मन आकरो ॥ संकल्पं हो मलवानो योग के, योग
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(२३)
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सकल मूक्यो परो ॥ १० ॥ निशि आव्यो हो कर ले ई गोह के, नांखी मंदिर उपरें । करी संचो हो चढी ने तव जोह के, चोर परें गृह संचरे ॥ ११ ॥ मुज पासें हो आव्यो ततकाल के प्रारथना मांगी घणी, ॥ बीवरावे हो करतो चकचाल के, शक्ति देखाने या पणी ॥ १२ ॥ प्रतिबोध्यो हो में दृढता काज के, पा पता फल दाखीने, ते बोले हो विरमुं नहीं याज के, काम सिद्धा विण चाखीनें ॥ १३ ॥ म मसलत हो करतां सवि तेह के, नृप सुणी आव्यो बारणे ॥ मुं नि दीगे हो उलखीयो तेह के, घर तेड्यो जे पारणे ॥ १४ ॥ फिट पापी हो धूरत शिरदार के, काम करे तूं एहवा || तुज प्रगट्यो हो ए पाप अपार के, फल पामीस हवे तेहवा ॥ १५ ॥ एम कहीने हो बंधाव्यो तेम के, राजायें सेवक कने ॥ अपराधे हो गोधाने जे म के, जी के जूने तेहने ॥ १६ ॥ परजातें हो फेरयों पुरमाहिं के, सेरी सेरी कूटता, खर चाढ्यो हो दुःख पामे त्यांहिं के, चट चट आमिष चूटता ॥ १७ ॥ निं दितो हो राजायें जोर के, पुरजन वरम इसी जतो ॥ तामी तो हो जमि चिहुं तर के, मलमूत्र लिंची जतो ॥ १७ ॥ याकोस्यो हो सविलोक विमंब के, चोर मा
॥
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(२४) रे ते मारी ॥बलपुरयो हो योगिणना तुंब कें, नूपे काम इस्यो कीयो॥१॥ ते ऊपनो हो राक्षस अव सान के, निज श्रातम विद्या करी ॥ संजारी हो पूर व अपमान के, वैर जाग्यो मत उसरी ॥ २०॥ अ तिनीषण हो विरुळ विकराल के, कोपाकुल गलगा जतो ॥ वलगाड्या हो कंठे विष व्याल के, गिरिवर वन तरु जाजतो ॥१॥ मुख वमतो हो विश्वानल जाल के, पिंगल लोचन हन जस्यो॥ कर लीधो हो तीखो करवाल के, जाणे गिरि को संचरयो॥२॥ धस मसतो हो आव्यो ततकाल के, राजाने इणीपरें कहे ॥ मुज मारक हो पापी नूपाल के, किम सातायें तुं रहे ॥ २३॥ तुज बांधव हो सरणे गयो तास के, तोपण जटकसुं मारियो, पापीयमे हो श्रावी एक शा सके, नृपनो वैर उतारियो ॥ २४ ॥ जय देखी हो पु रना सविलोक के, जीव लेई नासी गया ॥ केशमा रथा हो करता घणुं शोक के, पण नावी पापी दया ॥२५॥ पुरुषनो हो देखी जयनूत के, नासंती मु जने ग्रही। श्म बोस्यो हो धरी राग प्रतीत के, नऊ जावे किहां वही॥२६॥ मजसाथें होलोगव सखजाग के, मत बीहे तुं कामनी ॥ रहे मंदिर हो ए सरिखो
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(२५) योग के, जाग्ये लहीयें जामनी ॥२॥एम कहि हं हो राखी तेणे नूंग के, आप वसे सुख लंपटें, निशि श्रा वे हो मंदिरमा रंग के, दिवसें किहां किण ते अटें ॥२॥ देवरजी हो श्रम एहवा हवाल के, जे जा णो ते करो हवे ॥ श्म कातें हो कही सातमी ढाल के, वात कही विजया सवे ॥२॥
॥दोहा॥ ___ कुमर निसासो नांखीने, पूजे मर्म विचार ॥ कि म जीतीने एहने, वाद्यं राज्य उदार ॥ १ ॥ मर्म कहे विजया हवे, सांजल शुजट पुरोग ॥राज चिंत तुज शिर अडे, तिणे दाखुंटुं योग ॥२॥ सूतां राक्ष सनां चरण, घृतशुं जो मरदाय ॥ मृतक समो अति निंद वश, तो निश्चेतन थाय ॥३॥नर मरदें निति त हुवे, स्त्री फरसे नवि थाय॥ जो नर जेद लहे व ली, नांखे शिस उमाय ॥ ४॥ बांधव नारी मुख थ की, सांजली सर्व सरूप ॥ करवा कोश् सहाय नर, चा ट्यो हुँ अनिरूप ॥५॥तेटले मुजने तुं मस्यो, जाग्य योग गुणवंत ॥तें पूड़ी मुज वात ते, में जाखी सहु संत॥६॥ कुमर चतुरनर देखीने, करवा श्रातम काम।। बली गुणवाने श्सी, अरज करे तेणे गम ॥७॥
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( २६ )
॥ ढाल श्रामी ॥ धणरा ढोला ॥ ए देशी ॥ ॥ कुमर कहे करजोमीने रे, सांजल सुगुण सुजाण ॥ मनरा मान्या ॥ तुज दरिशण करतां दूर्ड रे, मानव जन्म प्रमाण ॥ १ ॥ म० ॥ श्रतिमाठा हो सकल दुःख नाग, जयत्राठा महारा राज यति काठा, घावा अ रियल मान ॥ म० ॥ ए कणी ॥ हियहुँ हेजे गहगहे रे, उत्तम नरने संग ॥ म० || अचिंत्या साजन मले रे, ते आलसमां गंग ॥ म० ॥ २ ॥ स ऊन सहेजे परगजूरे, दुखीया ये आधार ॥ म० ॥ बलिहारी ल्युं लखगमें रे, घमिया जेणे किरतार ॥ म० ॥ ३ ॥ विधि सघली डूषण धरी रे, चूको सघ ली सृष्ट ॥ म० ॥ पण साजन घमतां करी रे, चतुरा ई उत्कृष्ट ॥ ० ॥ ४ ॥ स्वारथ तजी पर कारजे रे, समरथ सुगुण हुवंत ॥ म० ॥ चंद्रधवल जस शासतूं रे, दिन दिन ते प्रसवंत ॥ ० ॥ ५ ॥ परजन सु खीया देखीने रे, संत लड़े संतोष ॥ म० ॥ छूहव्या जूठे माणसे रे, पण नाणे मन रोष ॥ म० ॥ ६॥ तरु तटनी घण धेनुका रे, संत शशी दिएकार | म० ॥ मित्त का विण खारथें रे, करता जग उपगार ॥ म० ॥ ७ ॥ कर साइज तुं माहरो रे, यासे सु
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( 23 ) जस अनंत ॥ ० ॥ पुरवस्थित पुर देखतां रे, कि म तुज दुःख न वदंत ॥ म० ॥ ८ ॥ शेठ कुमर चिं त इस्यो रे, कठए करेवो काज ॥ म० ॥ पण उपकार करया पी रे, ए कर से प्रतिकार ॥ म० ॥ ए ॥ अंगि करो शिर चाढीने रे, विजय वचन निरधार ॥ म० ॥ विनय सहित हवे शेठने रे, बोल्यो विजय कुमार ॥ म० ॥ १० ॥ राक्षसना पग मरदजो रे, घृतसुं हो साहस धार ॥ म० ॥ सहस जपन करि मंत्रनो रे, पंजावीस ते वार ॥ ० ॥ ॥ ११ ॥ राक्षसने हुं व श करी रे, करसुं चिंत्यां काम ॥ म० ॥ इम विचारी मेलवी रे, सामग्री पर ताम ॥ म० ॥ १२ ॥ गुप्त प णे यावी रह्या रे, मंदिरमां एकंत ॥ म० ॥ गुणव ये पहेरियो रे, विजया वेश सुतंत ॥ म० ॥ १३ ॥ पी रवि थम्यो रे, प्रगट्यो घण अंधार ॥ म० ॥ राक्षस रमतो यावियो रे, रंगे रमे तिशिवार ॥ म० ॥ १४ ॥ रयणीचर कहे नरतणी रे, याज श्र बेसी वास ॥ मननी मानी ॥ इणतां जे रह्यो जी वतो रे, करशुं तास विनास ॥ मननी० ॥ १५ ॥ प्रि या बोले हो धरचारी रे, मनुष नारी हुं खास ॥ म० ॥ महाराज ते वासें घणुंरे, अवर नही कोई पास ॥ म०
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(२७)
॥१६॥अवगणतो उनट पणे रे, सूतो सेजें तुरंग ॥म० ॥कमर वह मिसावीने रे, मरदे पय निरजंग ॥म० ॥ १७॥ विजय कुमर विधिसुं जपे रे, थंजन मंत्र वि शेष ॥ म ॥ ते पण नरना गंधथी रे, ऊठे करी अं देश ॥ म०॥१७॥ जिम जिमऊठे सेजथी रे, राक्षस मारण हेत॥ म॥तिम तिम फरस तणे सुखें रे, लो टि पमे गत चेत ॥ म ॥ १५ ॥ मंत्र जाप पूरण थयो रे, मूक्यो मरदन जाम ॥ म ॥ कुमर बिहुने मा रवा रे, ऊग्यो राक्षस ताम ॥ म० ॥२०॥ थंन्यो अनोपम मंत्रथी रे, सक्ति थर विछिन्न ॥ म०॥ दास थयो करजोमीने रे, नाखें एम वचन्न ॥ म॥१॥ रेरे साहस मंगणी रे, कुमर सुणो एक वात ॥ म ॥ मुज महिमा मंत्रे हस्यो रे, जिम धन दक्षण वात ॥म० ॥॥ किंकर हुं कीधो खरो रे, मंत्र श क्तिसुं श्राज ॥ म॥ सेवक साचो जाणीने रे, द्यो सा हिब को काज ॥ म॥२३॥ कुमर कहे सुण तें करी रे, मुज नगरी निरलोक ॥ म॥गत मंगल वि धवा जिसी रे, दीसे बाज सशोक ॥म ॥२२॥ म णि माणिक कण कंचणे रे, पूरण जरी घर हाट ॥ म ॥ रचि तोरण स्वस्तिक जलें रे, सुरजित कर स
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(হए)
विवाट ॥ म० ॥ २५ ॥ तह त्ति करी क्षणमें करी रे, न गरी नवले रूप ॥ ० ॥ लोक गया दह दिशि जिके रे, ते तेन्या सवि भूप ॥ म० ॥ २६ ॥ विजय कुम र. मलि मंत्रवी रे, थाप्यो राज सनूर ॥ म० ॥ अन मी अरियण नामिया रे, वाध्यो जस महि मूर ॥ म० ॥ २७ ॥ विजय नृपति करशे हवे रे, थंज्या व कि नो सूल ॥ म० ॥ कांतिविजय पूरी करी रे, श्रा मी ढाल अमूल ॥ म० ॥ २८ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ विजय कुमर पाले प्रजा, दिन दिन परम प्रमोद ॥ शेठ कुमर संगे चतुर, करतो रंग विनोद ॥ १ ॥ ए क दिवस गुणवर्त्मनें, भूप कहे सदभाव ॥ राजगयुं जे में लघुं, ते सवि तुज परजाव ॥ २ ॥ श्रतिदुक्क रपणो यदरी, कीधुं मोटुं काज ॥ प्रत्युपकार करण जणी, ब्ये धुं हुं तुज राज ॥ ३ ॥ अवसर निरखी बोली जं, शेठ कुमर एम वाच ॥ में धरा फिरते निरखी, तुं मणि बीजा काच ॥ ४ ॥ सुगुणा तेह सराहियें, जे ज गमांहें कृतज्ञ ॥ प्रत्युपकार करे जिके, ते सघला धुरि विज्ञ ॥ ५ ॥ राज्य वधो दिन दिन घणो, हुं सेवक तुं स्वामि ॥ जो मानो मुज वीनती, तो सारो एक काम
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(३०)
॥ ६ ॥ लोनाकर बांधव सहित, चंद्रपुरीनो शाह ॥ विद्या थंन्यो तात मुज, ते बोमो नरनाह ॥७॥ विनय सहिये साहेबा, करियें ए उपचार ॥ जां जी तुं तां तुम तणो, गणसुंए उपकार ॥ ॥ विगत पणे वृत्तांत सवि, नाखे करी मनुहार ॥ करतां नृपने वीनती, रीज्यो चित उदार ॥ ए॥ ढाल नवमी॥जीहोमथुरानगरीनोराजीयोए देशी॥
॥जीहो राय अचंजो पामी,जीहो बोल्यो शीस धुंणाय । जीहो विषथी अमृत ऊपनो, जीहो अकथ कथा कहेवाय ॥ १॥ कुमर वारी धन धन तुम अव तार ॥ जीहो आप सहित फुःख दोहिलो, जीहो की धो मुज उपकार ॥ कुमर ॥ ए आंकणी ॥ जीहो ते तेहवा तुं एहवो, जीहो उपकारक पवीत्र ॥ जीहो अ बूत रचना दैवनी, जीहोदीठीआज विचित्र॥कुम ॥॥ जीहो कारण गुण कारज ग्रहे, जीहो ए हवं शास्त्र प्रसिझ ॥ जीहो तात तणा उरगुण विधि, जीहो पण तुज अंग न कीध ॥ कम॥३॥ जीहो काम अडे ए केटवू, जीहो करवो में निरधार ॥ जी हो पण कारण तुज हाथ , जीहो जेहथीन लागेवा र ॥ कुम० ॥ ४॥ जीहो श्णे पुर परिसर बाहरें,जी
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(३१) हो एक सिंगगिरि नाम ॥जीहो देवाधिष्टित ने तिहां, जीहो कूई एक सुगम ॥ कुम॥५॥जीहो गुप्त र हे गिरि कूपिका, जिहो सुरसानिध दिन रयण ॥ जी हो क्षण मले क्षण ऊघमे, जीहो तस मुख जिम नर नयण ॥ कुम॥६॥ जिहो सिकोषध जल तेहy, जिहो पूर्ण हि लहेरां खाय | जिहो काम पमे विद्या निलो, जिहो कोश्क लेवा जाय ॥ कुम०॥ ७॥ जिहो उत्तर साधक शिर रहे, जिहो साधक पेसे त्यांहिं॥ जिहो जल लेश्ने नीकले, जीहो जो न मरें दिलमांहिं कुम० ॥॥॥ जीहो ते जलनो महिमा घणो, जीहो नांजे जीम निदान ॥ जीहो थंन्यो नर बूटे सही, जीहो जो सुत बांटे आण ॥ कुम० ॥ ए॥ जीहो जेहने सुत नहीं आपणो, जीहो ते नर नवि बूटंत ॥ जीहो वार तीन बांटे सही, जोहो बंधन चट विघटत ॥ कुम०॥ १० ॥ जीहो कारण ए बूटा तणो, जीहो एहनो अन्य न को य ॥जीहोश्रारति कुमरें अनुमन्यो, जीहो मुकर का रज जाय ॥ कुम०॥ ११॥ जाहो सामग्री सुसहा यसुं, जीहो कुमर गयो गिरि शुंग ॥ जीहो आप कूई मां उत्तरे, जीहो जिम पंकज माहे भुंग ॥ कुण्॥१२॥
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(३५) जीहो निर्णय जल तूंबी जरी,जीहो बेगे मांची संच॥ जीहो कई बाहिर काढी, जीहो पें त्यांथी खंच ॥ ॥ कुम० ॥ १३ ॥ जीहो अती साहसथी रीजी, जी हो तव कूश्नो देव ॥ जीहो प्रसन्न प्रगट श्रावी रह्यो, जीहो आगल करवा सेव ॥ कुम॥१४॥जीहो अश्वरूप कीधो सुरें, जीहो बे बेग तस पीन॥जीहो श्राव्या पुर चंडावती, जीहो थंच्या बेहु दी॥ कुम ॥१५॥जीहो कुमरें जलसुं सिंची, जीहो लोनाकरनो अंस ॥जीहो जटक बूटी अलगो रह्यो, जीहो पास थ की जिम हंस ॥ कुम० ॥ १६ ॥जीहो लोननदी बूटो नहीं, जीहो पामे मुख पोकार ॥ जीहो पुत्र विना को ण तेहने, जीहो फुःखथी बोमण हार ॥ कुम॥१७॥ जीहो विजयचंपने वीनवी, जीहो गुणवम्, ते शेव॥ जीहो घरमांहे पेसण दी, जीहो बीजा शिर रही वेग ॥ कुम० ॥१७॥जीहो मंत्री पद मुखा नणी, जीहो आमंत्रे नरपाल ॥ जीहो गुणवा नवी था दरे, जीहो जाणी पाप कराल ॥ कुमा॥१॥जी हो केतेक दिन पूंखें नृपें, जीहो निजपुर कीध प्रया ण ॥जीहो विरहव्यथा हीयमे वधी, जीहो कुमरसुं बांध्या प्राण ॥ कुम० ॥२०॥जीहोकरी सरकार अनेक
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(३३)
धा, जीहो तूंबी दीधि काढि, जीहो नूपति वली पा बी दीए, जीहो कुमर लीए शिर चाढि॥कुम॥१॥ जीहो माया घोटक ऊपरें,जीहो बेसी विजय नरिंद॥ जीहो निजपुर पोहोतो वेगशु,जीहो जिम विद्याधर इंद ।। कुम॥२२॥ जीहो गुणवर्मायें आवीने, जी हो रात्रि समय एकांत ॥जीहो मुज श्रागें नेटण ध स्यो,जीहो जारव्यो सविवृत्तांत ॥ कुमण्॥३॥जीहो प्राण पियारी आगलें, जीहो राखीजें सुं गुज ।।प्रीयें सुण चिंता कारण मुज॥एआंकणी ॥ जीहो काका नो निज तातनो, जीहो थापण मोसा दोष ॥जीहो कुमरे खमाव्यो मुझने,जीहो विनय विविध परे पोष ॥प्री०॥४॥ जीहो राज्य गयुं वाट्युं फरी, जीहो वाट्युं वैर फुरंत॥जीहो विजय कुमर निज तातने, जीहो चाढी शोज अनंत ॥प्री० ॥२५॥ जीहो मर ण पणु पण आगमी, जीहो शेठ सुतें निज तात ॥ जीहो आपदमांथी उमस्यो,जीहोजू सुतनां अवदा त ॥प्री० ॥२६॥ जीहो पुत्र पाखें कुण कामनी, जीहो धण कंचणनीरासि॥जीहो सोच दिसा पामे स दा, जीहो पुत्र रहित श्रावास ॥प्री०॥७॥ जीहो धन्य ते कृत पुण्य ते, जीहो जेहने नवला पुत्र॥जीहो
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( ३४ )
लाज वधारे वंशनी, जी हो राखे घरनां सूत्र ॥ श्री० ॥ २८ ॥ जी हो लोजनंदी संकट सह्यो, जीहो देखी सयल कुटुंब ॥ जी हो जो सुत होवे एहने, जीहो बो वे विलंब ॥ ० ॥ २॥ जी हो हुं जगमां निरजा गीयो, जीहो माहारे पोतें पोत ॥ जीहो पुत्र रहित सरज्यो किस्यो, जीहो वाल्यो चिंता पोत ॥ प्री० ॥ ३० ॥ जी हो कुंए पूजे गुरु देवने, जीहो कुंण उद्घ रे धर्म गण || जी हो कुंण धारे कुल आपणुं, जीहो पुत्र विना हित खाण ॥ श्री ॥ ३१ ॥ जीहो वंसल ता फरसी समो, जी हो सरज्यो कां जगदीश ॥ जीहो ए चिंता मुज जामिनी, जीहो बीजी राव न रीस ॥ श्री ॥ ३२ ॥ जीहो नवमी ढाल पूरी घई, जी हो राय कही ए बात || जीहो कांति कहे पुण्यें दवे, जीहो घर संतति सुख सात || प्री० ॥ ३३ ॥
॥ दोहा ॥
॥ चंपकमाला चित्तमां, दुःखपूरी दिलगीर ॥ इम बोली प्रीतम प्रत्यें, नयण जयंती नीर ॥ १ ॥ धन्य जनम तस लहीजीयें, जेहने आगल बाल || हंसे रमे रोवे लुटें, चाले चाल मराल ॥ २ ॥ घूघर पग घस कावतो, करतो विविध टकोल || माय तो बेमो प्र
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(३५)
ही, बोले मण मण बोल ॥ ३ ॥ शुजग शिखा शिर फरहरें, धूलें धूसर देह ॥ लघुदंता खर्के पके, हेलवी या करि वेह ॥ ४ ॥ सुतविण उंचां मालियां, प्रत्य द खरा मसाण || निजकुल कमल विकाशवा, पुत्र क ह्यो नव जाण ॥ ५ ॥ में पाम्यो नहीं एक पण, धि
धिग मुज अवतार ॥ पुत्र विदुषी दुःरकणी, कांस रजी किरतार ॥ ६ ॥ पूरव पूण्य किया विना, क्यां श्री संतति होय ॥ सुकृत करीजें दुःख तजी, ते जणी आपण दोय ॥ ७ ॥ चींता दूरें बोमियो, दय थकी दे कंत ॥ पुत्र देतें याराशुं देव कोई सतवंत ॥ ८ ॥ प्रसन्नथयो सुर पुरशे, वंबित नवलो एह ॥ सुरसेवा सा ची करी, निःफल न होवे केह || || राय कहे सुरा सुंदरी, मुजमन जावी वात || शुभदिनी खाराधशुं, कोइक सुर विख्यात ॥ २० ॥
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ढाल दशमी ॥ राजाने परधान रे ।। ए देशी ॥ ॥ ति अवसर नृप नारि रे, वली बोले इश्युं, धर ते दिलमां दुःख घणुं ॥ वंदन थयुं विधाय रे, चिंता उमटी, दीसे अंग दयामकुंएं ॥ १ ॥ थरहर थरके गात्र रे, विनय विव्हल थई, चटपट लागी आकरीए ॥ रति नाठी संताप रे, व्याप्यो पारीज, चतुराइ पण
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(३६) उसरीए ॥२॥ फरके जमणी आंख रे, प्रीतम मा हरी, कुंण जाणे से कारणेए ॥ नावि को अनर्थ रे, फरि फरि सूचवे, मुज मन न रहे धारणेए ॥ ३॥ था शे को उतपात रे, नूतादिक त, फुःखदाई मुजने सहीए ॥अथवा विद्युत्पात रे, थाशे मुज शिरे, के उलका पम्शे वहीए ॥ ४ ॥ के जासे सर्वस्व रे, जी वन माहरो, कुशल होजो तुमने सदाए ॥ के थाशे मु ज राग रे, शोक अशुन्न कर, के पनशे कांश आपदा ए॥५॥ प्राण तणो संदेह रे, होशे माहरे, निश्चय लोचन एम कहेए । हुं नवि जाणुं कांश रे, गोली नामिनी, दैवगति ज्ञानी लहेए ॥६॥ रति नाठी मु ज तेण रे, हर्श कम कमे, अधृति धरुंलु काहिलीए ॥ वीरधवल नूपाल रे, वलतुं एम वदे, कां जामिनी फुःखमां जलीए ॥ ७॥ चिंता म करिस लगार रे, मु ज बेगं किसी, शंका शंकटनी कहेए॥रवि तपतेथ तितीव्र रे, तिमिर जरम समो, लोक मांहे केम थिति लहेए ॥ ॥जो होसे तुज कांश रे, बाधा अणजा णी, विरह व्यथा फुःख कारणीए। तो मुजने तुज सा थे रे, शरण अगनी तणो, होशे सही सुण नामि नीए ॥ ए॥णीपरें धरणी नाहरे, श्राश्वासी प्रिया,
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( ३७ ) सिंहासन जई बेसियो ए ॥ फिरिफिरि फरके नयण रे, राणीनो वली, तिमतिम थरके तस हीयोए ॥ १० ॥ मंदिरमांथी उठी रे, व निकामां गई, अरंति लड़े ति पण घमी ॥ वनिकामांथी तेम रे, यावी मंदिरे, त्यां थी बाहिर वन जणी ॥ ११ ॥ वनथी पुरमा आई रे, सहियर परवरी, देवकुलें जावे वली ए ॥ न लहे र ति लवलेश रे, क्लेश सहे घणु, जिम शूके जल मा बली ए ॥ १२ ॥ इम वोल्या मध्यान्ह रे, यावी निज घरें, सूती पण मन वाउलोए ॥ अल्प अल्प तव निंद रे, आवी तिणे समे, जेह थयो ते सांजलोए ॥ १३ ॥ वेगवती नामेण रे, दासी तेतलें, हाथांसुं शिर कूटती ए । शुधार प्रवाह रे, मारग सिंचती, केश चटा चट चुंटती ॥ १४ ॥ विलवंती दुःखपूर रे, यावी दोमी ने, राय कन्हे रोती घणुए ॥ हा हा शुं थयो तुझा रे, सामणि माहरी, दीधुं दैव विगोवणु ॥ १८५ ॥ फिटरे धीवा दैव रे, श्म कहीं ढली पमी, निरखी च क्यो नृप चिंतवेए ॥ आपद दीसे कांय रे, राणीने पकी, हा हा सुं कर हवे ॥ १६ ॥ उठ्या व्याकु ल राय रे, दीनवदन थई, पूढे दासीने इस्युंए ॥ ऊ ऊठ ऊठ रे, कढ़ेने सुं ययुं, सूल यंतेरनुं किस्युं
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( ३८ )
ए॥ १७ ॥ फाटे हीयरुं मु रे, धीरज सहुं नहीं, कदेतां वार मलावी येए ॥ वेगवती तव ऊठी रे, रमती इंम कहे, है सुं दुःख उदजावी यें ॥ १८ ॥ कदेवा सर खी वात रे, नहीं हो साहेबा कहेतां न वहे जीजमी ए, वीर शिरोमणी देव रे, रुदय कठण करो, वज्र वि म बे वातमी ॥ १९ ॥ चंपकमाला देव रे, प्रभु ऋदयें सरी, दाहिए लोयण फुरकंतेए ॥ वेला गालण काज रे, चिंतातुर जमी, बाहिर अंतर जत ततेंए ॥ ॥ २० ॥ लहति र ति अपार रे, मंदिर यावीने, सूती एकांते जईए ॥ मुजने पान निमित्त रे, मूकी हूं पण, पान लई पाठी गईए ॥ २१ ॥ बोलावी जर दे ज रे, मुख बोले नहीं, दीठी काठ परें पीए ॥ जीव रहित निश्चेष्ट रे, जांखी देहमी, मीचाणी दोय यां खमीए ॥ २२ ॥ के सोसी कुंए प्रेत रे, के साकि ग्रसी, के कां सापणी मसी गईए ॥ अथवा उत्कृष्ट रोग रे, जीव लेई गयो, के निज हत्या करी मुईए || ॥ २३ ॥ निरखी माग सूल रे, परियो भ्रासको, पण न कलाय ए सुं थयुंए ॥ आई दोमी एथ रे, शुद्धि स वे गई, जीवमलो कभी गयोए ॥ २४ ॥ वयणसुणी भूपाल रे, करुया विष जिरयां, मूहगत धरणी ढ
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(३७) व्योए ॥वींज्यो सीतल वाय रे, सींच्यो चंदने, कष्टें मू थी वट्योए ॥२५॥ लागो उख अमेह रे, नेह विवस थयो, विलपण लागो एणीपरेंए ॥॥रे हत्या रा दैव रे, कहेने किहां गयो, जीवन माहारुं अप हरिए ॥२६ ॥ जो मुज देवा पुरक रे, समरथ तुं हू उ, मुने कां प्रथम न मारियोए ॥ करुणा हीणा पुष्ट रे, देच्ने दगो, विण हथियारे विदारियोए ॥२७॥ जाहि जाहि जाहि रे, मत रहे जीउमा, मन मेलूं सीधारताए ॥ हा हा दूर्व संताप रे, विरहानल त णु, सुंदरी विण तुज धारताए ॥२७॥ रे रे कुलनी देवीरे, अवसर ाजने, कांश उवेखो परिथईए ॥ ते ऋषीनी श्रासीस रे, सुकृत फलें जरी, ते पण निःफल केम गईए ॥२॥हा गोरी गुणवंत रे, किम न कही मुजा, मरण दिसा जाणी तरेए ॥ जो जाणत एरीत रे, पहेली ताहरी, तो राखत हश्मा उपरेंए ||३० ॥ हाहा हुँ अज्ञान रे, मूढ शिरोमणि, नावि आपद सांसहीए ॥ दीनवदन विहाय रे, धुरतें मुजने, हुं नारी थापद कहीए ॥३१॥ निंद्या करतो आप रे, नूपति विलपतो, परिजननें फुःखियां करेए ॥ क्षण हिंमें गति मंद रे, क्षण धरणी ढले, कण आंसू नय
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( OR )
णें जरे ॥ ३२ ॥ क्षण बेशे मन शून्य रे, दण ऊठे धसी, क्षण वली करतो विलंबनाए ॥ बांकी नर म र्याद रे, धीरज हारियो, ऐऐ मोह विटंबनाए ॥ ३३ ॥ मलिया सचिव ने रे, दुःखजर जंगुरा, गदगद व चने वीनवे ए ॥ चालो हो महाराज रे, लायक सा हेबा, तुरत पणे जश्यें हवेए ॥ ३४ ॥ ढील तणो न ही काम रे, देवी देखीजे, कवण दिसायें याक्रमीए ॥ जो विष व्यापि होय रे, तोपण जीवको, रहे ते ना जीमां संक्रमीए ॥ ३५ ॥ करतां कोई उपाय रे, जो जीवे कदी, तो तुज जाग्य प्रशंसी येंए ॥ वचन सुणी नूनाथ रे, चाले वेगशुं, वीट्यो परियण दासीयेंए || ॥ ३६ ॥ आव्या राणी गेह रे, दीवी कावसी, दव दाधी जिम वेलमीए ॥ शब्द रहित निश्चेष्ट रे, नील वदन बबी, दंत जीमी सेजें पकीए ॥ ३७ ॥ मूर्छाणो ऋतिकंत रे, प्रांत नयण थयां, नेह दावानल वली जग्योए | सींच्यो सीतल नीर रे, ऊक्यो निज प्रिया, देखी वली मूर्छा लग्योए ॥ ३८ ॥ फरी ऊठे फरी तेम रे, मूर्खे नरपति, फरी ऊवे एम दुःख लम् ॥ मंत्री मलीने यंग रे, देखी राणीनुं, मांहो मांदे घम कए ॥ ३ ॥ अंग नहीं बे कोई रे, ब्रण घाता दिक,
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( ४१ )
त दीसे सर्वथा ॥ के सुर मारी केण रे, के म न पीमायें, साजी तनु केम अन्यथाए ॥ ४० ॥ मरशे निश्चें राय रे, देवी मोहियो, राज्य जंग थाशे सही ए ॥ करवो कोण प्रकार रे, इम मंत्री सहू, अबोल्या रह्या कही ए ॥ ४१ ॥ मंत्री नाम सुबुद्धि रे, बोल्यो तत्क्षणे, काल विलंब न कीजीयेंए ॥ तो होये कोइ उपाय रे, जेथी नूपने, मरण थकी राखीजीयेंए ॥ ४२ ॥ मंत्री बोल्यो एक रे, वली एम चित्तधरी, कालक्षेप केणी प रें हूवेए ॥ राजा देवी मोहें रे, घारयो परवरों, काज काज नवी जुवे ए ॥ ४३ ॥ वली कहे मंत्री सुबुद्धि रे, विषनी विक्रिया, बे देवी ए जीवसे ॥ मणिमंत्रोषध योग रे, विष टलशे परहो, राणी यति सुख पामसे ए ॥ ४४ ॥ जूठो कही ने एम रे, नृपने श्राश्वासी, क रत का निवारीयें ॥ गुप्तमंत्री करे सर्व रे, मंत्री सर बोल्या, राजन विष उपचा रियेंए ॥ ४५ ॥ कांई क ये महाराज रे, चिपट अधिरता, नवलां मंगल वर तशेष ॥ सांजली एम. नरेश रे, विकश्वर लोचने, दर्ष सुधा नाह्यो तिसें ॥ ४६ ॥ करशे कोकी उपाय रे, नृपने जोलवी, मंत्री तर मति श्रागज्ञा ए ॥ दशमी
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( ४२ )
ढाल रसाल रे, कांति विजय कहे, मोहें नमिया जल
जलाए ॥ ४७ ॥
॥ दोहा ॥
॥ रे रे ल्यावो धाइने, विषधर औषध यंत्र ॥ श्रामं त्रो मंत्रिक प्रतें, धारे विष मणिमंत्र ॥ १ ॥ नृप आ देशे मेलवी, सामग्री ततकाल ॥ यरंने मांत्रिक क्रि या, उचित कद्या सवि चाल ॥ २ ॥ एकांते देवी ग्वी, करे चिकित्सा तेम ॥ मांत्रिक मंत्री सर सहित जाणे नृप जेम एम ॥ ३ ॥ हमणां देवी ऊठसे, करशे ने त्र विकाश ॥ दवणां कांइक बोलशे, वलशे वली उ सास || ४ || वोली एम नृप चिंततां, अर्द्ध दिवसने रात्र || सचिवादि निरुपाय सवी, करे विचार प्रजात ॥ ५ ॥ नृपने केम उगारसुं, मरण दिशाथी आज, नेह ग्रस्यो जाणे नहीं, करतो चतुर काज ॥ ६ ॥ राज्य देश गढ सुंदरी, सेना लोक हिरण्य ॥ सचिव प्रमुख दिन आजयी, सकल यया अशरण्य ॥ ७ ॥ इम चिंता सायर पड्या, मंत्रीसर जयवाम ॥ एक ए क साहामुं जूवे, जिम मृग चूका गम ॥ ८ ॥ दीवी कांता ति समे, पूर्वपरें नृप श्राप ॥ डुःकसुं, इणिविध करे विलाप ॥ ए ॥
पूरयो यति
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(४३) ॥ ढाल अगीश्रारमी॥रे रंगरत्ता करहला रे, मो पीउ विरतो जाण ॥ हुँतो ऊपर काढीने रे,
प्राण करुं कुरवाण ॥ सुरंगा करहा रे ॥मो पीउ पालो वाल, मजीग करहा रे ॥ ए देशी॥
॥रे गुणवंति गोरमी रे,कांश रही रे रीसाय॥वि बोख्यां मुज जीवको रे, पाहुणमा परें जाय ॥ प्रि यारी बोलो हो, अश् प्रीतमशुं एक वार ॥१॥ह गीली बोलो हो, विरत्त थकुण कारणे रे, एवमो लेह दिखाय॥ प्रि०॥ए आंकणी॥तुज न घटे गजगाम नी रे, करवो मान अपार ॥ जीवतणी तुं औषधी रे, तुहिज प्राणाधार ॥ प्रि॥२॥जक न लहे पल जी वमो रे, तुज विरहें प्रजलाय ॥ हासुं न कीजें तेहq रे, जिणे हासें घर जाय ॥ प्रि ॥३॥ ऊठ प्रिया दिन बहु चढ्यो रे, लोक लगे व्यवसाय ॥ पण प्रित मने उवेखती रे, तुं बोले नहीं काय ॥ प्रि॥४॥ तुं कहेती मुजने सदा रे, रुदय वसो बो मुज ॥ ते मुज आज वीसारतां रे, वात लही में तुऊ ॥ प्रि॥ ॥५॥ एक घमी मुज तुजविना रे, मुजने वरस स मान ॥ तो दिन ए केम वोलसे रे, गोरी कहे गुण खा ए॥ प्रि॥६॥ केश विलसे केश हसे रे, सुखीयां
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(४४) पुर नर नार ॥ आज अवस्था मुज जली रे, दीधी ए किरतार ॥ प्रि॥७॥ मो तनु पुःख पुर्बत यश रे, जो तुंआंख उघाम॥ ग्रीषम पवने आकरी रे, जि म तरु नांख्या जाम ॥ प्रि०॥॥तुं चतुरा चंडानना रे, जीव रहणनी वाम ॥ पण शेण वेला पदमणी रे, हीयतुं नाख्युं जाम ।। प्रि ॥ ए॥ हरिलंकी इसी बोलने रे, निंद रयणरी गंमि ॥कर करुणा मुज का मनी रे, मननी पूर रुहामि ॥ प्रि॥ १० ॥ तुज कारण कीधा घणा रे, सबल जुगति उपचार ॥ हा हा पण उठे नहीं रे, कीजें कवण प्रकार ॥ प्रि॥ २१ ॥ निश्चे दीसे जे हवे रे, पोहोती तुं परलोक ॥ नहिंतो मुख बोले सही रे, वालम करते शोक ॥ प्रि ॥ १२॥ धिग प्रजुता धिग चातुरी रे, धिग जीवन धिग राज्य ।। संकट मांहेथी तुऊने रे, हुं राखी शक्यो नहिं आज ॥ प्रि० १३ ॥ हे मुगधे हे कोपनें रे, हे प्रमदे गई केथ ॥ तुज मुख निरखण उमह्यो रे, हुंपण था कुं तेथ ॥ प्रि॥ १४॥हवे सूधे बोमी हवेरे, तुजने पण निरधार ॥ सांसि सकी नहिं सोकने रे, फिट फि व तुज आचार ॥ प्रि० ॥ १५ ॥ श्म कहीने धरणी ख्यो रे, मूळवशें नूपाल ॥ शीतल जल सिंच्यो घणु
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(४५) रे, उठ्यो वली करुणाल ॥ प्रि० ॥ १६ ॥ हा हा में त्रीसर सुणो रे, नूमि पड्या मुज हाथ ॥ परलोकें जातां प्रिया रे, जाइस हुं पण साथ ॥ १७ ॥ सर्बु णा मंत्रि हो, ढील करो मत कांश, सुरंगा मंत्रिहो। ए आंकणी ॥गालानदीने काठमेरे, हुं प्रजलीस संघा थ ॥सढुं० ॥सोध्र करावो चय तिहां रे, काठे पुरो पूर्ण । अंग बालीने आपणो रे, निर्वृत्ति थाश्स तूर्ण ॥ स०॥१०॥ नयणे श्रावण जमीलगी रे, बोल्या एम प्रधान ॥ हाहाहा अनरथ किस्यो रे, मांमयो ए राजान॥१५॥रंगीला राजन हो ॥ समजो हीयमा मांहे, बबीला राजन हो ॥मत करो आतम दाह, हीला राजनहो। कहीयें गोद बिडायने रे, साहेबजी रढ मान ॥रंगी०॥ कमल जिस्यां रविवाथमे रे, जल सूके जिम मीन ॥ माय ताय विण बालज्युं रे, कांश करो जगदीन ॥ रंगी॥२०॥ मत ल्यो रिपु एह रा ज्यने रे, पामो प्रजा मत पीम ॥वसुधा मत अशरण हु रे, न पमो श्रममां जीम॥रंगी॥१॥ तुम स रिखा महाराजवी रे, धीर पणुं मत बांग ॥ तो किहां रहेसे लोकमां रे, थानक ते देखाम ॥रंगी॥ २५ ॥ मरण सही देवी प्रजो रे, ते तो कर्म निदान
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(3R )
|| एह अवस्था ध्रुव कही रे, सबलाने अवशान ॥ रं गी० ॥ २३ ॥ राजा खेचर केशवा रे, चक्रधरा देवेंद्र ॥ कर्म की नवि बूटी रे, गणधर देव जिनेंद्र ॥ रंगी० ॥ २४ ॥ जीवित थिर संसारमां रे, माजणी ज ल बिंद || संपद चपल स्वभावथी रे, जेहवी स्त्री स्वढं द ॥ रंगी० ॥ २५ ॥ सयण कह्यां सवि कारमां रे, जे हवा सुपन जंजाल | काया काचघटि जिसी रे, यौव न संध्या काल || रंगी० ॥ २६ ॥ जन्म जरा मरणे न स्यो रे, ए संसार असार । म जाणीने साहेबा रे, मतकरो दुःख लगार ॥ रंगी० ॥ २७ ॥ संजालो निज रा ज्यने रे, टालो मननो शोक ॥ गालो रियण मानने रे, पालो पीमित लोकं ॥ रंगी० ॥ २८ ॥ राय कहे मं श्री सरो रे, साची तुमारी वात ॥ पण देवी मोहें मो रे, तेजी रह्यो न जात ॥ सबुंo || २७ ॥ में पूर्वे गी कस्यो रे, साधें मरणनो बोल ॥ जो न करूं तो कि म रहे रे, सत्यवादीनो तोल ॥ सतुं ॥ ३० ॥ श्रजल
में निरवद्यो रे, सूधो सत्य वचन्न ॥ ते अंतरावे बोकतां रे, न वहे मारुं मन्न ॥ सलुं० ॥ ३१ ॥ निज मुखी जे यादरी रे, वे सम प्रतिज्ञा काय ॥ अवसर बहती मूकतां रे, सहसा सत्य लजाय ॥ सलुं ॥ ३२ ॥
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( ४७ )
जिए सत्य कारण होमी रे, वल्लन पणे निजदेह ॥ मूर्ख पण जग जीवतो रे, शास्त्रें को नर तेह | ॥ सकुं० ॥ ३३ ॥ क्षिप्र करोने सजता रे, महारी देवी साथ || देशुं दुःखने जलांजली रे, ए निश्चय
माय ॥ सतुं ॥ ३४ ॥ इम कहेतां नृप वारिर्ज रे, बहु परे सर्व प्रधान || पण विरमे नहीं मरणथी रे, देवी मोह निदान || रंगी० ॥ ३५ ॥ नरथ करतां नवि चले रे, कोइ मंत्री नुं मन्न ॥ ते जण मौन लेई रह्या रे, रोता मंत्री रतन्न || रंगी० ॥ ३६ ॥ पूरी ढाल इग्यारमी रे, कांति विजय कहे एह || मोह शु जट जीते जिके रे, होय नर सुखिया ते ॥ २० ॥ ३७ ॥ ॥ दोहा ॥
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॥ हवे नूपें मंत्रीशने देखी करता ढील ॥ प्रेस्या पुरुष बीजा वली, करवा साज हवील ॥ १ ॥ तुरत मंगावी पालखी, रयण जमित मनुहार || नवरावे कलेवर नारिनुं, कनक कलश जलधार ॥ २ ॥ कुंकुम चंदन मृगमदे, कर्पूरें करी लेप ॥ कुसुम सरसुं पूजि कें, कस्यो धूप उत्क्षेप ॥ ३ ॥ शिबिका मांहे थापिने, राणीनो देह चाले नृप गोलो तटें, शिबिका यागे
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(४७) करेह ॥ ४॥ पुरथी जव नृप नीकले, तव पुखिया सविलोक ॥ जूरे विलपे हूबकें, रोवे करता शोक ॥५॥ ॥ ढाल बारम। ॥ उलगनी उलगमी तो कीजे
मुनिसुव्रत स्वामीनी रे ॥ ए देशी ॥ ॥ परिजन परिजन फुःखियो सहु रोवे घणु रे, नृप विरहो न खमाय ॥ करुणे करुणे शब्द बोले श्रावीने रे, वदन या विछाय॥१॥ रायजिम रायाजम बोमो अमने साहेबा रे, विण शरण गुणवंत॥ तुममुख तुम मुख दीठे सुख पामुं सदा रे, बेह न यो क्षितिकंत ॥राणा॥ तुमविण तुमविण अमने कहो कुंण राखशे रे, शंकटथी महाराय ॥ मनना मनना मनोरथ हवे कुंण पूरसे रे, बहुला लाम लमाय ॥रा॥३॥न शक्यो न शक्यो देखी दैव अटारमो रे,अमचो सुख निरधार ॥ नहींतो नहींतो समजु पण केम चूकी रे, मूके विण आधार ॥ राण ॥४॥ तिण दिन तिण दिन बाल तरुण घरढा मली रे, करे घणा आनंद ॥ अन्न न अन्न न नावे नापी निंदमी रे, वाध्यो दिल फुःख दंद ॥रा ॥५॥हणीया हणीया वज्रकें विष व्यापिया रे, घमेपमिया के हृदय हृदय संनाहत सर्व स्वजु रे, गहिला के फिरेई। रा॥६॥हा वत्स
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(४ए) हा वत्स हानिधि हा कुल दीवमा रे, कुलमंझण कुल मो म॥हा नृप हा नृप अमने उंची चढावीने रे, ध्रसका ईविण गेम ॥रा ॥७॥ कुलनी कुलनी वृद्धाश्म विलपे घणुं रे, नाठी रति दिलगीर॥मनमें मनमें खू तो नेह नरिंदनो रे, जिम तीखेरो तीर ॥ रा॥ धिगधिग धिगधिग अमची बुझिने रे, जे नावी को काम ॥ सहज सहज सनेहो अमने बोमीने रे, जो जावे आम ॥रा ॥ ए॥ मुजरो मुजरो अमचो कुंण लेशे हवे रे, कुंण देसे सनमान ॥ आतम आ तम निचिंतायें वाउला रे, इंम निंदे परधान ॥ राण ॥ १०॥ हा जिणे हा जिणे रूपें काम हरावीयो रे, वली हू निर्देह ॥ सुंदर हो सुंदर हो प्रनु नारी कार णे रे, किम बालीश ते देह ॥रा ॥ ११ ॥ कदीहो कदीहो रूप मनोहर पेखशुं रे, परगट पूनम चंद ।। श्मकही श्मकही नयणे जल प्रवे रे, पुरना रिनां वृंद॥ रा॥शा जनक जनक तणी परें पाख्या प्रेमथी रे, ए सघला पुर लोक ॥ रुलसे रुलसे दैव विडोह्या बापमा रे, जिम दियर विण कोक ॥ राम् ॥ १३॥ नगरी नगरी दीसे आज दयामणी रे, जिम दवदाधुं वन्न। शमकेश्म केश्संचरता नृप मारगेरे, लाखें दीन वचन्न
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(५०)
॥रा॥१४॥ सींचिय सींचिय धण कंचण मणि माणि के रे, मोहोटा कीधा आप ॥ तुमविण तुमविण तरु सम अमचो टालशे रे, कण पुःख व संताप ॥रा ॥ १५ ॥ याचक याचक लोक नणे नृप आगलें रे, आपणो पुःख देखाय ॥जीवन जीवन जातां जगमां केहनो रे, धीरज जीव धराय ॥राण ॥ १६॥ करुणा करुणा दाक्षिणताने सूरता रे, धीरज दान समान ।। कविता कविता सत्य सुजग गंजीरता रे, निरुपम झा न विज्ञान ॥ राण ॥ १७॥ साहस साहस सत्य प्र चंग उदारता रे, उपगार करता धर्म ॥ ए सविएस वि गुण निरधारी आजथी रे, कीधा ते विण मर्म ॥ रा॥ १७ ॥रंमित रंमित पंमित कीधा विण गुने रे, खंभित दैवे एण ॥ मंमित मंमित विद्यायें तुम सा रिखा रे, पमिया शंकट जेण ॥ राम् ॥ १॥चोपद चोपद जल पीवे नहीं तिणे समे रे, बोमे पंखी चूण॥ तो नर तो नर देखी जातो राजवी रे, फुःख पामे नहीं कूण ॥ रा॥ २०॥ममकर ममकर अणघटतुं श्म राजीया रे, हाहा धींगमधीर ॥ श्मपुर ईमपुर वासी वचन उवेखतो रे, पोहोतो गोला तीर ॥रा॥१॥ ते शब ते शब तीरेंतव उतरावीने रे, मंमावे चय
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(५१)
त्यांहिं ॥ देतो देतो दान याचकने ऊतरे रे, न्हावा लागो मांहिं ॥ रा० ॥ २२ ॥ नूधव जूधव नाहें त्यां जल जेतले रे, रमते लोक समग्र ॥ जलने जलने पू रें तव एक तांगियो रे, आव्यो काठ उदय ॥ रा० ॥ २३ ॥ निरखी निरखी मंत्रीसर तब बोलीया रे, रे रें तारक जादु ॥ लाकम खाकर जलमां सनमुख आव तुं रे, वेगें काढल्या ॥ रा० ॥ २४ ॥ एह बे एह ठे योग्य चिताने म सु रे, धीवर पेसी त्यांहिं ॥ बा हिर बाहिर काढ्यो ताणी तत्क्षणे रे, जलकुंकुं व गाहिं ॥ रा० ॥ २५ ॥ बंधन बंधन बहुले बांध्यो चि हुं पखें रे, त्रापा परें ते थंज || दीसे दीसे स्थूल कठि नगे पड्यो रे, जाणे वाहण थंज ॥ रा० ॥ २६ ॥ आदेशें यादेशें नृपने सेवकें रे, काप्यो तुरियें बंध ॥ जटक जटक अर्द्ध जुदो उधमी पड्यो रे, त्रुटीग या सविसंघ || रा० ॥ २७ ॥ तेमां तेहमां मृगमदें केशर चंदने रे, घरची सुंदर अंग ॥ चरची चरची घ नसारादिक गंधशुं रे, माल ववि बहुजंग ॥ रा० ॥ २८ ॥ कंठे कंठे लड़के हार मनोहरू रे, निद्रित लो चन जंग ॥ जलमां जलमां बांनि रति श्रावी रही रे, बेतरी आणी अनंग " रा० ॥ २७ ॥ चंपक चंपक
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(५२)
माला नृप मनमोहनी रे, दीठी दैव संयोग ॥ पेखवी पेखवी नूपतिनो दिल जागी रे, जागो विरह वियो ग ॥ रा० ॥ ३० ॥ चरिज यचरिज पाम्या पुरजन सवे तिहां रे, दूरगया जंजाल ॥ ईणी परें ईणी परें कां ति विजयें कही बारमी रे, सुंदर ढाल रसाल ॥रा० ॥ ३१ ॥ ॥ दोहा ॥
॥
॥ लोक सकलवस्थित पणे, नृपने बोले याम ॥ चंपकमाला जीवती, लही सुकृतथी स्वाम ॥ १ ॥ पा लखीयें पोढामीने, राणी आणी गेद ॥ खरी एह के ते दबे, के को बल बे एड् ॥ २ ॥ नृपति कड़े सेवक प्रतें, निरखो शिबिका मांहिं ॥ तेद देद तिमहिंज बे, के विधधरि यदि ॥ ३ ॥ जब सेवक ज नि रखी, व शिबिका पास | तब ते शब हरु हरु हसत, उमी गयो आकाश ॥ ४ ॥ है हुं वच्यो ख रो, बेतरतां नृप बेल ॥ नारि कारण जे नर मरे, ते जग साचा बेल ॥ ५ ॥ म कद्देतो चलतो नजें, ज लत्कार मय दे ॥ दंत मसत करतल घसत, थयो उलका सम ते ॥ ६ ॥ थरता सेवक सवे, याव्या नृपने पास ॥ वीतक व्यतिकर नूपनें, दाख्यो सकल प्रकाश ॥ ७ ॥ राय कहे ए वातनो, कोइ न लड़े वि
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(५३) रयाम ॥ ते माटे पूडे हवे, राणीने इंण गम ॥७॥ ॥ ढाल तेरमी ॥सोनानी आंगीहे, सुंदर मारा साहेबाने अंग, विच विच रतन जमाव, कोमी सूरज करुं वारणेजी ॥ ए देशी ॥ मृगा नयणी राणी हे, सुंदर हवे नयण उघाम ॥ ऊगे राणी आलश बगेमी, कषको प्रीतम अलजो करे जी ॥१॥ प्रिया मोरी बोलो हे, हसित मुखें मीठमा बोल ॥ कहो राणी वीतक वात, धुरथी जाणीजे जिण परेंजी॥॥ वयणा ते सुणी हे, राणी कहे निता ढांग ॥ कहो पीन ऊजाडो केम, जीना वशन ए पहेरीनेजी ॥३॥ लखगमे ऊना हे, निकट चय पाखलें लोक ॥ कहो पीउ शिबिका मांहें, ग्वीय ला व्या बो केहनेजी ॥४॥ नृपति कहे माहरी हे, सुंद र पढे कहेसुं वात, कहो तुमचो विरतंत, जिम श्रम मन सांसो टलेजी ॥५॥ क्यां गश् क्यां रही हे, नव ल किहां पाम्योहार॥कहो किम पेठी काठ, किणे वा ही गोला जलेंजी ॥६॥ पदमणीप्रेमे हे, कहे एणे वमनी बगंहिं ॥चालो पीउ थासुब, संजलावू थ म वातमीजी ॥७॥नृपति तवाव्यो हे, सकल ज न विव्यो तेथ ॥ श्रमें जरी कोमल काय, तमकें तपी
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(५४) थइ रातमीजी ॥ ॥ राणी कहे वाणी हे, प्रीतम प ण जाणो को तेह ॥दाहिण मुज फुरक्यो जे नयण, सचक अशन निमित्तनोजी ॥ ए॥नमी वन वामी हे, आवी फरी मंदिर मांदे ॥ दासी गश् सेवा पाम, वेगवती चंचल तनुजी ॥१०॥ निशानर तेणे हे, सूती जव सेज हुं थाय॥पुष्ट कोश्यायो पास, तुरत उपानी लेई गयोजी ॥ ११॥ सूंने गिरि ढूंके हे, मूकी मुज नागे धीठ ॥ जयें घण थर कित गात, सकल दि श जोडं सुं थयोजी ॥ १५ ॥ दीसे नहीको हे, पा बल मुख आगल पास ॥ सुएयु कोश् विषम आकं द, विरुया वनचरना घणाजी ॥ १३ ॥ वाघ सिंह धड़के हे, सबल दीये चित्ता फाल॥रमे रीड देतां दो ट, किहां कणे मग करेखेलणाजी ॥ १४ ॥ जाऊं कि ण श्रागें हे, सुणे कोण पुःखनी वात ॥ चिंता चयसुं लगी चित्त, क्षणएक पुःख पूरें नरीजी॥ १५॥ सा इस धरी साचो हे, चाली दिशि एक निहाल ॥किहां पिन किहां वन केणि, वैरी अकारण अपहरिजी॥१६॥ चढी गिरि टंके हे. कनिज बातम घात॥चित चिं ती एह, त्यांहिं, चाली सम थमते पगेंजी॥ १७ ॥ दीगे तस सिंगे हे, वारू एक नवल प्रासाद ॥ उंचो
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( एस )
यति जलहल ज्योति, जलके अंबर तल लगेंजी ॥ १० ॥ रुषन प्रभु राजे दे, मोहन जिहां जगनो ना थ ॥ देखी मणि मूरत खास अंतर आतम उल्लस्यो जी ॥ १५ ॥ कीधी स्तुति मोटी दे, ललित पद अर्थ गंजीर ॥ लागो जिनसुं एकतान, दुःख सयल मनथी खिस्योजी || २० ॥ कांतें कही रुमी है, सरस ए तेरमी ढाल || मीठी जिम साकर प्राख, सुणतां काने अमृ त वस्योजी ॥ २१ ॥
॥ दोहा ॥
॥ विधिविवेक पूर्वक पणें, कीधी में जिन सेव ॥ जगति निरवी दरखित थई, बोली शासन देव ॥ १ ॥
शासन रखवालिका, चक्केसरी मुज नाम ॥ श्र दि जुवन रक्षा करूं, मलयाचल शुज वाम ॥ २ ॥ म लय देवी मुज नाम बे, बीजुं ठाण गुणे ॥ सादमी धर्म जणी चरण, प्रणमुं हुं तिथे एए || ३ || कठिण ही युं करी कामनी, मनमां कां म बीह || पके अव स्था माणसा, न टले सुख दुःख लीड़ ॥ ४ ॥ पूब्युं में कड़े मावमी, किणे आणी मुज श्रांहिं ॥ कहियें स वि निरत्तसुं तव सा बोली त्यांहिं ॥ ५ ॥
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(५६)
॥ ढाल चौदमी ॥ मेंदी रंग लागो । ए देशीं ॥ ॥ वीरधवल तुज नाहने रे, वीरपाल हुई बंधु ॥ वच्छे सांजलो || निर्गुण लोजी राज्यनो रे, कूम कपटनो सिं धु ॥ ० १ ॥ वम बांधव दवा जणी रे, चिंते वि विध उपाय ॥ ० ॥ अन्य दिवस वध कारणें रे, पे ठगे मंदिर श्राय ॥ ० ॥ २ ॥ खड्ड घाय मूके खरो रे, नृप साहामो यति धीठ ॥ व० ॥ एक घायें वम बांधवें रे, पाड्यो धरणी पीठ ॥ ० ॥ ३ ॥ शुभना वें ते मरी रे, एणे गिरि ए थयो भूत ॥ व० ॥ श्र तुल बली परिवारमें रे, दीवी मादरे दूत ॥ व० ॥ ४ ॥ गत नवें ते पाप रे, संजारे निज वयर ॥ व ॥ बल जोतो नरनाहनां रे, विचरे वनगिरि नयर ॥ व० || ५ || पुण्यबलें न सके करी रे, नृपने कां विरूप ॥ व० ॥ चिंते नृपने नारिशुं रे, प्रेम निवम बे अनूप ॥ व० ॥ ६ ॥ जो मारुं नृप नारिने रे, तो मरसे नृप आप ॥ ० ॥ खस जासे सीतल जलें रे, टलसे सर्व संताप ॥ ० ॥ ७ ॥ बानो बल ताके रसी रे, लागो रहे नित पूव ॥ व ॥ सूती सेजें तूं एकली रे, ऊ पामी तेथे कुछ ॥ व० ॥ ८ ॥ गिरि टूकें मूकीने रे, आप थयो विसराल ॥ व० || पूरव पुण्यें जेटीया
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(५७)
रे, तें श्रीषन कृपाल ॥ व० ॥ ए॥तूठी हुं जिनन तिथी रे, आपुं तुं वर माग ॥व०॥पुलदो दर्शन दे वनो रे, दीगे ये सोजाग ॥ व०॥ १०॥ देवीने में वीनव्युं रे, जो तूठी मुज माय ॥व०॥ संतति नहीं महारे किस्यो रे, कीजें तास उपाय ॥ व ॥११॥ चंपकमालाने कहे रे, निसुणी वाणी एम ॥ व०॥ चक्केसरी देवी वली रे, बोली धरी अती प्रेम ॥ व ॥ १५ ॥ पुत्र पुत्रीने जोमले रे, थाशे तुज संतान ॥ व०॥ गर्न रोध तहारे थयो रे, तेतो नूत निदान ॥व०॥१३॥हवे फुःख देता वारशुरे, निज सव कने नूत ॥ व०॥ शिदा देसुंआकरी रे, खल न करे करतूत ॥ व ॥ १४ ॥ नृप कहे मति तुज रूअमीरे, माग्यो वारू एह ॥ व०॥ चिंता माहारी उझरे रे, तुज विण कुण गुण गेह॥ व०॥१५॥ प्रिया कहे खिति कंतने रे, परम कृपा परजूंज ॥प्रीतम सांजलो॥ हार दीधो ए देवीयें रे, नामें सदमी पूंज ॥प्री० ॥१६॥ सपनाव सुर संक्रम्यो रे, हार रयण बहु मूल ॥प्री० ॥ सयल मनोरथ पूरसे रे,करशे जगअनुकूल ॥जी॥ ॥ १७ ॥ एहथकी सपराक्रमी रे, होशे तुज संतान ॥जी॥ अतुल विघन जाशे परां रे, वधशे जगमां
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(५७) मान ॥प्री० १०॥ पूज्यो वली देवी कहे रे, नूत त णो संबंध ॥ प्री०॥ चंप्रावती ते गयोरे, तुज नवि गिरिने खंध ॥ प्री० ॥१५॥ तुज गमें तुज सारिखो रे, करी रह्यो मृतक सरूप ॥प्री० ॥ मरण सही द यिता गणी रे, घणुं पुःख पाम्यो नूप॥प्री०॥२०॥ सात पोहोरने अंतरें रे, मलशे ताइरो कंत | प्री०॥ तिण वेला एक खेचरी रे, नजपंथथी श्रावंत ॥प्री० ॥१॥ अदृश्य नाव देवीलहे रे, खगनारी हुई संग ॥प्री० ॥ एकाकी मुज देखीने रे, पूज्युं वचन विनं ग ॥प्री० ॥२५॥ तस आगल में माहरो रे, जाख्यो सवि विरतंत ॥ प्री० ॥सुणी विस्मित बोलीतिका रे, मुज फुःखथी निससंत ॥प्री० ॥३॥ चिंता ममकर जामिनी रे, करशुंथति उपकार ॥जी॥ चंद्रावती मूकशुं रे, जिहां तुज प्राणाधार ॥जी॥२४॥श्म यासासें खेचरी रे, वचन अमृत सुरसाल॥प्री॥कांति विजय श्म चौदमीरे, नाखी निरूपम ढाल॥प्री० ॥
॥दोहा॥ .. ॥ रूप निरखी हरखी तिका, कहे सांजल गुण खाण ॥ विद्या साधन कारणे, हुं आवी ईणे गण ॥१॥ स्त्रीलंपट मुज पति हां, आवे ने मुज पूठ ॥ जो
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(एए) तुज रूप निहालशे, शील खंगशे ऊठ ॥२॥ सोक धरम माहरे हसे, जनमां वधे कुःखदाय॥खोश तुं कुल वट्टमी, परवश वास वसाय ॥ ३ ॥ नवरस लोजी नाहलो, अवगणशे कुल लाज ॥ श्रावी तुरत जिम ताहरो, विषम सुधारूं काज ॥ ४ ॥ एम कही करतल ग्रही, खग नारी दे धीर॥ निकट नदीजल जर वहे, श्रावी तेहने तीर ॥ ५॥ .
॥ढाल पंटरमी॥ घोगीतो थाई थां॥
रा देशमांमारुजी॥ए देशी॥ ___ गुहीर नदी जल उठले ॥वारुजी ॥ बटके पवन नी बांट हो, मृगा नयणीरा जमर सुणो वातमी, मा रुजी॥ निरखी तट तरु मंगली ॥ वा० ॥ हीयॉ ना खे काट हो ॥ मृ॥१॥ जाणुं हुं एह खेचरी ॥ वा॥हणसे सही इंणि वाट हो॥ मृ० ॥ के तरु माले बांधशे ॥वा ॥के जाशे खिति दाट हो । मृ०॥२॥ के जलपूरे वाहशे ॥ वा ॥ म मन मुज पुःख घाट हो । मृ०॥ तव निरखे ते खेचरी॥ वा॥ सुक्क कठिन एक काठ हो । मृ॥ ३ ॥ वि या बलें ते खेचरी ॥ वाकीधो फानी पुन्नाग हो। मृ०॥ विज कस्यो तस अंतरें ॥ वा०॥ पुरुष प्रमा
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(६०)
णे माग हो॥ मृ० ॥ ४ ॥ मुज तनु चरच्यो चंदने ॥वा ॥ करी मृगमद बिरकाव हो ॥ मृ० ॥ अगर प्रमुख शुन्ज वस्तुयें ॥ वाण॥ कीधी मुने गरकाब हो ॥ मृ॥५॥ काठ विवरमां मुज धरी ॥वा॥ ढांके ऊपर फाल हो॥ मृ॥ तदनंतर नखहुं किस्युं ॥वाण ॥गर्न रही जेम बाल हो ॥ मृ०॥६॥ नयणे दीग हवे नाथजी ॥ वा ॥पूरवपुण्य संयोग हो॥मृ॥नृप कहे तुज विरहण मुखें ॥ वा॥ मेलविर्ड ए योग हो ॥ मृ०॥ ७॥ चयमांमी गोला तटें ॥ वा० ॥ वारण मिलिया लोग हो ॥ म०॥पुःख सुख लाने लोकमां ॥ वा ॥ न टले पूरवकृत लोग हो॥ ॥॥मंत्रि कहे तेणे खेचरी ॥ वाण॥शोक सबल फुःख नालि हो ॥ मृ ॥ काठ ज्वल विवरें धरी ॥ वा ॥वहेती करी जल बाल हो ॥मृ०॥ ए॥ मारे ते जो खेचरी ॥ वा ॥ तो विद्या होये आल हो ॥ मृ० ॥ पोहोर दि वस चढते मल्यां ॥ वा०॥ सात पोहोर सवि काल होम०॥१०॥नप कहे मजदयीता तणावा॥ हरण हुई सुख देत हो॥मृ०॥कुलक्ष्यकारी नूतनो ॥ वा ॥ बंध कस्यो संकेत हो ॥ मृ॥ ११॥ देवी जल मंदिर तलें ॥ वा ॥ काठ धस्यो शुजगम हो।
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(६१) मृ॥ श्णे अवसर बिरुदावली ॥ वा ॥बोल्यों वे तालीक ताम हो ॥ मृ॥ १५॥ प्रबल प्रतापी वि श्वमां ॥ वा ॥ कमला जासण जेद हो ॥ मृ० ॥ जय जय ते जग शिर ठव्यो ॥ वा० ॥ प्रनुपरें दिन कर एह हो ॥ मृण॥ १३ ॥ मंत्री जणे अवशर लही ॥ वाण ॥पउधारो पुर नाह हो ॥ मृ०॥ नाहण नोय ण पाणथी ॥ वाण ॥ वीसारो सुःख दाद हो॥ मृग ॥ १४ ॥ तहत्ति करी नृप ऊठीयो ॥ वा ॥ आवे नयरी वाट हो ॥ मृ० ॥ शब्द पंच नादेंकरी ॥ वा॥ बीहिना दिसि गज थाट हो॥मृण॥१५॥ मांगलिया जय रव नणे ॥वा॥नाचे गणिका कोमिहो।मृ॥ ये आसीश सोहामणी ॥ वा ॥ गुणीजन होमा होमि हो ।म ॥ १६ ॥ लेतो सहुअ वधामणा ॥ वा० ॥देतो दान उदार हो॥ मृ॥जोतो पुरनां व्य वहारिया ॥ वा ॥ सणगास्या बाजार हो ॥ म० ॥ १७ ॥ नूपति लखनां नेटणां ॥ वा० ॥ ग्रहतो हय गय घाट हो ॥ मृ०॥ सुणतां याचकनी स्तुति घणी ॥ वा करतो अरि मुख दाट हो ॥ मृ०॥ १० ॥ मंदिर पोहोतो महिपति ॥ वा ॥ नेटे निज परिवा र हो ॥ म ॥ सचिव प्रमुख नमी नूपने ॥ वा० ॥
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(६५) पोहोता निज निज गर हो ॥ मु०॥ १५ ॥ नाहण करी नरपति गृहें ॥ वा ॥पूजे अरिहंत बिंब हो। मृ॥ नोजन विविध प्रकारनां ॥ वाण आरोगे अ विलंब हो ॥मृ ॥ २०॥ जुपति दयीता संगतें ॥ वा० ॥ विलसे नवनव नोग हो । मृ० ॥ पुण्यथकी दिशा पाधरी ॥ वा० ॥ लहेसे सकल संयोग हो । मृ ॥२१॥ गर्नधरे ते दिनथकी ॥ वा ॥ पटरा णी गजगेल हो ॥ मृ॥ कांति कहे ए पनरमी ॥ वा० ॥ ढाल सरस रस रेल हो । मृ ॥१२॥
॥दोहा॥ ॥युगल गर्ज जिम जिम वधे, तिम तिम नृप मनमो द॥ राणी जाग्य सोजाग्य जर, धारे विविध विनोद ॥१॥ तन रक्षा रूमी परें, जुप करावे तास ॥ करे कृतारथ दोहला, पूरे मननी श्रास ॥॥ दयिता मुख केते दिने, केतक दल बबी ढुंत॥ तनु पुर्बल स पगार रस, अल्प अल्प नावंत ॥३॥ मुख परिमल रस लाल, चिहुँदिसि जमर लमंत ॥ सहज़ सुरनि उसासथी, पंकज कुल लाजंत ॥ ४॥ पूर्ण दिवस शुज वासरे, शुज मुहूर्त शुज वार ॥ पुत्र पुत्रिका रु पतिणे, प्रसव्यो युग्म उदार ॥५॥
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(६३)
॥ ढाल शोलमी । गेंफुमानी ॥ एदेशी॥ ॥ पटराणी प्रसव्यो तिहां रे हांजी, सुत तनूजानो युगल अनूप ॥ ए रूमोरे ॥रतिपतिनो रंग, ए रूमोरे ॥ सरसतीनो अंग, ए रूमो रे॥ जिम नंदन खितिथी हवेरे हांजी, कल्पवृक्ष ले अंकूर रूप॥ ए॥१॥ वे गवती दासी धसी रेहांजी, दीये वधामणी नृपने श्रा य॥ए॥ शिर न्हवरावे संतोषसुं रे हांजी, दास करम तस टाले राय ॥ ए ॥२॥ वेग करावो नय रमां रे हांजी, दशदिन नृप थितिपति काज॥ए॥ पुत्रागमननां दर्षथी रे हांजी, हू अपूरव मन सुख साज॥ए०॥३॥ नगर जुवन सविचीतस्यां रे हांजी, बारण उविया सोवन कुंन ॥ ए० ॥ ध्वज पट लह काविया रे हांजी, रोप्या टोमें कदली थंज ॥ ए॥ ४॥ रयणथंन ऊना कख्या रे हांजी, अति सुंदर पु र शोजा हेत ॥ए ॥ तोरण दल सहकारनां रे हां जी, बांध्या नव मंगल शंकेत ॥ ए॥५॥ पुरलो क इट सहेरमां रे हांजी, थापी सोवन दीपक उल ॥ ए० ॥सेरी पंथी पूजावीने रे हांजी, कीधां सींच पण चंदन घोल ॥ ए॥६॥राज मारग त्रिक चा चरें रे हांजी, देवरावे मणि कंचन दान । ए॥
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(६४) दिनवन सोधि विधि रे हांजी, मूक्यांसघला बंदी वान ॥ ए॥७॥ वाज्यो पमह अमारनो रे हांजी, देश माहे जय गंजण नाग॥ए ॥कुसुम पगर नां तें जया रे हांजी, धूपघटा पसरी नन माग ॥ ए॥ ७॥ जनपद अकर कस्या हसें रे हांजी, ताड्या उंछ लि वाज्या घोर ॥ एम् ॥नाच करी हाव नावथी रे हांजी, वार वधू कुल चतुर चकोर ॥ ए॥ ए॥ अक्षत पात्र नरी रंगथी रे हांजी, नृपने वधावे श्रा वी नार ॥ ए. ॥ विकशित रंग वधामणां रे हांजी, चतुर सचिव मलिया दरबार ॥ ए० ॥१०॥ जुवन जुवन थापा दीया रे हांजी, सुरजी अगर कुंकुम घन घोल॥ए॥ उत्सवमहोत्सव मांमिया रेहांजी, शोजावी नगरनी पोल ॥ ए०॥ ११॥ मांगलिया मंगल लणे रे हांजी, बंजण नणे बहला स्तुति पाठ ॥ ए॥ मक्ष रमें बल माहता रे हांजी, नटुथा के उंचा काठ ॥ ए॥१२॥ जिन जुवन पूजा रचे रे हां जी, सामी नक्ति करंत अनेक ॥ ए॥अवसर क र खेंचे नही रे हांजी, कहिये साचो तास विवेक ए०॥ १३ ॥ अशुचिकर्म वित्या पड़ी रे हांजी, सं तोषे सुपरें कुटुंब ॥ ए॥ कर पंकज जोमी कहे रे
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(६५) हांजी, ते पागल नूपति अविलंब ॥ ए० ॥ १४ ॥ मया करी मलया सुरी रे हांजी, आप्यां मुजने बे सं तान ॥ ए० ॥ तस नामे होजो बिन्हे रे हांजी, मल य सुंदरी अनिधान ॥ ए॥ १५॥ पंचधाश् पालीज ता रे हांजी, कुमर कुमरी वधे ससनूर ॥ ए ॥ दि नदिन नवल कला ग्रहे रे हांजी, बीज तणो जिम चंड अंकूर ॥ ए ॥ १६ ॥ हसण बुठण चलणादि के रे हांजी, जिम जिम साधे शैशव योग॥ ए॥ति म तिम नृप राणी लदे रे हांजी, हर्ष मनोहर फल संयोग ॥ ए॥१७॥ निरुपम योवनने रसें रे हां जी, शिशुता रस मूके आस्वाद ॥ ए॥ कालें उचि त कला ग्रहे रे हांजी, बुध संगें निज मति उनमाद ॥ए॥ २७ ॥ किणदिन मदगज राजयी रे हांजी, खेल करे पण नृप सुत बांध ॥ ए० ॥ ख्यालकरे हयथी कदे रे हांजी, खड़ रमें नाखें सरसांध ॥ ए॥ १ए | कुमरी पण जमरी परे रे हांजी, वीं टी परिकर अति अनुकूल ॥ ए॥ वनवामी आरा ममां रे हांजी, रमण करे यौवन मद जूल ॥ ए ॥ २० ॥ कांतिविजय बुद्ध शोलमी रे हांजी, ढाल कही उत्सवनी एह || ए॥ पुण्यथकी जय मा
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(६६)
लिका रे दांजी, वाधे दिनदिन वधते नेह ॥ ए० ॥ २१ ए० ॥ २० ॥ स० ॥ सर्वगाथा ॥ २४२ ॥ ॥ चोपाइ ॥ खंगखं रस बे नवनवा, सुणतां मीठा साकर लवा || निर्मल मलयचरित्र जग जयो, प्रथम खंग संपूर्ण थयो ॥ १ ॥
॥ इति श्री ज्ञानरत्नोपाख्यानापरनाम निमलय सुंद रिचरित्रे पंमितकांति विजयग शिविरचिते प्राकृतप्रबंधे मलयसुंदरी प्रशवनो नाम प्रथमः खंगः संपूर्णः ॥ १ ॥
॥ अथ द्वितीय खंड प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥
॥ स्वस्तिश्री गुरु जिन गिरा, गणधरने करजोकि ॥ बीजो खंग कहुं हवे, छालश निद्रा बोमि ॥ १ ॥ धुर मीठी जो होय कथा, कथक वचन निर्दोष | मीठी सजा सुणे वली, तो होये रसनो पोष ॥ २ ॥ फोकट फोरवे चातुरी, विचमा करे बकोर ॥ रस गंज विकथा करे, माणस नहीं ते ढोर ॥ ३ ॥ तेहजणी मन थिर करो, मूकी अलग धंध ॥ कहेतां श्रोता सांजलो, सरस कथा संबंध ॥ ४ ॥ लदी हवे कुमरी शुभग, यौवन पूर अनंग ॥ का काम समझना, उगमें विविध तरंग ॥॥॥।
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( ६७ )
॥ ढाल पहेली ॥ पनामारु यौवन आईजी पूर ॥ देश ॥ ॥ ॥ यौवन रस पूरें चढी रे, नवल गोरीरो गात ॥ जलकें करे बिचंद्रिका रे, जाणु आसो पूनिमनी रात ॥ १ ॥ कन्यावारू यौवन आईजी पूर, राजी रूपे लूटी लीधी रति राणी ॥ कन्यावारू यौवन आईजी पूर ॥ ए
कली ॥ वेणि निहाली शामली रे, नाखुं नागिण घोल ॥ वदन कमल रस लालचें रे, मानु बेठी नमरनी जेल ॥ क ० ॥ २ ॥ जाल जनुं जाग्यें जतुं रे, दीपे सबल सुघाट | पुण्य रेख लिखवा जणी रे, विधि माग्यो क नकनो पाट || क० ॥ ३ ॥ वीब मिया मृगनां जिस्यां रे लोचन तास वखा ॥ तीखाई विधिना गमी रे, जिम सर चाढ्या खुरसाए ॥ क० ॥ ४ ॥ सकन मन धारा जिसी रे, नासा सरल सुहाय ॥ चांचें लाज्या सूमला रे, ते लखि लखि वनफल खाय ॥ क० ॥ ५ ॥ अधर धरे रंग रातको रे, नवपल्लव सुकुमाल ॥ वमवानल संगति मिसें रे, मानु पेठी विद्रुम जाल ॥ क० ॥६॥ बिहु पख धारे या तिकला रे, तस मुख चंद्र हसाय ॥ निरखी खिसाणो चंद्रमा रे, नित्य उदय लही खिसी जाय ॥ क० ॥ ७ ॥ सरल सुहाली बांहमी रे, तेह लु ढावे बाल || जिनव उपे जोकले रे, नमी घ्यावी क
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(६७)
स्पतरु माल ॥ कण ॥॥ गोल कग्नि कंचुक कश्या रे, कुच युग एम शोनाय ॥ काम नृपति जीतवान णी रे, शहां तंबू दीधा थाय । क० ॥ ए॥ उदर स कोमल पात@ रे, जेहQ पोयण पान ॥ जलकारें जाण्यो पमे रे, आत कनक तबकने वान ॥कणारा गजे सुंदर वाटलो रे, जीणो केमनो लंक ॥ देखतही वन गिरि गया रे, मृगराज थया साशंक ॥कण॥११॥ जंघ युगल दीपे नलों रे, अचला कदल। खंन ॥ म दन मालिये सिंचिया रे, नरी लावण्य अमृत कुंज॥ ॥क० ॥ १५ ॥ ऊंचा मांसल सुंदरू रे, पग काबब अनुहार ॥ तस तुलना करवा नणी रे, जाणे कम लीयो अवतार ॥ कण् ॥ १३ ॥ कोमल कर पग आं गुली रे, ऊपर नख दीपंत॥माणिक मंमित लेखणी रे, रति पतिनी एहवी न हुंत ॥ कण॥१४॥ पगें जांजर जम जम करे रे, कटि मेखल खलकार ॥ लक्ष्मी पूज सोहामणो रे, तस कंठे बाजे हार ॥ कण् ॥ १५ ॥ कर कंकण मणिमय जड्या रे, काने कुंमल जोम ॥ शोहे सवि शिणगारथी रे, गज गामणियां शिर मो म॥ क० ॥ १६ ॥ निपुणपणे दिन निगमी रे, वर
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(ए) सायक ते बाल ॥ नाखी बीजा खमनी रे, श्म कांतें पहेली ढाल ॥ क० ॥१७॥
॥दोहा॥ हवे अ एह नरतमां, पुरवर पुहवी गण ॥ सूरपाल नामे तिहां, राज्य करे खिति जाण ॥१॥ पटराणी पदमावती, रूप शील गुण वास ॥ सुत सुं दर तेहने हर्ड, नाम महाबल तास ॥२॥ विद्या सा धक कोश्क नर, सेव्यो कुमरे एण ॥ रूप पलट्टण कारणी, विद्या दीधी तेण ॥३॥ नाग दमण व्यामो हनी, नूत दमणि वशितंत ॥ मंत्र यंत्र कार्मण प्रमु ख, शीख्यो कुमर अनंत ॥४॥ सूरपाल नृप कारजें, खासा श्राप खवास ॥ मलणु आपी मोकले, वीर धवल नृप पास ॥५॥ कुमरे पण नृप वीनवी, की, साथ प्रयाण ॥ केतक दिन चंद्रावती, पोहोता सुगुण सुजाण ॥६॥मूकी मुहगो लेटणो, उचित करी व्यव हार ॥ नृप आगल बेग सहु, नाखे कुशल प्रकार ॥ ॥ ७॥ निरखी नूप कहे श्श्यो, ए कुंण तरुणोजेह ॥ एक सचिव मायो कहे, मज लघु बांधव एह ॥ ॥ कही काम निज स्वामीनां, ऊठ्यो तेह प्रधान॥ नूप दत्त मंदिर जई, उतारथा शुलथान॥५॥राज कुम
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(७०) र मन कौतुकी, निरखत पुर आवास ॥ जमतो नम तो आवी, मलया मंदिर पास ॥१०॥ ॥ ढाल बीजी ॥ थाहारा मोहला ऊपर मेह जबूके वीजली होलाल, जबूके वीजल
॥ कुमरी कुमर, रूप, निहाली तव तिहां होला ल निहाली ॥ मांमे मीट अनूप कुमर ऊनो जिहां हो ॥ कु० ॥जक न पके तिल मात्र, के विरहथी परजली हो ॥ के ॥ कामातुर अकुलात, के दुश् मन आकली हो ॥ के ॥१॥ निरखी सुंदर अंग वखाणे तेहनां हो ॥ व०॥फूल्या जासू रंग चरण तल एहनां हो ॥ च॥ तेज तणो अंबार रह्यो सु रपात जिस्यो हो ॥र ॥ मयगल सुंगाकार सुजंघा युग तिस्यो हो ॥ सु० ॥२॥ सुंदर कटीनो लंक वि राजे लंकथी हो॥ वि०॥ मावे करतल माग जलो मध्य अंकथी हो ॥ न०॥ हृदय महा सुविशाल नु जा नोगल जिसी हो ॥ नु० ॥ रेखा त्रण गलनाल कहुं उपमा किसी हो ॥ क० ॥३॥ सूमा चंचु स मान सुहावे नाशिका हो॥ सु० ॥ मणिदर्पण जप मान कपोलें नासिका हो॥क० ॥कामणगारी का में अमी बिहूं आंखमी हो ॥ १० ॥ श्याम जमर
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(७१) अनुमान शिखा रतिपति बमी होण्॥ शि॥४॥ब लिहारी ललं तास घड्यो जेणे एहवो हो ॥ घ० ॥ निरख्यो रूप निवास जनम सफलो हवो हो ॥ ज॥ नृप बाला जरी नयण पीये रस रूपनो हो॥पी०॥ लागो जश्ने गयण उमाहो चूपनो हो ॥ ज० ॥५॥ नृपसुत पण ते देखी थयो मदनाकुलो हो॥थ॥ वाध्यो विरह विशेष अलेख उपांपलो हो अ॥ अहो अहो रूप निहाली चतुर गुण धारिका हो॥ च० ॥ परणी अडे एह बाल के हजीथ कुंथारिका हो॥ के ॥ ६ ॥ श्म चिंतवतां लेख लखीने बा लिका हो ॥ लण्॥ नाखे नीचुं देखत लागी जा लिका हो ॥ त ला ॥ कुमरे सकल उदंत चतुर प णें वांचिया हो ॥ च ॥ पदपद अंग अनंतह ह रख रोमांचिया हो ॥ ह॥७॥ कवण अडे तुज जाति रहे तुं किहां वली हो ॥र॥ नाम कवण कु ण जाति जायो तुं महाबली हो॥जाण॥ वीरधवल नी जाति अहंकमारिका हो॥अ॥ मोही ता हरु गात निहाली बारिका हो॥ नि० ॥ ॥ तुम विरहें मुज काय रही ए जलबली हो॥रही॥ ट देश महाराय करो हवे सीथली हो ॥क० ॥ वां
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( 32 )
चीम विरतंत कुमर मन वेधिनं हो० ॥ ने द निवितंत बिहुं मन साधितं हो० ॥ बिदु० ॥
॥ कुमर थई थिरथं निहाले वली जिहां हो० ॥ नि० || कोइक नर निरदंत कहे श्रावी तिहां हो० ॥ क० ॥ कुमर संबाहो वेग पियाणो आज बे हो० ॥ पि० ॥ बांको निरखण नेग उतावलो काज बे हो० उ० ॥ ॥ १० ॥ वैर वसाव्यो ध्याय तिथे तिहां घ्याविने हो० ॥ ति० ॥ इव नाएयो अकुलाय चल्यो विरचाइने दो० ॥ च० ॥ विरहो तास कठोर दियामां याथमे हो० ॥ दि० ॥ मां श्राघा जोर चरण पाठा पके हो० ॥ च० ॥ ११ ॥ चिंते चित्तमां आप जणाव्यो में नहीं हो० ॥ ज० ॥ रहेसे मुज संताप मिलणनो ए सही हो० ॥ मि० ॥ चालणारी जो वार इसे एका घमी हो० ॥ ६० ॥ रहेसे पण निशिचार याविश हुं दम्बमी हो० ॥ आ० ॥ १२ ॥ धारी म मनमांहे गयो निज थानकें हो० ॥ ग० ॥ अवसर देखी त्यांहिं आव्यो उचानकें हो० ॥ या० ॥ किरणरूप थइ फाल दिये गढ उपरें हो० ॥ दि० ॥ श्राव्यो पहेले माल विद्याधरनी परें हो० ॥ वि० १३ ॥ कनकवती नृपनारि निहाले पेस तो हो० ॥ नि० ॥ कवण पुरुष णे वाम घ्याव्यो कि
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(७३)
म हिंसतो हो ॥ ॥ अतिग दरबान सूता ई णे वेचिया हो ॥ सू०॥के को मंत्र निदान तिणे जन वंचिया ॥ हो । ति ॥ १४ ॥ इम चिं तवी ते तेह मोही रूपें घणुं हो ॥ मो० ॥ नाखें धरती नेह मनोरथ आपणुं हो॥ म० ॥ श्रा वो कुमर करार करो इणे आसणे होण॥ कण् ॥ ला हो व्यो मुज सार शरीरने फरसणे हो॥ श० ।। १५ ।। कुमर सुणी ते वाणी विचारे निज हिये हो० ॥ वि०॥ पेसी एहवे गण विसास न कीजीयें हो० ॥ वि०॥ कपट करी ए नारि करुं राजी खरी हो ॥क ॥बो ले वचन विचार सुगुण तिहांअवसरी हो ॥सु॥१६॥ सुण सुंदरी गुण रेख विदेशी आवीहो। वि० ॥ मलयानो एक लेख विगतसुं लावी हो ॥ वि० ॥ देखामे तसगम देई ते तेहने हो ॥दे ॥तो वली ताहारो काम करुं हुं थिर मने हो ॥ क० ॥ १७ ॥ तव नृप दयिता आवी देखामे वाटनी हो ॥दे॥ चंचो चढि धाय नारी नीचे खमी हो ॥ ना || दीपी बाला दीन वदन करतल धरी हो ॥ व ॥ बेठी करीश्राकीन कुमर एक उपार हो ॥ १७॥ कु०॥
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(8) कुमरनणे सुण बाल करो चिंता किसी हो॥क ॥ करवा तुम संजाल श्राव्यो हुँ उखसी हो ॥श्रा॥ देखो उघामो आंख हवे कां पांतरो हो ॥ ह० ॥ नाखो विरहो तामी करो मत अांतरो हो ॥ क०॥ ॥१५॥ उठी बाला रंग मिलि मन मोदसुं हो॥ मि॥ माथु थतिहें उमंग धरे तस गोदमां हो॥ध॥बीजे खेमे ढाल थई बीजी हां हो ॥ थई० ॥ कांति कहे वर बाल बिहुँ मिलिया तिहां हो॥ बि० ॥२०॥
॥ दोहा ॥ ॥ करे विविध तिहां गोठमी, बिहुँ जण प्रेम धरंत ॥ कुमर कहे सवि आपणो, ते आगल विरतंत॥१॥ पुहवी गण तणो धणी, सूरपाल मुज तात ॥ पट देवी पद्मावती, तेहनो हुँ तन जात ॥२॥नाम महा बल माहरो, देश निरखणनी खंत ॥ नृप कामे परि वारशें, इहां आव्यो गुणवंत ॥३॥ निरखत अचरज पुरतणां, दीगे तें उपकंठ ॥ लेख लख्यो ते वाचतां, जाग्यो नेह उद्धं ॥४॥ मली हसि हवेशीख , चालण मुख सहु साथ ॥ वचनसुणी बाला विलपि, श्म कहे जोमी हाथ ॥ ५॥
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( जय )
॥ ढाल त्रीजी ॥ उनी जावलदे राणी अरज करेबे, अबको वरसालो घर कीजें हो ॥ गढबुंदी वाला || ए देशी ॥
॥ मलया कड़े विरहानल तापी, अवसर एड् र ह्यानो हो । प्रभु धरा हो लोजी, वाला चलणं न देस्यां ॥ चलण तुमारो मोहन मरण हमारो, रहो र दो कं मानो हो || प्र० ॥ १ ॥ करुणा करीने मुज उपर विजी, पूरो मनोरथ रूमा हो ॥ प्र० ॥ लक्ष्मी पूंज मुत्ताहल मनजुं, एह ल्यो चातुर सूमा हो ॥ प्र० ॥ २ ॥ हार तो मिसे ए वरमाला, कंठे ववी म जाणो हो ॥ प्र० ॥ दवणादी गांधर्व विवाहें, परणी मुज सुख माणो हो ॥ प्र० ॥ ३ ॥ कुमर कदे सु चंद्र मुखी तें, वचन कह्युं ते वारू हो ॥ प्र० ॥ मात पिता आणा विण कन्या, वरवी नहीं विवहारू हो ॥ प्र० ॥ ४ ॥ दुःख म धरिस रही दिन केताइक, बुद्धि करुं हुं तेहवी हो ॥ प्र० ॥ मात पिता जन जोते तु जनें, देसे मुज ततखेवी हो ॥ प्र० || २ || पण बांध्यो ए में तुज आगें, मन रली आयत कीजें हो ॥ प्र० ॥ ढील दुवे जावाने तेहथी, सीखमी सी दवे दीजें हो ॥ प्र० ॥ ६ ॥ कनकवती नीचें नृपराणी, वातसुणे र
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( ७६ )
ही बानें हो ॥ प्र० ॥ रीसाणी चिंते ए धूरत, लागो कन्याने कानें हो ॥ प्र० ॥ ७ ॥ क संकेत मध्यो ए एहनें, मुज कारज नवि सीधुं हो ॥ प्र० ॥ दोमीने दादरने द्वारें, बानेंसें तालुं दी धुं हो ॥ प्र० ॥ ८ ॥ कुमरी कहे मुज एह विमाता, मुज मातानी शो कि हो ॥ प्र० ॥ कनकवती ईणे कपट करीनें, राख्यांबे बिहुं रोकी हो ॥ प्र० ॥ ॥ व्यतिकर सर्व सुएयो रीसाली, अनरथ करसे प्राहिं हो ॥ प्र० ॥ कुमर जणे एहनें हुं कूदे, वंची व्यो हिं हो ॥ प्र० ॥ १० ॥ वात करे जई म ते वेला, कनकवर्ती नृप पासें हो ॥ प्र० ॥ श्रावी प्रकाशे मुख रस वाही, दीवी वात उल्लासे हो ॥ प्र० ॥ ११ ॥ कोपें लोचन रातां कीधां, ढणवाने मन खुं हो ॥ प्र० ॥ शुजट घटा वींट्ये नरनायें, कन्या मं दिर घेतुं हो ॥ प्र० || १२ || कहे कुमरी हैहै विष कन्या, हुं सरजी कां नायें हो || प्र० ॥ मुज कारण नरथ लहेसे, ए यो परायें दायें हो ॥ प्र० ॥ १३ ॥ कुमर जणे शुजगे कां बीहो, एहथी नहीं मुज पी का हो ॥ प्र० ॥ परघर पेसे तेतो किदां किणे, राखे बलबल बींगा हो ॥ प्र० ॥ १४ ॥ म कहीं आप शि खाथी काढी, गुटिका मुखमां धारी हो ॥ प्र० ॥ तस्र
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( 99 )
अनुजावें चंपक माला, थइ बेठो ते नारी हो || प्र० ॥ १५ ॥ रूप निहाली निज जननीनुं, कुमरी अचर ज जारी हो ॥ प्र० ॥ जांजी तालुं नरवर आव्यो, दे खे सुताने नारी हो ॥ प्र० ॥ १६ ॥ नृप बोल्यो क नका मुख देखी, कूरुं इंम कां जांखेहो ॥ प्र० ॥ श्रल वे घाल देई पर उपर, कां पुरगति फल चाखे हो ॥ ॥ प्र० || १७ | कोसी विलखी यई कुमरें, बोला वी इसी आगें हो ॥ प्र० ॥ कहो बहेनी पीठ को या के, हां व्या किए वागें हो ॥ प्र० ॥ ॥ १७ ॥ पुरनो लोक अनादर वयणे, कनका में निर धाने हो ॥ प्र० ॥ कहे कनका जो हुं हुं जूठी, तो कि हां हार देखाने हो ॥ प्र० ॥ १७ ॥ छल जननी निज कंटकी ते, उंचो हार उल्लाले हो ॥ प्र० ॥ नूप प्रमु खसने देखा, कनकानो मद गाले हो ॥ प्र० ॥ २० ॥ ति वेला कुमरीनी जननी, जर निद्रामांहें हूंती हो ॥ प्र० ॥ सुख निद्रायें निज पुत्रीनी, विगत लदे नहीं सूती हो ॥ प्र० ॥ २१ ॥ फरी याव्या हसंतां निज थाने, जूपादिक सविलोक हो ॥ प्र० ॥ कनकवती नी निंदा करतां, लोक वदन कह्यां बोक हो ॥ प्र० ॥ ॥ २२ ॥ कूमी पमी कनका महाबलनो, विघन थयो
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( SG )
विसराल हो ॥ प्र० ॥ कांति कहे म बीजे खंने, ए थइ त्रीजी ढाल हो ॥ प्र० ॥ २३ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ कनका चित्त चिंता करे, नयणें नावे नींद ॥ मलया किम दुःख पामसे, मानी जेह महींद ॥ १ ॥ हवे कुमर मुख मांदेथी, काढे गुटिका रयण ॥ प्र गट हूर्ज नररूप त्यां, जाणे नवलो मरण ॥ २ ॥ क हे कुमर नरथ वो, हुर्ज एह विसराल ॥ जो वली रहियें तो दूवे, अचिंत्यो को चाल ॥ ३ ॥ तेमाटे तुम सीखथी, चालीश हुं निजदेश ॥ प्रीतलता संजा लजो, ऊगी हृदय निवेश ॥ ४ ॥ कस्यो शुलन मेला वो, आपण बिहुंनो जेण ॥ चिंता करशे तेह विधि, म करें चिंता तेण ॥ ५ ॥ वलि अनोपम तुजने कहुं, सुंदर एक सलोक ॥ सरवकाल ते चिंतवे, याशे सघला थोक ॥ ६ ॥ तद्यथा ॥ विधत्तेय द्विधिस्तत्स्या, (चिम त्कारपामीने) न्नस्यात् हृदयचिंतितं ॥ एवमेवोत्सुकं चि त, मुपायां श्चिंतयेहून् || १ || दोहा ॥ वरण उकेरया ढांकणे, म लागा तस चित्त ॥ तेह प्रशंसे चित्तचकी, ए श्लोक सबल सुपवित्त ॥ ७ ॥ सुखिया होजो साज ना, कुशल्या होजो पंथ ॥ देजो वेग मेलावमो, प्रदे
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(ए) जो लखमी गंथ ॥ ७॥ कहे बाला जरी लोयणां, रे बयला बोगाल ॥नेह नवल तुज खटकशे, जिम तन खूतो शाल ॥ ए॥ गुप्त मोहोलथीनीसरी, श्रावीच ढ्यो केकाण ॥ नियत प्रयाणे चालतो, पोहोतो पु हवी गण ॥ १०॥
॥ ढाल चोथी । करेलणां घभिदे रे ॥ एदेशी ।
॥ तात चरण थावी नम्यो, आपे अनोपम हार ॥ वीरधवल दीधो मुने, श्म कही कूम तिवार॥॥ नविक जन सांजलो रे, मलयानो आधकार । न० ॥ एतो सु णतां हर्ख अपार ॥ न॥ए आंकणी॥राय कहे तुज चातुरी,दीठी अधिक वदीताथोमादिनमांजेहथी,वा धी एवमीप्रीत ॥ न ॥२॥श्म कहीने कंठे उव्यो, कुमरें मायनें हार ॥ घणुं सराहें पुत्रने, राणी पण तेणीवार ॥ ज० ॥३॥ राज कुमर श्म चिंतवे, पण बांध्यो में जेह ॥ कन्या किम परणी हवे, साचो कर तेह॥ज॥४॥तिणे अवसर एक आविठ, वीरधवल नो दूत ॥ प्रणमी नृपनें वीनवे, सांजल नर पुरुहूत ॥ न ॥ ५॥ पुत्री अमचा स्वामीनी, मलया सुंदरी नाम ॥ तास स्वयंवर मांगी, करीने प्रतिज्ञा आम ॥ न ॥ ६॥ धनुष पूर्व पंरिया त, वज्रसार ठे
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(७०) सार ॥ जे नर तेह चढावशे, वरशे तेह कुमार ॥ ज० ॥ ७॥ देशदेशावर रायना, नंदन तेमण काज ॥ त मोकल्या राजीये, हुं मूक्यो तुमराज ॥ ज ॥७॥ देव महाबल मोकलो, कुमर काम अवतार ॥ कुं ण जाणे एहथी विधे, योग लिख्यो थानार ॥ ज०॥ ए॥ज्येष्ट कृष्ण एकादशी, बाज थ तिथि खास ॥ आगामी चौदशि दिने, होसे स्वयंवर तास ॥ ज०॥ १० ॥ वाट हु मादा थया, तहथ। ह विलंब॥ क री उतावलो मोकलो, लगन अ अविलंब ॥न॥११॥ सनमानी ते इतनें, शीख करे नूपाल ॥ कुमर सजा मां सांजली, चिंतवे इंम हरखाल, ॥ ज ॥१२॥ देवें मुज करुणा करी, नीग फुःख संयोग ॥ नुखमां हे नोजन मले, तिम ए दीसे योग ॥ ज० ॥१३॥ काज हतुं सांसे पम्युं, सिखायद्यं ते आज ॥ विश्वा वीश दया करी, मुज ऊपर महाराज ॥ ॥१४॥ तात दीए मुज प्रागन्या, तो तिहां जर तत्काल ॥ राजपुत्र कुल अवगणी, हुं परणुं ते बाल ॥ ज० ॥ ॥ १५॥ तव नृप निरखी पुत्रने, कहे वछ.तुं शुजका ज॥ बल वाहनना घाटस्यों, रातें सधावो आज ॥ ज० ॥ १६ ॥ कहे कुमर विनयें जस्यो, तात वचन
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(०१)
परमाण ॥ दल सज की धुं तांवली, बोल्यो दरखें रा ष ॥ ज० ॥ १७ ॥ लखमी पूंज मनोहरू, सुत क्यो साधें हार ॥ कुमर कहे ते हारनी, वात सुणो निर धार ॥ ज० ॥ १८ ॥ सूतां मुज निशिनें समें, करें उ पद्रव कोइ ॥ वस्त्र शस्त्र भूषण हरे, गुप्त बीहावें सोइ ॥ ज० ॥ १७ ॥ मात कनेथी में ग्रही, हार व्यो मुज कं व ॥ श्राज रयणमां अपहरी, लीधो तेणे उल्लंग || ज० ॥ २० ॥ हार गयो जाणी हवे, माता धारे दुःरक ॥ करी प्रतिज्ञा में तिहां, माताने । नमुरख ॥ ज० ॥ २१ ॥ जो नापुं दिन पांचमां, ते मुत्तावली हार ॥ तो मुज काया यागमां, दद्देवी ए निरधार ॥ ज० ॥ २२ ॥ हार कदापि नवि लहूं, तो मुज मरण सहाय ॥ करे प्र तिज्ञा करी, दुःख धरती इंम माय ॥ ज० ॥ २३ ॥ अदृश नये जे रातिमां, राक्षस के चूमेल । पोहोर एक बे रही हां, नाखुं तस पग जेल ॥ ज० ॥ २४ ॥ स्ववश करी तेह दुष्टनें, लेई हार जलिनांति ॥ सुंपी माताने पढें, चालीश पाबली राति ॥ ज० ॥ २५ ॥ राय प्रशंसे पुत्रनां, साहस सत्त्व विशाल ॥ बीजे खंमें ए कही, कांतें चोथी ढाल ॥ ज० ॥ २६ ॥
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(२)
॥दोहा॥ ॥ हवे कुमर मंदिर गयो, अलवे त्यांथी ऊ॥ वार जमी खांसुं ग्रही, बेगे दीवा पूंठ ॥१॥ मध्य रयणीने श्रांतरें, चंचल सबल जस टेक ।। गोख मा गथी मलपतो, पेसें कर तिहां एक ॥२॥ कुमर वि चारे पूर्वपरें, करसे कांश विरुद्ध ॥ तेह थकी पहेली जली, आपुं शिक्षा शुद्ध ॥३॥ सोवन चूभी खलख लें, जै कंकण रेह ॥ तेह जणी कर नारिनो, ए ने निस्संदेह ॥४॥देवी अथवा दानवी, आवी छे इंहां कोय ॥ देव सक्तीनां बल थकी, दृष्टे नावे सोय ॥ ॥ ५ ॥जो नांखुं खांहुं खरं, तो वली जासे नागि॥ चढशे हाथ न माहरे, नहीं थावे वली लाग ॥६॥ एम विचारी ऊबढ्यो, त्रिवली जालें चाढि, चढि बेगे कर ऊपरे, ग्रही बे हाथें गादि ॥७॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ तट यमुनानोरे अतिरलिया
मणो ॥ए देशी ॥ ॥मंदिरमाथी रे ते कर कंपतो रे, गयणे चढिर्ड यांटा खाय ॥ सुर असुरनां रे कुल बीवरावतो रे, उ लट पलट करी चाल्या जाय ॥ मं ॥ १॥ निरजय वेगे रे कुमर ते ऊपरे रे, तेहनें जारे कर लचकाय॥
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( ८३ )
पवने ऊमाड्यो रे ध्वज पटनी परें रे, हठ चढि चिहुं दिशि कोलाय || मं० ॥ २ ॥ जट कि श्राबाटें रे नीचो नांखवा रे, पण सण न करे चलचाल ॥ कुमरें थ काड्यो रे अलम केकाण ज्युं रे, तव प्रगटी देवी वि कराल || मं० ॥ ३ ॥ एह रोशाली रे मुजनें नांखसे रे, विषम महावन गिरिवर बेह ॥ श्म निरधारि रे मारी त्र्यकरी रे, कुमरें करकश मुठी तेह ॥ मं० ॥ ४ ॥ दीन रमंती रे देवी म कहे रे, रे करुणा वंत दयाल ॥ मुज बलानें रे सबला कां नमें रे, मूक हवे न करूं तुज चाल ॥ मं० ॥ ५ ॥ मूकी कुमरें रे ते नासी गई रे, द्यकानें कूकर जेम ॥ आप तिवारें रे पनि गयण थी रे, विद्या चुक्यो खेचर एम ॥ मं० ॥ ६ ॥ फलजर जारी रे वन यांबा शिरें रे, आवी रह्यो नृप नंदन वेग || नया निमेली रे क्षण मूरबा लह्यो रे, पवनें विंज्यो यति तेग ॥ म० ॥ ७ ॥ कुमर विमासे रे चे तवल्या पढें रे, किथानक हुं आयो चालि ॥ रय ि अंधारेंरे कर फरस्या थकी रे, जाण्यो तरु साही त स मालि ॥ मं० ॥ ८ ॥ ण एक मांहें रे तरुथी उ तरी रे, यावी बेगे तरुने खंध ॥ म मन सोचे रे कुंण ए आपदा रे, दीधी तिण कुण वैर प्रबंध ॥ मं० ॥
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(४) ए॥ किहां मुज माता रे किहां तात माहरो रे, किहां हूंए किम थासे सूख॥ हार न पामे रे जननी जो हवे रे, करशे जीवितर्नु प्रतिकूल ॥ मं०॥ १०॥ माय वियोगें रे वली मुज तातजी रे, धरवा प्राण अडे अ सम ॥ हैहै दीसे रे कुलक्ष्य माहरो रे, श्म चिंता जर बेठो तह ॥ मं० ॥ ११॥ खरखर वागो रे तव रव नूमिनो रे, नूपति सुत निरखे तरुमूल॥नारिग सीने अरधी आवतो रे, नजर पड्यो अजगर एक थू ल ॥ मं०॥ १५ ॥ कुमर विचारे रे ए प्राणी गली रे, श्रावे तरु आफलवा कोय ॥ ए विडोमा रे जो जोरो करी रे, तो मुज बातम सफलो होय ॥ मं० ॥ १३ ॥ साहस धारी रे तरुथी ऊतस्यो रे, बेगे बा ने आंबा गौढ ॥ अजगर बायो रे देवा विंटली रे, कुमर आहे तस मुख अति प्रौढ ॥ मं०॥ १४ ॥ व दन विदामु रे होठ बिन्हे ग्रही रे, ते मांहथी काढी एक नारि ॥ वचन कहंती रे माहारे इंण समे रे, श रण होजो महाबल एक तारि ॥मं०॥ १५ ॥ ना म सुणीने रे पातानुं तिहां रे, विस्मय विकशित लो चन थाय ॥ रे ऊमामी रे अजगर नाखीउ रे, देखे अबलामुखगत बाय॥मं०॥१६॥मलया सरखीरे निर
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(५) खी गोरमी रे, चित्त चमक्यो ढोले तिहां वाय ॥चेतन वाट्युं रे तव बाला नणे रे, पूरवलो ते श्लोक सुणा य ॥ मं० ॥ १७ ॥ कुमर सुणीने रे तिहां निश्चय करी रे, वीरधवल तनुजा ए होय ॥ कर पद सेवा रे कुमर करे वली रे, जिम पीमा तनु विरली होय ॥ मं० ॥ १० ॥ कुमर पयंपे रे ऊगे सुंदरी रे, तुम विरहें मु ज मन शीदाय ॥ नयण ऊघामे रे निरखी पदमणी रे, सेवापर नृप सुत चित्तलाय ॥ मं ॥ १५ ॥ ला ज करती रे नेहल मीटमां रे, कहे जीवन जीवामी श्राज ॥ संगम देवे रे किम मेख्यो इहां रे, जांखोजी नांखो महाराज ॥ मं॥२०॥ कुमर तिवारे रे क हे सरिता जलें रे, प्रथम पखालो तनु पंकाल ॥ वी तक बेहु रे कहेशुं वली पड़े रे, श्म कही आणी नदी ये बाल ॥ मं० ॥२१॥ अंग पखाल्युं रे जल पी, गली रे, वली श्राव्या पाला तरु तीर ॥ कुमरें सुणाची रे निज वीती कथा रे, सुणतां थरके तास शरीर ॥ मं०॥५॥ नृप सुत तेहनेरे धणिने पूबशे रे, वीतक सयल करी चित्त चूप॥ कांतें प्रकाशी रे खासी पांच मी रे, बीजे खंमे ढाल अनूप ॥ मंग॥३॥
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(६)
॥दोहा॥ ॥ जणे कुमर क्षीणोदरी, मामी कहे तुंवात ॥ जगर वदने किम पमी, राखीतीचटवात ॥ १ कहे कु मरी हुं नवि लहुँ, अजगर वदन प्रवेश ॥सुणो कठि ण थइ जे कहुं, अवर वात लवलेश ॥२॥ तेहवा मां पग रख थकी, जाण्यो जन संचार ॥ कुमर विचारे रातमां, केहनो एह विहार ॥३॥ आवे जे साहमो धस्यो, रसीयो के खूटाक ॥ व्यसनी मद पीधो अडे, के कोजार लमाक॥४॥के को परिचित नारिनो, आवे बेणि वाट ।। मीट न पाहुँगोरमी, ए अवसर ते माट ॥५॥ एम विचारी शिर थकी, काढी गुटिका टाख ॥ श्रांबानां रसमां घसी, कडे तिलक तस जाल ॥६॥ पुरुष थयो नारि टली, कुमर कहे मत शंक॥ रूप पालटयुं तुज में, श्रावत नर श्राशंक ॥ ७॥ज्यां नहिं मांजु थूकथी, त्यां लगें तुज नर रूप ॥ पुरुष ग या मांज्या पली, थाशे मूल सरूप ॥ ७॥ आपण में ए एक डे, सुखें पधारो श्रांहिं ॥ईम कही निरखत वाटमी, दीठी नारी त्यांहिं॥ ए॥ तरुणी हरिणी परें धसी, श्रावे थिरकित गात ॥ नृप नंदन मधुरे स्वरें, पूढे तस थवदात ॥ १० ॥
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(७) ॥ ढाल ठही ॥ नदी यमुनाके तीर, उ
में दोय पंखीया ॥ए देशी॥ ॥ कुमर कहे तुं श्राहिं, वी कुंण एकली; किम के पे तुज गात, चिंतातुर का वली ॥ कुण तटनी एचूप, कवण नगरी किसी; शहां पाम्या सुखशात, अमें मन मां वसी ॥१॥ नारी नणे ए नीर, नदी गोला वहे; चंद्रावती उपकंठ, पुरि अति गहगहे॥ दशदिशि पस री जास, महा कीरति ध्वजा; वीरधवल शूपाल, इंहां पाले प्रजा ॥ कुमर विचारे जेथ, श्रावण चाहतो, पमतो परतो तेथ, यो नन्न गाहतो ॥ हो मुज पुण्य प्रमाण, प्रसन्न डे जगपती; जस मुखें पेठी नारि, मली जे जीवती ॥३॥ कहे वली श्रा गल वात, नारि अचरिज नरी; पुत्री हुश् ते नृपने, मलया सुंदरी ॥ मंगप मांगयो तास, स्वयंवर नूपतें; मूक्या त निमंत्रणे, नृप नंदन प्रतें ॥४॥ आज थकी विवाह, होसे त्रीजे दिन कीधी सामग्री सर्व, अगाउ मेलीनें ॥ नृपने बीजी नारि, अडे कनकाव ती; मलया साथें रोश, वहे ते धर्मति ॥५॥ सोमा माहरूं नाम, हुं तास महोलणी; सर्व रहस्यन ग म, घणु विसवासणी॥ मलयानां केश विस, जोवे मु
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(ज) ज सामिनी; पण नवि देखे कोइ, किहां अवगुण क णी॥६॥ नृप पुत्री नर रूप, रही पूछे इस्युं, ते सायें ईम रोष, तणुं कारण किस्युं ॥ कुमर कहे संतान, हो वे जो शोक्यनां, शोक्यतणे मनशाल, समा हुए सहेज नां ॥७॥नारी जणे ए साच, कह्यो रे जेहवो; जो तां तेहनां बिख, समय केतो हवो ॥ आजूनी श्रधरा त, थ कौतुक कथा, दीदी कहुं तुज आगें, नही ते अन्यथा ॥७॥ नामे लखमी पूंज, गले कनका तणें; हार उव्यो किण आश्, गगनथी चुंग पणे ॥ कुमर विचारे हार, उव्यो तणे व्यंतरी; निश्चय कोश्क नेह, कारणथी ऊतरी॥ ए॥ पामी नहिं में शुद्ध, किहां हमणां लगें; ते पाम्यो हवे वात, सवे होसे व गें॥सोमा कहे मुज हार, देखामी श्रीमुखें; वारी हु ए लान, किहां कहती रखे ॥१०॥हार रयण ब हु मूल, दुपामी एकमने; मुजनें साथें लेश, गनू पति कनें ॥ अवसर देखी दोष, ऊघामे अतिषणा; विरस पणे एम पाल, लवे मलया तणा॥ ११ ॥ स्वा मी सुणो अवदात, कहुं पुत्रीतणा; नयणे दीग श्रा ज, निपट असुहामणा। पुहवी गण नगरनो, नूप वखाणियें; सूरपाल तस पुत्र, महाबल जाणियें ॥१५
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( ए) ॥ तेहनो किंकर एक, गुप्त मखया घरे; श्रावे ने नि त्यरात, निशाचरनी परें ॥ हार रयण ते साथ, कु मरने पाठव्यो; लेखें लिखि संदेश, श्स्यो वली सूच व्यो ॥ १३ ॥ मलशे नृपना नंद, अनेक स्वयंवरे ते मिस तुं पण वेग, आवे आऊबरें॥मुज बुद्धिय राज्य, सकल हाथे करी; परणी मुज फलवंत, करे यौवन सिरि॥१४॥राज्य ग्रहणनी चाहि, कुमारी धूरतें; धू तीए तिण बेहु, थया एकण मते ॥ नारी हुए मति हीण, कपटनी कोथली; वाढहाने ये बेह, सारे स्वार थ वल। ॥ १५ ॥ अतिविरुश रोशाली, वाघण जिम सुंदरी; साहसनो जंमार, अनृतनी दे दरी ॥मुखमी वी मन धीठ, धरमणी दामणी; न हुवे केहनी नेट, सं तोषी कामणी ॥ १६ ॥ एहनें संग विदुका, जे नर बापमा; ते पामे पुःख लाख, थयारस लापमा । नाहिं करुणानो लेश, हीयामां नारीने; मलताने स विशे, मूके मारीनें ॥१७॥ श्रनरथ ए हो नारि, कह्यो में के जिस्यो; करतां पूर्व उपाय, पडे नही सोचसो ॥ जो मज वचन विचार, नरोसों नविकरो: मांगो अमलि क हार, नदेसे तोखरो॥१०॥श्म उदजाव्या दोष, अनेक मृषा कही, रोषारुण पाल, करयो द्वेषे ग्रही
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( ए0 )
॥ बडी ढाल रसाल, ए बीजा खंरुनी; कांतें कही मीठास, जरी मधुखंरुनी ॥ १५ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ रोष गहिल नरपती तिहां, अमने करी विदाय ॥ चंपकमाला जामिनी, बोलावी विलखाय ॥ १ ॥ व्य तिकर सर्व सुणावियो, राणीने राजान ॥ निजपुत्री उपर तिका, थई रोष छासमान ॥ २ ॥ मांगो हार मनोहरु, जो नवि देसे बाल ॥ तो व्यतिकर सघलो खरो, ईम कहे चंपक माल ॥ ३ ॥ कन्या तेमी मांगीयो, हार रयण ततकाल ॥ मनूली मौनें रही, मनमां पेठी जाल ॥ ४ ॥ चित्त विकल्पी कूम इम, उत्तर दीधुं एए ॥ तात हार मुज कंठ थी, अपहरि लीधो के ॥५ ॥ अवगुण ई अति सबल, वचन पवन नृप कुंम ॥ रोष नल कुमरी दहन, वागो जई ब्रह्मंग ॥ ६ ॥ ॥ ढाल सातमी ॥ जीणा मारुजीनी करहलकी, करह लमी केशररो कूपो मने लाहो राज ॥ एदेशी ॥ ॥ नृप कहे निज पुत्री जणी, फिट पापिणी इति यारी, मुखऊं कांई देखाने होराज ॥ लगी रहे मुज नयांथी, कुलपणी मति हीणी, मुजकां लाज ल गाने होराज ॥ १ ॥ न्हानी पण दोषें जरी, जिम वि
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( ए१ ) पहरनी दाढा, अलवें लागी मारे होराज ॥ कन्या रूपें वैरणी, थइ लागी उपरांठी, वैर विरोध वधारे होराज ॥ २ ॥ एवकुं तुज किणें सीखव्युं, चरित्र विषम प्रति कुं, मुंकुं सुणतां लागे होराज ॥ आज थकी जो इंम करे, वधती वधती वली शुं, कर शे जातां आगे होराज ॥ ३ ॥ दोष नहीं माहरे शि रें, कीधुं बे तें जेहवं, तेवां फल तुं चाखे होराज ॥ प्र त्यक्ष विषनी वेलमी, उखेमी हवे नाखी, सारसुं तुज पाखें होराज ॥ ४ ॥ तात वचन करुया सुणी, मा यरीसाणी जाणी, आई निज यावासें दोराज ॥ बे ठी श्रमण मणी, करीनें मुख नीचुं, मनमां एम वि मासे दोराज ॥ ५ अणगमतुं में तातनुं, विकल प
सुं की धुं, जेहथी तात री साणो होराज ॥ हार रयण खोया थकी, एवको कोप किवारें, राजा मनमां नाणे दोराज ॥ ६ ॥ स्यो अवगुण नृप माहरो देखीने क लुषाणो, बोल्यो विरुयां वयणा होराज ॥ इमं कुमरी चिंता जरी, मुखपंकज करमाणी, वरसे यासुं नयणा होराज ॥ ७ ॥ नृप कहे पटराणी प्रत्यें, तुज तनुजानां दीगं, चरित्र महाविष तोले होराज ॥ हार रयण लिए कुमरनें, दीघोडे निश्चें, मुज माराने कोलें होरा
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(ए) ज॥॥वाही पण वैरणी हुई, जिम विषधरीय मंकी, आंगुली होय ज्वालही होराज ॥ रिपुकुलने जां न वी मले, ते पहेली ए इणवी, पाप न गणवो काल्ही होराज ॥ ए॥ पुःख जरी रयणीने गमी,प्रह कालें नृप तेमी, सेवकनें श्म जासे होराज ॥ मलयाने ह
जो तुमें, हुकम फरी मत पूजो, रखे किहां किण ए नासे होराज ॥ १० ॥मंत्री सुबुझिसुएयो सवे, व्यति कर ए कन्यानो, वी नृपने लेटे होराज॥करजोगी इम वीनवे, असमंजस ए मांड्यो, नूप कहो किण खेटें होराज ॥ ११॥ सुं अपराधि कन्यका, नेह गयो क्यां पहेलो, धरता जे एह साथें होराज ॥ विषतरु वर पण कापवो, न घटे जेह उलेख्यो, धुरथी आपणे हाथें होराज ॥१५॥ देव विचारी कीजीयें, जिम न होवे परतावो, पडे फल पाकंतां होराज ॥सकल वि चार सुणावी, सचिव नणी नृप धुरथी, सचिव स्यो नाखंतां होराज ॥ १३ ॥ मौनधरी मंत्रि रह्यो, सेवक नृप आदेशें, मलया मंदिर आवेहोराज ॥गद मद कंठे इंम कहे, तुज उपर नृप रूठगे, थाणा वध फुरमावे होराज ॥ १४ ॥दीन वदन कन्या कहे, वीरा नृप किम कोप्यो, ते कहे न लडं काई होराज॥ क
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(LU3)
न्या इंम विलपे तिहां, हाहा मुज किए जाख्या, अव गुण वैर वसाई होराज || १५ || मुज मुख निरखी दुखतो, ते पण थइ अतिवांको, नरपति मुजनें मारे होराज ॥ चंपकमाला मावमी, ऊपरांठी थई बेटी, नृ पने ते नवी वारे होराज ॥ १६ ॥ मलयकुमर मुज सुंदरू, ते पण खं ध्यामा, कान देईने बेठो होराज ॥ बंधु वरग हुं परिहरी, परिहरियें जिम मीठो, पण जे जोजन एगो होराज ॥ १७ ॥ पुण्य गयां किहां माह रां, प्रगट्यांक्यांथी प्रौढा, पाप पूरव जव के हो राज ॥ करुं धरणी तुज वीनती, थे मारग जिम पेसी, काहुं प्राण घेरा होराज ॥ १८ ॥ महोल मांदे मलया रही, पूर्व कर्मने निंदे, कहेसे वली कांइ थागें होरा ज ॥ बीजे खंदे सातमी, ढाल सरस ए जाखी, कांतें म ति रा होराज ॥ १९ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ तेमावे मलया हवे, वेगवतीने वेग ॥ नृप यादेश सु णावीने, कड़े निज कारज नेग ॥ १ ॥ सखी सिधा वो नृप कन्हें, कहेजो इंम संदेस ॥ तुम पुत्री म मुज मुखें, दीघो बे निर्देश ॥ २ ॥ वेगवती बाला थ
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(एव) की, थावे नृपने पास ॥ कुमरीनां संदेसमा, इंम संज लावे तास ॥३॥ ॥ ढाल ठमी ॥ कोश्लो परवत धूंधलो
॥ होलाल ॥ ए देशी ॥ ॥ संदेसो मलया कहे होलाल, सांजल पुरना इस ॥ नरिंदजी॥गुनह करी में रावलो होलाल , अलवें पाई रीस ॥ न० ॥ १ ॥सं॥अवगुण खमजो माहरो होलाल, कीधा जे में अजाण ॥ न॥मरण सरण में तें सिरे होलाल, दंक कस्यो परमाण ॥न॥ सं॥
॥ श्रावू प्रज्जु पद नेटवा होलाल, तुम वचनें महां नाग ॥ न ॥ अतिथि हूंथा परलोकना होलाल, लहेसुं ते वली लाग॥ न० ॥ संग ॥३॥ म न ग में तो यहां थकी होलाल, ग्रहेजो प्रणति अनेक ॥ न०॥ प्रणति वली बिहुं मायने होलाल, कहेजो मु ज सुविवेक ॥ न ॥ सं० ॥ ४ ॥अनरथ जे में आच यो होलाल, ते नांखो निरसंक ॥ न० ॥ दोष देखा मी मारतां होलाल, न हुवे कालकलंक ॥न०॥सं० ॥ ५॥ नूप विचारें देखजोहोलाल, करी वैरीनां काम ॥ सुलोचनी॥ गुनह पूबावे आपणो होलाल ॥ अण जाणी थर आम ॥ सुलोचनी॥६॥चरित्र जलोमल
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(एए)
या तणो होलाल ॥ ए आंकणी ॥ कपट मंजूस त्रिया कही होलाल,मुखमीठी धूतारि॥सु०॥ मधुलिपी वि ष गोलिका होलाल, एवी रची किरतार ॥ सु० ॥चल ॥७॥प्रणति म होजो एहनी होलाल, नहीं मुख-दी ठे काम ॥ सु०॥ मरण सरण वहेली करो होलाल, कन्या अवगुण धाम ॥सु०॥च॥॥ वेगवती व लतुं नणे होलाल, नरपतिने कुमणाय ॥ सु० ॥ गो ला नदी तट दाहिणे होलाल, अंध कूड कहेवाय॥ सु०॥ च ॥ ए॥ जंप देई कुमरी तिहां होलाल, कर से जीवित नास ॥सु० ॥ईम करी रोती जूरती होला ल, आवे मलया पास ॥ सु०॥ च ॥ १० ॥ वेगव ती मलया जणी होलाल, नाख्यो तेह प्रबंध ॥ सुक ॥ तास वचन अविलंबीने होलाल, ऊ तिहांथी मुंध ॥ सु० ॥ च० ॥ ११ ॥ वज्रकठीन हीयतुं करी होला ल, साहस वस असमान॥सु॥पूवकर्मने निंदती होखाल, धरती नवपद ध्यान ॥ सु॥ च० ॥ १२॥ धारी मन निर्नय पणे होलाल, विंटी सुनट अनेक॥ सु०॥ पालें पग पंथें वहे होलाल, साही सवलो टे क॥सु०॥ च० ॥ १३ ॥ पग पग पंथें आफले हो लाल, पमि पनि ऊ तेम ॥ सु०॥ दासी दास उदा
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(LUE)
सीयां दोसाल, पूढे बोले एम ॥ सु० ॥ च० ॥ १४ ॥ जो तुज मनमां एवमी होलाल, हुंती ताती रीस ॥ सु० ॥ कांई स्वयंवर मांगीने होलाल, तें तेड्या अव नीस ॥ सु० ॥ च० ॥ १५ ॥ पाट्या जे पोता वटें हो लाल, पहेलां पोषी लाग ॥ सु० ॥ ते किंकर कुलने हवे होलाल, वे कां दुःख हाम ॥ सु० ॥ च० ॥ १६ ॥ कम करशुं रहेसुं किदां होलाल, तुम विरहें तरसं त ॥ सु० ॥ लागे ए अलखामथो होलाल, फीटल प्राण रहंत ॥ सु० ॥ च० ॥ १७ ॥ लोक घणा नगरी तथा दोलाल, विलख वदन कहे वेण ॥ सु० ॥ कु मरी रयण सीधावते दोलाल, जगत हुई गत रेण ॥ सु० ॥ च० ॥ १० ॥ राय सुता पगमां चुने होलाल, तीखा कंटक कोम ॥ सु० ॥ माज रक्त रसिया मुखें होलाल, पैसे पगतल फोकि ॥ सु० ॥ च० ॥ १७ ॥ आई का कंठ होलाल, बोले म मुख वाच ॥ कूपा सु० ॥ कुमर महाबलनो इहां होलाल, सरण हजो मुज साच ॥ सु० ॥ च० ॥ २० ॥ बाल जंपावे कूपमां होलाल, पमती जिम जलबाल ॥ सु० ॥ पुरजन तव हा हा रखें दोलाल, पूरे गगन | वचाल ॥ सु० ॥ च० ॥ ॥ २१ ॥ सिंचे धरणी यांसुयें होलाल, निंदे नृपने
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(Lug)
केय ॥ सु० ॥ देता दैव उलंजमा होलाल, श्राव्या लोक वलेय ॥ सु० ॥ च० ॥ २२ ॥ खबर कही जे सेवकें होलाल, संतूवो नरपाल || सु० || बीजे खंमे यामी होलाल, कांतें कही ए ढाल ॥ सु०॥ च० ॥ २३ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ हवे नरपति हरख्यो दीये, चित्तमां चिंते एम ॥ हणतां पुत्री पुष्टनें, यो वंशने खेम ॥ १ ॥ यमंत्र्या नृप नंद जे, तास जणावुं वात ॥ मुज तनुजा व्याधें मूई, मति वो कि घात ॥ २ ॥ वली पूढं कनका प्रत्यें, मुज उपकारक एह ॥ श्म विचारी सचिवशुं, नृप पोहोतो तस गेह ॥ ३ ॥ बार जमयां देखी ति हां, पामे चित्र सरूप ॥ कुंची विवर कमामनों, तेहमां निरखे जूप ॥ ४ ॥ गर्न जवन दीपक करी, लेई हार तेनार ॥ दीवी नूपें विवरथी, करति इंम मनोहार ॥५॥ ॥ ढाल नवमी ॥ केशर वरणो हो काढ करूंबो मारा लाल ॥ ए देशी ॥ अथवा ॥ नेमि पर्यपेदो प्रीति संजालो महारा लाल ॥ एदेशी ॥ ॥ हार बबिला हो करुणा धरजो ॥ मारा लाल ॥ संकट हरजो हो मंगल करजो ॥ मा० ॥ डुर्लन लाधो हो सुरमणि बीजो || मा० ॥ दीठो तादारो हो सबल
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पतीजो ॥ मा ॥१॥राख्यो गोपवी हो बानो पहे लो॥ मा ॥ नूप जंजेरी हो कीधो पहेलो ॥मा॥ वैरिणी मलया हो कूप नखावी ॥ मा॥ संपत्ति स घली हो मुज घर आवी ॥ माण ॥२॥तेसांनलिने हो नूपति बोल्यो। मा० ॥ सूण पापिणीये हो मुजने जोल्यो ॥ माग || कपट करीने हो पोतें चोस्यो॥माणा मलया माथे हो दूषण उख्यो ॥ मा०॥३॥ धिग तुज जीव्यु हो अधम गार। ॥ मा०॥ वांकावहणं हां मलया मारी॥मा०॥कदिही न तेणें हो कमी छ हवी ॥ मा०॥ऊंचे सासें हो बोले न तेहवी ॥ मा० ॥४॥ हैहै वंच्यो हो कपट पवामे ॥ मा० ॥ इंम कही बारे हो हाथ परामें ॥मा० ॥ गाढे पोकारी हो धरणी ढली॥मा ०॥ पुःखमे दाधो हो मूळ मलि ॥ मा०॥ ५ ॥ लोक सुणीने हो दोमी था व्या ॥ मा० ॥ शुं थयुं नृपने हो श्म कहेताव्या । मा०॥ तेहवा मांहे हो कनका त्राठी ॥ मा०॥गोख मारगथी हो कूदी नाठी ॥ मा० ॥६॥हुं पण पूंजें हो जई ऊंपावी ॥ मा० ॥ कनका पासें हो तत्क्षण श्रावी ॥ मा० ॥ शूने मंदिर हो खूणे पेठां। मा०॥ सुणियें वातो हो जपनी बेगं ॥ मा० ॥७॥ चेतन
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(LULU)
वाल्युं हो नृपनुं लोकें ॥ मा० ॥ नूपति रोवे हो लां बी पोकें ॥ मा० ॥ चंपकमाला हो आवी दोमी ॥ मा० ॥ पीउने पूढे हो बेकर जोमी ॥ मा० ॥ ८ ॥ एह अ मारुं हो प्राण निपातन ॥ मा० ॥ शुं मांगयुं बे हो शो ग संतापन ॥ मा० ॥ प्रगट प्रकाशे हो रोतां मंत्री ॥ मा० ॥ कनकवतीनी हो करणी सूत्री ॥ मा० ॥ एए ॥ चंपकमाला हो नृप गल वलगी ॥ मा० ॥ दुःख पावकनी हो जाला सलगी ॥ मा० ॥ गदगद सादें हो रोवा लागी ॥ मा० ॥ करति दुःखनां हो लोक विजागी ॥ मा० ॥ १० ॥ सचिव बिदुनें हो म समजावे ॥ मा० ॥ मूयां जगमांहिं हो पाठा नावे ॥ मा० ॥ तो पण देखो हो कूप एकंती ॥ मा० ॥ जाग्यें लही यें हो जइ जीवंती ॥ मा० ॥ ११ ॥ कुत्र्या कंठे हो भूपति आव्यो | मा० ॥ जण पेसामी हो ते शोधाव्यो ॥ ॥ मा० ॥ मलया नावी हो मीटे क्यांथी ॥ मा० ॥ आशा त्रुटी हो नृपनी तिहांथी ॥ मा० ॥ १२ ॥ मं दिर पोहोतो हो मन दुःख करतो || मा० ॥ कनका धामें हो वे फिरतो ॥ मा० ॥ बार उघामी हो रा यो जांखे ॥ मा० ॥ पापिणी नाठी हो अपियें या खे ॥ मा० ॥ १३ ॥ जोवा पगलां हो किहां गए जागी
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( १०० )
॥ मा० ॥ यणो बांधी हो केमें लागी ॥ मा० ॥ राय कह्याथी हो तस घर लूंट्यो | मा० ॥ परिजन तेहनो हो पकमी कूट्यो | मा० ॥ १४ ॥ वांक विना जे दो पुत्री मारी | मा० ॥ अति पछतावा हो ते चित्तधा री ॥ मा० ॥ सूरज उगे हो राणी सायें ॥ मां० ॥ नर पति बलशे हो चयमां हाथे ॥ मा० ॥ १५ ॥ जिहां तिहां जमती हो नृप जट पेखी ॥ मा० ॥ कनका बी हिनी हो करणी देखी ॥ मा० ॥ म मुज जांखे हो बिहुं विमीयें ॥ मा० ॥ रहेतां जेलां हो हाथे पमीयें ॥ मा० ॥ १६ ॥ हारादिक सवि हो ले निज संगें ॥ मा० ॥ मुजने बोकी हो दोगी रंगें ॥ मा० ॥ मगधा वेश्या हो मिलती पहेली ॥ मा० ॥ ते घर पेठी हो धमकी दे ली ॥ मा० ॥ १७ ॥ हुं एकलमी हो रहीं त्यां न शकी ॥ मा० ॥ रातें ऊठी हो वनमां चसकी ॥ मा० ॥ हां या वीडं दो जय धूजंती ॥ मा० ॥ वात कही में हो जेह वी हुंती ॥ मा० || १८ || हवे हुं जाशुं हो रयणी वि हाणी || मा० ॥ म कहीं सोमा हो यागें उजाणी ॥ मा० ॥ ढाल ए नवमी हो बीजे खंदें ॥ मा० ॥ कांति पयंपे दो वचन खंकें ॥ मा० ॥ १७ ॥ इति ॥
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(१०१)
॥दोहा॥ ॥वात सुणी विस्मित दूर्ज, कहे कुमर गुण गेह॥ पहेलां ईणे जे संग्रद्यु, वैर विशोध्युं तेह ॥१॥ छ ष्ट हृदय युवती तणो, विषम चरित्र मार ॥ करतां न जुए कामिनी, अनाचरण संचार॥२॥कन्या रयण विणासतां, मरणोन्मुख नृप कीध ॥ प्रजा अनाथ क रीवली, पोतें अपजश लीध ॥३॥ कनकानी दासी थकी, सुंदरी तुज विरतंत॥लयुं सकल में मूलथी, अहो चरित्र बलवंत ॥४॥ अल्पकालमां अतिघणी, दीठी तेंदुःख राशि ॥अंधकूप पमतां ग्रही, अजग र वदन विकाशि॥५॥ निकट किहांकिण कूप बे, तेमांथी ते साप ॥॥श्राफलवा आंबा थमें, इंणी थ ल आव्यो आप ॥६॥ वदन विदाघु बल करी, में तेहनुं कलसाज ॥ तेमांथी तुं नीसरी, मिली इंहां म जाज ॥७॥एकांतें अजगर पम्यो, देखी बहिनी बाल॥कुमर कहे शंका किसी, जो विधी ले रखवाल ॥७॥पूरव श्लोक नणे तिहां, बिहुँ जण धरी बहु राग । मुख धोवे गोला जलें, नयां सबल सोनाग ॥ए॥ तेहज आंबा फल ग्रही, जदण करी ससने ह ॥ देवी जल मंदिर लणी, वेगें श्राव्यां बेह॥१०॥
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(१५५)
॥ ढाल दशमी ॥हारे का जोवनीयानो ल
टको दाहामा चारजो ॥ एदेशी॥ ॥हारे वारी बिहुँ तिहां देखे काठ तणी बे फामजो, पहेला रे जेहमांथी नृप राणी लह्यो रेलो॥ हारे वा री कुमर ते देखी तेहमां विवर विचाल जो, धूणीरे शिर चित्तमां चिंति श्म कह्यो रेलो ॥१॥हारे वारी तीन कारज हवे करवां माहारे आंहिंजो, एकतो रे नृप बलतो चयमांथी राखवो रेलो ।। हारे वारी बीजु ए तुज परणुं नृपनी चाहिजो, त्रीजुं रे जननी गले हार ते नाखवो रेलो॥॥ हारे वारी लखमी पुंज अनोपम नागे हार जो, ते ढुं रेतुज देश दा हामा पांचमां रेलो॥ हारे वारी ईम पण बांध्यो जन नी आगे सार जो, सफलो रेकरवो ते साची वाचमां रेलो॥३॥ हारे वारी ते माटे तुं पुरमा फरि नर रू पजो, सांजेरे मगधा घरे जाजे हामशुं रेलो ॥ हारेवा री तिहां रहीने कनकांनुं निरखीश रूपजो, करतारे बल बल मुत्तावली पामशुं रेलो॥४॥ हारेवारी हुँ पण जश् चय बलता नृपने संग जो, वारुरे नवली बुद्धि कोश केलवी रेलो ॥ हारे वारी नामांकित मुज ये तुज मुजा नंगजो, ग्रहशे रे एहथी तुज को चोरी
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( १०३ )
नवी रेलो ॥ ५ ॥ हांरे वारी मुद्रा दीधी ते थापि शि र आपजो, म कहीरे हां बानी फरतां फायदो रे लो, हांरेवारी आजनी रजनी मगधा घरें थिर थापजो, मलजो रे कालें सांजे ठे वायदो रेलो ॥ ६ ॥ हांरे वारी साधी कारज सघलां काले सांजजो, यावीश रे दे वीजल जवनें हुं वली रेलो ॥ हांरे वारी कुमर वचन चित्तधारी ते पुरमांहिंजो, घ्यावीरे नर वेशें किणही न अटकली रेलो ॥ ७ ॥ ढांरे वारी आगामी जे कर वां काम शेष जो, ते सविरे निरधारी पुर आव्यो धसी रेलो ॥ हांरे वारी नृपनंदन नैमित्तिकनो लेइ वे शजो, तरुतलेंरे बांध्यो एक गज देखे रसी रेलो ॥ ८ ॥ हांरेवारी ते गजनुं बहुला जण लेइ बांणजो, दी गरे जाजनमां जलशुं गालता रेलो || हांरेवारी कु मरें पूया कहे कारण परमाणजो, गतदिन रे नृप सुत हां याव्या मालता रेलो ॥ ए ॥ हांरे वारी र मतमां तेणे सोवन सांकल एकजो, विंटिरे सेलमी यें नांखी गज दिशा रेलो ॥ हांरेवारी पमती लै गज मुख मां घाली बेक जो, ताणीरे थाक्या तिहां के महा वत जिस्या रेलो ॥ १० ॥ हांरेवारी नृप आदेशें गालीजें एह बाणजो, तेहनांरे इहां खंग कदाचित् पामीयेंरे
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(१०४) लो ॥ हारेवारी काढी महाबल केश थकी सुविनाण जो, मुसारे पूलामां वी गजने दीयें रेलो॥ ११॥हारे वारी चावण लागो गयवर पूलो तेहजो, तेहवेंरे नूपति सुत आगे चाली रेलो ॥हारे वारी गोला कंठे मलि लोक अह जो, करतो रे कोलाहल कुमरें नालिन रे लो॥१२॥ हारेवारी कुमर विचारे चाट्यो हुं जिण का मजो, पुरवरें रे कारज एह तेहनो मेलव्यो रेलो॥हारे वारी चयमाथी उललते अति उद्दामजो, दीसेरे घ ण धूमें ननतल नेलव्यो रेलो ॥ १३॥ हारे वारी जुज जंचा कर। दोमे कुमर तिवारजो, कहेता रे श्म मधुरवचन गाढे स्वरें रेलो ॥ हारेवारी जीवे डे तुम पुत्री मलय कुमारिजो, खेले रे साहस कां नोला इंणी परें रेलो ॥ १४ ॥ हारे वारी कर्ण सुधासम सुणीने तेदनां वयणजो, साहामारे श्राव्या लख लोक उजा यने रेलो ॥ हारेवारी जीनें लवण उतारं तुजने स यणजो, क्यां रे कहो मलया तेह बतायने रेलो ॥ १५ ॥ हारेवारी इम सुणी बोले तेह निमित्तनो जाणजो, काढोरे नृप राणी चयथी वेगलां रेलो ॥ हारेवारी तो जांखु आगमगात हुँ णे गणजो, श्म सुणीरे चयमांथी काढ्यां करी कला रेलो ॥ १६ ॥
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(१०५) ॥ हारेवारी कुंअर कहे वसुधाधिप कां अकुलायजो, किहांएक रे मलया डे निश्चें जीवती रेलो ॥ हारेवा री निमित्ततणे बल जाण्यु में महारायजो, मतिबलेरे कहुं बुं हुं तुमने ते वली रेलो ॥ १७ ॥ हारेवारी हवे नृप पू मलया केरी वातजो, करशे रे अति कौतुक महाबल इंहां वली रेलो ॥ हारेवारी बीजे खंमें ए थ ३ दशमी ढाल जो, नांखी रे इंम कांति विजय रंगें जली रेलो ॥ १७ ॥
॥दोहा॥ ॥ नूप कहे सुण निमित्तिया, पुःखियो हुँ विण ना ग ॥ देखुं मलया जीवती, एवमो किहां मुज लाग्य ॥१॥ काल कूदी सम कूपमां, नाखीन मरे केम ॥ अहो देवनी चित्रता, न मुश्नांखे एम ॥॥ शो धी पण लाधी नहीं, जिम निर्धन धन कोमि॥ पुष्ट किणे जल थलचरें, खाधी होशे मरोमि ॥३॥ तह जणी मुजनें सुखें, होजो अग्नि सहाय ॥ वचन सुणी श्म नूपनां, बोल्यो कुमर बनाय ॥४॥ ... .. ॥ ढाल अगीधारमी ॥ सूवटियाला॥ए देशी ॥
॥ नूपतिजी रूमा, सांजल चतुर सुजाण होरेहां ॥ वात न नाखुं कूशमी ॥ नू ॥आजदिवस सुख ग
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(१६) ण होरेहां ॥ बारश तिथि थ रूअमी ॥ नू॥१॥ आजथी त्रीजे दिवसें होरेहां, दोय पोहोर वासर च ढे ॥ नू० ॥ बेग सहु अवनीश होरेहां, मंझप आ मंबर मढे ।। नू ॥२॥ शोनित तनु शणगार होरे हां, कुमरी दरिशण आपशे ॥ नू॥देखीस सहसा कार होरेहां, अचरज सहुने व्यापशे ॥ नू० ॥ ३ ॥ रचि स्वयंवर शुज एह होरेहां, बावत नृपमत वारजे ॥ ॥ जो डे तुज संदेह होरेहां, तो अहिनाणी ए धारजे ॥ नू ॥४॥ मलया मुधिरयण होरेहां, का लें तुम कर वशे ॥ नू ॥ तो साचां मुज वयण होरेहां, वेद वाणी गुण पावशे ॥ नू० ॥ ५ ॥ चौद शने परजात होरेहां, पूरव दिशि पुर बाहिरें॥नू॥ नृपनां बल मन खांत होरेहां, परखावण तुज कुलसुरी ॥ नू० ॥६॥षट करणो एक थंन होरेहां, पोल समी थापशे ॥ नू ॥ लहेता लोक अचंन होरेहां, देख त रंग न धापशे ॥ नू ॥७॥ ते लेश्तेणिवार होरे हां, थिरथापे मंझप तलें ॥ नू० ॥ नेदशे यांनो ते ह होरेहां, (धनुष वज्रसार होरेहां,) बाण सहित पूजा जलें ॥ नू ॥ ७॥ थापे थांजा बेह होरेहां, जे नर तेह चढानें ॥ ॥ जेदशे यांनो तेह हो
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(१७) रेहां, होशे वर तुज जानें ॥०॥ ए ॥ अनोपम डे अतितांति होरेहां, पूजा विधि ते थंननी॥ नू॥ जांख्या ए अवदात होरेहां, निमित्त कलायें अनुम नी॥ नू ॥१०॥ मलसे ए अहिनाण होरेहां, नि मित्त बलें लांख्यां अडे ॥०॥ न मले जो निरवा ण होरेहां, मन मान्युं करजे पवें ॥ पंमितजी रूमा ॥१९॥ लोक कहे शिरनाम होरेहां, अम लाग्ये तुं आवियो ॥ पं० ॥झानी तुं जस पाम होरेहां, उप कारें धुर गवियो॥५०॥ १२ ॥ ताहारा ए उपका र होरेहां, वीसरशे नहीं जीवते ॥ पं० ॥ श्राप्यो ए अधिकार होरेहां, जगदीसें तुज गुण बते ॥ ५० ॥ १३ ॥ आले हरख निधान होरेहां, कंचन मणि नू षण बहु ॥ पं0॥ ते कहे जो ट्युं दान होरेहां, तो उपकार किस्यो कहुं ॥५॥ १४ ॥ करजे तुंहिज ते ह होरेहां, थंन तणी पूजा वमी ॥५०॥ नृप वचन
हमें एह होरेहां, बांधे शुकननी गांठमी ॥६॥ २५ ॥ नृप कहे कन्या कंत होरेहां, किण नामें होसे कहो ॥ पं० ॥ आगम निगम अनंत होरेहां, प्रगट पणे शास्त्रे लहो ॥ पं०॥ १६ ॥ पोहवीपुर सूरपाल होरेहां, महाबल नंदन परवमो ॥ पं० ॥ वरशे ते तु
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(१७) ज बाल होरेहां, कुमर कहे एम परगमो॥५०॥ १७ ॥ दिवस थयो मध्यान्ह होरेहां, नृप आवे नगरीन णी ॥५॥ कुमर घणुं सनमान होरेहां, साथें ले पुरनो धणी ॥ ५० ॥ १७ ॥ सामंबर महाराय होरे हां, थायो मंदिर ऊजमें ॥ ५० ॥ कुमर नृपति ति णगय होरेहां, साथ वली नोजन जमे ॥ ५ ॥१५॥ वीती करतां वात होरेहां, अरध दिवसने ते निशा ॥५०॥ गह मह हुश् परजात होरेहां, रवि ऊगे प्रवदिशा ॥ नू॥२०॥ बीजे खंभे एह होरेहां, पूरण ढाल इग्यारमी ॥ ॥ कांति कहे ससनेह होरेहां, सुणतां श्रोताने गमी ॥ ॥१॥
॥दोहा॥ ॥ पहेला नृप मूक्या जिके, गालण गजनुं गण ॥ तेह प्रनातें श्राविया ॥ सेवक जिहां महिराण ॥१॥ करजोमी कौतिक नस्या, बोल्या तिहां एम वयण ॥ लाधुं गजमल गालतां, ए प्रजु मुखा रयण ॥२॥ तृ प लीधी ते,मुडिका, रजस पणे ससखूण ॥ वांचत नाम सुता तणुं, इंम बोल्यो शिर धूण ॥३॥ अहो अचंनो मुखिका, किम श्रावी गज पेट ॥ वली निमि त्त ए कारणे, मलतो दीसे नेट ॥४॥तव बोल्यो ज्ञा
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( 200 ) नी ईस्युं, निमित्त विकल नवि हुंत ॥ कुलदेवी कार हां, संज वियें खितिकंत ॥ ५ ॥ हख्यो नूप वि शेषथी, करे स्वयंवर काज ॥ लोक कहे कुमरी विना, स्यो मांगे नृप साज || ६ || कथन थकी किम रा चियें, होये जूठ के साच ॥ पेटें पड्यां पतीजीयें, ईम बोले केई वाच ॥ ७ ॥ कन्या विण लघुता घणी, लहेसे नृप नृप मांहिं, मव्ल्या जूप विलखा थई, धुक ल करसे प्रांहिं ॥ ८ ॥ सांज समय तेरस दिनें, या व्या नृपना नंद ॥ श्राप्यां मंदिर जूजूत्र, त्यां उतस्था नरिंद ॥ ॥
॥ ढाल बारमी ॥ रहो रहो रहो वालदा ॥ ए देशी ॥ ॥ ज्ञानी कहे इम रायने, जो आपो म सीख लाल रे ॥ मंत्र अर्द्ध में साधि, ते साधुं मन ईष लाल रे ॥ १ ॥ सगुण सनेहा सांजलो ॥ ए कणी ॥ जो नवि साधुं ए समे, तो वलतुं न सधाय लाल रे ॥ कोई विधन शुभ काममां, ण जाण्या व्हराय लाल रे ॥ सु० ॥ २ ॥ श्राजूनी एक रातनो, थापो जो व काश लालरे || साधी मंत्र प्रजातमां, आवीश हुं तुम पास लालरे ॥ सु० ॥ ३ ॥ शीख देई नृप इंम कहे, मंत्र साधनने काज लाल रे । जोईयें ते आपुं हजी,
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(११७) लेतां न करशो लाज लाल रे ॥ सु० ॥४॥धन लेई केतुं तिहां, कुमर गयो वन मांहिं लाल रे ॥ रयणि गमामी दोहिलें, राजायें चित्त चाहिं लाल रे॥सुण ॥५॥ प्रहकालें पग नूपनां, नेटे नाणी आय लाल रे ॥ नृप कहे तुज मंत्रनी, सिकि थई निरपाय लाल रे॥सु०॥६॥ कुमर कहे काश्क थई, कांक रही डे शेष लाल रे ॥ अर्चन थंजतणुं करी, जाईस वली तेणे देश लाल रे ॥ सु० ॥ ॥ खबर करावा थंजनी, प हेलो मूक्यो जेह लाल रे ॥ सेवक ते तिहां आने, बोल्यो धरी इम नेह लाल रे ॥ सु॥ ७ ॥ तुम आदेशे हुँ गयो, पुरबाहिर परजात लाल रे ॥ पोल तणी माबी दिशे, दीगे थंन सुजात लाल रे॥सु॥ ॥ ए॥ईम सुणी राजा ऊठी, ते नर साथें खेह लाल रे ॥ थंन समीपें श्रावी, निरखें दृष्टि जरेय लाल रे ॥ सु० ॥ १० ॥ लोक सहित पुर राजियो, श्रावे पूजण थंन लाल रे, तेहवे तेह निमित्ति, बोल्यो म धरी दंन लाल रे ॥ सु० ॥ ११॥ श्रम शे जे ए थंनने, समज्या विण नर कोई लाल रे ॥ तो कुलदेवी कोपशे, करशे अनरथ सोई लाल रे॥ सु०॥ १५ ॥ राय प्रमुख पागा खिसे, मनमां बी
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( १९१) होता अह लाल रे || नूप जणे पूजो तुमें, पूज प्र भृति लेश् एह लाल रे ॥ सु० ॥ १३ ॥ विधि पूर्वक नाणी तिहां, पूजी बेठो ध्यान लाल रे॥जीपद मुख थी उच्चरी, मेले माया तान लाल रे ॥ सु० ॥१४॥ दोढ पहोर वासर चढे, सेवक नृप आदेश लाल रे॥ थंन उपामी पुर जणी, पावन थई सविशेष लाल रे॥ सु० ॥ १५ ॥ मंझपमा आमंबरे, थाप्यो आणी का र लाल रे ॥ षटकरणी पर शिला, कुमरे करावी त्यार लाल रे ॥ सु ॥ १६ ॥ उनी खोसे मंझमें, धरती मांहे बे हाथ लाल रे ॥ थंन निपुण निज सं चथी, लेश बांध्यो ते साथ लाल रे ॥ सु॥१७॥बे कर मुख उंचे रहे, शिला थकी ते थंन लाल रे ॥बा ण धनुष तेहथी ग्वे, पबिमने श्रारंन लाल रे॥सु० ॥ १७ ॥ सिंहासन नृपनां व्यां, दक्षिण उत्तर नाग साल रे ॥ गंधर्वे मांमयो तिहां, गावा मधुरो राग लाल रे ॥सु०॥ १ए ॥ थंन धनुष पूजावीने, नृप पासें ततकाल लाल रे ॥ कुमर कहे जयति प्रतें ते माव्या नरपाल लाल रे ॥ सु॥२०॥ नाणी नृपनी जीममां, देखी अवसर खास लाल रे|| जईबेगे गांध र्वमां, पलटी वेश प्रकाश लाल रे॥सुणा॥बेग जुप
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( ११२ ) सिंहासने, देव जिस्या सोहंत लाल रे ॥ परवरिया परिवारशुं, रूपें जग मोहंत लाल रे || सु ॥ २॥ ढाल थई ए बारमी, बीजे खंदें उदार लाल रे || कांति कहे इहां परणसे, महाबल मलया नार लाल रे ॥ सु०॥ २३ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ जूप न देखे कुमरने, तव बोल्यो अकुलाय || रे जोवो नाणी किहां, गयो खबर ब्यो जाय ॥ १ ॥ क हे सेवक जोई तिहां, श्राव्यो नहीं थम मीट ॥ करी बूटो कहां गयो, जिम फल पाके बीट ॥ २॥ नूप जणे पहेला ईणे, साध्यो मंत्र सुसाज ॥ साधन अर्द्ध रह्यो हतो, गयो हशे तस काज ॥ ३ ॥ वचन स वे तेहनां मव्यां, पण न मल्यो एक बोल ॥ कन्या वर महाबल को, एतो वचन टकोल ॥ ४ ॥ श्रवसरें इहां आव्यो नहीं, नहीं योग होनार ॥ निमित्त वचन निःफल होसे, है है सरजण हार ॥ ५ ॥ कुंअर सुणी तिहां वस्त्रसुं, ढांकी बदन हसंत ॥ सर्व जणा से बेदमे, म मनमांहें कहंत ॥ ६ ॥ वात लही कन्या तणी, नूपें सकल यथार्थ ॥ मांहो मांहिं ते कहे, आव्या बुं शे अर्थ ॥ ७ ॥ मलया बाला बापमी, मारी विष प राध || हवे नृपनें किम वालशे, उत्तर देई अबाध ॥८॥
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(११३) एहवामां नृप कहेणथी, उंचे स्वर संजलाई॥ निपुण नकीब कहे ईस्युं, राजसजामां आई ॥ ए॥
ढाल तेरमी ॥ चित्रोमा राजा रे॥ए देशी ॥ ॥सुणों नूप हवाला रे, नरपति डोगाला रे, था उजमाला विकथा बोमीने रे, मंगपतलें आवो रे, निजशक्ति जगावो रे, वज्र सार चढावो दावो जो मीने रे ॥ १॥ शर पुंखी जोरें रे, थांजा मुख कोरें रे, करे घात कठोरें बे दल जूजूां रे ॥ ते नृप महा बलने रे, प्रगटी बलकलिने रे, वरसे अटकलीने अम नृपनी धूया रे ॥२॥ लाट देशनो राणो रे, उठ्यो सपराणो रे, आवे हर्ष जराणो मंझपनें तो रे ॥ इंश धनुषंथी नारी रे, दीसे एह करारी रे, मनमां श्म धारी ते पालो बले रे ॥३॥ चौम नूपति नामें रे, जव्यो तिहां हामें रे, श्रव्यो मंगप गमें थने सांसतो रे ॥ निरखी चिलकारा रे, जिम तपत अं गारा रे, एतो जगत संहारा श्म कहे नासतो रे ॥४॥ गौमाधिप हसतो रे, श्राव्यो धस मसतो रे, ते तो मरि खिसतो धनुष उपामतो रे ॥ हतो ए रसिठ रे, पण देवें मुशि रे, श्म नृपगण हसियो ताली पामतो रे ॥५॥ करणाटक स्वामी
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(११४) रे, आयो गजगामी रे, राखे नहिं खामी बल करतो अमे रे ॥ शर नाखी वंको रे, थयो ते साशंको रे, जिम हुये सुकुल कलंको तिम जांखो पोरे ॥ ६॥ केता नवी ऊठे रे, केई बेग पूंठे रे, केई शरनी मू नेदे थंजने रे ॥ पण थंन न जेद्यो रे, नृप टोलो खे यो रे, निज दर्प उच्छेद्यो बल श्रारंजीने रे ॥ ७ ॥ मरमक मूगला रे, लाज्या जूपाला रे, करता ढकचा ला निंदे आप आपने रे ॥ मांटी पण मूक्यां रे, नुजनुं बल चूक्या रे, साहामा वलीद्वक्या कोई न चाप रे, ॥ ॥ वीरधवल विमासे रे, कुमरी सवि लासें रे, प्रगटी नहीं पासें जनमा लाजणुं रे॥ मह बल ते तेहवे रे, थंन पासें एहवे रे, आव्योधसि के हवे वीणा साजशुं रे ॥ ॥ तिहां वीण वजावी रे, श्राकाश गजावी रे, जूक्यारीजावी जण तंती रसें रे॥ वली धनुष उपानी रे, बोल्यो अति त्रामी रे, परणीश हुँ लामी मुज बलने वशे रे॥१०॥ गांधर्व ए धीगेरे, एहने विधि रुठोरे, नहीं हां मीठो खावो नीखनो
रे॥ श्म कही नृप हसता रे, महबल[सुसतारे, र ' हेशो कर घसता कहुँ मग शीखनो रे॥१२॥ ताएयो .. धनुष ते सीधोरे, टंकारव कीधो रे, जाणे मद पीधो नृ
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(११५) पगण लोटव्यो रे ॥शर चाढी खंचे रे, नाखे परपंचें रे, खीलीने संचें थांलो चोटव्यो रे ॥ १२ ॥संपुट उ घमि रे, माथे जे जमिरे, अलगो जई पमिठ बाणे आहएयो रे ॥ तेहमाथी सारी रे, नरराय कुमारी रे, प्रगटी मनोहारी वेश जलो बन्यो रे ॥ १३ ॥ श्रीखं म कपूर रे, कस्तूरी रे रे, अंबरने चूरे लेपी देहमी रे॥दिव्यालंकारें रे, अति शोना धारें रे, श्रीपुंजने हारें बबी बमणी चढी रे ॥ १४ ॥ बीमी कर मावे रे, जिमणे कर गवे रे, वरमाल सुहावे हावें तेनरी रे॥ दीपे द्युति नारी रे, जिम रतिपति नारी रे, जाणे ना गकुमारी थंजमां ऊतरी रे॥१५॥ पेठी किम काठे रे, क्यारें किणे गवें रे, पूछे इति पावें नृप कन्या प्रत्ये रे॥जीवी जस शक्ते रे, कन्या कहे विगते रे, जाणे ते जगतें कलदेवी मतें रे॥१६॥ नृप कहे में चंपें रे, नाखी ते कूपें रे, राखी इंणे रूपें अम कुलदेवी रे ।। वरशोमां जूमो रे, एहने वर रूमो रे, आलोचीने उमो चित्त देवी तिये रे ॥१७॥ नूपतिना वारु रे, बल परखण सारू रे, रचियो ए वारु थंनो काठनो रे॥ कनकाथी सीधो रे, श्रीहार प्रसिको रे, तुजने तेणे दीधो सुंदर गठनो रे ॥ ॥ चर्चित अति रूके रे, मणि सोव
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(१९६) न चूमे रे, उपी बाजूने कोमल बांहमी रे ॥ कुलदेवी सुधारी रे, वरमाला धारी रे, थन मांहिं उतारी तुं अमने जमी रे ॥ १५ ॥ पुःखहुं मुज नारे, कारज थयुं कालु रे, पण लागे ए मा जे महाबल नहीं रे ॥ जेणे थंन उघाम्यो रे, नृप गर्व लताम्यो रे, गंधर्व दे खामयो ते जाग्ये वही रे ॥२०॥ ईम शोचे तिवा रेंरे, नूपति पुःख नारे रे, महाबल तेणि वारें मुख ढांकी हसे रे॥ थांनाथी निकसीरे, कुमरी कहे विक सी रे, नाख्यो थंच उकसी ते नर क्यां वसे रे॥१॥ देखामे प्रकाशें रे, धाई मात उसासें रे, ऊनो थंन पासें श्लोक ते गोठवे रे ॥ नूपतिनी बाला रे, सुंदर वरमाला रे, महाबलने विशाला कंठे लोग्वे रे॥२॥ महाबल वर वरी रे,नाग्य अति जरी रे, रतिपति अवतरी रूप समाजशुं रे॥ बिजे खंमें दाखी रे, ढाल तेरमी लांखीरे, लेजो रस चाखी कांति कहे ईश्युरे॥२३॥
॥दोहा॥ ॥ नूपति को धमहम्या, बोले विषम वचन्न ॥ जूर्ड परीक्षा एहनी, वरी पुरुष रतन्न ॥१॥ नृप मणि बांकी आदस्यो, मूर्खपणे ए काच ॥ देव जि सी पात्री हुवे, ए उखाणो साच ॥२॥सहे\ किम
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(११७) जलपूर परें, प्रगट परानव पाल॥हणी एह गंधर्वने, लेशुं बाल ऊलाल ॥३॥श्म कही ते हुई एकठा, हणवा उठ्या रूप॥धवल कटक गंधर्वनें, ततक्षण वींटे ऊठ ॥४॥ वज्र सार ते कर ग्रही, वेण करण रोषाल ॥ करे प्रगट शर वर्षणे, पौरुष वर्षाकाल ॥५॥ श्रण सहेता प्रति घात तस, नाग तेह वराक ॥जे म दंमा बीदता, जाये दिशोदिश काग ॥६॥नट्ट पुत्र परिचित तिहां, ऊनो एक नजीक ॥ महबलने जाणी ईसी, जणी स्वस्ति निर्जीक ॥७॥ ॥ ढाल चौदमी॥ बावा किसनपुरी ॥ ए देशी॥
॥शूर नृपति कुल नासण चंद, पदमावती दे वीना नंद ॥ मोहन स्वस्ति ग्रहो॥ाया श्हां केम कहोजी कहो || घणा दिवसनी हुती चाह, सफल हुई दीग नरनाह ॥ मो० ॥ श्रा० ॥१॥ वायनी मारी कोयल जेम ॥ संजवे तुम बागम इहां एम ॥ मो० ॥ अलगा न कस्यामीटथी लेश, धीया किम न रपति परदेश ॥ मो॥था॥परिकर साथें नहीं २ कोय, श्म क्यों थाया एकाकी होय ॥ मो॥ कारज को सोंपो महाराज, मुज लायक करीये जेम थाज॥मो॥आ॥ ३॥ इंम सुणी त्यां रीज्यो नृप
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( ११८ )
चित्त, पूढे कवण साधुं कहो मित्त ॥ मो० ॥ ते कहें इहां नहीं वे संदेह, माहाबल नामें कुमर होय एह ॥ मो० ॥ ० ॥ ४ ॥ वाध्यो जेहने हाथां देव, उल खीयें नहीं किम ते नेव ॥ मो० ॥ नृप कहे साधुं नि मित्तनुं वयण, व्याज हुर्ज मिल ते नररयण । मो० ॥ आ० ॥ ५ ॥ आव्यो हशे एह गयणने माग, के वली धरणी तलमां लाग ॥ मो० ॥ अकल कलाथी करतो केलि, यम जाग्ये पायो गजगेल ॥ मो० ॥ ० ॥ ६ ॥ पूठीश पाछें सघली वात, पहेलां नृपनी टालुं घात ॥ मो० ॥ एम विमासी नृप श्राश्वास, समजावी वा व्या आवास || मो० ॥ श्र० ॥ ७ ॥ जीमाड्या वर कन्या बेह, जोजन मूके नृपने तेह || मो० ॥ जोव राव्यो ते नाणी राय, पण नवि लाधो किहीं वा य ॥ मो० ॥ ० ॥ ७ ॥ राय विमासे ते निरलोज, पवन परें न लड़े किहां थोज || मो० ॥ चंपकमाला साधें जूप, गुंजे जोजन सरस अनूप ॥ मो० ॥ ० ॥ ॥ लगननो दादाको लीधो समीप, करे सजाई अति श्र वनीप || मो० ॥ समराव्या जल बांढ्यां सेर, शणगारी नगरी चोफेर मो० ॥ ० ॥ १० ॥ समीआणा ता या वली खास, जाणे उतारया सुर यावास ॥ मो० ॥
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( ११५ )
कृष्णागरुना धूम धूखंत, व्याकारों घण थइ वरखंत ॥ मो० ॥ ० ॥ ११ ॥ तोरण माला काक जमाल, घर घर व धवल धमाल || मो० ॥ बीजे खंदे चौदमी ढाल, कांति कहे सुणो वचन रसाल ॥ मो० ॥ ० ॥ १२ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ राज जवनमां रसनरें, प्रगट्या रंग अपार ॥ निव शोजायें कस्यो, लीलायें संचार ॥ १ ॥ करे विलेपन कुंकुमें, साजन मांहोमांहिं ॥ देह घरी बाहिर रह्यो, जाणे राग उहांहिं ॥ २ ॥ कुलदेवी पूजी विधें, वजमाव्यां नीशाण ॥ प्रशन वसन तांबूलनां, लहे गुरु जन सनमान ॥ ३ ॥ नृत्य करे वारांगना, विध विध अंग वह || सोहे मीन कुटुंबनी, लेती जेम पलट्ट ॥ ४ ॥ बांध्या जलके चंदुआ, जरतारी जर बाफ ॥ जेम कालें युग तिनी, संध्या फूली साफ ॥ ५ ॥ शणगारें सारी सबल, सधवा सुंदर तेह ॥ कोकिल कंठे कामिनी, धवल दिये घरी नेह ॥ ६ ॥ मले जम लशुं जानीया, खमकंते केकाण | सोंधे जीना सा मठा, गाहिक जरया जुवा ॥ ७ ॥
॥ ढाल पंदरमी ॥ करमो तिहां कोटवाल ॥ एदेशी ॥ ॥ महाबल मलया बाल, चंदन चर्चित सोह्या नू
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(१०) षणेजी ॥ सुतरु मोहन वेलि, सरिखां दीसे बिहुँ नि ईषणेजी॥१॥ वाजे चुंगल नेरि, ताल कंसाल न फेरी नादशुंजी ॥शणगास्या गजराज, बागल चाले अति उनमादझुंजी ॥२॥चामर बत्र ढलंत, फरह रते केसरीये वाघे सज्योजी ॥ निरुपम थाप्यो मोम, श्रीफल करमां सुंदर राजतोजी ॥३॥ कुंकुम तिल क बनाय, तंकुल जालें चोट्या उजलाजी। परवरिया घमसाण, तोरण आव्यो वर वधती कलाजी ॥४॥ मोती थाल वधाव, पधराव्या वर कन्या चोरीयेंजी॥ नट्ट जणे जयमाल, सोहला गाया सरलें गोरीयें जी॥५॥ ब्राह्मण नणते वेद, पंचामतना होम ति हां कीयाजी॥चारे चोरी अंग, दीपे जिम पुरुषारथ वीटीयाजी ॥६॥ बिहुंना नेहमा बांध, चारे फेरे में गल वरतियांजी ॥प्रीति जिस्या सुसवाद, सार कंसा र तिहां आरोगीयांजी ॥७॥ विधिपूर्वक कमनीय, पाणी ग्रहण महोत्सव तिहां कियोजी ॥ नृप रा णी आशीष, वचन श्स्यो अति हेजें उच्चस्योजी ॥७॥ चंडिका चंड समान, अविचल होजो तुमची जोग लीजी॥ हयगयरथ धन कोमि, करमोचन वेलायें दे जलीजी॥ए॥वरकन्या मन रंग, मोहलामांहे तिहां
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(११) पधरावियांजी॥संतोष्यो परिवार,मान महोत दै सहु राजी कीयांजी ॥१०॥ लोक कहे लख कोमि, मसती जोमी विधाता मेलवीजी ॥ मुखानंग समान, रतिपति नायकनी जोमी हवीजी ॥ ११॥ अवसर लही अवनी श, पूढे त्यां माहाबलने खांतशुंजी ॥एकाकीणे ग म, लगन समय आव्या किण लांतशुंजी ॥ १२ ॥ कुमर जणे महाराय, जाणुं नहिं किण देवी आणी उजी ॥ नृप कहे सघj साच, कुलदेवी निपजावे जा णीजी ॥१३॥ वली माहाबल कहे एम, शीख क रो तो चालु घर नर्णाजी ॥ मुज विरह मा तात, कर तां होशे चिंता मन घणीजी ॥ २४॥ बार पहोरमां जाश, न मटुं तो ते मरशे नेहथीजी॥करिकरुणा क रुणाल, शीख दीयो हवे मुजने तेहथीजी ॥ १५ ॥ पनवेने दिन सूर, ऊग्या पहेलो जो जाई मधुंजी ॥ जीवंता मा बाप, तो देखुं हवे कहुं वली केटढुंजी ॥ १६॥राय कहे सुण धीर, धैर्य धरो मत थाना कलाजी॥सघलानी मुज चिंत, करवी में जाणो गु ण आगलाजी ॥ १७ ॥ बाश योजन पूर, पोहवी गण नगर शहांथी अजी ॥आज रयणी एक याम, पगखोजी वोलावीश हुँ पडेंजी ॥ १७ ॥ करह लिया
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(१२५) करी साज, करवतियां धर काटण कोरमीजी ॥ संप्रेमी श ततकाल, असवारी मनधारी ए उमीजी ॥ १७ ॥ कोप्या जे नरपाल, सतकारी वोलावं तेहनेजी॥ त्यां लगें धीर धराय, रहो रहो म हिज करतां ए बनेजी ॥२०॥ इंम कही जव्यो नूप, बीजे खंमें सरस सोहा मणीजी ॥ ए पन्नरमी ढाल, कांतिविजय सविलास पणे नणीजी ॥१॥ इति ॥
. ॥दोहा॥ ___॥ कुमर कहे कन्या प्रत्ये, रहस्य पणे तजी ला ज॥ करी प्रतिज्ञा तुज मुखें, ते में पूरी आज ॥१॥ गत दिवसें देवी गृहें, मिल्या रजसमांजेह ॥ कही न सक्या निज निज कथा, हवे कहीजें तेह ॥॥ एहवे वेगवती तिहां, मलयानी धामा ॥ श्रावी कर जोमी बिन्हे, पूढे एम हसा ॥३॥ कारज ए देवी तणां, अथवा अवर उपाय ॥ अम मन संसय आफलें, कहो सुजग समजाय ॥ ४॥ कहे कुमरी ए माहरे, वीसवासणी बे स्वामि ॥ सुखें कहो शंका तजी, एह मुज जामणि गम ॥५॥ गजमुख दीधी मुखिका, तेह प्रमुख सुचरित्र ॥ जांखीने दिन अपर मुं, संध्यानु कहे चित्र ॥ ६॥ .
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( १२३ )
॥ ढाल शोलमी ॥ सखीरी खायो उन्हालो टारो ॥ ए देशी ॥
॥
॥ पियारी सांज समय बीजे दीने, वीजे दीने, नृ पथी मांगी प्रपंच ॥ मृगाक्षी सांजलो || पियारी मंत्र साधन मिश नीकल्यो, नीकल्यो, नूप कनें लेई लंच ॥ मृ ॥ १ ॥ प० ॥ ते द्रव्यें सूतारना ॥ सू० ॥ उपक रण लेई मूल || मृ० ॥ प० ॥ रंग अनेक लीया वली ॥ ली० ॥ मृगमद प्रमुख अतूल ॥ मृ० ॥ २ ॥ प० ॥ सामग्री इम संग्रही ॥ सं० ॥ श्राव्यो देवी धाम ॥ मृ० ॥ पि० ॥ विवर सहित ते फालिका ॥ फा० ॥ कीधी घमी अभिराम ॥ मृ० ॥ ३ ॥ पि० ॥ खीली बानी तेहमां, ते० ॥ बेसारी करी संच ॥ ८० ॥ प० ॥ साल संचे मुख ढांको || मु० ॥ नीपायो परपंच ॥ मृ० ॥ ४ ॥ पि० ॥ एहवे त्यां के तस्करा | के० ॥ मूकी जीत मंजूष || मृ० ॥ प० ॥ तस्कर एक टवी गया ॥ ४० ॥ पुर चोरी ढुंश ॥ ० ॥ ५ ॥ प० ॥ पूर्व सामग्री गोपवी ॥ गो० ॥ हुं थयो चोर समान ॥ मृ० ॥ पि० ॥ जा एकाकी ते कनें ॥ ते० ॥ उज्जो रह्यो करी शान ॥ मृ० ॥ ६ ॥ प० ॥ मुजने निरखी इम कड़े ॥ ३० ॥ ते अति लोजने व्याप ॥ मृ० ॥ प० ॥ तालुं नांजी
ते
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( १२४ )
नवि शकुं ॥ न० ॥ तुं मुज खोली आप ॥ मृ० ॥ ७ ॥ पि० ॥ तुरत उघामी में दीयो ॥ में० ॥ लीधो तिणे स वि माल ॥ मृ० ॥ प० ॥ ताणी बांधे पोटली ॥ पो० ॥ द्रव्यतणी लोजाल ॥ मृ० ॥ ८ ॥ पि० ॥ बीही तो मु जने म कहे ॥ ५० ॥ शूकी सतनी मूंग ॥ मृ० ॥ पि० ॥ जाउंतो हवे चोर ते ॥ चो० ॥ के नृप जन करे पूंव ॥ मृ० ॥ एं ॥ प० ॥ मारे मुजने मूलथी ॥ मू० ॥ थरके तेहथी चित्त ॥ मृ० ॥ पि० ॥ थानक मुज जीव्या त पुं ॥ जी० ॥ देखामो कोई मित्त ॥ मृ० ॥ १० ॥ पि० ॥ पद्मशिला ते जवननी ॥ ते० ॥ में उघामी खांच ॥ मृ० ॥ प० ॥ माल सहित ते चोरने ॥ ते० ॥ घाल्यो उंचे खांच ॥ मृ० ॥ ११ ॥ प० ॥ तिमहीज ऊपर तेवी ॥ ० ॥ विवर अंतर राख ॥ मृ० ॥ पि० ॥ ऊ तरतां अंगण तलें ॥ ० ॥ दीगे वरुतरु जांख ॥ मृ० ॥ १२ ॥ प० ॥ दोमी वम ऊपर चढ्यो । ऊ० ॥ रहुं जोतो तुज वाट ॥ मु० ॥ प० ॥ दी तो वरुनी कूखमां ॥ कू० ॥ भूषण वसननो थाट ॥ मृ० ॥ १३ ॥ प० ॥ अपह रिलीधा देवी यें ॥ दे० ॥ पहेलो मुज समुदाय ॥ मृ० ॥ " पि० ॥ ते तिए बांनां गोपव्यां ॥ गो ० ॥ दीसे बे ए प्राय ॥ मृ० ॥ १४ ॥ पि० ॥ में लीधो ते उलखी ॥ जं० ॥
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(१२५)
निरखुं बेठो गुज ॥ मृ० ॥ प० ॥ ऊवट वाटें आ वती ॥ ० ॥ नजरें पकी तुं मुझ ॥ मृ० ॥ १५ ॥ पि० ॥ वरुतरुथी हुं ऊतरस्यो । हुं० ॥ साहामो श्र व्यो दोम ॥ मृ० ॥ पि॥ बेहुं मल्यां ए माहरी ॥ मा० ॥ वात कही बल बोम ॥ मृ० ॥ १६ ॥ प० ॥ बीजे खं शोलमी ॥ शो० ॥ ए थई निरुपम ढाल ॥ मृ० ॥ पिं० ॥ कांति कहे मलया हवे || म० ॥ कहेशे वात रसाल ॥ मृ० ॥ १७ ॥
॥ दोहा ॥
कुमर जणे में जुगतिशुं, जांख्यो मुज विरतंत ॥ तुं पण कड़े ताहरो हवे, मूलथकी जिम हुंत ॥ १ ॥ ते कहे तुम शिक्षा ग्रही, पेठि हुं पुरमांहिं ॥ पुरुष वे ष मगधासदन, पुढं पग पग बांहिं ॥ २ ॥ घर न मली पुरमां जमी, किहां न दीवी स्वाम ॥ बेठी देव ल एकमां, दीवी मगधा नाम ॥ ३ ॥ नाखी वांके फांकने, धूरत एकें धूत || जावा लाग लड़े नहीं, रो की सबल कुसूत ॥ ४ ॥ कारण में पूठ्या थकी, वो ली करती रींग ॥ अहो सुगुण मुज पाढले, वलगो बे एक विंग ॥ ५ ॥ धूरत एह पूंठे पड्यो, लंघावे बे मुद्र ॥ क्षण क्षण थर विरु नये, गूमम जेम रु
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( १२६ )
ऊ ॥
"
६ ॥ निःकारण मुजनें ईणे, जी मी संकट मांहि ॥ वात कहुं ते यदिथी, सुणजो चित्तनी चाहिं ॥ ७ ॥ ॥ ढाल सत्तरमी ॥ द दिए दो हिलो हो राज ॥ए देशी ॥ गत दिन बेटी हो राज, मंदिर बारें राज, धूरत त्या रें रे, एतो व्यो मान्हतो ॥ १ ॥ हास करीने हो राज में बोलाव्यो राज, इंमतो न जाएयो रे धूतारो जन एह बे ॥ २ ॥ मुज तनु मरदे हो राज, खांते क रीने राज, कांक पुं रे हुं तुमने रूनुं ॥ ३ ॥ व चन सुणीने हो राज, आाव्यो समीपें राज, मर्दी मा हारी रे ईणे देह चोलीने ॥ ४ ॥ हुं पण तूठी हो राज, मनमां वारु राज, जिमवा सारु रे मैंतो एहनें नोतस्यो ॥ ५ ॥ एह कहे माहरे हो राज, काम नहीं बे राज, जोजन न करूं रे कांइक मुने दे हवे ॥ ६ ॥ पीत प टोली हो राज, ले नहीं देतां राज, सोगमे देतां रे दामें राजी ना थयो ।॥ ७ ॥ नाम न जांखे हो राज, कांइक मागे राज, आज ए आवी रे लागो पूंठे माहरे ॥ ८ ॥ देहरे बेसारी हो राज, मुजनें लंघावे राज, जावा न दीये रेक्यांहिं फीट्यो बाहिरें ॥ ए ॥ तव में विचा खुं हो राज, जो हुं दुःखमां राज, जगमो निवेमी रे बेश्याने बोम ॥ १० ॥ तो मुज थावे हो राज, कारज
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(१२७) एहथी राज, इम निरघारी रे बेठी त्यां हुँ ते कन्हें ॥ ११॥मगधानें काने हो राज, कहि कांश बाने राज, में कडं बिहुँने रे जा जमवा जोखमां ॥१५॥त्री जे ते पहोरें हो राज, जगमो हुं लांजीश राज, वेहेला यांहिं रे बेहु पानं आवजो ॥ १३॥ माहाबल पूछे हो राज, वाद ए मोटो राज, किम करी नांज्यो रे गो री कहेने ते हवे ॥ १४ ॥ पथनी थाकी होराज, दे हरे हुं सूती राज, त्रीजे पोहोरे रे फरी बेहु श्रावीयां ॥ १५ ॥ मुजने जगमी हो राज, मगधानी दासीरा ज, घट एक ढांकी रे मांहे बानो त्यां उवे ॥ १६ ॥ में कडं तेहने हो राज, जण करी साखी राज, कांश्क अपावी रे तुजनें राजी हुँ करुं ॥ १७ ॥ ते कहे वा रू हो राज, कांक अपावो राज, तो नहीं दावो रे ए हथी माहारे आजथी ॥ १०॥ मगधाने कीधी होरा ज, शान में ज्यारें राज, मगधा त्यारे रे लांखे एहवू धूर्तनें ॥ १५ ॥ हुँतो हारी हो राज, तुं हवे जीत्यो राज, कांक मूक्युं रे मेंतो मांहे कुंजमां ॥ २०॥ ते तुं लेइनें हो राज, बेहमो गेमे राज, इंम सुणी आ व्यो रे रंगें देवलमां वही॥१॥ कुंन निहाली हो राज, ढांकणी उपामी राज, काश्क लेवारे घाले माहे
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(१२७) हाथ ते॥॥ फणिधर महोटो हो राज, हाथें वलगो राज, न रहे अलगो रे वांको कर बागमतां ॥ २३ ॥ ते कहे इहां तो हो राज, कांश्क दाते राज, मगधा हसतीरे नांखे एह डे ताहरो ॥ २४ ॥ में मुज बोल्यो हो राज, ते एह दीधो राज, तुज दे णाथी रे कीधो माहारे बूटको ॥ २५॥ लोक हसंता हो राज, कहे तिहां बहुलां राज, एहने दीधुं रे एणे कांश्क रूअखें ॥२६॥ विषधर मंक्यो हो राज, ते नर मूक्यो राज, तोतिल नामें रे देवी केरें बारणे ॥१७॥ मुजने तेमी हो राज, मगधा साथै राज, निजघर आवी रे पाम माहारो मानती॥ २०॥ बीजे खमे हो राज, ढाल सत्तरमी राज, कांति उमंगें रे जांखी रूमी नेहशुं ॥५॥
॥ दोहा ॥ ॥ हार रही में तेहने, आप्यो श्म उच्चाट ॥ तुज घर नृपद्वेषी वसे, पेसुं नहीं ते माट ॥ १॥ श्म सु पीते विलखी था, चिते एहवं चित्त ॥ए नापीले कोश्क नर, जाणे रहस्य चरित्त ॥ ५॥ बीहती मन मां बापमी, मुजने इम कहे वाण ॥ रखे सुगुण कहे ता किहां, कहुं बुं जोमी पाण ॥ ३॥ किहां सुपारीं
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(१२ए) तुम थकी, न रहे बानी नेट ॥ कहो बिपायो किहां बिपे, दाई आगल पेट ॥ ४ ॥ बने कपट करवो ति हां, जिहां कपटनो लाग ॥ कोईक दिन तेहवो मले, काढे सघलो ताग ॥५॥ सुईबिड करे तिता, पूरण धागा साख ॥ सजान सहेजे गुण करे, ढांके अवगुण लाख ॥ ६ ॥ एहथी मुज पार्नु पम्यु, तेतो पूरव जो ग॥ गले ग्रहीने काढवा, हवे बन्यो ने जोग ॥ ७॥ ॥ ढाल अढारमी ॥चंदनरी कटकी नली ॥एदेशी ॥
॥ वीरधवलनी गोरमी, कनकवती नामेण ॥नाणि मा हो राज, चरित्र सुणो एहवी नारीनां ॥ कपट करी ने नृपनंदनी, कूपे नखावी एण ॥ ना॥ च ॥१॥ कूम कपट जाणी नृपे, रोकीती निज गेह ॥ ना ॥ नासी निशि आवी रही, मुज घर पूरव नेह ॥ ना॥ च०॥२॥ बलती जेहवी गामरी, पेठी घरने खूण ॥ना ॥ मुज घरथी काढो परी, करीने कांश्क हूंण || नाग॥ च ॥३॥ मानीश हुं उपगारमो, बीजो ए गुण जोई ॥ ना० ॥ पारथीयां होये स्वारथी, स्वारथ . विण जग कोय ॥ना॥च॥४॥ तव में मगधा में कडं, काढुं जो करी ख्याल ॥ना ॥वैर वधे तो बेहुमां, जाण्यो पण जंजाल ॥ ना० ॥ च ॥ ५ ॥ Jain Educa
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( १३० )
ते
तोपण तुज उपरोधथी, करशुं हुं ए काज ॥ ना० ॥ मुज रातें मेलवे, जिम करूं काढण साज ॥ ना० ॥ च० ॥ ६ ॥ गणीकायें प्रति आदरें, जोजन मुजने दीध ॥ ना० ॥ रातें एकांतें मुने, कनका मेलवी सीध ॥ ना० ॥ च० ॥ ७ ॥ मुज साधें रागें जरी, वदती मीठा बोल ॥ ना० ॥ जोग जणी मुज प्रारथे, करती नय कोल || ना० ॥ च० ॥ ८ ॥ में जांख्युं तेहने ईस्युं, मुज वालो ने एक ॥ ना० ॥ ते अति रथी नारीनो, मनमथ रूपें बेक ॥ ना० ॥ च० ॥ ए॥ प ण कामें गानें गयो, आज करी संकेत ॥ ना० ॥ मु ज मलशे देवी घरें, रातें काले सहेत ॥ ना० ॥ च० ॥ १० ॥ मुज साधें तुं श्रवजे, देशुं जोग बनाय ॥ ना० ॥ नहींतो पण ए आपणी, प्रीति कीहां नहीं जाय ॥ ना० ॥ च० ॥ ११ ॥ कहे कनका क्यांथी तुमें, आव्या कुंण तुम जात ॥ ना० ॥ में कह्युं बिहुं
त्री में, चाल्या विदेश सुखात ॥ ना० ॥ च० ॥ ॥ १२ ॥ मुज वचनें ते वीशमी, जांखे निज अवदात ॥ ना० ॥ गोष्टि करंतां रातकी, वीती थयो परजात ॥ ना० ॥ च० ॥ १३ ॥ पूब्धुं प्रपंचें में वली, तेह ने प्रजातें तांई ॥ ना० : बे तुज पासें के नहीं, या
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( १३१ ) जरणादिक काई ॥ ना० ॥ च० ॥ १४ ॥ तव मुजने देखामीयां, आभूषण तेणें का ढि ॥ ना० ॥ इंसतां में क थोमल, ते कहे इम रस चाढि ॥ ना० ॥ च० ॥ १५ ॥ हार माहारे वली, नामें लखमीपुंज ॥ ना० ॥ गुप्त धरयो ते काढतां, घ्यावे बे मुज ज ॥ ना० ॥ च० ॥ १६ ॥ में पूब्धुं ते क्यां धरयो, ते कहे चहुटा मांहिं ॥ ना० ॥ शूना घर पासें वनो, कीर्त्ति थं बे त्यांहिं ॥ ना० ॥ च० ॥ १७ ॥ ते नीचें जंगारीयो, ते हम मूक्यो काट ॥ ना० ॥ न शकुं जावा वासरें, मर ती हुं तिए वाट ॥ ना० ॥ च० ॥ १८ ॥ रातें आज जई तिहां, आणी तेह बिपाई ॥ ना० ॥ जाई शके जो तुं तिहां, तो लेई आव तकाई ॥ ना० ॥ च० ॥ ॥ १ ॥ नहीं तो सांजे मुतनें, कहेजे जेवुं होय ॥ ना० ॥ इम थालोच कस्यो घणो, मांहोमांहें रस ढो य ॥ ना० ॥ च० ॥ २० ॥ मालकी हुं उतरी, या वी मगधा नाल ॥ ना० ॥ बीजे खंमें अढारमी, कांतें जणी ईम ढाल ॥ ना० ॥ च० ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ मगधा कहे मुजने हसी, कहो केती बे ढील ॥ में क ए तुज घर थकी, काढी बे अमखील ॥ १ ॥
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(१३२) च कस्यो डे एहवो, पूरी पूरण पूठ ॥ वारंतां पण रा तमां, जाशे कनका ऊ॥२॥सामग्री नोजन तणी, करे मगधा अति नेह ॥ जमी रमी तिहांथी वली, ग ईदिवसने बेह ॥६॥बना थानक थंजनो, जोतां न लह्यो हार ॥ रातें कनकाने वली, जई नांख्यो सु विचार ॥४॥हार लेई तुं आवजे, देवी नवन मजा र॥पूबीने मगधा प्रत्ये, हुं चाली निशिचार ॥५॥
॥ ढाल उगणीशमी ॥ आले लालनी देशी॥
॥ रयणी अंधारी मांहे, वहेती हुँ चित्त चाहे, आडे लाल ॥अध मारगें नूली पनी ॥ आफलती पूर सेर, खाती घारण फेर, श्रा०॥ जिम तिम पामी वाटनी ॥१॥ आवी हुँ तुम पास, नांखी वात प्रकाश, श्रा० ॥ कनकवती जोश् आवती ॥ हार लेश्ने एह, आवे ने अतिनेह, आ० ॥ कनका तुमने चाहती॥२॥ वात सुणी इंम नाह, आणी टेक अथाह, आ॥ प्रीति वचन ते उबप्यां ॥ बोलवू नही घटमान, एह थी होय नुकशान, श्रा० ॥श्म कही थें गना बिप्या ॥३॥ कनका मन उत्कंठ, आवी मुज उपकंठ ॥ आ तव मेंइम कहां तेहनें।ावी म कर कांड सोर, ग डे शहां चोर, आण ॥ दे मुज जे होय तु
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(१३३) ज कनें ॥४॥राखु डिपामी क्याहिं, तव ते आपे त्यां हिं, आ० ॥ बगचो हाथें उचकी, में तेहमाथी टा लि, काढी वस्तु निहालि, आ॥ हार अने वली कं चूकी ॥५॥ बाकी सवि समुदाय, बांध्यो एक मिला य, आण ॥ चोर मंजूचे ते धस्यो ॥ में कडं तेहने ए म, थरके डे तुं केम, आ ॥ थानक में ताहरे कह्यो ॥६॥ ज्यां लगें चोर न जाय, त्यां लगें तें न खमाय, आण ॥ पेश मंजूर्षे ते नणी ॥ पेठी ते निर्नीक, में धारी मन ठीक, आ॥ तालुं दीधुं आहणी॥७॥ आपण बे अति हुँस, ऊपामीने मंजूष, आ॥गोला मां वहेती करी॥वैर प्रथमनुं वालि, वाही नीर वि चाल, आ॥ करताशुं करीयें खरी॥७॥ मांज्युं पि उ ततकाल, थूकें माहारुं नाल, आ॥ रूप सहज नुं हुं लही॥तुम आणाथी अंग, दीधुं विलेपण चंग, था ॥ पहेरी पटोली में वही ॥ ए॥ पहेस्यां कुंक ल खास, रविशशी मंगल नास, श्रा० ॥ लाधां जे वमने थमें ॥ पहेस्यो कंचुक सार, कंठे ठव्यो तेझर, आ॥वरमाला धारी जलें ॥ १० ॥ पेठी संपुट मां हि, गुहिर विवर अवगाहि,आ ॥ त्यारें मुज सवि शीखवी ॥ निसुणे वीणा घोर, तव ए खीली चोर,
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( १३४) श्रा०॥ काढे हांथी नीठवी ॥ ११॥ श्म कही बी जे खंम, थाप्युंशीशअखंम, श्रा०॥तेहमां वसीखी ली जमी ॥ राख्या पवननां माग, नीचे बगने लाग, आ ॥ चतुराईझुं ते घमी ॥ १५ ॥ जाणुं एती वात, कहो ागें अवदात, आ० ॥में न लह्या तिहां संक्र मी। बीजे खंमें एह, कांति कहे धरी नेह, आ० ॥ ढाल नणी उंगणीशमी ॥ १३ ॥
॥दोहा॥ ॥ कहे माहाबल माननी सुणो, आगे जे हुई वा त ॥ थंन तिस्यो में चीतस्यो, जिम जाएयो नवि जा त ॥ १॥रंग प्रमुख जे ऊगस्या, ते वाह्या जलपूर।। एहवामां फरी चोर ते, आव्या नवन हजूर ॥२॥ चोर सहित पेटी तिकें, जिहां तिहां जोतांदी॥तस शाने बोलावतां, कीधाश्रादर ३०॥३॥ मुज पूजे मंजू पशं, दीठो एक किहां चोर॥बीउँमें देई यादरें, कद्यु एम तिण गेर ॥४॥र्थन एहजो पूर्वनी, पोलें मूको आज ॥ तो देखाउँ चोर ते, व्यवहारें नहीं लाज ॥५॥ ॥ ढाल वीशमी। थे तोने आया उसगुं, उलगाणाजी॥
जिरमट खाश्यो गाल नएया॥ ए देशी॥ ॥ चोर कहे श्म उमही । गुणवंताजी ॥ राज जलें
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(१३५) मत्या नाग्यथकी ॥ काम करे शुं ए वही॥ उजमंता जी, अरथे अवसर एह तकी ॥ १॥गुण करतां गुण कीजीयें ॥ गु० ॥ एहमां पाम न कोई हां॥कहोतो काढी दीजीयें ॥ ज० ॥ जीव सरखो काज जीहां ॥२॥ जीवजीवातन सारीखो ॥ गु० ॥ ते जातां होय पुःख घणो ॥ पोतावटीतुं पारिखं ॥ ज० ॥ लहीयें अर्थ सरे बमणो ॥३॥ श्म कही ते थया एकगं ॥ गुण ॥धन दाटी तेह सिंधुतमें। उपामली सामटा ॥ ज० ॥ थंन तिहांथी एक धमें ॥ ४ ॥ ते पूंजें हुं चालियो ॥ गुण ॥ पूरव पोल समीप गया ॥ बंबित थल देखामियो॥5॥ते तिहांमूकी निचिंत थया ॥५॥ में जाएयो जो गोपव्यो । गु० ॥देखाउँ ते चोर हवे ॥ तो ए टोलो कोपव्यो॥॥धन लोनें तस लोही पीवे ॥ ६॥ श्म धारी अंतर वटें ॥ गुण॥ उत्तर कूड़ें एम कडं ॥ लोन वशे तेणें चोरटे ॥3॥ तालुं ऊघामी अव्य ग्रथु ॥७॥गोला सिंधु प्रवाहमां ॥ गु० ॥ तरती मूकी मंजूष सुखें ॥ तेह उपर चढी राहमां ॥ उ०॥ नदीयें थई ए जाय मुखें॥७॥ दी वा में सघली परें ॥ गु०॥ पासें ऊले चरित्त घणां ॥ चोर सहु श्म उच्चरे ॥ ७० ॥ साच चरित ए चोरत
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(१३६) णां ॥ ए॥ रातसूधी ते नीरमां ॥ गु०॥ जाशे तरतो जूमि कीती॥देशृंवम जंजीरमां॥ ज० ॥ग्रहिशुंकरशे जेय थिती ॥ १० ॥ जाशे ए किहां वेगलो॥ गुण ॥ चोटी एहनी हाथ अडे ॥ हमणां मूक्यो मोकलो॥ उ ॥ लेशे फल रस पाक पढें ॥ ११॥ श्म कहेतां मन आमले ॥ गुण ॥ चोर गया निज काज वगें ॥ यत न करी में एकले ॥ ज० ॥ राख्यो न प्रजात लगें॥ १२ ॥ प्रहकालें जण नूपनो । गु० ॥ श्राव्यो निरख ण थंन तिहां ॥ हुं थअलख स्वरूपनो॥ ॥बेठगे आवी डे लूप जिहां ॥ १३॥ इत्यादिक वीती कथा ॥ गु० ॥ कहीने वली महाबल नणे ॥ काढुं चोर तेस र्वथा ॥ १०॥ शिखर ठव्यो जे नुवन तणे ॥ १४ ॥ चालीश जो हुँ निजपुरें ॥ गु॥तोमरशे तिणें नीम पड्यो ॥ चढशे पाप खराखरे ॥उ०॥३णे फिकरें मुज चित्त नड्यो॥१५॥तुंहारहेजे हुं वही ॥गुण॥आवी श तेहनो सूल करी ॥कहे मलया रहेशुं नहीं॥०॥ साथै श्रावीश रंग धरी ॥ १६ ॥ तव कुमर विचारी चि त्तमां ॥ गु० ॥ वेगवतीने एम नणे॥जो नृप आवे तुर तमां ॥ ज०॥ तो कहेजो इंम निपुण पणे ॥ १७ ॥ गोलातटें देवी नमी । गुण ॥ श्रावशे कुमर शहां ह
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(१३७) मणां ॥ मानत किम शकीयें गमी ॥॥मान्या होय जे देव तणा ॥१७॥ईम कही चाख्यो तिहां थकी ॥गु०॥राति समय देवी जुवनें॥वारी पण नविरही शके ॥०॥मलया साथें हुई सुमनें॥१॥ बीजे खमें वीशमी ॥ गु०॥ ढाल नली अति सरस रसें॥ सुणतां श्रोताने गमी ॥ ज०॥ कांति कहे मनने हरसें ॥२०॥
॥दोहा॥ ॥साम दाम दंमें करी, वीरधवल नूपाल ॥समजा व्या नरपति घj, पण समजे नहीं हगल ॥१॥ तेह कहे परजातमां, मारी तुज जामात ॥ कन्या खेश् चालशु, तुं न करे अम तात ॥२॥ वचन सुणि नूपति चक्यो, आवे जुवन विचाल ॥ साज करावे करह लि, संप्रेमण वर बाल ॥६॥ चुप करावण श्रा विर्ज, वर कन्या नवणेद ॥ दीठा नहीं पूज्युं तदा, वेगवती कहे तेह ॥४॥ बेठगे जोवे वाटमी, नूपति करतो चिंत ॥रात पमी तव जिहां तिहां, शोध्यां पण न मिलंत ॥५॥खबर लह। नृप नंदनां, कटक गयां परनात ॥आव्या तिम निज निज पुरे, विलख वदन विरचात॥६॥जामाता कन्या तणी किहां न लही नृप सूज॥ःखियो नूपति चित्तमां, चिंते एम अमूंज ॥७॥
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( १३७) ॥ढाल एकवीशमी॥धिग धिगधणनीप्रीतमीए देशी
॥नरराज अति चिंता करे, मनमा पोषी दाह ॥ वर कन्या बिहुँ किहां गयां, ए तो अचरिज रे दीसे जगनाह ॥१॥ नूपति त्रटकीने कहे, कुंण जाणे रे एह अकल सरूप ॥ जोयां पण लाधां नहीं, थयुं होशे रे कांश विपरिय रूप ॥ नू० ॥२॥ किहां नगरी चंडावती, किहां नगर पोहवीगण ॥ किहां कन्या महाबल किहां, एतो विन्रम रे रचना अहिनाण ॥नू ॥३॥ अथवा दैवें बेहुनो, संयो ग इंम किम कीध | इंग्रजाल परें कारिमो, देखामी रे किम जमपी लीध || नू० ॥४॥ तुज चित्तमा एहवं हतुं, करवं दैव अनिष्ट ॥तो मूलथकी परग ट करी, क्यां पाड्यो रे एह माहारी दृष्ट ॥ नू० ॥ ॥५॥नवि दी, जोजन नबुं, नहीं दी, लीधउ दालि ॥ मणि हीऍ नूषण जडुं, पण पमि रे जश मणि ते टालि ॥ ॥ ६॥ हण्या पुष्ट किण व री, अथवा निरुध्यां केण ॥ के किण देवें अपह स्वां, दंपती दोश् रे श्राव्यां नहीं तेण ॥ नू० ॥ ॥ ७॥ रूप करी महाबल तणुं, आव्यो हतो कोई चोर ॥ परणी निज देशे गयो, मुज कन्या रे काल
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( १३ए)
जानी कोर ॥ नू०॥ ॥ कुमर कुमरी रूपें करी, ब्रांति मुज मन घालि ॥ मरण थकी वारी गयां, करु णालां रे केश अथवा विचालि ॥ नू ॥ ए॥ शुं करूं केहने कडं, कुंण लहे मुज मन पीक ॥ ईम कहेतो गलहथ करी, नप बेगे रे पडयोचिता नीम ॥ ॥ ॥१०॥ वेगवती वेगें कहे, प्रनु धरो मनमा धीर ॥ तेहिज मलया ए हती, तेह हुतो रे एह महबल वीर ॥४०॥११॥ पण रातमां जातां वनें, बल तस्यां ततखेव ॥ कोश्क वैरी विरोधथी, संनवियें रे हरि या किणे देव ॥ नू० ॥ १२ ॥ देशाउर पुर पर्वतें, वननूमि विषम प्रदेश || मूकी नर विशवासिया, जो वरावो रे तजी अपर किलेश ॥ नू॥ १३ ॥ प्रथम पुहवीगण पुर दिशि, तुरत करवी शोध॥ किणहीक कारणथी कदे, नारी लेई रे गयो होय तिहां योध ॥ ॥ २४ ॥ सूरपाल नरिंदनें, एह सयल जणावो वात ॥ ते पण खबर करे वली, करतां श्म रे सविधा वशे धात ॥ नू०॥ १५ ॥ नटुं नबुं नूपति कहे, तें कह्यो साहु उपाय ॥ वेगवतीने सराहतो, तिम कर वा रे नरपति सज थाय ॥ नू० ॥ १६ ॥ मलयकेतु निजपुत्रनें, देई शीख नृप ससनेह ॥ सूरपाल दिशि
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( १४० )
मोकल्यो, कदेवानें रे व्यतिकर सवि तेह ॥ भू० ॥ ॥ १७ ॥ हयगय सुनट रथ साजशुं, ते कुमर निय त प्रयाण || कुशलें मलशे नूपनें, होशे रूमा रे इहां कोमी कल्याण || नू० ॥ १८ ॥ ढाल एह एकवीश मी, इम कही कांति रसाल ॥ जुगतें बीजा खंगनी, जतां होये रे घर घर मंगल माल ॥ भू० ॥ १५ ॥
॥ चोपाई ॥ खं खं रस बे नवनवा, सुणतां मीठा शाकर लवा || निर्मल मलय चरित्र जग जयो, बी जो खंग संपूरण थयो ॥ २० ॥
॥ इति श्री ज्ञानरत्नोपाख्यान द्वितीयनाम्नि मलय सुंदरिचरित्रे पंगितकांतिविजयगणिविरचिते प्राकृत प्रबंधे मलय सुंदरी पाणी ग्रहणप्रकाशको नामाद्वितीयः खंगः संपूर्णः ॥ २ ॥ सर्व गाथा ॥ २७५ ॥
॥ अथ तृतीय खंड प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥
॥ बीजो खंग घमंशुं, पूरण कीध प्रगट्ट | हवे त्री जो कहेवा जणी, उमग्यो रंग गरह ॥ १ ॥ प्रेमें प्रणमी शारदा, कहेशुं शेष चरित्र ॥ अति रसशुं श्रोता सुणी, करजो करण पवित्र ॥ २ ॥ दवे कुमर
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॥
( १४१ ) वनमां जई, मलयानें पजगत | फिर निशि सम शानमां, नारीनें न घटंत ॥ ३ ॥ ते माटे नर रूप तुज, करुं कही इंम जाल । तिलक कस्युं आंबार सें, गोली घसी ततकाल ॥ ४ ॥ नारी रूपें नर हुर्ज, थयां बेहु संबंध || देवी गृहनां शिखरथी, काढे चोर निरुद्ध ॥ ५ ॥ कहे इस्युं रे गत दिनें, गया चोर तुज देख ॥ जा कुशलें जिहां रुचि होवे, तिहुनो पंथ उवेख ॥ ६॥ प्राण लाज धनलाज में, तुम पसायें लद्ध ॥ इम कही ते नमते घणुं, तेणे पयाएं कीध ॥ ७ ॥ बिहुं जुव नयी ऊतरी, आवे वतलें आप || तब तिहां गयणे गेबनो, सुण्यो नूत आलाप ॥ ८ ॥ कुमर मरंतो नू तथी, करवा यतन प्रकार ॥ ततक्षण कामिणी कंठ थी, लीए उतारी हार || ए || रहे रहे बानी सल क मां, सांजल देइ कान ॥ वरुमां नूत वदे किस्युं, कुमर करे इंम शान ॥ १० ॥ बानां वम पोलाशमां, बिहुं वेगं थिरगात ॥ सावधान या सांजले, भूत तणी म वात ॥ ११ ॥
॥ ढाल पहेली ॥ सहेर जलो पण सांकको रे, नगर जलो पण दूर रे ॥ हठीला वयरी ॥ ए देशी ॥ an शिखरे इंम बोली रे, भूताने एक जूत
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(१४२) रे ॥ मोहन रंगीला ॥ वात कडं नवली नली होला ख ॥ सांजलजो अदलूत रे ॥ मो० ॥१॥नूत वमो कहे वातमी हो लाल ॥ ए आंकणी ॥ कुमर सुणे रह्यो हेठरे ॥ मो ॥ रहस्य मरम जोतां वली हो लाल ॥ वेधक पामे नेठ रे ॥ मो० ॥ नू ॥२॥ पु हवी गण नरिंदनो रे, माहाबल नामे कुमार रे॥मो॥ ने मतिवंत गुणायरु होलाल, रतिपतिने अणुहार रे ॥ मो० ॥ नू० ॥३॥ तस जननी पदमावती रे, तेहना गलानो हार रे ॥ मो० ॥ किणहीक अलख पणे लीयो हो लाल, माय करे पुःख नार रे॥ मो०॥ ॥ ॥४॥ इंम पण बांध्यो आकरो रे, वालण हार कुमार रे॥ मो० ॥ हार न दौं दिन पांचमे हो लाल, तो मुज अगनि आधार रे ॥ ॥ मो॥ ४०॥ ॥५॥ मातायें पण आदस्यो रे, पण तेहवो निर धार रे ॥ मो ॥ पांच दिवसमां ते लहुं हो लाल, तो रहुं जीवित धार रे ॥ मो॥ नू० ॥ ६ ॥ ख बर नहीं ले कुमरनी रे, हार केमें गयो ऊ रे॥मो॥ पंचम दिन कालें हुशे हो लाल, सूरज ऊग्या पूच रे ॥ मो0 नूग ॥ ॥ नृपनंदन मुगतावली रे, मलवा पुर्खन वेह रे ॥ मो० ॥ ते फुःख मरवू श्रा
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( १४३ )
गर्मी हो लाल, बेटी राणी तेह रे ॥ मो० ॥ ० ॥ ॥ ८ ॥ विषथी के गिरि पातथी रे, के पेशी जल देश रे ॥ मो० ॥ मरशे के वली शस्त्रथी हो लाल, के करी अगनिप्रवेश रे || मो० ॥ ० ॥ एए ॥ लोक बहुलशुं राजीयो रे, मरशे पूंठें तास रे ॥ मो० ॥ खबर लेईने यावी यो हो लाल, हुं तिहांथी तुम पास रे । मो० ॥ नू० ॥ १० ॥ नूपनंदन व कोटरें रे, सांजले बेठो एम रे । मो० ॥ फाटे हीयकुं दुः खथी हो लाल, काचो घट जल जेम रे ॥ मो० ॥ ॥ ० ॥ ११ ॥ चिंता जर मन चिंतवे रे, देव कथ न नहीं फोक रे ॥ मो० ॥ थाशे जो एहवुं कदे हो लाल, तो करशुं श्यो प्रोक रे ॥ मो० ॥ ० ॥ १२ ॥ भूत कहे जश्यें तिहां रे, वहेलां बांकि प्रमाद रे ॥ मो० ॥ कौतिक जोशुं खंतशुं हो लाल, लेशुं रुधिर सवाद रे ॥ मो० ॥ ० ॥ १३ ॥ म कही सम कालें कस्यो रे, नूतकुलें हुंकार रे ॥ मो० ॥ आका शें वम ऊपड्यो हो लाल, लेता साथ कुमार रे ॥ ॥ मो० ॥ ० ॥ १४ ॥ वेगें वम न चालतो रे, श्राव्यो पुहवीवाण रे || मो० ॥ आलंबन गिरिनीचें जई हो लाल, तुरत कस्यो मेला रे ॥ मो० ॥ नू०
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(१४४) ॥ १५ ॥ पुर पासें गोला तटें रे, नामे धनंजय यद रे ॥ मो० ॥ नूत गयां तस देहरे हो लाल, करवा कौतुक लद रे ॥ मो० ॥ नू० ॥ १६ ॥ निजपुर उ पवन नूमिनां रे, परिचित तरुनां वृंद रे ॥ मो० ॥ कुमर निहाली उलखी हो लाल, पाम्यो परमानंद रे ॥ मो० ॥ नू० ॥ १७ ॥ कुमर जणे मलया जणी रे, दीसे पुण्य प्रमाण रे॥ मो० ॥जेहथी ए वम ऊपमी हो लाल, आव्यो पुहवीगण रे ॥ मो० ॥ नू॥ ॥ १७ ॥ वम कोटरथी नीसरी रे, जश्य उपवन कूल रे ॥ मो ॥ सुर शक्ते वली ऊमशे हो लाल, तो कर स्यां श्यो सूल रे ॥मो०॥ नू॥१ए ॥ एम विचारी नीसख्या रे, वम कंदरथी दोय रे॥मो०॥कदली वन डे ढूंकडं हो लाल, तिहां जश्बेग सोय रे॥मोणाजू०॥ ॥२०॥ऊपमतो गयणांगणे रे, देखे वझवली तेम रे ॥ मो०॥ मांहो मांहे कहे इंहां थको हो लाल, जाशे आव्यो जेम रे । मो० ॥०॥१॥ जो रहेतां ए हमां वसी रे, तो जातां किण थान रे॥ मो०॥पमतां विषमी जोलमां हो लाल, जिम पवनें तरु पान रे ॥ मो०॥नू ॥२५॥त्रीजे खंमें एकही रे, सुंदर प
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(१४५) हेली ढाल रे॥ मो०॥ कांतिविजय कहे पुण्ययी हो लाल, वाधे सुजश विशाल रे॥ मो० ॥ नू० ॥ २३ ॥
॥ दोहा॥
॥हवे कमर निसणे तदा, विनताना आदादया पणे नयणे चरे, करुणा जल निस्पंद ॥ १॥यावीश हुँ वहेलो प्रिये, चिंता मुज न करेश ॥इम कही नर रूपें त्रिया, तिहां विचच्यो नरेश॥२॥निरखत पियु नी वाटमी, शूने रंजाकुंजारयणि गमावे नारिते, दाधी पुःखने पुंज ॥३॥पीत वरण प्राची दुबे, पाल्यांक मल विबोध ॥ बंधनयरथी बक जिम, बूटा थलिकुल योध॥४॥गुंजा पुंज समान तनु, उदयो बालो सूर॥ आलें किरणनाले हणी, कस्या तिमिररिपु ॥५॥ ॥ ढाल बीजी॥ वृषनान जुवनें गई पूती ।। ए देशी
॥ मलया मन एम विचारे, जाउं हुं पुरमा करारें। माय बापने मलवा कामें,मुज नाह गयो दुशे धामें ॥१॥ चाही इंम चाली चुंपे,आवी वही पुरनी ॥ पेसे जव पुरने पुवारें, रोकी तव नगर तलारें ॥२॥ दिव्य वेश निहाली चमक्यो, कहे कुण तुं यायो धम क्यो॥ बोलाव्यो तिहां उत्तर नापे, दश दिशिमां लो चन थापे॥३॥मलिया केई नगर निवासी, निरखे तस
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(१४६) रूप प्रकाशी ॥ कुंमलने उकूलनी फाली, उसख्यां म हबलनां जाली ॥४॥ तलवर कहे किहांथी लाधां, आनूषण कुमरनां बाधां ।।श्म कही नृपपासें खाव्यो, देखी नृप चित्त चमकाव्यो ॥५॥ कहे कोण पुरुष ए नवलो, सोहे जूषणे करी लांतीलो ॥ मुज सुतनां पहिस्यांदीसे, आजूषण विश्वावीसें ॥६॥तलवर क हे ए हिसंतो, पकड्यो पुरमा पेसंतो ॥ पूज्यो पण उत्तर नापे, पूगे वली जो हवे आपे ॥ ७॥ नूपति कहे कुंण तुं किहांथी, आव्यो कहे साच जिहांथी। मलया मनमांहे विमासे, साचुं शहां जूळ नासे ।।
कहिशुंअमचरित्र वखाणी, कोइसर्दहशे नहीं प्राणी ॥ कहेवू नहीं पीनमा पाखें, लावी मटशे नहीं लाखें ॥ ए॥श्म धारीने मलया बोले, महबल मु ज मित्रने तोलें ॥ते माटे ए वेश प्रसिझो, मुजने ते णे पेहेरण दीधो॥ १०॥ शूरपाल कहे तेह क्या , सा कहे शहां हिज जिहां त्यां ॥ नृप कहे होये जो हांगवे, मुज मलवातो किम नावे ॥११॥ जूठी सवि वात प्रकाशी, चोकस न पनी विण रासी ॥महबल थी प्रीति वखाणे, तो सेवक को तुज जाणे ॥१५॥ इत्यादिक वचन सुणीने, रही मौन धरी मन हीने॥बो
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(१४७) व्यो नरपति हुंकारी, एह वात हवे अवधारी ॥१३॥ अणदीगं मुज नंदननां, वसनादिक लीधां तननां लोजसार नामें जेणे चोरें, रहे ते गिरिकंदर तोरें॥ ॥ १४ ॥ चोख्यो पुरनो जेणें माल, पकड्यो ते माटे हवाल ॥ काले तस निग्रह कीधो, तस बांधव दीसे ए सीधो ॥ १५॥ निजबंधु वियोगें बलतो, सुधि लेवा आव्यो चलतो । पहेरी मुज सुतनो वेश, इंणे पुरमा कीध प्रवेश ।। १६ ॥ मुज सुत हणी श्णे मलीने, मुज वैरी ए अटकलीने ।। लोनसार कन्हें जईहणजो, शहां पाप किस्युं मत गणजो॥१७॥ मलया मनमा म ध्यावे, असमंजस कर्मनें दावे ॥प्राणांतिक आपद मोटी, दीसे इहां वली खोटी।। १०॥ चिंतवती पूर्व सलोक, रहीमौन धरी अतिशोक ॥तव बोल्यो सची व विचारी, महाराज जुवो अवधारी ॥रए ॥ जिम साह नहीं ए साचो, तिम चोर करी मत खांचो॥श्रा चरणा दीसे रूमी, शिर आवी तो मति कूमी ॥२०॥ शहां उचित करावोधीज, होये शुछ अशुद्ध पतीज॥ श्म करी हणशो तो आओ, कोई दोष न देशे पाले ॥१॥ नृप कहे शी धीज वतावो, तव ते कहे सर्प मंगावो । साचो घट सर्पनी धीजें, होशे तो चरण न
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(१४७) मीजें ॥ २२॥ नृप गारुमविद अविलंबें, मूके तव शैल अलंबें ॥ पुकर विषधर आणवा, गया हसता ते ततखेवा ॥ २३ ॥ वस्त्र कुंमल नूपें लेई, तलवरने सोंप्यो तेई ॥ बंध आवी मलया राणी, पण ढालें व हेशे पाणी ॥ २४॥त्रीजे खंमें बीजी ढाल, श्म कांति कहे सुरसाल ॥ केई कौतुक होशे आगे, सांन लजो श्रोता रागें ॥ २५॥ इति ॥
॥दोहा॥ ॥ एहवे पटराणी तणी, महुलणी आवी दोग। गलगलती नृपागलें, कहे एम कर जोम॥१॥देव खबर नहीं कुमरनी, पंचम दिन ने आज ॥ नेट अ निष्ट इहां किस्युं, दीसे वे नर राज ॥२॥ पुत्र रतन पुर्लन हले, हारतणी शीवात॥शैल अलंबाथी पमी, करशुं ते फुःख घात॥३॥अविनय जे कीधा हुवे, ते खमजो नरनाथ ॥ संदेशा तुम राणीये, इम दीधा मुज हाथ ॥४॥ समयोचित चित्तमां धर, करो या प हित जाणी ॥ईम सुणी नरपति तेहने, पत्नणे श्र वसर वाणी ॥५॥
॥ ढाल त्रीजी ॥ मुंबखमानी देश ॥ मुज वचनें इम लांखजो रे, राणी समीपें जाय ॥ स
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(१४) खूणी गोरमी ॥मुजने पण ताहरी परें रे, ए फुःख ख मी न जाय ॥ स० ॥१॥खबर करेवा मोकट्यारे, दिशिदिशि सेवक साथ ॥ स० ॥ते श्राव्याथी जाण शुं रे, वात तणो परमार्थ ॥ स॥२॥पामीशुं नहीं सर्वथा रे, कुमर तणी जो सुछि॥स ॥ तो तुज गति मुजने हजो रे, धारी में एहवी बुद्धि ॥स०॥३॥ ट कमण किण बेसशे रे, तेल जून तेल धार॥स०॥ कुंमल वसन कुमारनां रे, आव्यां सहसाकार ॥ सण ॥४॥ किम रहेशे बानो हवे रे, लाधो पग संचार ॥ स० ॥ पुरुष अपूर्वक दाखशे रे, तेहने ए निरधार॥ स०॥५॥ सहि नाणी राणी नणी रे,आपीने कहे जो एम ॥ स०॥ जिम ए अजाण्यां आवियां रे,सत पण यावशे तेम ॥ स ॥६॥ पुरुषने धीज करावशं रे, जेहथी लाधां साज ॥ स ॥ मलशे नंदन जीव तो रे, करशे जो महाराज ॥ स ॥ ७॥ महुलणी आवी महोलमां रे, सकल सुणी अवदात ॥ स ॥ कुंमल वसन समर्पिने रे, सुपरें सुणावी वात ॥ स० ॥ ७॥ विस्मित मन राणी हुई रे, पूढे वस्तु निदान ॥स० ॥ महुलणी आगम पुरुषथी रे, नांखे तस घ टमान ॥ स ॥ ए॥ हर्ष शोकाकुल कामिनी रे,म
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(१५०) हुलणी आगे वदंत ॥ स०॥मुजसुत वक्षन थावि यो रे, कहेवा सुधि कुण खंत ॥ स ॥ १०॥अथवा कोश्क वैरीय रे, कुमर हएयो बल खेल ॥स०॥ कुंभ ल वसन लीयां तिकें रे, ते आव्यां इंणि वेल ॥स० ॥ ११ ॥ ते माटे निरखं हवे रे, करतो धीज विशु
॥ स० ॥ श्म कही यक्षगहें गई रे, परिकर साथ मुझ ॥ स० ॥ १५ ॥ नृप पहेलो तिहां श्रावियो रे, वीट्यो जणने थाट ॥ स०॥श्राव्या तव विषध र ग्रही रे, गारुमी जोतां वाट ॥ स० ॥ १३ ॥ नूप तिनें कहे गारुमी रे, देव अखंबा हेठ ॥ स ॥ वि वर अनेक निहालतां रे, साधो फणिधर नेत॥ सण ॥ १४ ॥ फूंकारें तर बालतो रे, कालो काजल वान ॥ स ॥ मंत्रप्रयोगें कुंलमां रे, घाल्यो आणी निदा न ॥ स० ॥ ॥ १५॥ यक्ष धनंजय आगलें रे, मूकावे नर कुंन ॥ स० ॥ नर न्हवरावी आणीयो रे, सुनटें करी संरंज ॥ स० ॥१६॥ रूप निहाली तेहy रे, कहे राणी परलोक ॥ स ॥ एडवा गुण मषवी रे, विधि रचना हुई फोक ॥सण्॥१७॥चंड अंगारा जो खरे रे, पावक जल विश्राम ॥ स० ॥ दाह अमृ तथी जो हुवे रे, तो एहथी ए काम ॥ स० ॥१०॥
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( १५१) दिव्य कठिन ए एहनें रे, देतां मन न वहंत॥स०॥ दोष नहिं नूपति जणे रे, गुणही एम लहंत ॥ स॥ ॥रणा समसूधोवानी ग्रहे रे,वाधे सुजश अताग ॥सण॥ जात्य सुवर्ण दुताशने रे, ताप्यो ले गुण जाग ॥ स ॥ ॥२०॥ नररूपा विनता तिहां रे, जपती मन नव कार ॥ स ॥ श्लोकारथ निरधारती रे, ऊघामे घट बार ॥ स ॥१॥ निर्जय करकमलें ग्रह्यो रे, वि षधर अति रोषाल ॥ स०॥ लोक लयो अचरिज नवो रे, निरखी निरुपम ख्याल ॥ स ॥२॥नाग ह जे निर्विष मुखो रे, रह्यो तस वदन निहाल ॥ स॥ नेह निविमरस पूरीयो रे, संबंधे ततकाल ॥स०॥३॥ साचो साचो श्म कहे रे, पामे नर करताल ॥ स ॥ त्रीजे खंमें ए कहीरे, कांतें त्रीजी ढाल ॥ स० ॥२४॥
॥दोहा॥ ॥ केलि करंतो करतलें, काढ़ें मुखथी हार ॥ ते मखया कंठे वे, मुखें ग्रही फणिधार ॥१॥ ते निर खी विस्मित हुर्ड, नूप प्रमुख पुर लोक ॥ हार पि गणी श्म कहे, करता नयणे टोक ॥२॥ खखमी पुंज किहांथकी, श्राव्यो एद अचिंत ॥विण वादल परसात ज्यु, करे अचंन अनंत ॥३॥ नाल तिल
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(१५५) क नरनो चढी, चाटे जव अहिराव ॥ दिव्यरूप तरु णी हुई, तव ते मूल स्वनाव ॥ ४ ॥ विस्तारी फणि मंमली, रह्यो उपर धरी बत्र ॥ जोतां जण अद्वैत र स, लहे चित्र सुपवित्र ॥५॥
॥ ढाल चोथी॥माली केरे बागमां,
दो नारंग पक्के रे लो ।। ए देशी॥ ॥ थर थरतो नरराजीयो, नणे एहवी वाचा लो ॥अहो न०॥देखी तिहां अचरिज मोटोरे लो॥ विण विगते में मूरखें, काम कीधां काचां लो॥॥ देखी ॥१॥पुरजण दव। वारता, अनरथ जाड्या ला॥५०॥ नरनिंदें सूतो हां, मृगराज जगाड्यो लो॥१०॥देण ॥२॥ नहिं सामान्य जुजंग ए, कोश् देव सरूपी लो ॥१०॥निरखत रचना एहनी, रही मनमे खूपी लो ॥ अ०॥ दे० ॥३॥ शक्ति सहित ए बे जणां, ढां की निज वाना लो ॥ १० ॥ पुरमा कार्य उद्देशथी, आव्यां कोईबगनां लो॥०॥दे०॥॥ परमारथ लहे तो नथी, आराधी बेहुनें लो ॥०॥ नगतें सूधां रीजवी, पूड गति एहुनें लो॥ अ० ॥ दे० ॥५॥ श्म कहेतो धूप उखेवतो, कुंकुमांजल ढोवे लो॥ अ० ॥ फणीधर मूको सुंदरी, कही इंम मुख जोवे
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(१८३३)
विनय मुज पन्नग अँजु, नक्तें वश होय देव
लो ॥ ० ॥ दे० ॥ ६ ॥ कीधो ते खमजो लो ॥ ता, इम जाणी समजो लो || ० || दे० ॥ ७ ॥ नि सु नृपति वीनति, मलया हि मूक्यो लो ॥ श्र० ॥ नृप पयपात्र धयुं तिहां, पीवा जइ द्वक्यो लो ॥ ० ॥ दे० ॥ ॥ संतोष्यो पयपानथी, नरपति या देशें लो ॥ ० ॥ गारुमीयें पाठो ग्रही, मूक्यो गिरि देशें लो ॥ ० ॥ दे० ॥ ए ॥ नृपति पूबे नारीनें, जोतां जप पासें लो ॥ ० ॥ नरथी नारी किम हुई, एह कौतुक जासे लो ॥ ० ॥ दे० ॥ १० ॥ कुंण बे किम यावी इहां, केहनी तुं बेटी लो ॥ ० ॥ रहस्य को सवि चितथी, अंतर पट मेटी लो ॥ ० ॥ दे० ॥ ११ ॥ मलया एहवं चिंतवे, मूल रूप ए उ लट्धुं लो ॥ ० ॥ जाल अमृतथी मांजतां, पहेलुं पण उलट्युं लो ॥ ० ॥ दे० ॥ १२ ॥ रूप ए विष रात को कम बदलाएं लो ॥ ० ॥ हार लो पीयु करतो, चरिज इहां जाएं लो ॥ ० ॥ दे० ॥ १३ ॥ कारण ए मुज पीउनां, विए कारण सीधां लो ॥ ० ॥ कारणें नाग थई तिणें, कारज शुं कीधां लो ॥ ० ॥ दे० ॥ १४ ॥ समजण मुज पमती नथी,
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(१५४) इयो उत्तर यापुं लो॥०॥ जेतुं शहां कहे, घटे, तेतुं थिर थापुं लो॥ अ०॥ दे ॥१५॥लाजें मुख नीचुं करी, कहे मलया बाली लो॥०॥ दक्षिण दिशि चंदावती, वीरधवलें पाली लो॥॥ दे॥१६॥ हुं ते नृपनी नंदनी,जीवितथी प्यारी लो॥०॥नामें मलया सुंदरी, चंपक उरधारी लो ॥ १०॥ दे०॥ ॥ १७ ॥नूप कहे जुगतुं नहीं, ए वचन विशेषे लो ॥ अ० ॥प्रथम का तुं तेहथी,मलतं नहीं ले लो ॥ १०॥ दे ॥ १७ ॥ कारण वशे ते जूपने, पुत्री जो आई लो॥१०॥केताश्क जण श्रावशे, तो पुंठे धाई लो ॥ अ० ॥ दे ॥ १ए ॥ हार सहित एहने हवे, देवी तुज पासें लो॥०॥ सुखशाताशुं राख जो, उंचे आवासें लो॥अ० ॥ दे०॥ २० ॥ राणी मलयाने तिहां, राखे मन खांते लो ॥ अ० ॥ चोथी त्रीजा खंमनी, ढाल जांखी कांतेंलो ॥श्रादे॥९॥
॥ दोहा ॥ ॥ नूपति कहे सुण नामिनी, पंच दिवसने अंत॥ हार रयण श्रजाणिजे, लायो अति चाहंत ॥१॥ कीधो महबल नंदने, प्राणांतिक पण जेम ॥ सुख पुःख थर्गे साहसी, पूख्यो दीसे तेम ॥२॥ वचन सु
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(१५५) णी राणी हू, फुःख नारें दिलगीर ॥प्रीतमने श्म वि नवे, नयण जरंती नीर ॥३॥
॥ ढाल पांचमी ॥ सासू काग हे गहुं पी साय, आपण जास्यां हे मालवे, सोश
नारी जणे ॥ए देशी ॥ ॥पीया बेग हे कां निचिंत, कान ढालीने हे ६ णिपरें ।सुत मायो घरें॥पीया वरहो हे अति खट कंत, सुतनो हे हीयमा जीतरें ॥सु० ॥१॥ पीया मुजथी हे रडुं न जाय, खंबा दीहा किम नीगमुं ॥ सु०॥पीया रयणि हे वैरणी थाय, नींद गई शूनी जमुं| सु॥२॥ पीया बालुं हे नवलख हार, पु त्र रतन जेहथी गम्यो ॥ सु०॥ पीया लेई हे रतन उदार, पाहाण कारज आगम्यो॥ सु० ॥३॥ पीया ढोब्युं हे सरस पीयूष, दार उदकने कारणे ॥सु० ॥ पीया कापी हे सुरतरु रुख, वाव्यो धंतुरो बारणे ॥ सु॥४॥ पीया जी हे हुं हवे केम, पुत्र रहित दानाागण।।सु०॥ पाया गार है ऊपावीश जेम, निवृत्त होइ जीवित नणी ॥सु०॥५॥प्रीया वारी हे में समजाय, पहेलां पण तुजने घj॥ सु० ॥ प्री या सेहेरुं हे पुण्य पसाय, हार परें सुत थापणुं ॥
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( १५६ )
सु० ॥ ६ ॥ प्रीया वचनें हे इम आसास, पुत्र विठो ही गोरीने ॥ सु० ॥ प्रीया आव्यो हे निज यावा स, मन वध्युं दुःख कोरीनें ॥ सु० ॥ ७ ॥ प्रीया पो होता हे निज निज थान, लोक जस्यां यचरिज चिंते ॥ सु० ॥ प्रीया साले हे साल समान, नृपराणीने वि रह ते ॥ सु० ॥ ८ ॥ प्रीया बोल्यो हे तपतां दिस, रा ति विहाणी दोहिले ॥ सु० ॥ श्रीया जाणे हे दुःख जगदिश, के जस वीते ते कले ॥ सु० ॥ ए ॥ प्रीया व्याया है जन परजात, कुमर खबर पाम्या नहीं ॥ सु० || प्रीया चित्तमां हे अति कुलाय, दंपती चा यां गिरि वही || सु० ॥ १० ॥ प्रीया पकवा हे घाली हांम, नृप राणी उंचां धसे ॥ सु० ॥ प्रीया सासें दे जरीयां ताम, पुरुष केक आव्या तिसें ॥ सु० ॥ ॥ ११ ॥ प्रीया नृपनें हे ते कहे एम, गोला तट वक मालिये ॥ सुत पायो वकें ॥ प्रीया टांग्यो हे वागु ली जेम, महबल दीगे गोवालीये ॥ ( कना लिये ) सु० ॥ १२ ॥ प्रीया बांध्यो हे जे लोजसार, चोर अ धो मुख जि वने ॥ सु० || प्रीया जीम्यो हे माल मजार, तुम नंदन तिहां तरुफ || सु० ॥ १३ ॥ प्री या जाएयो दे नहीं परमार्थ, दीव्रं तेहवं जांखीयुं ॥
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(१५७) सु० ॥प्रीया सुणीने हे इंम नरनाथ, वचन अमृत करी चाखीयुं ॥ सु ॥ १४ ॥ प्रीया पाम्यो हे विस्म य हर्ष, समकालें ते राजवी ॥ सु०॥ प्रीया वाध्यो हे मन उत्कर्ष, मरवा छा जाजवी ॥ सु० ॥ १५ ॥ प्रीया सुतनां हे दरिसण चाहि, चाख्यो नृप वम सनमु खें ॥ सु ॥ प्रीया साथे हे मलया उमाह, चाली श्री तमनी रुखें ॥ सु० ॥ १६ ॥ प्रीया आया हे वमतरु पास, नृपराणी मलया मली ॥ सु० ॥ श्रीया दीगे हे उंचो आकाश, टांग्यो न शके सलसली ॥ सु०॥ २७॥ प्रीया करशे हे सुत संजाल, नवली विधि नृ प आगमी ॥ सु०॥ प्रीया त्रीजा देखेमनी ढाल, कां तें कही ए पांचमी ॥ सु० ॥ १७ ॥
॥दोहा॥ ॥ नयणे आंसुं नाखतो, पूजे सुतनें नूप ॥लेखन निपट कृतांतनो, ए तुज कवण सरूप ॥ १॥ लोन सार टांग्यो वझे, तुं पण तिम तस कूल ॥ देखीने तु ज पुर्दशा, गयो सुछि ढुं नूल ॥२॥धिग मुज बल जीवित कला, प्रजुता थई अकाज ॥ जेह बते तें अ नुत्नवी, दोहिलिम फुःख समाज ॥३॥ईम कही तेड्यो वर्ककी, बेदावी वम माल ॥ यतने सुतने जीवतो,
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(१५७) काढे नृप करुणाल ॥ ४ ॥ वचन हीण पीमित तनु, वींजे शीतल वाय ॥ चेत वली बेगे हजे, बोलाव्यो तव माय ॥५॥
॥ ढाल नही ॥ मारगमामां जोजी,
आवे प्यारो कान ।। ए देशी॥ माता सुतने नांखेजी ॥ नंदनजी गुणवंत ॥कहो मननीअनिलाजी।नं॥किहां विचस्यो श्रम पाखें जी॥नं० ॥ बांध्यो किण वमसाखेंजी ॥ नं० ॥ कहे सुख दुःख तें किहां किहां लाधुं, करतेहार विशुरु॥ ॥माण॥ क० ॥ कि० बां० ॥१॥ निंददशा नि रधारीजी ॥ नं ॥ निरखे नयण ऊघामीजी ॥०॥ बेठी आगल मामीजी ॥ नं० ॥ठे मलया लामीजी ॥ ॥ निजव्यतिकर ते कहेवा लागो, सुस्थ थई नृपनंद ॥ निं० ॥२॥आव्यो कर आवासेंजीन॥ गोंख थई मुज पासेंजी ॥ नं ॥ हुँ बेगे तस वांसें जी ॥ नं०॥ उड्यो ते श्राकाशेंजी।नं०॥ईम इत्या दिक कदली वन आव्या, तिहां सुधी कही वात ॥ श्रा० ॥३॥रोती कोश्क नारीजी ॥ नं०॥ निसुणी में वनचारीजी॥५०॥ कदलीवन बेसारीजी।नं० ॥ तुम वहुअर निरधारीजी ॥ नं0 || आक्रंदने अनु
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(१५ ) सारे तिहाथी, चाख्यो हुं वन माहे । रो० ॥४॥॥श्रा गल जातें दीगेजी॥ नं० ॥ करी पावक अंगीठोजी ॥नं०॥ सोवन पुरिसोईकोजी॥ नं०॥ साधे एक नर बेगेजी॥ नं ॥ ते कहे मुजने साहमो श्रावी, श्रा वोजी वमजाग ॥ आ ॥५॥ मंत्र इहां आराधुंजी ॥ नं० ॥ सोवन पुरिसो साधुंजी ॥ नं ॥ सहायक नवि लाधुंजी ॥ नं ॥ तेहथी काचूं बाधुंजी॥०॥ उत्तर साधक तुंमाहरे, जिम होये कुशलें सिक॥मं. ॥६॥ मन उपगार जरीनेजी॥०॥ न शक्यो बोली फरीनेजी।नं०॥ वचन प्रमाण करीनेजी॥नं॥हाथें खड्ग धरीनेजी ॥०॥उपसाधक थई बेठगे पासे, कर तो कोमी यतन्न ॥ म० ॥ ॥ कहे योगी अवधारी जी॥नं०॥ जिहां रोवे हे नारीजी ॥ नं०॥ तिहांडे वमतरु नारीजी ॥ नं०॥ करो कुमर हुशीयारी जी ॥ नं० ॥ चोर सुलक्षण शाखें बांध्यो, ते आणो जई वेग ॥क०॥॥वचन सुणी हुं चाल्योजी॥ नं० ॥ उग्र ख मग कर जाख्योजी ॥ नं०॥ उनें रही जव चाख्यो जी॥ नं० ॥ बांध्यो चोर निहाल्योजी॥ नं० ॥ चोर तलें विरले स्वर रोती, दीठी तिहां एक नारि॥वणाणा में प्रयुं कां रोवेजी ॥ नं०॥ कां फुःख देह विगोवे
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( १६० )
जी ॥ नं० ॥ एकाकी किम होवेजी ॥ नं० ॥ एह सा दमुं शुं जोवेजी ॥ नं० ॥ घन जीषम वननें शमशानें, बेवी तुं कि काम ॥ ० ॥ १० ॥ तव ते वदन उघामी जी ॥ नं० ॥ जोती अवली आमीजी ॥ नं० ॥ मूकी लाज कमामीजी ॥ नं० ॥ बोली इंम पट कामीजी ॥ नं० ॥ शुं दुःख जाखुं हुं तुज आगें, जाग्य र हितमां ली ह ॥ ० ॥ ११ ॥ बांध्यो जे वम मालेंजी ॥ नं०॥ शैल व विचालेंजी ॥ नं० ॥ रहेतो कंदर नालेंजी ॥ नं० ॥ हरतो पुरधन आलेंजी ॥ नं० ॥ चोर पुरातन पाप दशाथी, ए आव्यो नृप हाथ || बां० ॥ १२॥ा लोन सार ईनामेंजी ॥ नं ० ॥ वी तक श्री जे यामेंजी ॥ नं० ॥ संध्यायें वि माजी ॥ नं० ॥ बांधी ही गमेंजी ॥ नं० ॥ मुज प्रीतम बे हुं धण पहनी, रोखुं हुं दुःख ते ॥ लो० ॥ १३ ॥ नेह नवल मुज खटकेजी ॥नं०॥ चिंता चित्तमां चटकेजी ॥ नं० ॥ विरह अगनि जिम जट केजी ॥ नं० ॥ प्राण कंठमां अटकेजी ॥ नं० ॥ आज प्रजातें कर मेलावो, हुई तो एह साथ ॥ ० ॥ ॥ १४॥ करवा चोरी निकस्योजी ॥ नं० ॥ गयो नेहनो तरश्योजी ॥ नं० ॥ मुज संगें नवि विलस्योजी ॥ नं०॥ earer मुज विकस्योजी ॥ नं० ॥ चंदन लिंपी
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( १६१)
आलिंगन दुगुं हुं, जो आपे तुज बुद्धि ॥ क० ॥१५॥ में निसुणी तसु वाणीजी॥ नं०॥मनमां करुणा श्रा एणीजी ॥ नं०॥ कयुं आवो गुण खाणीजी ॥ नं०॥मुज खांधे चढी प्राणीजी ॥नं० ॥ जिम जा णे तिम कर तुं एहनें, मेव्यो में ए योग॥में०॥१६॥ धरणीथीते कूदीजी ॥ नं० ॥ चरण देई मुक गू दीजी ॥ नं० । लेपे शबनी बंदीजी ॥नं०॥ आलिं गे दृग मूंदीजी।नं०॥ कंगलिंगन करतां मृतकें, ली धी नासा तोमि ॥ ध० ॥१७ ॥ घणुं हुती अनुरागी जी ॥ नं० ॥ पण नाकें कर दागीजी ॥०॥मरती पानी नागीजी ॥ नं ॥ गाढीरोवा लागीजी॥नं ॥ ॥ ताणे त्रुटी रह्यो शबमुखमां, नाक तणो अग्रताग ॥ घ० ॥ २७ ॥ जोते रामत खासीजी ॥ नं० ॥आ वी मुखें हांसीजी॥नं० ॥ तव नव कोप प्रकाशीजी ॥ नं० ॥ बोल्यो मृतक वकाशीजी ॥ नं०॥ कांह से तुं इणे वम मुज ज्यौं, बंधाश्श निशि काल ।।जोग ॥ १५ ॥ वचन सुणी हुं नमक्योजी ॥ नं० ॥ शोक महा नर खमक्योजी॥ नं०॥चिंताथी चित्त तमक्यो जी ॥ नं० ॥ हृदयथकी जय धमक्योजी ॥ नं० ॥ दै व प्रयोगें शबईम बोल्यो, हैहै करशुं केम॥ व०॥२०॥
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( १६२ ) नकटी करती तितरेंजी ॥ नं० ॥ मुज खांधाथी उत रेंजी ॥ नं० ॥ कहेवा लागी ईतरेंजी ॥ नं० ॥ किए न गरें तुं विचरेजी ॥ नं ० ॥ नाम थानादिक में ते श्रा गें, जांख्युं सघलुं साच ॥ न० ॥ २१ ॥ मुज ऊपर विश्वासीजी ॥ नं० || बोली ते उल्लासीजी ॥ नं० ॥ सुणो कुमर सुविलासीजी ॥ नं० ॥ भुज नासा रूजा सीजी ॥ नं० ॥ तव हुं पीउनुं द्रव्य गुफामां, देखा मीरा तुम आय ॥ मु० ॥ २२ ॥ ईम कही ते घर चालीजी ॥ नं० ॥ हुं चढी वम मालीजी ॥ नं० ॥ बोड्यो चोर संजालीजी ॥ नं० ॥ नाख्यो नीचो जा लीजी ॥ नं० ॥ उतरि जोजं तो तिए साखें, बांध्या तिमहीज दीव ॥ ३० ॥ २३ ॥ में जाएयो ततकाला जी || नं० ॥ साधक देवी चालाजी | नं० || बोमी मन ढकचालाजी ॥ नं० ॥ फिरि चढीयो वम माला जी ॥ नं० ॥ बंधन बोमी केश ग्रहीनें, ऊतरियो व ली देव ॥ ० ॥ २४ ॥ खंध चढावी लीधुंजी ॥ नं० ॥ अक्षत शब परसीधुंजी ॥ मं० ॥ जई योगी नें दी धुं जी ॥ नं० ॥ ईम पर कारज की धुंजी ॥ नं० ॥ श्रीजे में ढाल ए बी कांतें कही रस रेल ॥ खं० ॥ २५ ॥
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(१६३)
॥दोहा॥ ॥ चरित्र सुणी चित्तमांचक्या, नूपादिक जन जूर॥ अनुत जय आनंद फुःख, हास्य सोग आपूर ॥१॥ वली विगत महबल कहे, मृतक तेह नवरा ॥ चं दन रस चर्चित करी, थाप्युं मंगल ग॥॥ श्र निकुंम दीवा चिहुँ, राख्यो साधक पाल ॥ पद्मासन बेसी जप्यो, मंत्र तिणें ततकाल ॥३॥ मृतक तुरत नन उलले, पमे न पावक कुंम ॥ खिन्न थयो जप ध्यानथी, साधक चिंता मंग॥४॥ तेहवे शब गय णांगणे, उमयो करतो हास ॥ अवलंब्यो तिमहिज जई, वमशाखा अवकाश॥५॥ चूको कांएक ध्या नमां, तेणें न सीधो मंत्र ॥साधेशुं फिरि श्रावती, रा तें करीशुं तंत्र ॥ ६॥तुज बलें साधन तणी, थाशें वहेली सिफ॥रहो सुजग योगी कहे, उपगरवानी बुद्ध ॥ ७॥ वचन प्रमाणी हुं रह्यो, थई उपसाधक पास ॥योगी मरतो मुजनें, बोल्यो एम प्रकाश ॥७॥ ॥ ढाल सातमी॥ न्हानो नाहलो रे। ए देशी ॥
॥ उपसाधक जो तं थयो रे, तो सवि थाशे काम ॥ नंदन रायना रे ॥पण चोलो मुज चित्तमां रे, ए हवो एक इंण गम ॥ ॥ १॥ मुज़ संगें जो देख
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१६४ ) शे रे, तुजने नृप जण वृंद ॥ नं० ॥ तो जई कहे शे जोलव्यो रे, अवधूतें तुम नंद ॥ नं० ॥ २ ॥ प्रा पियाएं महारे रे, होशे अचिंत्युं श्राय ॥ नं० ॥ तेमाटे तुम फेरे, कहोतो रूप बनाय ॥ नं० ॥ ३॥ जाशो मां मुज पासथी रे, लखमीपुंज ने || नं० ॥ धारी मुखमां ववी रे, कथन प्रधुं में तेथ ॥ नं० ॥ ४ ॥ ताम मूली घसी योगी यें रे, मंत्री तिल क मुज कीध ॥ नं० ॥ तास प्रजावें हुं थयो रे, पन्नग विष यावीध ॥ नं० ॥ ५ ॥ मूकी मुज गिरिकंदरें रे, आप गयो कोइ काम ॥ नं० ॥ पवन जखी सुखमां रहुं रे, बानो बिलने गम ॥ नं० ॥ ६ ॥ गिरिथल जोतां गारुमी रे, आव्या मुजनें देर ॥ नं० ॥ मंत्र प्रयोगें व श करी रे, घटमां घाल्यो घेर ॥ नं० ॥ ७ ॥ यक्ष भु वनमां मूकीयो रे, कुंज करावी धीज ॥ नं० ॥ तुम यादेश जे नरें रे, काढ्यो हुं विए खीज | नं० ॥ || तेहने तुरतज लखी रे, काढी मुखयो हार ॥ नं० ॥ कंठें धरयो तेही दुवो रे, ते नारी अवतार ॥ नं० || ॥ || || राधी गिरिकंदरें रे, मुक्यो पाठो नाग ॥ ॥ नं० ॥ इत्यादिक वीती कथा रे, थइ तुम प्रत्यक्ष मागं ॥ नं० ॥ १० ॥ तूप कहे ते किम हूर्ज रे, जो
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( १६५ )
तां नारी सांग ॥ नं० || महबल जांखे तातने रे, शेष कथा एकांग ॥ नं० ॥ ११ ॥ जातां नारी पाबलें रे, गु टिका तिलक रचेय ॥ नं० ॥ नारी नर रूपें करी रे, मुज वस्त्रादिक देय ॥ नं० ॥ १२ ॥ ते फणिधर हुं क र ग्रह्यो रे, धीज समय ईणे बाल || नं० ॥ जाल ति लक चाटयुं चढी रे, में एहनुं ततकाल ॥ नं० ॥ १३ ॥ नर फिटी नारी हुइ रे, ए परमारथ वात | नं० ॥ नू प प्रमुख सहु रीजीया रे, सुणि अद्भुत अवदात ॥ ॥ नं० ॥ १४ ॥ नूप कहे में यचयुं रे, अणघटतुं प्र तिकूल ॥ नं० लोक कहे न मिटे लिख्युं रे, जे सर जित विधि मूल | नं० ॥ १५ ॥ राणी मलयानें कहे रे, बेसारी उत्संग ॥ नं० ॥ कां न प्रकाश्यो आतमा रे, वत्से तें दुःख संग ॥ नं ॥ १६ ॥ अथवा तें जा एयुं कस्युं रे, वात न खाती पाम ॥ नं० ॥ विष अवस र जे जांखियें रे, न चढे तेह सिराम ॥ नं० ॥ १७ ॥ दुःखमां मौन धरी रही रे, नांखि न एका टोक ॥ नं० ॥ ए विरतंत कही जतो रे, मानत नहीं को लोक || ॥ नं० ॥ १८ ॥ रुरुं दैवें करयुं हशे रे, पाम्यां दुःखनो पार ॥ नं० यम गुनहो खमजो हवे रे, सतियां कु ल शणगार ॥ जं० ॥ १५ ॥ म कहेती नृपनी प्रिया
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( १६६ )
रे, जे जीवितनी यथ ॥ नं० ॥ आभूषण मणि ते इसी रे, पे मलया हाथ ॥ नं० ॥ २० ॥ त्रीजे खं में सातमी रे, ए थ अनुपम ढाल | नं० ॥ कांति कहे सुतां सदारे, लदियें मंगल माल || नं० || २१ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ तात कदे विषधर पणे, रहेतां शैल लंब ॥ का रण शुं शुं अनुजव्यां, कहीयें ते अविलंब ॥ १ ॥ पव न जखत गिरिकंदरें, निर्गत हु दिनेश ॥ रजनी स मय साधक धसी, श्राव्यो मुज उद्देश ॥ २ ॥ दिनक र तरुना दुग्धथी, घस्युं जाल मुज ते ॥ देखी मूल सरूप दृग, बोलाव्यो नेहेण ॥ ३ ॥ श्रवो कुमर क ला निला, करीयें मंत्र विधान ॥ ईम कही पावक कुं म तट, लाव्यो दे सनमान ॥ ४ ॥ साधक वचनें ब थकी, घाणी दीजं शब फेरि ॥ बेठो जपवा तेह तव, हुं पण बेठो घेरि ॥ ५ ॥
· ॥ ढाल आमी ॥ हरिहां सुज्ञानी साहेब मेरा बे ॥ ए देशी ॥
॥ जिम जिम जाप जपे ते योगी, याहू ति ये अवसान ॥ तिम तिम शब ऊपकी पके, तरुफमतुं रोष निदान ॥ ह गीली योगिणी आईबे, अरिहां रीस जराई बे ॥ १ ॥
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(१६७) ॥१०॥ श्राधी रातिमा गगन विचालें, वागां ममरू माक ॥ वीर बावन आगे चलें, पामंता पोढी हाक ॥ ह.॥२॥ अज्रथकी उद्जट उतरती, शक्ति क हे रे धीच॥ मृतक अशुभ आणी किस्युं हुं, तेमी कां पीठ ॥ ह० ॥ ३ ॥श्म कहेती योगीने साही, नाखे श्रगनिनें कुंम ॥ नागपाशने बंधनें मुज, बेकर बांध्या प्रचंम् ॥ १०॥४॥ सुंदर रूप कुमर तेमाटें, मारी से कुण पाप ॥ श्म कहेती नल मारगें, बिहुँ पग ग्रही ऊमी श्राप ॥ ह० ॥५॥बे शाखा विच हुं प गनीमी, ऊंचा पग शिर हेठ॥ टांगीमुजने ए वमें, उमी गई खेती कुलेठ ॥ ६ ॥६॥ शब ते तिमहिज उमी तिहाथी, क्ल[ गुमाले श्राय ॥ पुरखोके जोडे वली, तिहां पाठी कोट फिराय ॥ १०॥ ॥ लोक कहे दीसे ले बांधुतो, किम अशुचिए कीध ॥ नृप कहे मुखमा एहनें, नासा पल होशे कुशुद्ध ॥ ६॥७॥ लोक कहे म कहिजतां राजा, जोवरावे जण पास ॥ दीनी वलगी दांतमा, नासा तिण थायो विलास ॥हा॥ ए॥ ए में साधकनें न जणाव्युं, कुमर करे । म खेद ॥ चूप कहे नवितव्यनां, मेटीजें केम उमेद ॥ इ० ॥१०॥ जूप कहे केम करथी बूट्या, बांध्या वि
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( १६८ )
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पधर पाश ॥ सुत कहे तेहनुं पुंबकुं, मुज मुखमां व्युं कास ॥ ६० ॥ ११ ॥ क्रोध जरी चान्युं में तेहथी, पीड्यो पन्नग जोर ॥ नर्म घई दे तो पड्यो, न चढ्युं विष मंत्री घोर || इ० ॥ १२ ॥ दोय पहोर रयणीना काढ्या, दुःखमां में विललात ॥ संकट सहु टलियां हवे, मलतां क्रम योगें तात ॥ ० ॥ १३ ॥ वचन कथं सुरशक्ति मृतकें, ते मलियं प्रत्यक्ष ॥ मुज विरतंत कह्यो सवे, तु म आगल पूरी पक्ष ॥ ० १४ ॥ लोक प्रशंसें शिर धुतां, हो हो अतुल बलवीर ॥ थोमा काल मांहें घणी, जल सांसयो पीमशरीर ॥ इ० ॥ १५ ॥ नावे वचन पथ मन नवि मावे, कक्षेतां पण जे वात ॥ ते संकट जलराशिनो, तारु एक तुंहीज तात ॥ ० ॥ १६ ॥ अ हो साहस निर्भय पण माया, बुद्धि महोद्यम खास ॥ उपगारक करुणापणुं, दृढता मति पुण्य प्रकाश ॥ ६० ॥ १७ ॥ नारि लदी लक्षण लाखीणी, मलियो मनें वेग || लोक छाक करे तिहां, इंम वर्णन गुणमति नेग ॥ ६० ॥ १८ ॥ भूप कहे नंदन मंगल ते, देखामो बेक्यांहिं ॥ कुमर नृपति जण विंटी, देखामे जईने त्यांहिं ॥ ६० ॥ १७ ॥ दरखें लोक मल्या उत्कर्षे, नि रखे पावक कुंम ॥ सोवन पुरिसो तिहां तिणें, दीगे
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(१६ए) जलहलतो दंग ॥ ह ॥२०॥ बेयां पण निशिमां हे वाधे, शीश विना जस अंग ॥ पुरसो तेह कढावीने, नंमार धस्यो नृप चंग॥ ह॥१॥सकुटुंबो निज मंदिर थाव्यो, रंग जस्यो नर नेत ॥ दस दिन रंग व धामणां, वरताव्यां मंगल देत ॥ ह॥२॥ त्रीजा खंगनी आग्मी ढालें, नांग्या विरह वियोग॥ कांति विजय कहे पुण्यथी,लहियें मनवंबित नोग॥४०॥३॥
॥ दोहा ॥ ॥हवे नगर वन शोधतो, मलयकेतुमतिवंत ॥पुहवी गण नरिंदने, वेगें श्रावी मिलंत ॥ १॥ वात प्रका शी विगतथी, वर कन्यानी एण॥जगिनीपति जगिनी बिहुँ, मेलवियां नृपतेण॥२॥कुशल प्रश्न पूर्वक सहु, हरखित बेगं गण ॥ वरकन्यायें आपएं, दाख्युं चरि त्र वखाण ॥३॥ मलयकेतु शिर धूणतो, पामे मन अचरिङ ॥ नवली वा केहy, चित्त न चित्र जरिज ॥४॥गोष्टि महारस सागरें, करता हर्षण केलि ॥ जुख तृषा निखा प्रमुख, न गिणे रसने खेलि ॥५॥ मऊण जोजन वस्त्रथी, सत्कास्यो नृपनंद ॥ बांध्यो बेहेंनी नेहनो, रहे तिहां स्वछंद ॥ ६ ॥ केताश्क दि
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( 290 )
न त्यां रही, मागी नृप आदेश ॥ जननी जनक वधाव वा, करे प्रयाएं देश ॥ ७ ॥
॥ ढाल नवमी ॥ घरे यावोजी आंबो मोरी ॥ ए देश ॥ ॥ मलय कुमरने नृप कहे, संप्रेमण मन न वदंत ॥ गुणवंताजी कुमर कला निला ॥ तोपण कद्देवा व धामणी, प धारो पुरि मतिवंत ॥ गु० ॥ १ ॥ प्रीति लता सिंची रसे, पहेलांथी वधारी जेह ॥ सफल हूई तुम यावतां, पोता वट राखी बेद ॥ गु० ॥ २ ॥ वीरधवलनें मुज वीनति, कहेजो करी कोमि प्रणाम ॥ मुज ऊपर हित खादरी, गणजो लघु दास समान ॥ ० ॥ ३ ॥ महबलनें मलया प्रत्यें, पोहोतो था पू
काज || देखी दंपती ऊनियां, बोलावे वचनें स जाज ॥ गु० ॥ ४ ॥ महबल कहे मुज ससुरनें, कहे जो जई को मि सलाम ॥ चोर थयो हुं रावतो, खम जो ते गुनह प्रकाम ॥ गु० ॥ ५ ॥ विए शीखें तुम नंदनी, लेई श्राव्यो परनो अधीन ॥ उपजाव्युं दुःख याकरूं, ते करज्यो मांई वात विलीन ॥ गु० ॥ ६ ॥ मल य जणी मलया कहे, बांधव मुज वात नितार | वी नवशो माय तातनें, मुज श्रागमनादि प्रकार || गु० ॥ ॥ ७ ॥ चिंता न करशो चित्तमां, मुज सुख शाता बे
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(१७१) श्रांहिं ॥ चतुर तुमें पण चालतां, सावधान रहेजो रा हिं ॥ गु०॥ ॥ वचन सहुनां चित्त धरी, गलगल तो थाय विदाय ॥ उपपुर खगें आमंबरें, महिपति पोहोचावा जाय ॥गुण॥॥केटले दिन चंडावती, पो होंच्यो कहे सकल वृत्तांत ॥ खबर सही माता पिता, पामे तिहां हर्ष अनंत ॥ मु०॥१०॥ महबल मलया संगमें, विलसंते निवहे काल ॥ एक समय बेग वि न्हे, उंचा मंदिरने जाल ॥ गु०॥ ११ ॥ नाक विहु णी नायिका, आवी एक मंदिर बार ॥महबल देखी ने कहे, एक पश्यतहरनी नारि ॥ गु०॥१२॥ थिर मीटें तव उलखी, प्रमदायें ते उपमात ॥ प्रीतम क नकवती हां, दीसे डे श्रावी कुजात ॥ गु०॥ १३॥ गुह्य न कहेशे लाजती, जो उलखशे मुज देख ॥ ते हथी हुं फ्मदे रहुं, पूडो अवदात विशेष ॥ गु०॥१४॥ श्म कहेती नुवणंतरें, बेगी जई सुणवा विगत्त ॥ क नकवती श्रावी करे, नृप नंदनने प्रणीपत्त ॥ गुण॥१५॥ श्रादर ये पूज्या थकी, कदेशे श्हांश्राप चरित्त॥ नवमी त्रीजा खंगनी, कांते कही ढाल पवित्त ॥ गुण॥१६॥
॥दोहा॥ ॥ पक्षणे सा चंद्रावती, नगरीपति उद्दाम॥वीरध
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( १७२ )
वल तस हुं प्रिया, कनकावती इति नाम ॥ १ ॥ मोप रि कोप्यो महीपति, एक दिवस विए काज ॥ तव हुं रूठी नीकली, मूकी सकल समाज ॥ २ ॥ मल्यो वि देशी मुतने, तरुणो एक बयल ॥ तस संकेत सुरि गृहें, मली राति हुं हल्ल ॥ ३ ॥ देखामी जय चोरनो, वस्त्रादिक मुजलीध ॥ मुत्तावलीनें कंचुकी, याप हथु तिणें कीध ॥ ४ ॥ शेष जस सायें मुने, घाली पेटी मांहिं || कपट करी ते घूरतें, दीर्ज यंत्र जटकांहिं ॥
५ ॥ संकेती बीजो तिहां, आव्यो धूरत दोमी ॥ बिहुं उपामी मंजूषमी, नाखी नदीयें रोमी ॥ ६ ॥ अ वलंबन विण पवनथी, खाती जोल अबेद ॥ गुहिर नदी गोला जलें, तरी तरी जेम ते ॥ ७ ॥ कुमर क हे कि कारणें, नाखी तुजनें नीर ॥ श्रथवा तेहने उलखे, जो उजा होय तीर ॥ ८ ॥ तेह कड़े कारण किरयुं, हता जाएया धूत ॥ निक्कारण वैरी इस्या, गया करी करतूत ॥ ८ ॥ कुमर कहे हो घूरतें, की धो अनुचित खेल | शीश धूतो आगलें, पूढे कथा उकेल ॥ १० ॥ ॥ ढाल दशमी ॥ बेरुले जार घणो बे राज, वातां केम करो बो ॥ ए देशी ॥ ॥ जल पूरें ते तरती पेटी, प्रात समय इहां आवी ॥
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( १७३) यक्ष धनंजय नवन समी, गोला कंठे गवी ॥१॥ साची वात कहांडां राज, जे वीती ने अममां॥ तिलन र जूठ कहुं नहीं मोहन, मलताना संगममां ॥ सा ची०॥ए आंकणी ॥ लोजसार चोरेंजलमांथी, काढी जार गरिही ॥ तालुं नांजी जोतां मांहे, वस्त्र सहित हुँ दीठी ॥ सा०॥॥शैल अलंब विषम कंदरमां, लेई गयो मुज बने ॥ अव्य सहित मंदिर पोतानु, दे खाम्युं बहुमानें ॥ सा०॥३॥ नेहरसें मीजी मुज जीजी, तस संगे मन मोदें। पोहोर दोय रही तिहां थी इंणे पुर, श्राव्यो काज विनोदें। सा०॥४॥पा पदिशाथी नूसाही, सांजे वमले बांध्यो ॥ पर्वत शि खर रही में जोतां, मोहन विलंबन सांध्यो ॥ सा॥ ॥ ५॥ राति समय गई पासें रमती, तिहां मली हुँ तमने ॥ागल वात सकल जाणो बो. ए वीत्यं श्रमने ॥ सा ॥६॥ श्रावो अव्य घणुं देखाउँ, श्म सुणी महाबल ऊठे ॥ कयु तातने तात कुमरशु, चा स्यो त्यां तस पूंजें ॥ सा०॥७॥ वस्तु हती जे जे हनी तेहनें, दीधी सर्व संजाली ॥ शेष अव्य ले नर पति नगरें, आव्यो पाडो चाली ॥ सा० ॥ ॥धन आपी सत्कारी कनका, आवे कुमर निवासें ॥ लखमी
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( १७४) पुंज सहित मलया त्यां, देखी बेटी पासें ॥सा॥ए॥ चमकी चित्त विचारे ए किम, हांथावी जीवंती ॥ कू पथकी निकशी किम परणी, ए मुज वैरणी हुँती ॥ ॥ सा० ॥ १० ॥ फरके अधर शके नहिं पूजी, रही क्दन निरखंती ॥ रखें चरित्र मुज चावां पामे, मन मां श्म बीहंती ॥ सा ॥ ११॥ लखमीपुंज मनो हर महारो, लीधो तो जिण धूतें॥ए पापणीने आ णी दीधो, दीसे तेण कुप्तें ॥ सा ॥ १५ ॥ जाणुं न ही के लीधो श्हुंणे, खेमी नवलो फंदो॥हवणां तो ए हिज मुज वैरी, कीधोरुम दिल मंदो॥ सा ॥ १३॥ कहे मलयामाता डोरूमां, एकाकी किमाव्यां ॥कुश ल न दीसे नाक नणी कां, के किणे कर्मे सताव्यां ॥ ॥ सा ॥ १४ ॥ कुमर नणे पदमिणी मत पूडगे, क हेशुं हुं तुम आगे॥दिन न खमे कारज ने बहुला, क हेतां वेला लागे ॥सा ॥१५॥ शीख करी नकटीने थाप्यो, शूने मंदिर पासें ॥ मुख मीठी हियमामांधी वी, वासी तिण आवासें ॥ सा ॥१६॥प्रति दिव सें मलया उपकंठें, आवे कनका रंगें ॥ थई विशवा सिणी विखवासिणी ते, नव नव कथा प्रसंगें ॥सा॥ ॥१७॥ बिज निहाले मलया केरां, शोक समी निश
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(१७५) दीस ॥ सुख जोगवतां मलया एहवे, धरे गर्न सुजगी श॥ सा ॥ २७ ॥ ऊपजतां मोहोला पीउ हेजें, पूरे नव नव नातें ॥ प्रसव समय बासन्न हू तव, दी पेराणी गातें॥सा॥१५॥त्रीजे खंमें चावी दशमी, ढाल महारस पूरी ॥ जांखी कांतिविजय बुध नेहें, नि रुपम राग सनूरी ॥ सा ॥ २०॥ इति ॥
॥दोहा॥ - इंण अवसर महबल प्रत्ये, दीये तात आदेश ॥ वत्स विकट नट साजसुं, करो चढाई वेस॥१॥नामें क्रुर सज्यो गढ़ें, पसीनायक क्रूर ॥ करे उपडव देश मां, ते निळटो पूर ॥२॥सजा समदें दक्षते, तात वचन परमाण ॥ मलयाने पूबण जणी, गयो जुवन गुणखाण ॥ ३॥ चिंताकुल प्रमदा कहे, हुं श्रावीश पीयु साथ ॥र रहीने किम चढुं, विषमविरहने हाथ ॥४॥ कुमर कहे अवसर नहिं, रहो करी दृढ चि त ॥ सानचित्त गुटिका कन्हे, राखो गुण संजुत्त ॥५॥ जाणे तुं गुण एहना, करजे खरां यतन्न॥ ते श्रापी पनणे वली, महबल विरह विखिन्न ॥६॥पदमिणी तो पांखे हिये, आवे विरह नरेय ॥ गल्या दिवसमा ते जणी, आदीश कार्य करेय ॥ ७॥ तात वचन जो
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( १७६ )
गणुं, तो लागे कुललाज ॥ दी अनुज्ञा सुंदरी, जिम साधुं जइ काज ॥ ८ ॥ नयर्णे यांसू सींचती, ना खे नीसास || प्रीतम वहेला यावजो, बोली ए मुख म उदास ॥ ॥ लेइ अनुमति ऊणे मनें, बांधी तरकस वेग || पाठी मींटें निरखतो, चल्यो जवनथी वेग ॥ १० ॥ || ढाल अगी आरमी | अब घर आवो रंगसार ढोलणा ॥ ए देशी ॥
॥ कनकवती मुखें मीठीरे धीठी, कपट मद्दा विषवे लि ॥ श्रहनिशि जोवे रे बल मलया तपुं ॥ अनुया
बेसे रमे रे घीठी, वात करे मन मेल ॥ यद् नि० ॥ १ ॥ एकलमी जवनें रही रे धीठी, मुज जायें ए नारि ॥ ० ॥ चिंती इम बल केलवी रे बीवी, यावी सदन मजारि ॥ ० ॥ २ ॥ बेठी मुख करमां
वी रे गोरी, करती मन उद्वेग ॥ प्रमदा निहाली रे करते लोयणां ॥ बेसे पासें घ्यावी नें रे धीवी, पूढे दुःख धरी नेग || प्रम० ॥ ३ || कथकथा कहे मेलवीरे धीवी, रीजावे रति आणि ॥ प्रम० ॥ दिवस गमावे रंगमां रे गोरी, कनकाशुं रसमाणि ॥ नवनव जांतें रे करती खेलणां ॥ ४ ॥ कहे मलया माता इहां रे जोली, रातें करो विश्राम ॥ जिम मुज नावे रे मनमां चो
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( १७७) लणां ॥पयमा साकर नेलवीरे धीठी, चिंतवती म न ताम ॥ वचन प्रमाणी रे करे निशि गालणां ॥ ५॥ दिन जिम रजनी नीर्गमे रे गोरी, ऊग्यो दिनकर प्रा त॥तव ईम बोली रे करती चालणां ॥ तुज पूंजें एक राक्षसी रे गोरी, लागी डे कम जात ॥नव नव नांतें रे करती खेलणां ॥६॥ में दीठी नर रातमा रेगोरी, काढी रे खेधि । नव० ॥जो तुं मुजनें थादिशे रे गोरी, तो ना एहने वेधि | जिम तुज नावे रे मनमां चोलणां ॥७॥ हुं पण ते सरखी थई रे गोरी, टाटुं एहनुं गम ॥ जिम तुज नावे॥ मलया मन नोलापणे रे गोरी, माने साधु ताम ॥ तव श्म बोले रेकरती चोलणां ॥ ॥ जीहा दंत जलाववी रे गोरी, जे शीखवq तुऊ ॥ तव ॥ मया करी मुज ऊपरें रे जोली, करो नुचित जे गुज ॥ जिम मुज नावे रे मनमां चोलणां ॥ ए॥ नगरीमांतेहवे समे रे धीठी,देखी मरगी ईति॥नवण॥ नूप कन्हे कनका गई रे धीठी, तेहने दे प्रतीति ॥ रहस्य खहीने रे कहे श्म बोलणां॥ १० ॥ तुम था गें एफ वारता रे सामी, कहेवी ने धरो कान॥ रहम् ॥ तुज हितनी तेतो कहुं रे सामी, जो ये जीवित दान
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(१७७) ॥ रह० ॥ ११॥अजय हजो कहे राजीयो रे जोली, कहेतां न कर संकोच ॥ जिम मुजं नावे रे मनमां चो लणां ॥जगमांहे तेहिज वालहा रे जोली, देखामे जो चोच ॥ जिम० ॥ १२ ॥ तेह कहे ए राक्षसी रे सामी, तुम वढूअर दीसंत ॥ नव ॥ मुज वचनें नवि वीससो रे सामी, तो देखाउँ तंत ॥ रह० ॥ ॥ १३ ॥ रयणीमां रही वेगला रे सामी, जो जो श्रा ज चरित्र ॥ नव० ॥ रातें थई ए राक्षसी रे सामी, साधे राक्षस मंत्र॥ नव ॥ १४ ॥ अंगणमां नाचे इसे रेसामी, रमे नमे वलगंत ॥ नव० ॥ दिसिदि सि नयणां फेरवे रेसामी,फेंकारी ज्यु रटंत॥नव०॥ ॥ १५ ॥ फेंकारीथी उबले रे सामी, पुरमा मरगीक ष्ट ॥ ग्रहशो जो जाई निशे रे सामी, करशे कांई अ निष्ट ॥ नव० ॥ १६ ॥प्रातसमय सुलटो कन्हें रे सा मी, करजो एहनें बंध ॥ जिम तुऊ नावे रे मनमा चोलणां ॥पहेला पण नृपनें हतो रे सामी, पूडवो कष्ट निबंध ॥रहण ॥ १७ ॥ एहवामां एहथी सुण्युं रे सामी, कारण ए असराल॥नव० ॥तेहथी मन मेढुं थयुं रे सामी, चित्त चक्यो नूपाल॥नृपति विचारे रे करतो चोलापां ॥ १७ ॥ निर्मल मुज कुल शोकमां रे.
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(१७) सामी, थाशे हे सकलंक ॥ नृपतिः ॥ लोक कलंक न लागशो रे नोली, लागजो विषहर मंक ॥ नृप० ॥ ॥रए ॥ रातें सर्व जणायशे रे जोली, बाहिर न नां खे वात ॥ तब म बोली रे करती चालणां ॥ एब ऊघाडं पारकी रे सामी, एहवी नहीं मुज धात ॥ ॥ रह० ॥ २० ॥ सतकारी नू तिका रे धीती, पोहोती नुवन विचाल ॥ अहो निशि जोती रे ॥त्री जे खंमें ग्यारमी रे मीठी, कांतें कही ए ढाल । नय नव जांतें रे करती खेलणा ॥ २१॥ इति ॥ ..
॥ दोहा ॥ ॥ राक्षसनी विनता तणो, रजनीमां सजी साज ॥ आवी मलयानें कहे, कनका कपट जिहाज ॥१॥ पुत्री तुं घरमां रहे, हुँतो बाहिर जाय ॥ हणी निशा चर नारिने, श्रावीश वहेली धाय ॥२॥शिता देश बाहिर गई, कूम चरितनी कूप ॥ वस्त्र उतारें अंगी । करवा रूप विरूप॥३॥विविध रंग वरण करी रंगे आप शरीर ॥ अहे उमामी वदनमां, बलबलजी के पीर॥४॥रुममाल कंवें धरे, कर। सादे करवाल ॥ प्रत्यक्ष रूपें राक्षसी, थई खेल्ने रोशाम ॥५॥ एहवे
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( १८० ) बाने रातिमां, श्राव्यो जोवा भूप ॥ अपर समीप गृ हें चढ्यो, निरखे पुष्ट सरूप ॥ ६ ॥
॥ ढाल बारमी ॥ होजी लुंबे कुंबे वर सालो मेह, लशकर आयो दरिया पाररो हो लाल ॥ ए देशी ॥ ॥ होजी का मिणि करती नाच, देखे नृप बाने रही होलाल ॥ होजी दीसे बे ते साच, जे मुजनें कनका
कही होलाल ॥ १ ॥ होजी नृप चिंते चित्त एम, कुलने पुर्यश ए किस्युं होलाल ॥ होजी एहथी नहीं जण खेम, मुजने पण विरुवं किश्युं होलाल ॥ २ ॥ होजी करवी न प कचाट, पहेली जो समजावी यें होला || दोजी ते जणी वनमांहिं, एहने दवणां हणावी यें होलाल ॥ ३ ॥ होजी ईम कहेतो नरनाथ, कोपानलशुं परजल्यो होलाल ॥ दोजी तेमी सेवक हम एप्स पणें जणे जांजल्यो होलाल ॥ ४ ॥ होजी मुझे सुत्तरमणी एह, पापिणी मलया सुंदरी होला स ॥ हाजी रथ चाढी वन बेह, गुपत पणे हणजो परी दोसाल ॥ ५ ॥ होजी करतां रातें काम, लोक न जाये बातमी दोलाल ॥ होजी ईम सुणी सुजट उ द्दाम, जव्या जीमी गातमी होलाल ॥ ६ ॥ होजी कर
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( १७१) लीधे करवाल, आवत सुजट निहालीने होलाल ॥ होजी जिहां डे मलया बाल, कनका त्यां गई चाली ने होलाल ॥ ७॥ होजी थरथरती विण सूज, जल फलती बोले श्श्युं होलाल ॥ होजी नृप नट हणवा मुज, थावे जे करकिश्युं होलाल ॥७॥ होजी तुज पासें हुंथाज, नृप आदेश विना रही होलाल॥ होजी ते माटे महाराज, मुज ऊपर रूठा सही होलाल ॥ए॥ होजी क्याहिक मुजने बिपाम, जणनी मीट न ज्यां प मे होलाल ॥ होजी मन माने तिहां गाम, हाथ रखे कोश्नो अमे होलाल ॥ १७ ॥ होजी मलयाने निर्देश, पेठी तेह मंजूषमा दोलाल ॥ होजी रोती नागे वेश, बेसे मांहे एकेंगमां होलाल ॥ ११॥ होजी तुरतज तालुं दीध, अन्नय करी राखी तिका होलाल ॥ होजी श्राव्या सुजट प्रसिक, करता रगत कनीनिका होलाल ॥१५॥ होजी दीठी मलया तेण, बेठी रूप स्वनाव ने होलाल ॥ होजी ते कहे मरथी एण, बदल्यो सांग जटा किनें होलाल ॥१३॥ होजी फिटरे पापणी 3 5, जाणी तुं किम मारशे होलास ॥ होजी लागी लो कां पुंठ, केटली सृष्टि संहारशे होलाल ॥१४॥होजी श्म कहीने ग्रही बांहिं, काढी रथ चाढी तिसें होला
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( १७२)
ल ॥ होजी चाच्या अटवी राह, श्वापद जिहां वांका वसे होलाल ॥१५॥ होजी करता अनादर छ, दे खी मलया चिंतवे होलाल ॥ होजी दीसे कांक अ निह, इंण सूलें माहारे हवे होलाल ॥ १६ ॥ होजी हणवु के वनवास, सुसरें निश्चय आदिस्यो होलाल॥ होजी मुज अपराध प्रकाश, अणजाण्यो देख्यो किस्यो होलाल ॥ १७ ॥ होजी के मुज पूरव कर्म, उदित हु आं फल आपवा होलाल ॥ होजी नहींतो माग म म, बनी आवे किम एहवा होलाल ॥ १७ ॥ होजी कग्नि थरे जीव, खमजे कीधां आपणांहोलाल ॥ होजी दारुण कर्म अतीव, बूटे नहीं चाख्या विनां हो लाल ॥ १७ ॥ होजी पूरव श्लोक संनारि, नणती नियति निहालिने होलाल॥होजी मूकी वन संचार, आधु पाईं नालीने होलाल ॥ २०॥ होजी बानी ऊनम पाहाम, विषम थलीमांहे धरी होलाल ॥होजी प्रहसमे नीम निराम, आव्या जण नगरें फरी होलाल ॥१॥ होजी प्रणमी नृपना पाय, वात सयल तिहां कही होलाल ॥ होजी मलया मंदिर थाय, नूपति महीर करे वली होलाल ॥ २॥ होजी नाक रहित ते नारि, नृप जोवरावी मंदिरें होलाल॥ होजी दीठी
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( १७३) नहि किण गर, नूप नणे नाठी खरी होलाल ॥२३॥ होजी त्रीजे खंमें रसाल, ढाल कही ए बारमी होला ल ॥ होजी कांति विजय सुविलास, सुणजो श्रोता उजमी होलाल ॥२४॥
॥दोहा॥ कुमर हवे दिन केटले, जीती तेह किरात॥ता त चरण आवी नम्यो, प्रिया विरह अकुलात ॥ १॥ मलया नवने संचरे, त्यां नृप साही पाण॥वीतक च रित्र त्रिया तणा, कहे सकल सुविनाण ॥ २ ॥ कु मर निसासो नाखतो, बे कर घसतो आप ॥ गदगद कंठे कुंठ मन, करे एम उबाप ॥३॥
॥ढाल तेरमी ॥ नटीयाणीनी देशी॥ ॥ नूपतिजी कांई की, होःख दीधुं मलया बाल ने, हाहा नूलो कांहीं ॥ चित्तमां कां न विचास्यो हो नवि धास्यो अवसर आपशु, प्रकृति पलटी प्रांहीं ॥ ४० ॥१॥मुज आगम लगे नार। हो नाव धारी। कामिनी धारीने, कीधुं अनुचित कर्म ॥ नाला ज्युं चि त्त खटके हो अति जटके अग्निसमा थ, काम क स्यां विण मर्म ॥ ॥२॥ नि सा ते नारी हो बल नारी दाव रमी गई, जाणुं एहनां मूल ॥ जोव
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(१४) रावो किहां दीसे हो पूर्वी शें कारण मूलथी, एहनां एह कुसूल ॥ नूग॥३॥ कुमर तणे कटु वयणे हो नृप वयणे श्याम पणुं धरी, मंद वचन कहे एम ।। जोवरावी नवि लाधी हो गई आधी रातें ते किहां, कहो हवे कीजें केम ॥ नू० ॥ ४॥ कुमर सुणी नृ प वयणां हो जल नयणां पूरण नाखतो, इंम कहे हाहा नाथ ॥ धूतारी गई नासी हो विशवासी मुज प्रमदा प्रत्ये, साचुं सहि नरनाथ ॥ नू ॥५॥ धू तारीने वचणे हो कुल रयणे खंडन चाढी, गोत्र उ मूल्युं एण ॥ उलंना इंम देतो हो नृपनंदन पोहोतो मंदिरें, अति पीड्यो विरहेण ॥ नू॥ ६ ॥ वसन सुतनें पूंठे हो नृप उठी आवे झूमणो, उघाझे घर ता ल ॥ इम कहे सुत में दीठी हो तुजली दयिता रा दसी, रूपें करती चाल ॥ नू ॥ ७॥ दोष नहीं को माहरो हो अवधारोनंदनजी हां, हुई अपराधे दंग॥ वाहाली पण जे विणठी हो ते परी दीजें बेदीने, बांहमली करी खंग ॥ ४ ॥७॥ कुमलाणा कां म नमां हो मंदिरमा श्रावी आपणो, संजालो घर सा र ॥ अधमथकी जण हासो हो घर आथ विणासो जाणीये, उडा न सहे जार ॥ नू ॥ ए ॥ कुमर वि
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( १७५) मासे नूपति हो शुं कहे मलया राक्षसी, पीमे जणनें केम ॥ सुपरें तेह जणाशे हो जो थाशे दरिशण जीव तां, चिंते विरही एम ॥ नू ॥१०॥ पय पाणीनो वहेरो हो थाशे मत चहेरो राजिया, था कां अधी र । म कहि जोवा लागो हो जई वागो जिहां मं जूषनी, उघामे बल वीर ॥ ॥ ११॥ दीठी तिहां विण नासा हो उसासा लेती राक्षसी; रूपें कामिनी एक ।। शूकाणी पुःख नूखें हो तन खूखे दीन दया मणी, वस्त्र विहणी बेक ॥ ४० ॥॥ विस्मयं कारी नारी हो ते नारी चरित्र निहालीने, लोक रह्या थिरथंन ॥ कुमर पयंपे नृपनें हो जे दीन रीठी रा क्षसी, तेहिज एह सदंन ॥॥ १३ ॥ खांची बा हेर काढी हो तिहां तामी आमी मारथी, श्राप चरित कहे तेह ॥ नूपे कोपें नि बी हो जणह थीकारें हवी, काढी देशा बेह ॥ जू० ॥१४॥ शोकाकुल विरहाथी हो सुत हाथीनहिं पासी, बेगे मौन धरंत ॥ मरवा न अजिलाखें हो नवि चाखे अशन सुहामणां, है है मोह पुरंत ॥ जू० ॥ १५ ॥ राजा परिजन राणी हो पुःख आणी जूरे सामटा, सचिव घणा अकुलाय ॥ चिंता नागिणि नमीया हो पुरवासी पनीया संत्रमें,
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( १८६ )
जूकि जूकि जोलां खाय ॥ ० ॥ १६ ॥ त्रीजे खं में फावी हो रस जावी वग आवी जली, ताती तेर मी ढाल ॥ कांति कहे सांजलजो हो चित्त कलजो कविता चातुरी, श्रोता घई उजमाल ॥ जू० १७ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ ई अवसर अष्टांगवी, पुस्तक हस्त धरेय ॥ श्रव्यो एक निमित्ति, महबल पास धसेय ॥ १ ॥ स्वस्ति व चन मुख उच्चरें, जुज करी याघो सोय ॥ सचिवादि कहनें नमी, ये सत्कार सकोय || २ || नृप नि देशें आसने, बेगे नूपासन || पेखी पुरातन पारखुं, खोले शास्त्र तन्न ॥ ३ ॥ जक्ति युक्तिशुं मंत्रवी, पू बेक कर कोश ॥ उपकारी नैमित्तिया, जू एक
.
म जोश ॥ ४ ॥ कलंकित ई ईणी परें, कुमर वधू सुगुणाल ॥ श्रम करथी तिम ऊतरी, जिम ढा लें परनाल ॥ ५ ॥ ता दुःखें महीपति हूर्ज, मरणो न्मुख सकुटुंब ॥ अशन वसन रस परिहस्यां न सहे प्राण विलंब ॥ ६ ॥ तेह जणी कहो म तणे, जा ये जाग्य विशाल || मलया मलशे जीवती, पजलो तेहनी जाल ॥ ७ ॥ जोशी नें साहमे मुखें, बेसी विनय प्रकाश ॥ जूपति बोल्योतत कर्णे, वारुवचन विलास ॥ ८॥
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( १८७ )
॥ ढाल चौदमी ॥ जोशीयमा रे नगर सीरोही यो राय रे हो रसीया ॥ ए देशी ॥
॥ जोशीयमा रे, लगन निहाली जोय रे हो सुगुणा, कहेने गुणवंती मलशे क्यां वली हो सु० ॥ जो० ॥ क्षण au aटमासी होय रे हो सु० ॥ मलया दरिसपनो सुत कौतूहली हो सु० ॥ १ ॥ जो० ॥ कहत म लावे वार रे हो सु० ॥ सुत मत यावे दुःखमे व्याकुली हो सु० ॥ जो० ॥ आतुर न सहे धीर रे हो सु० ॥ जगमां जिम न खमे पाणी पातली हो सु० ॥ २ ॥ जो० ॥ चित्तमiहे निरधार रे हो सु० ॥ लखिने लघु दायें लगन लो वही हो सु० ॥ जो० मलशे मलया नारि रे हो सु० ॥ अबला जीवती वरषांतें सही हो सु० || ३ || जो० ॥ कुमर सुणे तस वाणी रे हो सु० ॥ मीठमी जीवामण सरस सुधा सभी हो सु० ॥ जो० ॥ अवलंबे निज प्राण रे हो सु० ॥ काने पीयंतो कांई न करे कमी हो सु० ॥ ४ ॥ जो० ॥ पूढे कुमर उदंत रे हो सु० ॥ कहोने जीवंती किहां वे गोरमी हो सु० ॥ ॥ जो० ॥ जोशी तव पनांत रे हो सु० ॥ सांजल सलू ा जे कहुं बातमी हो सु० ॥ ५ ॥ जो० ॥ जाणी न जाये क्याहिं रे हो सु०॥ निवसे वनमांहिं के पुरमा वली हो
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(१७) सु०॥जो॥ सुखिणी फुःखिणी प्रायें रे हो सु०॥वींटी परिवारके किंहां एकली हो सु०॥६॥ जो ॥ नरप ति तेड्या तेह रे हो ॥ सु॥ वनमां जाणी सुनटे मूकी सुंदरी हो ॥ सु० ॥ जो ॥ अनय बीमो सस नेह रे हो सु० ॥ आपीने पूढे मलया आशरी हो सु ॥ ७॥ जो ॥ कहो सेवक किणी रीत रे हो सु० ॥ माहरी आणाथी मलया क्यां ठवी हो सु॥ ॥ जो० ॥ ते कहे सा जय नीतरे हो सु० ॥रोतीने मू की विकटाटवी हो सु० ॥७॥ जो॥ निरखी एहवा चिन्ह रे हो सु०॥अम मन नास्युं एहनें राक्षसी हो सु०॥ जो ॥ नूपति मन निर्विन्न रे हो सु०॥कुणही व्यामोह्यो खेलें साहसी हो सु० ॥ ए॥ जो ॥ स्त्री हत्या महापाप रे हो सु० ॥ तिमही कुंण खेशे इत्या गाजनी हो सु० ॥ जो० ॥ नहीं हणीय शहां आप रे हो सु० ॥ करणी ए नहीं ले रूमा साननी हो सु०॥ ॥२०॥जो॥खांति गिरितटें ठेव रे हो सु०॥ पमती बाखमती जिम नावे वली होसु०॥जो॥ एकलमी स्वयमेव रे हो सु॥मरशे रमवमती रखम्तीश्राफली हो सु० ॥ ११ ॥ जो॥श्म मन धारी बास रे हो सु०॥ रोती वनमांहें मूकी जीवती हो सु०॥जो० ॥ श्रावी
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( ए) नांख्युं बाल रे हो सु०॥नयथी तुम आगे कही य बती बती हो सु०॥ १२ ॥ जो॥ नाठी मुजथी जे हरे हो सु० ॥सुहमे ते करुणा रूके संग्रही हो सु॥ ॥जोगविणठी मुज मति देह रे हो सु॥ त्राठी ते पेठी नम हीयमे वही हो सु० ॥ १३ ॥ जो० ॥ नृ पनिंदे श्म थाप रे हो सु० ॥ जणनें परशंसे पुरजन देखतां हो सु ॥ जो० ॥ परिघल चित्त समाप रे हो सु० ॥ उत्तम जोशीने प्रणमे पेखतां हो सु०॥ १४ ॥ ॥जो ॥ कुमर कहे तुज वयण रे हो सु०॥मलियुं ते साचुं अनुसार तकी हो सु०॥ जो ॥ शोधो बालार यण रे हो सुः ॥ एहेलें खोयुं ते निज हाथांथकी हो सु० ॥ १५ ॥ जो ॥त्रीजे खंमें ढाल रे हो सु०॥ सुपरें ए नांखी रूमी चौदमी होसु०॥ जो० ॥कांति वचन सुरसाव रे हो सु०॥ सुणताने लागें सरस सुधा समी हो सुः ॥ १६ ॥ इति
॥दोहा॥ ॥ कुमर जणे मलया तणा, जनक नणी अवदात ॥ क हेवा चर चंपावती, पूरिये प्रेषो तात॥१॥ वीरधवल पण आगमी, करशे पुत्री शोध ॥ तिहां कदापि जो पामीयें, तो मुज पुण्य प्रबोध ॥२॥ करी प्रमाण
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(१७) नूयें पुरुष, मूक्या चिहुंदिशि नूर ॥ निरखण लागा तेह पण, देश देशंतर दूर ॥३॥ समजावी निज तनु जनें, जूप जमाने जाम ॥ कंवें उतरतां कवल, पगपग व्ये विश्राम ॥ ४॥केते दिन निरखी धरा, धरापालनी पास ॥श्राव्या नर कर जोनीने, पजणे एम प्रकाश ॥५ ॥ढाल पंदरमीमदनेसर मुख बोल्यो त्रटकीए देशी॥
॥सुण महीपति शुकिन पानी, फरि डाव्या स वि वामी हे ॥ ससनेही रे गोरी, दीनी नहीं मलया किहां ॥ देश नगर गढ कुंगर मोह्या, जलथल वट अ वरोह्या हे ॥ ससलूणी रे गोरी, दीवी॥ १ ॥ पुर पाटण संबाहण पाटें, दुर्घट विषली काटें हे॥सण॥ फरिया उलट अटवी घाटें, मलया जोवा माटे हे ॥ सः॥ ॥ कुमर सुणी म चिंता जुत्तो, चिंते मन फुःख खुत्तो हे ॥ स ॥ पूर्व महापातक मुज विकस्यां, सुचरित संचय निकस्यां हे ॥स० ॥३॥ निर्गमशुं किम दिन छातिलंबा,, जोटयो फुःखनी कुंवा हे ॥ स०॥हले वियोग प्रियाशुं माहरे, वात नदीसे
आरे हे॥ सः॥४॥हैहै शून्य महावन मांहिं, दम खादर अवगाही हे ॥ स ॥ मुई हशे हळु आफा ली, दापिता मुज लुगुणाली हे ॥ सय ॥ ५॥ वनग
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हीर फिरती
( १९७१ ) थमती, किया कर चढशे रकती है ॥ ॥ स० ॥ के कोई निर्दय श्वापदसायें, कीधी हशे नि ज हायें दे || स० ॥ ६ ॥ मुज बिरहें जय जंगुर म हिला, सहेती संकट पुहिलां हे | स० ॥ यूथ टली वनहरणी सरखी, मरशे भूखी तरसी हे ॥ स० ॥ ॥ ७ ॥ भुज साधें यावंती प्यारी, पापीयके में वारी हे || स० ॥ सुखमांहेथी दुःखमांहे नाखी, दीन वद न हरिणाखी हे || स० || ८ || गोरी तो विरहो ज चाटें, करवत नें काटे हे ॥ स० ॥ मुज ही अमुं पत्र
॥ ॥
रथी काउं, ईणी वेला नवि फाऊं हे ॥ स० ॥ ॥ सुकु लिणी तुं चतुर चकोरी, थे द रिसण गुण गोरी हे ॥ स० ॥ देई विठोहोल जारी, न करो प्रीत ठगोरी हे॥सण ॥ १० ॥ संजारी इंस गुण संदोहो, विलवे कुमर स मोहो हे || स० ॥ णीयालां जालां ज्यौं खटके, हि यमे विरहो जटके हे ॥ स० ॥ ११ ॥ मात पीता स मजावे लेखें, सुतने वचन विशेष हे ॥ स० ॥ पण सुत रति पड्यो नवि समजे, विषम विरह्मां ालजें
॥ स ० ॥ १२ ॥ वचन निमित्ततयुं चित्त धारी, कुमर निररकण नारी हे ॥ स० ॥ ग्रही खभग बानो नली जातें, निकल्यो माजिम रातें है ॥ स० ॥ १३ ॥ हूई प्रजात त
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( १९७२ )
नुजन विदी से, शुं की धुं, जगदीशें हे ॥ स० ॥ कुमर गयो जोवा दयिताने, ईम कहे पीउ प्रमदानें हे ॥ स० ॥ ॥ १४ ॥ लेहेशे यापद दुःख किम सदेशे, पग पालो कि म वदेशे दे || स० ॥ भूमि शयन करशे किम बालो, नंदन ति सुकुमालो दे ॥ स० ॥ १५ ॥ वधू सहि त सुत मुखकुं जोस्यां, तदीयें कृतारथ दोस्यां दे ॥ ॥ स० ॥ मात पिता ईम चिंता दाहें, दोहिले दिवस निवा दे || स० ॥ १६ ॥ नूख गई सुख निद्रा था की, नृप नंदन एकाकी हे ॥ स० ॥ गामागर पुर क रत प्रवेशा, निरखे देश विदेशा दे || स० ॥ १७ ॥ श्री पंचासर पास प्रसादें, ज्ञान कथा संवादें हे || स० ॥ पन्नरमी मीठी रसनाला, पूरण कीधी ढाला हे ॥ स०॥ ॥ १८ ॥ पूरण त्रीजो खंक वखाएयो, मलय चरित्र थी आयो हे ॥ स० ॥ मलया सरस कथा ईम जां खी, कांति वचन श्रुत साखी है || स० ॥ १५ ॥
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इतिश्री ज्ञानरत्नोपाख्यानापरनाम नि श्री मलयसुंद रीचरित्रे पंमित श्री कांति विजयम णिविरचिते प्राकृत प्रबंधे मलयसुंदरी श्वसुरकुलसमागमनामा तृतीयः खंगः संपूर्णः ॥ ३ ॥
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(१९३) ॥ अथ श्रीचतुर्थखंड प्रारंभः ॥
॥ दोहा ॥ ॥ स्वस्तिश्री मोहनलता, वान वधारण मेह॥ जि न सद्गुरु शारद तणा, नमुं चरण ससनेह ॥ १॥ सु णतां मलयानी कथा, टले व्यथानी कोमि॥ कहेतां जस मन अन्यथा, वृथा तेह पशु जोमि ॥२॥ म सय कथा उचितारथा, · करे व्यथानो ह ॥ कथे विचे विकथान्यथा, वृथा यथा सस तेह ॥३॥ त्रीजो खंग कह्यो शहां, सरस वचन रस कुंग || उछाहें था दर करी, कहेशुं चोथो खंग ॥४॥ हवे महाबल वा खही, मूकी निशि वन गर॥कणे कठिन श्वापद त णा, सुणे शब्द अतिघोर ॥ ५॥ थरथरती मरती हिये, करती आंसू नयण ॥ श्रारमती पमती कहे, विरहालां इंम वयण ॥६॥
॥ ढाल पहेली|अम्मां मोरी अम्मां हे,अम्मां मोरी पाणीमां गश्ती तलाव हे, हे मारुमे मेहेवासी मेरा ताणीया ॥ ए देशी॥ ॥अम्मां मोरी अम्मां हे, सुसरे न पूज्यो मुज को वंक हे, हे कोपेंने कलकलियो राणो मोपरे हे
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(१४) ॥ अम्मां ॥वीने कूठं का कलंक हे, हे बानेशं अपमाने काढी वा हिरें हे॥१॥ अ॥अंटवी ए वि षमी दंमाकार हे, हे हियमबु थरकावे नयणे देख तां हे ॥अ० ॥ सिंहना शहां बहुला संचार हे, हे शू राने नरकावे विरुआ पेखतां हे ॥२॥ अ० ॥ गुह री गूजे गोहा उली हे, हे चित्ताने वनकुत्ता चोटे दो टशुंहे ॥अ० ॥ हलके गेवरिया टोला टोलि हे, हे खेलंता आफलता नाखर कोटशुं हे॥३॥०॥सक लके सूअरनां मातां यूथ हे, हे तांतां हरें उजाता था ता आकुलां हे॥अ० ॥ वढता उबलता मांगे युक हे, हे रोषाला दाढाला वाघ महाबला हे ॥४॥ ॥ अ० ॥ धमके सींगाला जरता फाल हे, हे शंबरिया अंबरिया लगें अति कूदणा हे ॥ अ॥रखमे कूकंता पोढा श्याल हे, हे रोमालां हवाला फरे घणां हे ॥ ५ ॥ अ॥ खमता दमबमता दोमे रोऊ हे, है ही ते विण बीमे पीछे मारका हे॥०॥ दीपक करता नकली सोजा हे, हे टीबरीया गुंबरीया मारकपार का हे॥६॥०॥वलगे घुररंताके स्याहघोष हे, हे
मामें मद बेंका गेंमा बाथमे हे॥०॥चमके चीत्तल कलिया रोष हे, हे जामा वन पामा आमा आरमे हे
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( १९५) ॥७॥१०॥ उलले हुंकलती नाहरकोमि हे, हे लुकमि यां वांकमियां दमव मियां दीये हे || अ० ॥ चुंपती खेले गेलें जरखां जोमि हे, हे जथमता चलचलतामृ तलपा लीये हे ॥ ॥ अ०॥ फितकें फेंकारी म ख फामी हे, हे ससला ते सलसलता तरु मूलें लुके हे ॥ १०॥ महके सुरदा मशक बिलाम हे, हे विजू ता अति खीजू मदमाता फुके हे॥॥०॥ खमके खोनालो खांतें नील हे, हे रुके बल नवि चूके मांकम वानरा हे॥ अ०॥पंथें विषधरनी अमखील हे, हे फुकी परजाले जालां कींगरां दे ॥ १० ॥ १०॥ मके चमरी वांसांजाल हे, हे वेमुने वली सावज फू रोषमा हे ॥०॥ खमके जमके विहगामाल हे, हे खच्चरिया बल जरिया दोमे सूसमां हे ॥११॥ अ०॥ अरमे उछालाारण उंट हे, हे दाढाला सुंढालाशर नघणा उमेहे॥१०॥रमवमे रोहि बोहिम बूट हे, हे गोकरुणा कंदलिया मिलि बेसे खूमे हे ॥ १२ ॥ ॥ अ० ॥ घुरले घूघमा मामी घोर हे, हे जमदमतांह महमतां जूत घणां नमे हे ।। अ०॥ चरमा चोरा करता जोर हे, हे धामाने लेई आवे थामा मागमें हे ।। १३॥ ||अ०॥ एहवा जीषण वनमांमुऊ हे, हे निर्दय नृप
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( १९६) ना सेवक मेली ते गया हे॥ १०॥ कहिये को श्राग ल पुःख गुज हे, हे विण अपराधे नृप धीग थया हे ॥ १४ ॥ १० ॥ जाउं हाथी क्या हवे नाथ हे, हे पीयरपुंने अलगुं वैरी सासरो हे ॥ अ॥ पमियां पुःखथी साही हाथ हे, हे राखे ते नवि दीसे कोई हां आशरो हे ॥ १५ ॥ अ०॥ सुसरानी शुंपलटीबु कि हे, हे पडतावो हवे थाशे हथी आगली हे ॥ ॥ अ० ॥ पीउमे लीधी नहिं कोई सुधि हे, हे निगमे किम दाहामा मो पाखें वली हे॥१६॥अ० ॥ जनमी कां हुंन मुई कांई हे, हे पुःखमामां नविपमती श्णवेला श्हां हे॥१०॥ विलवे मलई गोरी त्यांहिं हे, हे सं नारे चित्त धारे श्लोक नणी तिहां हे॥ १७ ॥ अ॥ अटवीमें प्रगटी पीमा पेट हे, हे बालायें त्यां सुत प्रस व्यो जलो हे ॥ १०॥रविनो ताजो तेज समेट हे, हे अवतरीयो सुरवरीयो पुण्ये ऊजलो हे॥ १७ ॥अासु तनें खोले उविनें माई हे, हे आपण तिहां श्राप सूति क्रिया करे हे ॥ १० ॥पनणे पुत्र वधावं कांई हे, पापिणी हुँ इण वेला तुजनें श्रादरें हे ॥ १५ ॥१०॥ सुतनुं मुखहुँ जोती मात हे, हे हरखें ने तिम थरके वन देखी करी हे.॥ १०॥ रजनीवीती थयो परजा
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(१७) त हे, हे ऊठीने नावाने नदी उतरी हे ॥ २० ॥ ॥ १० ॥ निर्मल जलमां न्हाई ताम हे, हे पावन थईने बेठी बाला कांग्मे हे ॥ अ॥समरी गुरुने अ रिहंत नाम हे, हे संतोषे निजातम वनफल मीठमे हे ॥१॥ अ० ॥ बानी वन कुंजें पाले बाल हे, हे हीयमलें हेजाले लाले गह गही हे ॥१०॥ चोथा खंगनी पहेली ढाल हे, हे कांतें श्म नलि लांतें पजणी ऊमही हे ॥ २५ ॥
॥दोहा॥ ॥ पंथें वहेतो ते समे, सारथपति बलसार ॥ वी नदीये ऊतस्यो, वींव्यो बहु परिवार ॥ १ ॥ अवल बनातां पाथरी, नवल किनातां तांणि ॥ मेरा दीधा महकता, कारुजणें जलगण ॥ २ ॥ जल तृण इंधण कारणे, पसख्या जन वनमांहीं ॥ सारथपति पण संचरे, तनु चिंतायें त्यांहीं ॥ ३॥ संचरतो वन कुंजमां, पोहोतो मलया गम ॥ रुदन सुणी बालक तणुं, निरखे विस्मय पाम ॥४॥ बाल सहित बाला तिहां, देखी चिंते एम ॥ रूप अपूरव सवणिमा, व सती तरुण श्हां केम ॥ ५॥
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(१७) ॥ ढाल बीजी ॥ आबू मन लागुं ॥ ए देशी॥ ॥ सारथपति पूजे हसी, एकलमी कुंण थांहीं रे ॥ गोरी कहे साचुं ॥ उत्तम कुल संनव प्रत्ये, कहे आकृति तुज प्राही रे ॥ गो० ॥ १ ॥ मूकी इंहां किणे अपह री, के रीशाणी तुं आप रे ॥ गो० ॥ के कोइ इष्ट वियोगथी, कीधो तें वन व्याप रे ॥ गो॥ २॥ पु त्र प्रसव ताहरे हां, दीसे थयो गुणगेह रे || गो॥ वनमांहिं बीहती नथी, कहे सुंदरी ससनेह रे॥ गो०॥ ॥३॥धनवंतो व्यवहारीयो, नामें हुं बलसार रे ॥ गो० ॥ सागर तिलक पुरें वसुं, पर ही व्यापार रे ॥ गो० ॥ ४ ॥ नवँ कह्यं जगदीश्वरे, मेलवतां तुं श्राज रे॥ गो० ॥ मुज मेरे श्रावो वही, मूकी मननी लाज रे ॥ गो ॥५॥ वचन सुणी सा चिंतवे, ए न र चपल पतंग रे ॥ गो० ॥मातो धन यौवन मदें, करशे शील विजंग रे॥गो ॥ ६॥ कूमों उत्तर वा सतां, रहेशे शील अखंग रे ॥ गो० ॥ईम धारी बो ली त्रिया, सुण गुणरयण करंग रे ॥ गो० ॥ ७ ॥ तनुजा हुं चंमालनी, कलहें कोपी श्राप रे ॥.गो० ॥ थावी रही वनमां इहां, मूकी निज माय बाप रे ॥ ॥ गो० ॥ ॥ मेल मले किम ते घटे, जिम दिन
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( १ )
॥
रजनी योग रे ॥ गो० ॥ देखी जोवा सारिखो, चहेरे सघला लोग रे || गो० ॥ ॥ वासें पोहोंचो तुमें, नहीं या निरधार रे || गो० ॥ दुःखियां मुज मा वापनें, मलशुं जई ई वार रे || गो० ॥ २० ॥ श्रा कारें इंगित गतें, ए नहीं नीची जात रे ॥ गो० ॥ कपट पणें उत्तर करे, कारण इहां न जगात रे ॥ ॥ गो० ॥ ११ ॥ सार्थपति म चिंतवी, बोल्यो वचन विचार रे || गो० ॥ तुज चंगालपणं कदे, नहीं जांखं सुण तार रे ॥ गो० ॥ १२ ॥ मुज आवासें मानिनी, स्वेच्छायें रहो याय रे || गो० ॥ तुज वचनें बांध्यो सदा, रहेशुं हुं मन लाय रे || गो० ॥ १३ ॥ इम कहेतो ऊमपी लीये, छांकथकी तस बाल रे ॥ ॥ गो० ॥ तस्कर जिम चाल्यो धसी, आवासें ततका ल रे || गो० ॥ १४ ॥ शील विखंगन जयथकी, ते थई कार्यविमूढ रे || गो० ॥ तोपण ते पूंठें चली, नंद न नेहारुढ रे ॥ गो० ॥ १५ ॥ दरख वचन बोलावतो, बालाने बलसार रे || गो० ॥ सुत निज वसनें गोप वी, पेठो नई आगार रे ।। गो० ॥ १६ ॥ दुःख कर ती बानें ग्वी, आसासें देई बाल रे || गो० ॥ दासी एक प्रियंवदा, थापी करण संजाल रे ॥ गो० ॥ १७ ॥
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(200)
यंवर भूषण जोजनां, आपें दाखी प्रीति रे || गो० ॥ जांखे नहिं कम मुखें, उपावण प्रतीति रे ॥ गो० ॥ ॥ १८ ॥ नाम पूबाव्युं अन्यदा, बलसारें करी शान रे ॥ गो० ॥ लुयें सा कहे माहरूं, मलयसुंदरी अजि धान रे ॥ गो० ॥ १८ ॥ व्यवहारी इंम चिंतत्रे, मम कहे ए स्व चरित्र रे || गो० ॥ पण नामें करी जाणीजं, कुल एहनुं सुपवित्र रे ॥ गो० ॥ २० ॥ चाल्यो तिहां थी वाणीयो, करतो पंथें मुकाम रे ॥ गो० ॥ उदधि तिलकपुर पर्णे, पोहोतो कुशलें ताम रे ॥ गो० ॥ २२ ॥ पुत्र सहित बानी गृहें, राखी महिला तेम रे ॥ गो० ॥ दासी एक विना कहे, जाणी न पमे जेम रे ॥ गो० ॥ ॥ २२ ॥ एक समय मलया प्रत्यें, नितुर म पजणं त रे ॥ गो० ॥ नाथ पणे मुजनें हवे, च्यादर तुं गुण वंत रे ॥ गो० ॥ २३ ॥ मुज संपदनी सामिनी, तां न कर विचार रे ॥ गो० ॥ सपरिवार हुं ताहरो, रहेशुं यथाकार रे ॥ गो० ॥ २४ ॥ पुत्र नहिं को मा हरे, ते वामें तुज पुत्र रे ॥ गो० ॥ थाशे जय जय मालिका, वधशे श्म घरसूत्र रे ॥ गो० ॥ २५ ॥ व चन सुणी कामांधनां, बोली मलया मुद्धरे ॥ गो० ॥ कुलवंतानें नवि घटे, करवुं लोक विरुद्ध रे || गो० ॥
था
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(५१) ॥ १६ ॥ जाजो सर्वस श्रापथी, पम्जो पण ए पिं म रे ॥ गो० ॥ चं किरण सम ऊजबुं, रहेजो शील अखंग रे ॥ गो० ॥ २७ ॥ वायो बहुल प्रकार थी, नाख्यो वचन निगरे ॥गो० ॥ रह्यो अबोलो बापमो, न करे वलती जेम रे ॥ गो० ॥ २७ ॥ रोषा रुण घर बारणे, घे तालक सुत लेय रे ॥ गो० ॥नि यसुंदरी निज नारिनें, पुत्र पणे ते देय रे ॥गो० ॥ ॥ ए॥ कहे सुंदरी ए पामी, बालक वनिका मां हि रे ॥ गो० ॥ गुण रूपें तेजें जस्यो, रह्यो लक्षण अ वगाहि रे ॥गो० ॥३०॥व्यभिचारिणी को मारीयें, नाख्यो एह प्रश्छन्न रे ॥ गो० ॥ पुत्र रहित आपण घरे, होजो पुत्र रतन्न रे ॥ गो० ॥३१॥ ते बालकने आपणा, नाम तणे. एक देश रे ॥ गो० ॥ नामें बल इति थापना, कीधी निज उद्देश रे ॥ गो० ॥ ३२ ॥ राखी धार अनेकधा, करवा पोढो बाल रे ॥गो॥ बीजीचोथा खंमनी, कांतें पत्नणी ढाल रे॥गो॥३३॥
...... ॥दोहा॥ व्यवहारी हवे एकदा, पूरे प्रवल जिहाज॥पर ही चालण तणा; करे सजा काज ॥१॥देशीखामण मारिनें, पूड़ी स्वजन कुटुंब ॥ बानी मलया जोरथी,
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(202)
ले चाल्यो अविलंब ॥ २ ॥ साजित पूर्व जहाजमां, जई बेठो शुभ संच ॥ सप्रपंच कारुक जनें, लीधां नां गर खंच ॥ ३ ॥
॥ ढाल त्रीजी ॥ ईमर आंबा आंबली रे ॥ ए देशी ॥
॥ प्रवहण पूरयो पाधरो रे, वारु पवननें टेग ॥ जल निधिमांजल मारगें रे, वहेतो तीरनें वेग ॥ १ ॥ धमकीनें चाले बाबर कूल | हवे कर शुं केहो सूल ॥ ६० ॥ म चिं ते सा सुधि जूल ॥ ध० ॥ ए यांकण | परदेशें मुज वे चशे रे, के देशे बूमामी ॥ के कुमरणथी मारशे रे, के किहां देशे गामि॥ध॥२॥हूणी इहां होजो हवे रे, पण मुज तनुज वियोग ॥ संतापें कापे ही युं रे, जिम रोगी क्षय रोग ॥ ६० ॥ ३ ॥ जिवन मृत सम ते त्रिया रे, गल गलती गलनाल ॥ पूढे प्रवहण नाथनें रे, बहेती यां सु प्रणाल ॥ ६० ॥ ४ ॥ शुं कीधो मुज नंदनो रे, कहे सत पुरुष यथार्थ ॥ ते कहे तो सुत मेलवु रे, जो करे मुज चरितार्थ ॥ ध० ॥ ५ ॥ परियो निरखी आपमां , वाघ नदीनो न्याय ॥ राखण शील सोहामणुं रे, ते रही मौन धराय ॥ ध० ॥ ६ ॥ अनुगुण पवनें प्रेरियुं रे, वहेतुं प्रवहण थल ॥ कुशलें केते वासरें रे, घ्याव्यो बाबरकूल ॥ ध० ॥ ७ ॥ बंधारा उतरा विनें रे, आप नृ
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(२०३) पने दाण ॥ व्यवसायी व्यवहारी रे, वेचे विविध क्रियाण ॥ ध० ॥ ॥ रंगारा हीरा तणा रे, निर्दय कारू लोक ॥ ते कुलें मलया वेचिने रे, कीधा शेदोकम रोक ॥ ध० ॥ ए॥ त्यां पण बहु कामी नरें रे, अनुत रूप निहालि ॥ काम महारस प्रारथी रे, ते पण न शक्या चालि ॥ध०॥१०॥ निज स्वारथ श्रण पूगते रे, रूघा पुछ जुवाण ॥ निम्महेरा बोले नसा रे, प्रगटे रुधिर उधाण ॥ ध० ॥ ११ ॥ तास रुधिर लांमें करी रे, कृमिज चढावे रंग॥मू गत बा ला हुवे रे, नस नस पीम प्रसंग ॥ ध०॥ १२ ॥ वि च विच अंतर गालीने रे, पोषे अशनें अंग॥वलती महीरगतारथी रे, मामे रुधिरे रंग ॥ ध०॥ १३ ॥ बाला चिंते में कीयुं रे, गत जव पाप श्रथाग ॥ तेह थकी आवी पमधु रे, मोटुं पुःख दोजाग ॥ ध० ॥ ॥ १४ ॥ विफलाशा नूलारणी रे, कां सरजी किरता र ॥ देतां पुःख न हुवे दया रे, हे तुज सरजण हार ॥ ध० ॥ १५ ॥नजरें श्रावी किहांथकी रे, एकज हुं जगमांहिं ॥ गम न हुँतुं पुकने रे, तो आव्यो मो पाहिं ॥ ध०॥ १६ ॥ जनमी क्यां परणी किहां रे, श्रावी वली किण देश ॥ जाल लख्युं बनी श्रावशेरे,
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(२०४) सुपरें तेह सहेस ॥ ध० ॥ १७ ॥ पुःख पूरें अबला जरी रे, नाणे मनमा रोष ।। एकांतें चिंते तिहां रे, स्व चरित कर्मना दोष ॥ ध० ॥ १७ ॥ परहाकें गकें चढ्यो रे, ताके अनचित दाव॥रस पाके थाके वही रे, अहो जव विषम बनाव ॥ध०॥ १॥घरमी तन लोही लीयु रे, मूर्खाणी नूपीठ॥ खरमी रुधिरें एकदा रे, पमी नारंग शूनि दी ॥ध० ॥२०॥पंखीनन थी ऊतरी रे, आशंकी पलपिंग ॥ चंच पुढे खेई ऊ मियो रे, सहसा ते नारंग ॥ ध० ॥१॥नन मार्गे ज्यां संचरे रे, जलनिधि मांहि विहंग ॥ तेहवे बीजो सामुहो रे, आव्यो नारंग तुंग ॥ ध० ॥ ॥ श्रा मिष लोनें तेहशुं रे, मंमे जूऊ तिकोई ॥समतां चंच थकी पसे रे, डटके बाला सोई॥ ध०॥३॥श्रासु रिका के खेचरी रे, के सुरकुमरी काय ॥ लखमी के कोई जोगिणी रे, जलमां रमवा जाय ॥ध० ॥२४॥ के धारा हरिवजनी रे, के दामिणी ये दोट ||श्म क्षण सुरें दीठी तिहां रे, करी करी उंची कोट॥ध०॥ ॥ २५...|| बाला गुणमाला मुखें रे, गणत.. श्रीनवका र ॥ तरता गज मत्स्य उपरें रे, पमी सुकृत आधार ॥ध ॥ २६ ॥ चोथे खंमें ए थ रे, निरुपम त्रीजी
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(204)
ढाल || पुण्यथकी लदियें सदा रे, कांति सुजश जय
माल ॥ ध० ॥ २७ ॥
॥ दोहा ॥
॥ पंखी मुखथी हुं पमी, जखपूंठें निर नाथ ॥ पप जो ए जल बूमरो, तो प्रदेशे कुंण हाथ ॥ १ ॥ मर ण समय म चिंतवी, कारण त अनिष्ट || आरा धन हेतुक जणे, महापंच परमेष्ट ॥ २ ॥ नमस्कार पद सांजले, जख वंको करी खंध ॥ तस मुख निरखी सूचवे, पूर्वागत संबंध ॥ ३ ॥ रहि क्षणिक थिर चित्त ते, दिशा एक निरधार ॥ तुरत तरंतो चालियो, जुज लंबो विस्तार ॥ ४ ॥ अहो महोदयनी दिशा, हजी
केतक ॥ हाले नहीं जल उदरनुं, चाले म म त्स ठीक ॥ ५ ॥ जल रमले कमला चढी, गजखंधें दी संत ॥ के सुरपादप वेलमी, चलगिरि शिर विलसंत ॥ ६ ॥ संशय एम पमागती, खगकुलने गजगेल ॥ चा ले बांटी जल कणें, जोती जल निधि खेल ॥ ७ ॥ सुखें सुखें प्रवहण परें, वहतो पंथ सपिठ ॥ उदधितिलक वेला उलें, कुशलें पोहोतो मठ ॥ ८ ॥
॥ ढाल चोथी ॥ चंद्रावलानी देशी मां || ॥ उदधितिलक पूरनो धणी रे, कंदर्प नामें जूपा
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( २०६ )
लो, तेह समय रयवामीयें रे, चढि रिनो सालो ॥ चढीयो नृपकुल शाल निशंको, दिगिमि मामें देवा मी को ॥ रंगें रमतो सायर कंठें, आव्यो वढ्यो सु जट उठे ॥ जीराजेंद्र जीरे ॥ निरखे जलनिधि खेल, पनोतो राजवी रे ॥ मूक्या जेणे डुर्दत, सीमामा जांज वीरे ॥ एकणी ॥ १ ॥ पुर साहामो जख यावतो रे, जलमां नूपें दीठो ॥ निरख्यो जा सरिखो वली रे, बेठो तेहनी पीठो ॥ बेठो तेहनी करी सवारी, लोक कहे ए नर के नारी ॥ कौतुक वाध्युं जोवा स्वारू, मलया माणस खांते वारू || जी० ॥ २ ॥ ए क जणे गरुमें चम्यो रे, दीसे जिम गोविंदो ॥ एह कवण जल मारगें रे, यावे बे स्वछंदो ॥ श्रवे बे नृप जांखे मानो, कोलाहलथी जाशे पाठो ॥ मौन धरी नि रखो रही घाटें, जोवे जण बाना रही थावें ॥ जी० ॥ ॥ ३ ॥ जथी कांइक वेगलो रे, यावे सायर तीर ॥ शुंढाद सुंदरी रे, उतारे ग्रह धीर || उतारि ग्रही बाहिर मोमें, सुंदर थल भूमि जई बोके ॥ प्रणमं । व लियो पाढो बानो, वली वली जोतो मुख प्रमदानो ॥ जी० ॥ ४ ॥ थयो दृश्य महा जलें रे, रयणायरमां मीनो ॥ भूपति त्यां मलया कन्हे रे, आवे विस्मय ली
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(२०७) नो॥श्रावे विस्मय देखी बाला, करपद यादें सकल चवाला ॥ लावण्य निधि एकुण केम मीने, मूकीम का राय नगीनें ॥ जी०॥ ५॥ जोतो फिरि फिरि नेहथी रे, मच गयो कुंण हेतो॥ एहज महिला बता रे, कहेशे सवि संकेतो॥कहेशेस वि निज वीतक वातें, नक चक्रनां व्रण जुन गातें॥ए अहिनाणे सिंधुवगाही, जमीय घणुं दीसे जलमांही जी॥६॥ कोपवरों को वयरीये रे, नाखी सायर पूरे ॥ के प्रवहण नांगे पनी रे, मछवांसे किहां रें ॥ मलवांसें बेठी इहां श्रावी, श्म कहेतो नृप पूछे मनावी ॥सागर तिलक पुरीनो नायक, कंजप नामें अवं खल घायक ॥ जी ॥७॥ निज वीतक कहेतां हवे रे, सुंदरी काश्म बीहे ॥कुं ण तु किम मीनें धरी रे,आफलती फुःख दी।आ फलती आवी पुर एणे, हर्ष सही रमणी नृप वयणे॥ चिंते मुज सुत रहस्ये बिपावी, राख्यो डे ते पुरी हूं श्रावी ॥जी॥ ७ ॥ सुकृत महाफल पाकियुं रे, मु ज दीहा धनधन्नो ॥ पुण्य लता जागे हजी रे, जोल हुँ पुत्र रतन्नो ॥ जो लडं पुत्र तणी शुद्धि हांथी, तो चरित्रार्थ होये फुःखमांथी । पण कहीये कांश एरी गेरी, ए नृप. मुज बिहुं पखनो वैरी ॥जी॥
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( २०० )
॥ "" ॥ ए नृपनें हुं लखुं रे, तात श्वसुर कुल द्वेषी ॥ शील विखमी माहरु रे, लेशे सुत संपेखी ॥ लेशे सुत ईम चिंती निःशासी, बोली बाला दुःरक चकासी ॥ मुज चिंता तुमनें वे केही, पुण्य विना रजलुं हुं एही ॥ जी० ॥ १० ॥ सेवक पजणे नूपनें रे, जारी एडुः ख जारें ॥ न शंके इष्ट वियोगथी रे, कहेतुं कांई करा रें ॥ कहे कांई शंके मत पूढो, दुःखमां वली वली लागशे उठो ॥ मीठें वयण हवे यासासी, उपचरणा की जें कांई खासी ॥ जी० ॥ ११ ॥ वली नृप पूढे मा निनी रे, तो पण कहे तुज नाम ॥ मंदस्वरें कदे माहरु रे, मलया नाम निकाम ॥ मलया नाम निकाम नारो, तेहथकी न लह्यो दुःख आरो ॥ सन्मानी नृप मंदिर याणी, सुख साजें राखी जिहां राणी ॥ जी० ॥ १२ ॥ व्रण संरोहण उषधि रे, रूजवियां व्रण तासो ॥ दासी दास समीपनें रे, थापी पृथग यावा सो ॥ थापी पृथग वसन शणगारें, संतोषी नूपें तेथी वारें ॥ मुजनें म नूपति सतकारें, वारु नहीं आगें ईम धारे ॥ जी० १३ ॥ ते दिनथी ततपर हुई २, करवा धर्म विशेष ॥ ध्यान धरे अरिहंतनुं रे, बांकि म विश्लेष ॥ बांकि म विश्लेष विवेकें, आ
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(२०ए) राधे जिनधर्म सुटेकें ॥चोथे खंमें चोथी ढाला, कांति कहे रहे सुखमां बाला ॥ जी० ॥ १४ ॥ इति ॥
॥ दोहा ॥ एक दिवस नूपति नणे, मलयाने धरी रागन छे मुजने आदरी, कीजें सफल सोहाग॥२॥ पट्ट बं ध तुजने घटे, नहीं अवर त्रिय लाग ॥ उचित हेम मय मुखिका, ग्रहवा मणि पर नाग ॥ ॥तुज वच नामृत चंपिका, चाहुं जेम चकोर ॥ बीजी दयिता मोजमी, तुं शिरशेखर गेर ॥ ३ ॥ नेह कदे रस दे नहीं, कीधो एक पखेण ॥ बे पख निवहे रस दिये, जिम रथ चक्र युगेण ॥४॥ मुज मन लागुं तुज शुं, वायुंही न रहंत ॥ कोमि विकल्प कदर्थना, लत्ता पात सहंत ॥५॥जो मन जाएये आदरे, तो रस व धतो होय ॥नहीतो पण जे मुज वसू, हीये विचारी जोय ॥ ६ ॥ जाश्श कीहां पाने पमी, नहीं नूढुं हवे दाव ॥ हसतां रोतां प्राहुणो, एहवो बन्यो बनाव ॥ ॥॥सा चिंतेधुर जे ठवी, नानीहीये निघट्ट ॥वचन गमें ते पुष्टता, नूपें करी प्रगट्ट॥॥धिग मुज यौवन रूपनें, लवणिम पमो पयाल॥पग पग जास पसायथी, सडं लाख जंजाल ॥ ए॥बूमीकां नहीं जलधिमां, ऊ
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(२१०) खे उतारी कांज्ञानरकोपमफुःखमा पनी, है है पाप प सा ॥ १० ॥ चाहे शील विखंमवा, कामंधल नृप धी
॥ मरण शरण जीवित थकी, अदत व्रतने श्छ। ॥११॥ काम कुचेष्टित मत्त नृप, ऊनो निरखी बा सावधिशंतन मन संवरी, बोली श्म ततकाल ॥१२॥ - ॥ ढाल पांचमी ॥ बेमो नांजी ॥ए देशी॥
॥डेमो नांजी, नांजी नांजी नांजी, मोनांजी।। नारी नरकनी •मी॥०॥आपे पुर्गति ऊमी॥ ॥ अनुचित करतां मीठमा बोलां, लोक कहे हा हाजी॥ के विरला हित मारग दाखे, तेहिज बाजी साजी ॥०॥१॥ परनारीथीसंपद निकसे, विकसे अपयश माला ॥ पुरुष पतंगा ऊंपण एतो, विषम अगनिनी जाला ॥३०॥२॥ जोतां अनुपम चित्र विणासे, लागो जिम मशिबिंदु।तिम परदारा संगति राहु,म लिन करे गुण इंदु॥०॥३॥धवल महाजस पट वि णसांमे, परनारी रस बांटो ॥ उत्तम कुल कीरतिपग वींधे, व्यसन महाविष कांटो ॥ ॥४॥ वेपत क र विषधरनां मुखमां, जिम जीवितनो सांसो॥ तिम सुख शील तणी शीश्राशा, सेवे पर त्रिय पासो॥०॥ ॥५॥ निज नारीथी नूख न जांगी, शुंडिखे मुज
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(२११) माटे ॥ भृत नाणे जो तृप्ति नहीं तो, शुं एवं कर चाटे ॥०॥६॥काननना तृणमांहे तुं सूतो, आग उशीसें सलगे॥शीखमली साची हित जाणी, रहेनें मुजथी अलगें। ॥७॥हीये विचारी निरख रे घेला, महि लामां शुंराचे॥दीसे चटुक कटुक परिणामें, इंडायण फल साचे ॥ ||॥ अनृत वचनगृह कंद कलह मुं, मोक्षपथिक पग बेमी ॥ अति यासंगें अबला विलगी, नाखे कुगति नथेमी ॥ ॥ ए॥श जन ने पण वलगी खटके, जिम खर पूंछे डांची ॥ परदा रा काराघर सरखी, निरखी रहो मत राची ॥ ॥ ॥ १० ॥ कामदेवने आहुति देवा, नारी हुताशन कुं मी ॥ कामी धन यौवन त्यां होमे, देता निजतनु पिं मी॥ ० ॥ ११॥ न्यायी नृप जिम जनक प्रजानें, पाले तिम अति रागें ॥ तुं नय बंमी अनय मग हींगे, तो कहीयें को आगें ॥ २० ॥१५॥ चूकवतां 3 कर जगमांहिं, साचो शील सतीनो॥ ग्रहतां हुये पु लहो जीवंते, हग विष नाग नगीनो ॥ ॥१३॥ सत्यवती कोपे जे माथे, नस्म करे तस देहा || तेह न णी अलगो रहे समजी, नाखे कां कुल खेहा ॥॥ ॥१४॥ वंश विशाल विमल कुल ताहारु, नरियो गुण
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(१२) संदोहें। तो कांकुमतिप्रसंगें नोला, पररमणीशु मो हे॥३०॥ १५॥ समजाव्या बहु नय देखामी, रा मायें रस नरियो । महा कलुष परिणतिथी धीगे, तो पण नवि उसरियो । ॥ १६ ॥ ए नारीनुं जोरें पण हुं, मूकीश शील विखमी ॥ सुखें करजो नस्म वपुष ए, इंम चिंति थिति बंमी ॥ ३० ॥ १७॥ विल ख वदन कंदर्प नरेसर, राज काजमां वलग्यो ॥ प्र मदा मिलन महोत्सव वन्हि, हृदय सदनमा सलग्यो ॥ ॥ २७॥ निर्जल देश पस्यो जिम माबो, तिम नृप विरही तलपे ॥ दृष्टि प्रसंगादिक मन्मथनी, दशे दिशा वशि विलपे ॥ ॥१५॥आवर्जन करवा नृप तेहनें, वस्तु नवल नव मूके ॥ सती शिरोमणि वस्तु विशेष, सुपनंतर नवि चूके॥ ॥२०॥वदन थयुं जां मन पसख्या, चिंता जलधि तरंगा॥ मरणोन्मु ख मलया थई बेठी, राखण शील सुरंगा ॥ ॥ ॥ २१॥ धन्य धन्य शील धरे संकटमां, जे निज मन थिर राखी ॥ ढाल पांचमी चोथे खंमें, कांतिविजय बुध नांखी ॥ ० ॥ २५॥
॥दोहा॥ ॥अन्य दिवप्त एक सूमलो, तरुवर को तका
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( २१३ )
ऊड्यो जाय गासें राय ॥
य ॥ मुख उवि फल सहकारनुं, गयणें ॥ १ ॥ चंचथकी ज़ारें खिस्युं, जिहां नथी नृपना कमां, ते फल परियुं व्याय ॥ २ ॥ चकित चित्त करतल ग्रही, चिंते एम नरपाल ॥ अव सर विण किहांथी परुधुं, ए सहकार अकाल ॥ ३ ॥
बे एक पुरपरिसरें, बिन्नटंक गिरितुंग ॥ तास विषम शिखरें सदा, वनना अंब अनंग ॥ ४ ॥ श्राएयुं तिहांथी सूमले, ए फल मधुर मलूक ॥ लची मधु॑ तस वदनथी, जारें एह अचूक ॥ ५ ॥ श्रपुं को व वन प्रत्यें, के रोगं आप ॥ क्षण एक एम. विमा सतो, नूपति थापे थाप ॥ ६ ॥ कहे सुटने फल ग्रही, पोहोचो मलया पास ॥ अंतेरमां आणजो,
पीति विशवास ॥ ७ ॥ नूपति वचन तथा क री, सुजट विटल प्रसिद्ध ॥ आदरशुं तेणें जई, मल यानें फल दीध ॥ ८ ॥ विणकालें किम संजवे, ए फल अनुपम आज || विस्मित म नृपजणथकी, ली ये अंब तजी लाज ॥ ७ ॥ सत्यापी फल पीनें,
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थापी नूपति धाम ॥ उल्लापी कहे रायनें, पापी नि जकृत काम ॥ १० ॥ महाडुःखें दिन नीगमे, तकत
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( २१४ )
नृपति निशि दाव || एहवे समय विपाकथी, अस्त हू दिन राव ॥ ११ ॥
॥ ढाल बही ॥ बदलीनी देशी ॥ ॥ मलया एम विमासे, एतो मूंको मुज मन जासे हो । नूपति मतिही णो ॥ श्राणी हुं निज आवासें, कां न चढें मन विशवासें हो ॥ भू० ॥ १ ॥ सुंदर शील वी गोशे, आऊं नें अवलुं न जोशे हो ॥ ० ॥ शाख लाखीणी खोशे, तो सूल किश्यो हवे होशे हो ॥ नू० ॥ २ ॥ कामी होये निर्लजा, तस शी जगिनी शीज का हो ॥ नू० ॥ बांधे चावी धजा, नवि जाणे ख जा अखता हो ॥ ० ॥ ३ ॥ इंम धारी वेणी टंटो ली, काढी कचमांथी गोली हो ॥ जू० ॥ आंबा रस मां चोली, बींदी करी सूधी घोली हो ॥ ० ॥ ४ ॥ नर हू फीटी नारी, दिव्य रूप कला संचारी हो ॥ ॥ ० ॥ सुंदर यौवन धारी, जाणे मन्मथनो अवता री हो ॥ ० ॥ ५ ॥ बेठो मंदिर जालें, तेजर ख्या ल निहाले हो ॥ भू० ॥ सूमो जिम रह्यो थालें, सुर तरुनी माल विचालें हो | जू० ॥ ६ ॥ अद्भुत रूप निहाली, घई राणी सवि दोजाली हो ॥ ० ॥ जा णे संचे ढाली, इम थंजी रही विरहाली हो ॥ ०
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(१५) ॥७॥ चिंते ए कुंण वारु, सुंदर नर अति दीदार हो ॥ नू ॥ ए सुरपति अवतारु, कहुं अवर पुरुष ते कारु हो ॥ नू० ॥ ॥ वसुधाथी नीसरियो, कोश प्रत्यद ए सुरवरियो हो ॥ नू ।। विद्याधर गुणे जरि यो, के सिद्ध पुरुष अवतरियो हो ॥०॥ ॥पी मी काम विकारें, निहणे त्यां नयण प्रहारें हो। जू०॥ वेधी आरें पारें, तस रूप महारस धारें हो ॥ जू॥ ॥१०॥ यामिक संशय पेगे, जोखें कुंण गोखे ए बेगे हो ॥ नू ॥ अंतेउर वशि एणे, कीधुं समजावी नेणें दो ॥ ॥११॥जपतिनें वीन वियो, याव्यो नृप त्यां धसमसियो हो ॥ नू०॥ नीरुपम तरुणो दीठो, अति शांत सुखासन बेगे हो ॥०॥ १२ ॥ कुंण ए पेठो सौधे, चिंते नृप चढिर्ड क्रोधे हो॥ ॥ मलया बदले यो, कुण मूक्यो मुज अवरोधे हो ॥ नू । ॥ १३ ॥ नृपतें तेह दबावी, पूज्या जम्भृकुटी चढावी हो॥०॥ ते कहे मलया थाणी, न गई क्या बाहिर जाणी हो। नू०॥२४॥ बेगबां घरकारें,राजेसरजी निरधारें हो ॥ जू०॥कहे नूपति चित्त धारी, नर ए थयो तेहीज नारी हो ॥० ॥ १५ ॥नृप पूछे जई पासें, तुम रूप किश्यु ए जासे हो॥ नू० ॥ ते कहे
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(१६) जेहवु देखो, तेहवो बुं हां शुं लेखो हो ॥ जू० ॥ ॥ १६ ॥ नहिं खेचर अणुहारो, सिक साधकथी पण न्यारो हो ॥ ॥ मलयानां श्णे उमही, पहेस्यां
पट ते तिमही हो ॥ नू० ॥ १७ ॥ में रति रस मागंतें, नर रूप धां कोई तंतें हो ॥४०॥ जाएंम लया एही, बेठी बलवाने सनेही हो ॥ नू०॥ २० ॥ महीपति कहे सेवकनें, म अंतेउरमां न बने हो ॥ ४०॥ करशे अनरथ गाढो, कर साही बाहिर का ढो हो ॥ ४०॥ १५ ॥ मलय सुंदरी इति नामें, का ढ्यो बहि नुज ग्रही तामें हो ॥ नू०॥ बाह्य गृहे नृप राखे, एक दिन वली एहबुंनांखे हो॥४०॥२॥ रूप कस्युं शे योगें, नरनुं कुण तंत्र प्रयोगे हो ।। तू०॥ इतुं स्वाजाविक जेह, थाशे किम क्यारे तेहवं हो ॥४०॥१॥ तव चिंते सा दियमामें, विलखे जूठ नोगने कामें हो॥४॥मौन कस्यानी वेला, रहेशे ब की एहनी मेला हो ॥ नू॥॥ मलया बाजीजी ती.लपतिनी मति गतिवीती हो ॥
न हीजो थे खमें, कांतें कही ढाल घमंमें हो ॥ ॥ ॥ ३ ॥
॥दोहा ॥ कसी कसी नृप पूबीयुं, हसी न मेले मीट ॥
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(२१७) तीखो लागो ते तदा, जिम बावलनो जीट ॥ १ ॥ मलयकुमरी ऊपर दूजे, रोषारुण नूपाल ॥ मंमावे तन तर्जाना, दिन दिन बरे हवाल ॥२॥ तामे ताते ताजणे, मारे लाठी लात॥मुक्की वली चूकी दीये, पामे नामी घात ॥३॥ घरसे कर्कश नूतलें, आकर्षे पग बंध ॥ हर्षे पर्षद निरखतें, धर्षे दे पग खंध ॥ ४ ॥ सिंचे नीचे कूपमा, निहणे पूंठि निबंध ॥ मोटे सोटें चोटीने, नर्म करे तन संधि ॥५॥नृपसुत श्म तामी जतो, चिंते है किरतार ॥ कहीयें हांथीनीसरी, ल हीशुं पुःखनो पार॥६॥एक दिवस निघावशें, पड्यो निरखी पुहरात ॥ रहस्यपणे पुर बाहिरें, वहे कुमर मधरात ॥ ७॥ पथिशालायें वीशम्यो, धरी मरण मन श्राश ॥ दीगे लमत शहां तिहां, अंध कूप तस पा स ॥७॥ तस कंठें उनो रही, चित चिंते दिलगीर॥ परशुं जो कर नूपनें, तो दहेशे बे पीर ॥ ए॥शरण नहिं महारें इहां, मरण विणा को उर ॥ष्ट संजारी थापणो, म बोली तिण गोर ॥२०॥ ॥ ढाल सातमी ॥ उधवजी कहेशो बहु न
. कहि । ए देशी ॥ - ॥ प्रजुजी फुःखणी कांडंसरजी॥ए आंकणी।
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(१७) पीयु विरहो तीखी कातरणी, काटीकरे हिय पूर जी॥ प्रीतम विण न शके को सांधी, लाख मले जो दर जी । प्रनु॥१॥वाहालानो मुज देवीगे, दुःख सं कटमा नाखी ॥ नाग्य रहित ज्यां त्यां हुं लटकुं, मधु जूलि जिम माखी॥प्र०॥॥दैव अटारा महाबल साथें, ए लव दीधो वियोगो । परजव कंत पणे मुज तेहनो, मेलवजे संयोगो ॥ प्र० ॥३॥ कूया शिरज जी नररूपें, देती श्म उलंना॥सका हश् कूपें ऊंपावा, प्रेम जरी निरदंना ॥प्र०॥४॥एहवे त्यां दयिताने जोतो, महबल ते दिन शेषे ॥ पहियशालमां रातें सूतो, निंद लही नवि लेशे || प्र॥५॥हवे जाएं जोवा दिशि केही, इंम चिंतवतो जागे॥मलयायें जे दीया उलंना, ते कानें जई वागे॥प्र०॥६॥ एह थ पूरव वचन प्रियानां, सरखा सुणतां लागे ॥ प्राण त्यागनां सूचक प्राहें, पमबंदे नज मागे ॥१०॥७॥ संज्रमथी जव्योत्यां नमकी, कहेतोम मुख वाणी ॥ विफल महा साहस रस खेलें, मरण लीये कां ता णी ॥ ॥ ७॥ शरण हजो मुज महबल पीयुनु, म कही ऊंपा दीधी ॥ कुमरे पण तस पू- तिमहि ज, ते अनुचरणा कीधी ॥प्र०॥ए॥ स्फुट चेतन
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(१५) नर मूळ जास्यो, लघु सादें इंम नांखे ॥ मुज अब लाने ए पुःखमांथी, महबल विण कुरा राखे । प्र० ॥१०॥ कुमर जोवे विस्मित ते वचनें, कर पद तास उसासें ॥ सजग थयो नर मूळ नाठी, बेगे ऊतीपा सें । प्र० ॥ ११ ॥ कुमर विमासे किणे संबंधे, इंणे मुज नाम संजास्यो । के मुजनामें कोसनेही,पुः खमां हियमे धास्यो ॥॥ प्र॥१२॥ पूज्युं कहे साचुं कुंण तुंडे, कां पमियो म कूपें ॥ उलखीने स्वरने अ नुसारें, पुरुष कहे अति चूंपे ॥प्र०॥१३ ॥ कुंण तूं डे किम आयो कूपें, पमियो कां मुज केमें ॥इत्यादिक पूबी सहु पा, काम करो एक नेमें ॥ प्र० ॥ १४ ॥ निजथूके मांजो मुज बिंदी, नां जिम स्वसरूप ॥ तिम की, तेणें तव मलयानु, प्रगट हलं धुर रूप॥ प्र० ॥ १५ ॥ कूप नीतिथी एहवे नागें, बाहिर वदन विकास्युं ॥ अंधकूपमा तस मणि तेजें, पूरे तिमिर विणाश्युं । प्र०॥ १६ ॥ पुर्खन दयिता दर्शन देखी, उत्कंठ्यो सरवंगें ॥ सहसा आगल आवी क्याथी, चिंते इंम उमंगें ॥३०॥ १७ ॥ विण श्रानें वूग घर मेहा, थातां संगम नीको॥अण चिंतित साजन मेलाथी, बीजो सुख सवि फीको ॥ प्र० ॥१७॥श्म
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(२०) कहीने नयणें जल जरतो, पूजे तस विरतंत ॥ सापि कहे हियो फुःख पूरी, धुरथी व्यतिकर तंत ॥ प्र० ॥ १५ ॥ कहे पिठ ते संकट सायरमां, पेसी उःख अ नुखंगें ॥ नोग्य योग्य सुकुमाल शरीरें, कष्ट सह्यां किम अंगें ॥ प्र० ॥ २०॥तुज पासेंथी जे बलसारे, कम्पीने सुत लीधो ॥ अ किहां ते सा कहे शेठे, मू क्यो शहां घरे सीधो ॥ प्र० ॥१॥लहेश्यो किम नं दन शुद्ध सूधी, कुमर कहे थिर थापी ॥ थाशे सवि होशे जो शहांथी, बूटक बार कदापि ॥॥२॥ मुज विरहें वासर किम विरम्या, पूज्युंवली दीयतायें।
आप चरित्र सघलां ते लांखे, कुमर यथा श्छायें ॥ ॥ प्र० ॥ २३ ॥ सुख-संनाषण करतां बेहु,, रजनी त्यां निरवाहे ॥ ढाल सातमी चोथे खंमें, पत्नणी कांतें उ माहें ॥प्र० ॥२४॥
॥दोहा॥ ॥रयणी गई प्रगमो दूई, ऊग्यो रविअनुरूप ॥अनुपद जोतो राजिन, आवे जिहां डे कूप॥१॥ निरखी बेजण कूपमां, बोल्यो धरणी नाथ ॥जू सहजरूपें त्रिया, विलसे किण साथ ॥२॥ अहो रूप रति सुनग ता, यौवन गुण विज्ञान ॥ युगती जोमी जोमतां, नू
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(२१) ल्यो नहिं जगवान ॥३॥इंशाणी सुरपति परें, रति रतिपति उपमान ॥ शोने अनुपम जोमj, अनुगुण रूप समान ॥४॥ अनय हजो तुमनें बिन्हें, आवो कूपक कंठ ॥ दाँधल कंदर्प नृप, कहे राग रस बंठ ॥५॥ नू बिहुने काढवा, कीधो मांची संच ॥ तव पीउने नूपति तणो, मलया नणे प्रपंच ॥६॥ रस राच्यो आव्यो हां, मुज पावें कम जात ॥कीधी को मि कर्दथना, कामांधे दिन रात ॥ ७॥मुज रूपें मोह्यो निलज, न गणे कुलनी कार ॥ आकर्षी निरखी नि खर, हणशे तुज निरधार ॥७॥ कुमर कहे जो कूप थी, नीसरशुंकुशलेण ॥ शिरेंसवाई वालशें, यथा यो ग्य करणेण ॥ ए॥ ॥ ढाल आठमी ॥ थारे माथे पचरंगी पाग,
सोनारो बोगलो मारुजी ॥ ए देशी ॥ ॥प्रीतम कहे हरखी मांची निरखी आवती रूमी जी॥ श्यामा चढि बेसोयाणो अंदेसो श्यावती रू॥ कुशलें उतरीय विपत्ति उजरीये रंगमां रू०॥बेगेश्म कहे तो दोरी आहेतो मंचमां रू० ॥१॥प्रमदा सपति जी बेठी बीजी मांची रू०॥नूपति कहे जणने पहे ली धणने खांचीयें रू० ॥क्रम उचें नीचें सेवक खींचे
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( श्श्श् )
जोरशुं रू० ॥ गयगण गहेरो कीधो बढेरो सोरशुं रु०२ ॥ तम उत्खंरुक जाणे करंक सापना रू० ॥ निरखंत जराणा कलश पूराणा पापना रू० ॥ अंधकूपक रें आवे करारें ज्यां त्रिया रू० ॥ भूपें लहि ताघा वे कर आघा ता किया रू० ॥ ३ ॥ सुख माहिं उतारी बाहेर नारी राजिये रू० ॥ बेटी पिउ विदुएं जणुं डुएं मन किये रू० ॥ महबल तस के में आव्यो में कांटने रू० ॥ कोपें कलुषाणो नरनो रा पोदीव रू० ॥ ४ ॥ चिंते एह रूपें अधिको मोपें टॅपीयो रू० ॥ लावण्य पयोधि नारियें शोधि वर की यो रू० ॥ मुज मीटथी रमण। काबी जमणी ए जुवे रू० ॥ मीठो गोल पामी खोलनो कामी को हुवे रू० ॥ ५ ॥ मादलि मारयो स परिवारयो गोठिनो रू० ॥ नाखुं ञं ध कोठीमां जिम पोठी पोटिनो रू० ॥ थापी म हूं की कापी मूकी दोरमी रू० ॥ बंधनथी बूटी मांची त्रूटी उथकी रू० ॥ ६ ॥ पमि ततखेवा खातो ठेबां कोरनां रू० ॥ नीचें ढल जावा लागा कांठा जोरना रू० ॥ नारी तस पूंछें पकवा कुठे साहसें रू० ॥ नू करसाही राखी वाहीनें तिसें रू० ॥ ७ ॥ आणी श्रावासे राय प्रकासे तेहनें रू० ॥ कुंए ए रस नरि
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(१५३) यो ते आदरियो जेहनें रू० ॥ पूजी नवि बोले आंसू ढोले दुःखनां रू० ॥ निःश्वास विबूटे आहार न बोटे कमना रू० ॥॥॥मूर्जालही जागी कहेवा लागी एहवो रू० नोजन पिज पाखें न करूं लाखें जेहवो रू0 ॥ मूकी एक महेलें थाप्या गयले पाहरु रू० ॥ बेठगे जर काजें राज समाज पाधरु रू० ॥ ए॥ था शे किम कूपें नाख्यो नूपेंनाहलो रू०॥नीसरशे क्या थी किम करी त्यांची वाहलो रूप ॥ चिंता चित्त धर ती हझं जरती शोगमें रू० ॥थासंगल. गाढो कर ती दादाढो नीगमे रूप ॥ १०॥ रति त्यां अण. ल हेती, विरहें दहेती देहमी रू०॥॥ निशिमां एक मा गें नूतल नागें ते पमी रू०॥ मंकी विषधरिये रोष जरिये क्याहिंथी रू० ॥ बोली अहि विलगो न रहे अलगो हिंथी रू०॥ ११॥ नोकार संजारे जिन मन धारे थिर मनें रू० ॥ पोहरायत या हणवा धाया नागनें रू० ॥जीवितथी टाल्यो नाग उठाट्यो वेगलो रू०॥विरतंतसुणायोनूपति आयोव्याकु.लो रू.॥१॥ उपचार घणेरा कीधा नलेरा जे घट्या रू०॥ साहमा विष जोला लहेर हिलोला कमव्या रू० ॥ इंजी थयां शूना चेतन ऊना धारणें रू० ।। एक सास
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(१४) उसासो मंमित मासो क्षण दाणे रू०॥ १३ ॥ ते पुःख निशि ग्रहेती न लहे वहेती विश्रमो रू० ॥क रवा तन ताजी प्रगट्यो गाजी प्रहसमो रू० ॥ था को उपचारें नूप तिवारें अति उःखें रू० ॥ पमहो वजमावे साद पमावे जन मुखें रू. ॥ १४ ॥ देश कंन्या बंधुर रणरंग सिंधुर तेहनें रू० ॥ आपे नृप रा जी जे करे साजी एहनें रू० ॥ करता पुर फेरी शेरी शेरी फस्या रू०॥ त्रिक चाचर चोकें नृप पथ धोंके संचस्या रु०॥१५॥थानक सावनटकी पाबग बटकी में वक्ष्या रू०॥ नृप जवननी वाटें आवे उच्चाटें खल जदया रू०॥ चोथे खंमें चावी ढाल सोहावी आग्मी रू०॥ कहे कांति उमंगें रसने रंगे ए गमी रू॥१६॥
॥दोहा॥ ॥ एहवे नर एक अनिनवो, पमह बबे त्यां आय ॥ नृप सुनटें नूपति कन्हें, आएयो तेह बुलाय ॥ १ ॥ नि रखत मुख नृप उलखे, अहो पुरुषनें प्रांहिं ॥ कूप थकी किम नीसरी, आव्यो दीसे हिं॥२॥ दैव हण्यो मुज वैरीयें, कीधो केण कुकऊ ॥ मुजने अल गो जाणीने, काढ्यो ए निर्लऊ ॥ ३ ॥ईम चिंति
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(२२५) अण उलखू, थयो गोपिताकार ॥ करवा स्वारथ सा धना, बोल्यो वचन जदार ॥४॥ ॥ ढाल नवमी ॥ गाढा मारूजी, नमर पीवेजाठी
चगें॥अमली पीवे कलाल रे।। गाढामारु अति । उनमादी माहारो साहेबो ॥ए देशी ॥
॥ मोरा नेहीजी,अनवखतेंाव्या नलें, उपकार क सत्यवंत हे ॥ मो० ॥ करुणा ते कीधी साहिबे, मोहनजी मतिमंत रे ॥ मो० ॥ क० ॥ मो० ॥ तुम सरिखे आजूषणे, पुहवी तल शोनंत रे ॥ मो० ॥ ॥ क०॥१॥मो० ॥ मलया विष वालण तणुं, काम करो लेई हाथ रे ॥ मो०॥क०॥मो ॥ रणरंग आपुं हाथियो, जनपद तनुजा साथ रे ॥ मो० ॥क० ॥ ॥२॥ मो० ॥ लाचिगुं लोकां विबें, ए डे यशर्नु काम रे ॥ मो० ॥का ॥ मो० ॥ वजी हुं मुख बो व्यायकी, आपीश अधिक इनाम रे ॥ मो० ॥ कण्॥ ॥३॥ मो० ॥ महाबल कहे मुजनें इहां, आपीश मां तुं काई रे । मो० ॥ कण ॥ मो० ॥ मागु एहिज सुंदरी, जो पण निर्विष थाई रे ॥ मो०॥ कण्॥४|| ॥ मो० ॥ श्रावी देशांतरथकी, नहीं केहने संबंध रे ॥ मो० ॥ क० मो० ॥ एहवी मुजने थापतां, कर
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(२६) शे कुण प्रतिबंध रे॥मो०॥॥५॥मो॥संकट पनि यो महीपति, कहे तुज देश तेह रे॥ मो॥ क०॥ ॥ मो॥ बीजां पण मुज केटलां, काम करीश जो हरे॥ मो॥ कण्॥६॥ मो० ॥ जे कहेशे नृप का म ते, करिने तुरत सर्व रे । मो० ॥ क० ॥ मो० ॥ले जाईश निज नारजा, चिंते एम सगर्व रे ॥ मो० ॥ ॥ का ॥७॥ मो० ॥ नूप वचन अंगी करी, आव्यो मलया समीप रे ॥मोगाक०॥मो॥मूगत दीठी त्रिया, मूकी गरल उदीप रे ॥ मो० ॥ क०॥ ७॥ ॥मो०॥विषम अवस्था नारीनी, जोतां जलनरें नय पण रे॥ मो०॥ ॥ मो० ॥रोधे मन का करी, बो ले इम वली वयण रे ॥ मो० ॥ क०॥ए। मो०॥ग त चेतन ए सर्वथा, न लिये श्वास लगार रे॥मो०॥ ॥ कण । मो० ॥ तोपण अंगें आगमी, करशुं हुं प्रतिकार रे ॥ मो० ॥ क० ॥ १०॥ मो० ॥ सर निषेधी लोकनो, धरणी करो जल सित्तरे ॥मो० ।। क० ॥ मो० ॥ तिमहिज नृपने सेवकें, कीधी धरा सुप वित्त रे ॥ मो० ॥ क० ॥ ११॥ मो०॥ तुपति आदें जन सवे, बेठा बाहिर आय रे॥ मो०॥ ॥क०॥ मो०॥ कुमरें मंगल मांनीयु, विष बालक
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(२२७) नो उपाय रे ॥ मो० ॥ कम् ॥ १२ ॥ मो० ॥ मंगल मां प्रजी विधे, ध्यान धरी महामंत रे॥ मोक० ॥ ॥ मो० ॥ कटिपटमाथी काढी, विष वालक मणितं त रे ॥ मो० ॥ क० ॥ १३ ॥ मो०॥ दाली मणि जल सिंचीयुं, विकस्यो लोयण लेश रे॥मो।क। मो० ॥ ढांक्या ज्यौं रवि तेजथी, कमल हशे एक दे श रे ।। मो० ॥ क० ॥ १४ ॥ मो० ॥ मुखमां जल सिंच्युं तदा, वलिया सास उसास रे। मो० ॥क० ।। ॥मो० ॥ लोचन पूरी उघड्यां, कमल ज्यों पूर्ण प्रका शरे ॥ मो० ॥क० ॥ १५ ॥ मो० ॥ सर्वगें जल सिं चीयुं, पायुं उदक अशेष रे । मो० ॥ कण ॥ मो०॥ ऊठी आलस मोमती, करती हाव विशेष रे ॥मो० ॥ ॥ कण ॥१६॥ मो० ॥ पनधास्या प्रजुजी हां, कू पथकी किण रीत रे ॥ मो० ॥ क ॥ मो॥ साजी मुजनें किम की, पूडे साधरी प्रीत रे ॥ मोक०॥ ॥ १७॥ मो० ॥ कुतर कहे मांची थकी, पमीयो हुँ जई रे ॥ मो० ॥ क० ॥ मो० ॥ त्यां मणि तेजें एक शिला, दीठी मणिधर हेउ रे॥मोक० ॥१७॥ ॥ मो० ॥ बाने जश्मूठी हणी, उपनियुं तदा बार रे. ॥ मो० ॥ क० ॥ मो० ॥ मणिधर सलक्यो पर मुहें,
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(२७) पेगे हूं तिण गर रे ॥ मो ॥क ॥ १५ ॥ मो० ॥ साहस धरि टुं चालीयो, विवरें धरणी मांहिं रे ॥ मो० ॥ कम् ॥ मो० ॥ विषधर दीवीधर थयो, था वे पूंजें उछांहिं रे ॥ मो० ॥ क० ॥ २०॥ मो॥ ए ह सुरंगा चोरनी, तिण वली बीजं बार रे ॥ मो०॥ ॥ क० ।। मो० ॥ होशे एहवू चिंतवी, आघो कीधो प्रचार रे । मो०|| क० ॥१॥ मो० ॥ तेहवे म ख श्रागें थई, मणिधर नागे तेत रे ॥ मो० ॥क०॥ ॥ मो० ॥ श्याम तिमिरकुल नबस्युं, जिम जमता जम चेत रे ॥ मो० ॥ क. ॥ २२ ॥ मो० ॥अनुसा रें हुं चालतो, आयमीयो जई कार रे॥मोक०॥ ॥ मो० ॥ चरण हणी बीजी शिला, नाखी उलटी ति वार रे । मो० ॥ क० ॥ २३॥ मो० ॥ बार विवरचं उघमधुं, नीस रियो बहिआय रे। मो०॥क०॥ मो०॥ जन्म्यो गर्नावासथी, चिंत्युं श्म अकुलाय रे ॥मो॥ ॥ कण ॥ २४॥ मो० ॥ आधेरो चाट्यो वही, जोतो अहिगति लीक रे॥ मो॥क०॥मो॥ शिलाशिरें दीगे अही, बेठगे थई निर्नीक रे॥मो॥क०॥२५॥ ॥ मो० ॥ मंत्र.नणी ते वश कीयो, लीधो तस मणि नंग रे ॥ मो० ॥ का ॥ मो०॥ गिरि नदीयें सम
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( ए) शान मां, दीसे तेह सुरंग रे ॥ मो० ॥ क० ॥ २६ ॥ ॥ मो० ॥ पश्यतहर दीसे मूर्ख, चिंती इम शिल तेय रे ॥ मो० ॥ कण्॥ मो० ॥ ढांकी बार सुरंगनें, नीसरियो जमहेय रे॥मो॥क॥२७॥मोबाने पुरमा पेसतां, निसुण्यो पमहं निनाद रे ॥मो० ॥ क० || मो॥पू ब्युं जाण्युं ताहरें, व्याप्यो विष उन्माद रे । मो० ॥ ॥ क० ॥२७॥ मो० ॥ तुज विरहो अण सांसही, प मह बब्यो पण बंध रे॥मो॥ कण्॥ मो०॥ मणि योगें साजी करी, गाल्यो विषनो गंध रे ॥मो० ॥ ॥क० ॥ ॥ मो० ॥ बांध्यो वचनें सांकमो, धीगे पण नरनाह रे ॥ मो० ॥ कण् ॥मो॥ देशे तुजने मु ज जणी, हवे न करे मन दाह रे ॥ मो० ॥ क० ॥ ॥ ३० ॥ मो० ॥ पीयु वचनें रंजी त्रिया, चोथा खं म विचाल रे ॥ मो० ॥ क० ॥ मो० ॥ कांति विजय जांखी रसें, निरुपम नवमी ढाल रे॥मो॥क०॥३१॥
॥दोहा॥ ... || कुमरें नूपति तेमी,आव्यो अधिक प्रमोद ॥ निरखे बाला हर्खथी, करती वात बिनोद॥ १॥ शिर धूणी नूपति जणे, अहो शक्तिनो खेल ॥ अम फुःख साथें जेणीयें, फेंक्यो गरल उवेल (प्रवाह)॥२॥
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(२३०) अति विस्मित वसुधाधवें, पूज्यं नाम निवेश॥ सिक पुरुष इति तेहनी, निज कहे नाम निर्देश ॥३॥ जि मी नहीं गत वासरें, विरची बाला एह॥उचित जमा मो तेह नणी, कहे नूप ससनेह ॥ ४॥पय पाकुं सा कर रसें, पावे कुमर सहाथ ॥ स्वस्थ हुई वातो करे, ते नृप सुतनी साथ ||५॥ ॥ ढाल दशमी ॥ पंथीमा रे संदेशमो॥ए देशी॥ ॥ कुमर लणे नूपति प्रत्ये, करो शीख सुजाण ॥ द्यो मलया मुजनें हवे, पालो वचन प्रमाण ॥ १ ॥ टुरे विदेशी पंथियो, न सहुँ ढील लगार, ॥ मुज मन छ ग्युं हांथकी, चालण निरधार ॥ हुं० ॥२॥ कांश विचारो राजिया, करो कोकि विषाद ॥ रुसवा थाशो लोकमां, मूक्यां मरयाद ॥ हुं० ॥ ३ ॥ रवि जलधर जलनिधि शशी, मूके नहिं स्थिति आप ॥ तिम नृप पण नवि उबपे, कुलवट स्थिति थाप॥ हुं ॥४॥
आपो मलया एहनें, था राजि प्रसन्न ॥ दंपती पुः खियां मेलवी, करो सत्य वचन्न || हुं. ॥ ५ ॥सम जावे इंम नूपनें, पुरनां लोक समस्त ॥ श्रापूस्यो ते सांनली, कोपें मदमस्त ॥ हुं० ॥६॥ क्षण एक श्र ण बोल्यो रही,मांमे बीजी वात॥है है नितुर पणा
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( २३१ )
तणी, जूने मूंदी धात || ढुं० ॥ ७ ॥ पूढे नरपति सिद्धनें, लोयल कलुषाय ॥ कहे रे ताहरे एहसुं, श्यो सगपण थाय ॥ हुं० ॥ ८ ॥ सिद्ध कहे धण माहरी, पामी मुक विजोग || दैवदयाथी माहरो, लही आ ज संयोग || हुं० ॥ ए ॥ यवनीपति धाखे वली, क र एक मुज काम ॥ ढील नहीं देतां पढ़ें, तुजनें एड् चाम ॥ हुं० ॥ १० ॥ दुःखे शिर नित्य माहरू, तेहनो एह उपाय || लक्ष्णधर तुज सारिखो, नर यावे च लाय ॥ हुं ॥ ११ ॥ चयमां बाली तेहनुं, कीजें ज स्मशरीर ॥ लेपें शिर पीमा ढरे, तेह जस्म सनीर ॥ ॥ हुं० ॥ १२ ॥ बध ए तुजनें जलें, करवुं माहरे काज ॥ सौंप्युं दुष्कर काम ए, मारण नरराज ॥ हुं० ॥ || १३ || लुब्ध्यो मलया देखीनें, निर्लज ए नरराज ॥ मुजनें दवा कारणे, सोपें एहवुं काज ॥ हुं० ॥ ॥ १४ ॥ धमें मुजनें सूचव्युं, पहेलुं पण ए६ ॥ करशुं जो मृत्यु यागमी, तो पण देशे बेह ॥ हुं० ॥ १५ ॥ मरण विना कुंण करी शके, दुःख संजव काज ॥ श्रं गीकस्युं में घुरथकी, न कस्या मुज लाज ॥ हुं ॥ १६ ॥ एम धारी साहस ग्रही, वोल्यो त्यां नर सिद्ध ॥ चिं ता न करो राजिया, कारज ए में लीध ॥ हुं० ॥ १७ ॥
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(२३५) पुर्खन उषध ताहरूं, करवू में निरधार ॥ तुं पण प्रम दा आपतां, मत करजे विचार ॥ हुं ॥ १७ ॥ फो गट गाल फुलाविनें, कहे नूप हसंत ॥ उपकारकनें
आपतां, कहो शुं खटकंत॥हुं०॥१॥कठिन हृदय नरराजियो, हरख्यो मन पापिष्ट ॥ राखे दंपती जूजू यां, जण थापी निःकृष्ट ॥ हुँ॥२०॥ मंदिर आये मलपतो, करतो रस चाल ॥ दशमी चोथा खंगनी, कांतें कही ढाल ॥ हुं० ॥ १॥ इति ॥
॥दोहा॥ ॥ कुमर हवे नृपनें कहे, करवा उचित विधान ॥ काठ शकटनरि जोतरी, मूके ज्यां समशान ॥ १ ॥ निरखी विषम कर्त्तव्यता, पुःखियां पूस्यां लोक ॥हाहा नरमणि विषसशे, इम कहे थोके थोक ॥२॥ हलां आनूषण धरी, वीट्यो राज सुजट्ट ॥ पछिम पो होरें पितृवनें, पोहोचे कुमर प्रगट्ट ॥ ३ ॥ व्यतिकर लोकथकी लहे, मलया पियुनो आप ॥संतापी विर हानलें, विधविध करे विलाप ॥४॥ - ॥ ढाल अगीयारमी ॥ ऊठ कलालणी नर घं .. मो हे, दारुमारो मूल सुणाय॥ ए देशी॥
॥ धिग मुज यौवन रूपनें हे, धिग मुज जनम थ
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(२३३) काय ॥ आपद पमियो जेथी हे, मोहें लोनाणोना थ ॥प्राण प्यारो बलवा हे कां जाय॥१॥ पहेलो दुःख सागरथकी हे, तरियो तुं समरब ॥ए वेलामां साहेबा हे, कुंण ग्रहशे तुज हब॥प्रा०॥२॥काठ कुठी मां नीमियो हे, पंजरमां जिम कीर ॥नीसरशेक्यां थी तदा हे, मुज नणदीरो वीर॥प्रा०॥३॥कर सा ही नूपतिनमें हे, खेप्यो तुं चयमांहि ॥ सहेशे कि म पीमा घणी हे, कीधी पावक दाहि ॥प्रा०॥४॥ क्यां आव्यो इहां मोहना हे, मलियोकांमुजाय॥ कांई जीवामी पापिणी हे, हुं हुश् जे फुःखदाय ॥ ॥प्राण ॥ ५॥ विरहो ताहरो प्रीतमा हे, हियके ये घसि घाव ॥ नेह नितुर नाहर थयो हे, खेले कग्नि कुदाव ॥प्राण ॥ ६॥ आशाथी तें त्रोमीयां हे, ए वेला जगदीश ॥ तरबामा अधमारगे हे, काढ। पूर। राश ॥प्रा०॥७॥प्रीतमलीहीयमेवसी हे, लांगें मीठीगा ढ ॥ साले बूटी अधरसें हे, जिम तीखी यमदाढ ॥ ॥ प्राण ॥ ॥ पमज़ो शिल शिर तेहनें हे, · पाड्यो जेणे वियोग ॥ पारजन तेहनां रखमजो हे, जिम का प्यां थल फोग ॥ प्रा० ॥ ए॥ विलपत प्रमदा खीज ती हे, दुःख पूरी महे मूर ॥ पीयु. लोयण आंसुयें
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( २३५ )
हे, ये जल अंजली पूर ॥ प्रा० ॥ १० ॥ निरखुं नय नाइलो हे, तो मुज जोजन वात || बेठी एहवं आदरी हे, करवा आतम घात ॥ प्रा० ॥ ११ ॥ नृप नंदन समशानमां है, इहां तिहां निरखी ठगेर ॥ खमके इछित थानकेंदे, मोहोटी चय एक कोर ॥ प्रा० ॥ १२ ॥ साहस देखी तेह है, पुर जण मलिया धाय ॥ दिल गिरी धरता हिये हे, भूपतिनें कहे श्राय ॥ प्रा० ॥ || १३ || देव विचारया विए ईस्यो दे, मांड्यो कवण अन्याय || राख मिशें पशुनी परें हे, हवियें नहीं सि कराय ॥ प्रा० ॥ १४ ॥ मलया नापो तो जलें हे, पण मारो को एह || ाम वचनें मूको दवे हे, करी क रुणा गुणगेह || प्रा० ॥ १५ ॥ नूप जणें ए नामि नी दे, मुजने नवि निरखंत || उपरांठी काठी दुवे दे, जो नर ए जीवंत ॥ प्रा० ॥ १६ ॥ ए बाला विए मा हरे है, न पके जक पल मात ॥ मत पकजो ए वात मां दे, सो वातें एक वात ॥ प्रा० ॥ १७ ॥ निर्दय तब तिहां बोली यो दे, जीवो नामें प्रधान ॥ शी एहनी तुमनें पमी दे, मेलो बो इहां तान ॥ प्रा० ॥ १८ ॥ पोतानें पायें पची हे, मरशे जो दुःख आणि नगरीमा केहनें है, ए होशे घर दाणी ॥ प्रा० ॥
॥ तो
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(२३५) राजाने मंत्री हां हे, मझिया पापी दोय ॥ तो ते हवा नररत्नने हे,कुशल किहांथी होय ॥ प्रा०॥२०॥ बार मिशे आरंनियो हे, अनरथ विश्वा वीश ॥सहि पुर्मति ए बेहुनें हे, बारज पम्शे शीश ॥प्रा०॥१॥ गलतां माखी जीवती हे, को करे एहवं काम ॥ अन्योन्य कहेतां जण तिके हे, पोहोता निज निज गम ॥प्रा० ॥२२ ॥ अकल कला कोई केलवी हे, पियु लेहेशे जयमाल ॥ चोथे खंमें अग्यारमी हे, कांतें पत्नणी ढाल ॥ प्राण ॥२३ ॥ इति ॥
॥दोहा॥ ॥ष्ट संजारी आपणो, परवरियो लमबंद ॥ द क्षिण करें प्रदक्षिणा, चय पाखलि नृपनंद ॥१॥ पु रजन मुख हाहा रखें, आपूस्यो आकाश ॥ लोक हृद य कसणे करे, शोक परीक्षा ज्यास ॥२॥ सहसा तृ पसुत उतपात, पम चितामा जाम ॥ ततक्षण पुर जन नेत्रथी, पसस्यां आंसू ताम ॥ ३ ॥ ॥ढाल बारमी॥ तमाकेत्तोमी डे पुःख मालाए देशी॥ ____॥निरखे सुचट विकट चयमांहि, पेठगे कुमर जि वारें॥चिहुं दिशि प्रबल अनल सलगाड्यो, पसरी जाल तिवारें ॥१॥ ऊबाकें जलकी डे दिगमाला,
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( २३६ )
सुर
तायें कटकण लागा काठ ॥ चमाकें चमकी बे बाला ॥ ए की ॥ धोरणी धूम तणी त्यां प्रसरी, दिशि दिशि अंबर बायो ॥ श्यामघटा करी पावक रूपें, जाणे पावस यायो । ऊ० ॥ २ ॥ वन्हि पतंग उमे तगतगता, खजुच्या जिम चिहुं घोरें ॥ जाल वीज ज्यं चिलकण लागा, अनल जलदनें जोरें ॥ ज० ॥ ३ ॥ सात जीन शतजीज थईनें, नजतल चाटण लागो ॥ तस उद्दीपक पचनसहायी, विशमो थई त्यां वागो ॥ ऊ० ॥ ४ ॥ धीरपणुं पुर लोक प्रशंसे, तस हा व ण सुणतां ॥ ज्वलत रह्यो विश्वानल देखी, सुनट वल्या गुण थुणता ॥ ज० ॥ ५ ॥ जिम की धुं तेणें तिम नृप आगे, जांख्यं सकल बनावी ॥ नूप प्रधान विना पुरजननें, ते निशि निंद न घ्यावी ॥ ज० ॥ ॥ ६ ॥ दुई प्रजात विजा तनु तारा, ढांक्या सूर प्रजा वें ॥ तव शिर रक्षा पोटि धरीनें, वे सिद्ध स्वजा वें ॥ ज० ॥ ७ ॥ देखी विस्मित लोक उमंगें, पग प ग हवं पूढे ॥ अहो सुगुण तुं आव्यो किहांथी, शि शें एह की स्युं बे ॥ ज० ॥ ८ ॥ ते चयनी रक्षा ले हूं, आव्यो बुं नृप काजें ॥ इम कहेतो पोहोतो नृप जवनें, सिद्ध पुरुष शुभ साजें ॥ ॐ० ॥ एए ॥ राख पो
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(२३७) टली आपे नृपनें, कहेतो एहबुरंगें ॥ ए नाखो निज माथे एहथी, रहेजो निरुया अंगें ॥ ॐ ॥ १० ।। नूप नणे शुं न बच्या चयमां, आव्या दीसो साजा ॥ आग सगी नहीं जगमा केहनें, न गणे सतियां आजा ॥ ज० ॥ ११॥ कुमर विमासे कूमा आगें, बनशे कू हुँ बोट्युं॥कहे नृपनें हुं दाधो चयमां, मन साहस नवि मोट्युं ॥ ऊ || १२ ॥ मुज साहसथी सुरगण रीज्या, अमृत रसें चय गरे ॥थयो सजी चित्त फरी हुँ तेहथी, भावी रह्यो चय आरें ॥ ज०॥ १३॥ र पोटली तिहांथी लेश, आव्यो राज समी॥ वाचा तेह पले तो रूमी, बोली जेह मही॥॥१४॥ नूप विचारे धूरत एणे, मीट सकलनी वंची॥॥हां र ह्यो गली चय बाली, सुनटें करी ग उंची। ऊ०॥ ॥२५॥कांत समागम जाणं मलया, मलवाने घसी आवी ॥ आरक्षक परिवारे वींटी, निरखत हरख न मावी ॥ ज० ॥ १६ ॥ एकांतें जश् पूजे पतिने, पा वक पंग स्वाम। ॥ कुशल कम मख्या ते लाखो, पा यु कहे अवसर पामी ॥ ज० ॥ १७ ॥ अंध कूप गत जेह सुरंगा, ते मुख में चय खमकी॥ पृथुल गर्न घ रने आकारें, हार शिलायें अम्की । ऊ ॥ १७ ॥
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(२३७) पेठो हुँ चयमां थर गनें, छार सुरंग उघामी ॥ सबल सुरंग शिला तस छारें, दीधी पानी अामी॥०॥१॥ सुनटें चय सलगामी मूकी, बली बली थइ टाढी॥ छार उघामी कुशले श्राव्यो, बार नृपति शिर चाढी ॥ ज० ॥२०॥ सुंदरी गुह्य कथा ए माहरी, कोश आगे मत नांखे ॥ पुष्ट नृपति मुज बिउ विलोके, तुज लेवा अनिलाखे ।। ऊ० ॥१॥ चोथे खंमें थश छादशमी, ढाल सुधारस मीठी ॥ कांति कहे धणनी पिउ संगें, विरह व्यथा सवि नीठी ॥ ज० ॥ २२ ॥
॥ दोहा ॥ ॥श्राव्यो नरपति तेहवे, कहे सिझनें जंत ॥ नोजन द्यो मलया जणी, अम हाथे न करत॥१॥ तरुणी तुरत जमामीनें, कहे सिक सुण राय॥की, कारज ताहरूं, हवे अम दीयो विदाय ॥२॥आपो मुज धण आदरें, थापो बोल प्रमाण || निरखे जीवा सामुहो, वचन सु णी महेराण ॥३॥ संकधी जगव्यो वली, मंत्री बल नुं धाम॥अहो सिद्ध साध्युं सबल, नूपतिनुं ए काम ॥४॥ उपकारी शिर सेहरो, महा सत्त्ववर सिंधु ॥ बीजुं पण महीपति तणुं, कर एक कारज बंधु ॥५॥
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( २३७ )
व
॥ ढाल तेरमी ॥ विंजाजी हो रतन कूठे मुख सांकको रे विजा, किम करी करूं रे ऊकोल || रायविंजा, सयण मारू ॥ ए देशी ॥ ॥ साधकजी हो एह पुरनें तिकको रे मित्ता, नामें गिरिबन्न टंक || सिद्ध रूमा, सयण म्हारा ॥ ॥ सा० ॥ विषम ऊरध शिखरें तिहां रे मित्ता, निरमंक || सिद्ध० ॥ १ ॥ सा० ॥ फल तेहनां यति सीयलां रे मित्ता, लहीयें बारही मास ॥ सि० ॥ सा० ॥ ते शिखरें उंचा चढी रे मित्ता, तलपी हवे आकाश ॥ सि० ॥ २ ॥ सा० ॥ विषम थलें या शिरें रे मित्ता, पोहोचीनें फल लेय ॥ सि० ॥ ॥ सा० ॥ ऊंपावो वली अंबंधी रे मित्ता, नूतल जा ग तकेय ॥ सि० ॥ ३ ॥ सा० ॥ श्रवो इहां कुशलें बड़ी रे मत्ता, मूको फल नृप जेट ॥ सि० ॥ सा० ॥ पित्तविकार नारदनो रे मित्ता, टलशे तेहथी नेट ॥ ॥ सि० ॥ ४ ॥ सा० ॥ कुमर विमासे दो हिलो रेमि त्ता, ए पण नृप आदेश ॥ सि० ॥ सा० ॥ थानक मरण त सही रे मित्ता, न फुरे जिहां मति लेश ॥ सि० ॥ ५ ॥ सा० ॥ जो न करूं तो कामिनी रे मित्ता, नापे ए नरनाथ ॥ सि० ॥ सा० बिहुं वातें
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(२४) मृत्यु माहरुं रे मित्ता, पमिया नूमि बेहाथ ॥ सि॥ ॥६॥ सा० ॥ जो पण देवप्रनावथी रे मित्ता, क रशुं पुष्कर काज ॥ सि० ॥ सा० ॥ जीवितने मुज सुंदरी रे मित्ता, दोय वात सुसाज ॥ सि॥७॥ ॥ सा ॥ धारी एहवं आदरें रे मित्ता, मंत्री वचन तिम तेह ॥ सि० ॥ सा ॥ आसनयी ऊठ्यो धसी रे मित्ता, साहसनुं कुलगेह ।। सि ॥ ७ ॥ सा० ॥ मलया जल नयणे नरे रे मित्ता, पुःख पूरे दिलगीर ॥ सि०॥ सा०॥ महबल जण वीट्यो घणे रे मित्ता, आवे गिरिवर तीर ॥ सि ॥ए॥सा०॥जिम जिम गिरि जंचो चढे रे मित्ता, तिम तिम जणने शोक॥ ॥ सि ॥ सा ॥ नूप तिने मंत्री हश्ये रे मित्ता, वाधे हर्षना प्रोक ॥ सि० ॥ १०॥ सा || शोने गिरि ट्रंके चढ्यो रे मित्ता, उदय गिरि जिम सूर ॥ सि०॥ ॥सा०॥ नृप सुनटें नीचो रह्यो रे मित्ता, अंब दे खाड्यो दूर ॥ सि०॥ ११ ॥ सा० ॥ रूमुंजे में उ पाज्यु रे मित्ता, न्याय धर्मनें मेल ॥ सि० ॥सा० ॥ सफल हजो माहरु शहां रे मित्ता, तेहथी साहस खेल ॥ लिए ॥ १२ ॥ सा इंम कहेतो अंबा थकी रे भित्ता, यापे कंपापात ॥ सि०॥ सा० ॥
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( २४१ )
हाहारव लोकां तो रे मित्ता, गिरि कूड़े नवि मात ॥ सि० ॥ १३ ॥ सा० पकबंद्यो गिरिकंदरें रे मि त्ता, हाहारख ततखेव ॥ सि० ॥ सा० ॥ जाएं साह स देखीनें रे मित्ता, बोल्यो तिम गिरिदेव ॥ सि० ॥ ॥ १४ ॥ सा० ॥ पकतो वेगें शृंगथी रे भित्ता, थे खे चरनी ब्रांति ॥ सि० ॥ सा० ॥ अदृश्य हुई जन देखतां रे मित्ता, जिम यारों नृप खांति ॥ सि० ॥ ॥ १५ ॥ सा० ॥ श्रहह अनय ए करो रे मित्ता. हाहा पाप प्रचंम ॥ सि० ॥ सा० ॥ पकतां एहना दामनो रे मित्ता, जमशे कहो किहां खंग ॥ सि० ॥ ॥ १६ ॥ सा० ॥ पुरजन एहवं जांखतां रे मित्ता, नृपपुर शिव कहत ॥ सि० ॥ सा० ॥ निज निज घर आया वही रे मित्ता, तस साहस स लहंत ॥ ॥ सि० ॥ १७ ॥ सा० ॥ सुहमें सकल सुखावियुं रे मित्ता, नृप मंत्री विरतंत ॥ सि० ॥ सा० ॥ याप कृतारथं मानता रे मित्ता, निवढे रात निरंत॥ सि० ॥ ॥ १८ ॥ सा० ॥ सिद्ध प्रजातें यात्रियो रे मित्ता, लै सहकार करंग ॥ सि० ॥ सा० ॥ पग पग जन देखी कहे रे मित्ता, चाव्या केम अखंग ॥ सि० ॥ १९॥ ॥ सा० ॥ सिद्ध कड़े कदेशुं पढ़ें रे भित्ता, हवणां म
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( २४२ )
पूढशो कांई ॥ सि० ॥ सा० ॥ कदेतो ईम जन वीं टीयो रे मित्ता, नृप जवनें गयो धाई ॥ सि० ॥ २०॥ ॥ सा० ॥ श्यामवदन राजा दूठे रे मित्ता, बीदीनो निरखी चित्त ॥ सि० ॥ सा० ॥ बोल्यो तेहवे मंत्रवी रे मित्ता, कुशल्यो किम तुंमित्त ॥ सि० ॥ २१ ॥ ॥ सा० ॥ महीज इति मुख बोलतो रे मित्ता, मूके
बकरं ॥ सि० ॥ सा० ॥ कहे ए ब्यो खाउं सहू रे भित्ता, पित्त समावो उदंग ॥ सि० ॥ २२ ॥ सा० ॥ बीहीना हाकें बापमा रे मित्ता, भूप प्रमुख करे मून ॥ सि० ॥ सा० ॥ बे ऋण तेह करंथी रे भित्ता, सिद्ध ग्रहे फल धून ॥ सि० ॥ २३ ॥ सा० ॥ नृपनें पूठी संचरे रे मित्ता, मलया पास हसत ॥ सि० ॥ ॥ सा० ॥ सा घनथी जिम मोरमी रे मित्ता, पीठ दीवे विकसंत ॥ सि० ॥ २४ ॥ सा० ॥ सकल उचित वि धि साचवी रे भित्ता, बेठी पीठ संग बाल ॥ सि० ॥ ॥ सा० ॥ पंमितजी रे चोथे खं तेरमी रे मित्ता, कां तें कही ए ढाल ॥ सि० ॥ २५ ॥ सा० ॥ इति ॥ ॥ दोहा ॥
॥ कर जोमी कामिनी कहे, जांखो कंत उदंत ॥ गत दिन गत आगम कथा, तब महबल पजयंत ॥
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(२४३) ॥१॥ सुंदरी पहेलो मुज मल्यो, योगी वनमांजेह ॥ प्रजयो पावक कुंममां, थयो व्यंतरो तेह ॥२॥ ते व्यंतर शहां अंबमां, वसि मुज नाग्यण ॥ गिरिथी पमियो वचन वदे, उलखियो ढुंतेण ॥ ३॥ आप करें मुजनें ग्रही, बोल्यो ते गुण लीह ॥ रे उपगारी मित्र तुं, मनमां कां म बीह ॥४॥आप स्वरूप कडं ति णे, में पण मुज विरतंत ॥ करतां मैत्री संकथा, वी ती राति तदंत ॥५॥ ॥ढाल चौदमी ॥ मन मधुकर मोही रह्यो॥ए देशी॥
॥ मुज मनहुं तुमथी हव्युं, रहो रहो मित्र सुजा ण रे ॥ थावो अम घर प्राहुणा, पालो प्रेम पुराण रे ॥मु०॥१॥पूरवला संबंधथी, मलीयो जो मुज आई रे॥ तो तं एम उतावलो, उठी ने कांई जाई रे॥म०॥ ॥२॥पाहुण गति शी साचवू, कहे तुंमुखथी थाप रे॥ तुमआणा माथे धरूं, जिम जग नृपनी बाप रे ॥मु०॥ ॥३॥ तव हुँ बोल्यो ते प्रतें, सुण बांधव गुणवंत रे ॥ नृप कामें हुं आवियो, ढील शहां न खमंत रे॥मु० ॥४॥ पण बांध्यो में जेहवो, तेवो हुये सुकयबरे॥ तो जाणुं मैत्री तणुं, सही सफल परमबरे॥मु०॥५॥ बोल्यो सुरसुण मित्रजी, ए नृप शत्रु सरीख रे॥हणवा
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(२४४) चाहे तुजानें, कहे तो झुं वे शीख रे॥मु॥६॥में लांख्यु एह एटले, नहिं विरमे जई आप रे ॥ तो एहनें सम जावणुं, करी कूमो जपजाप रे। मु॥७॥ विषम प्रयोजन ताहरे, आवी पझे कोई जेथ रेः॥ संनास्यो हुँ ततदणे, करशुं सानिध्य तेथ रे ॥ मु०॥७॥मक हेतो सुर फिहांथकी, लाव्यो एक करंग रे ॥ सरस रसाल तणे फलें, नरीयो तेह अखम रे॥मु०॥ ए॥मु जनें तेह करंमशु,सुरवर श्राप उपाभी रे॥मूक्यो पुरने उपवनें, जिहां जिन मंदिरामी रे॥मु०॥१०॥सर बोल्यो ए फल जई, देजे तुं नृप हाथे रे ॥ अदृश्य गातिक रू तिहां, श्रावीश हुँ तुज साथै रे॥मु०॥११॥ जे जे घटशे काम त्यां, करशुंबाने हुं तेह रे॥ शीख वियो इम मुजानें, देवें आणी सनेह रे ॥मु०॥ ॥ १५ ॥ थाप्यो तेह करंमी, नूपति आगले जाई रे ॥ लेई अनुज्ञा तेहनी, बेगे हुंश्हां आई रे॥मु०॥ ॥ १३ ॥ एहवे तेह करंमथी, कमकम्तोस्वर क्रूर रे॥ जलियो बलियो महा, पमबंदे भरपूर रे ॥ मु०॥ ॥ १४ ॥ खाजं पहेलो हुँ नूपर्ने, के धुर खालं प्रधा न रे ॥ एक जणने बिहुँमाहिथी, नहिं मूकुं हुं नि दान रे॥ मु०॥ १५ ॥ शब्द सुणीने नरपति, पनि
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(२४५) यो चिंतानी जाल रे ॥ थरथरतो कहे सचिवनें, कर माहारी संजाल रे॥ मु० ॥ १६ ॥ सिद्ध पुरुष कोई सिक ए, गूढातम विपरीत रे ॥ पुष्कर काम करे ह
सी, अण चिंत्यु केणी रीत रे ॥ मु०॥ १७ ॥ फल मिशें एह करंगमां, आणी कांश बलाय रे॥आपणनें दयकारिणी, वलगामी कुपलाय रे॥मु०॥१७॥सचिव कहे नृपनें प्रजु, एहनें मुख दियो धूल रे॥श्म कहीने वारी जतो, आवे करंगने मूल रे॥१०॥ १ए ॥क्रूर सुणे रव तेहनो, जिम यमघुमुनिनाद रे॥कर्ण विवर विष सारिखो, करत अशनि धुनि वाद रे॥ मु०॥२०॥ फल ग्रहवा तस ढांकj, ऊघामे ततकाल रे ॥ वज्रा नल सरखी तदा, प्रगट हुईमाहाजाल रे।मु०॥॥ नम जमशब्दें गाजती, प्रत्यक्ष जेम जरुधामि रे ॥ तेह करंमथी नीसरी, ऊरध नाग धूमामिरे ॥ मु०॥ ॥२२॥ पुष्ट प्रधाननें तेणी, जाल्यो जेम पतंग रे ॥ क्षणमां जीवो त्यां हुर्ड, निर्जीवित दहि अंग रे ॥ मु० ॥ २३ ॥ मंदिर कांवें सलगिढ, अगनि म हा पुरवार रे ॥ बीहितो नृप तव सिझनें, तेमावे ति णि वार रे॥ मु०॥ २४॥मुजाधीन सुरें तिहां, दीसे ने कां कीध रे॥३मधारी नूपति कनें, आवे
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(२४६) सिद्ध प्रसिद्ध रे॥ मु० ॥ २५ ॥ कहे सकल परें रा जियो, बोल्यो एम मरंत रे ॥ सिक कृपा करी टालिये, विज्वर एह पुरंत रे ॥म०॥ २६ ॥ सिकें तव जल गंटीयु, अनल हुट उपशांत रे ॥ ढाक्योअंब करंजी उ, तव रहियो विश्रांत रे ॥ मु० ॥ २७॥ काने ते ह करंमने, बेसे नहीं कोई आय रे ॥ सापें खाधोशिं दरी, देखी कुण न मराय रे॥ मु०॥ ॥ कुशलें सिद्ध करमीयो, उघामी फल आय रे॥विस्मित नूपा दिक नणी, आपहथु जव देयं रे॥ मु०॥ एत व महीपति मरतो हीये, खंचे कर मुख फेरी रे॥ थापी बीजानें करें, लेवरावे सिद्ध प्रेरी रे।मु०॥३०॥ जीवानो नंदन वमो, सचिव कस्यो गुण खाणी रे ॥ चोथा खंगनी चौदमी, कांतें ढाल वखाणी रे।मु०॥३१॥
॥दोहा॥ ॥ नृप पूछे किम जबल्यो, एह महालय सिद्ध ॥ मंत्रीने जेणे हां, मरण अवस्था दीध ॥१॥कहे सिद्ध ए पलव्यो, तुज अन्याय कुवृक्ष ॥ हवे फूल फ ल एहनां, लहेशे तुं प्रत्यक्ष ॥२॥ महीयल मांहिं महीपति, जेह करे नय पोष ॥ नासेआपद तेहथी, वाधे संपद कोष ॥३॥ नीतिमाहे श्रापद तणो,
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( २४७ )
यास्पद ठे अविवेक ॥ संपद होय सयंवरा, निरखी नृप नय बेक ॥ ४ ॥ तेह जी नय गोचरें, निगम विचारी गुद्ध ॥ यतम वचन प्रमाणवा, आपो महि ला मु ॥ ५ ॥ सामंतादिक बोलिया, करो देव ए. चय ॥ अनय र कोपाववो, न घटे ए नर रयण ॥ ६ ॥
॥ ढाल पंदरमी ॥ योगी सर चेला ॥ ए देशी ॥ ॥ वचन सुखी नररा जियो रे, पमीयो विमास मांदि ॥ नारि रस रातो, पेठगे उपपल गोचरें दोबाल || दियमे चढी मुज नायिका रे, प्यारी जीवन प्रांहीं रे ॥ करशुं विधि केही, मुज मनथी नवी उतरे होलाल ॥ १ ॥ मंत्र तंत्रादिक योगनारे, बढेतो विविध प्रकार रे || साधे बाहिरनां, कारज ए सहेजें इहां होलाब | तेह जणी निज देनो रे, सोंपुं काम सफार रे ॥ अन्यंत र कोई, पुष्कर ते करशे किहां होलाब ॥ २ ॥ कार जवि कीधे सही रे, जोतां पुरनां लोक रे । दोशे ट शीयाला, चोंगे पमशे बापको दोखाल ॥ फरि नहीं मा गे सुंदरी रे, याशे मसागति फोक रे || पहेली जे की धी, मलशे नहीं वली ताकको होलाल ॥ ३ ॥ म करे फावशे प्रिया रे, अपयश लोक विचाल रे ॥ न हीं होशे महारे, एवं विचारी बोलियो होलाल ||
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(२४७) त्रीजुं काम करे हवे रे, तो महिला संजाल रे ॥ आदी ए तुजनें, वचन थकी हुँ न मोलीयो होलाल ॥४॥ निज नयणे निरखं सदा रे, पुंठि विना मुज अंगरे॥ तेमाटे वांसो, देखुं हुं तेदवो करो होलाल ॥ मुज उपर करुणा करी रे, पूरो एह उमंग रे ॥ सुगु णा सोलागी, मानीश पाम यहां खरो होलाल ॥५॥ नृपनंदन चीते इस्यो रे, एह श्यो सोंपे काम रे ।। नृप हसवा सरिखो, कुमति कदाग्रह केलवी होलाल ॥ रीशाणो कहे रायने रे, ए श्यो मांमयो उधाम रे ॥ ए हथी कहीं आगे, सिफिकिशी ताहरे नवी होलाल॥ ॥६॥पुंठ जोवे कोण आपणी रे, जो पण होय लख हाम रे॥ईम कहीने खांचे, नामी नृप ग्रीवा तणी हो लाल ॥ उलटी मुख वांकू वद्युं रे, आव्युं ग्रीवाने ग म रे।। ग्रीवा मुख ठगमें, आवी रही तव आफणी होलाल ॥७॥पूंठ निहालो खंतशुरे, काम थयु तुज ठीक रे॥ पति गुण मानो, वचन सुणी श्म तेहवे होलाल ॥ सचिव नवो रोषे नस्यों रे, बोल्यो थई साहसिक रे ।। सुण धूरत धीठा, लाज नहीं तुज ने हवे होलाल ॥6॥जनक हएयो तें माहरो रे, जीवो नामें वजीर रे॥ खुनी अन्यायी, बीहितो नहीं
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(२४७)
असमंजसें होलाल || श्रम जोतां वली नूपनें रे, कां दुःख ये बे पीर रे ॥ मरमी गलनामी, कांई मरे वाह्यो रसें होलाल ॥ ए ॥ राज सज्जामां वाधीयो रे, सबलो हालको रे ॥ देखी नृप विरुर्ज, लोक मख्या ल ख धाईनें होलाल || जन मुखथी लही बातमी रे, पमियो महाडुःख जोल रे ॥ राजानी राणी, बींद ती व उजाईनें होलाल ॥ १० ॥ दुःखीयो दीन दयामणोरे, रूपें पूर्वाकार रे ॥ भूपतिनें देखी, द शांगुली वदनें वे होलाल || पमती रमती सिद्ध नां रे, प्रणमी चरण उदार रे ॥ अबला सुकुलीणी, दीन स्वरें तिहां वीनवे होलाल ॥ ११ ॥ मूको कोप कृपा करी रे, थार्ज सुप्रसन्न चित्त रे ॥ साहेब गुणवं ता, श्रम अबला साहामुं जू होलाल || पति निक्षा अमनें दी रे, दातारां शिर बत्र रे ॥ साधक करुणा ला, ताएयो न खमे तांतु होलाल ॥ १२ ॥ जेहवो हतो तेहवो करो रे, धुरनुं रूप बनाय रे ॥ साचा उ पगारी, जश लेतां न करो गई होलाल ॥ थाशे कारज एटलुं रे, तो अम लाख पसाय रे ॥ मोहन रंगीला, न हीं होय तो गणजो मूई होलाल ॥ १३ ॥ शीक्षा दीधी करी रे, राखी नहीं कांई खोट रे ॥ माणस जो हो
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(२५०) शे, तो थई ने एटले घणी होलाल ॥ सिक विमासी ए हर्बु रे, बोल्यो एह जो दोट रे ॥ पाये अणुवाणे, वनमां जिन प्रणमे थुणी होलाल ॥ १४॥ श्रीजिन अजित जुहारीने रे, पायें आवे यांहिं रे ॥तो थाशे साजो, बीजो उपाय नहीं तिश्यो होलाल || असमरथू पण राजियो रे, कहे हवे चालो त्यांहिं रे ॥साजो जो थालं, तो मुज अजर अडे किश्यो होलाल ॥ १५ ॥ लोक कहे निज पापथी रे, वलगो आवी वींग रे॥नू पतिनें पू, करशे नहीं हवे खोजणी होलाल ॥ रूप बन्युं जोवा जिश्यु रे, प्रत्यक्ष जिम जोटींग रे॥दीसे डे कोई, खेधे लत पाम्यो घणी होलाल ॥ १६ ॥ पुर जन जोवा पेखणुं रे, चढिया गोखें धाय रे ॥ तिहां होमा होमें, ठगमें गमें टोलें मयां होलाल ॥ चाल ण मांझे नूपति रे, पण न पमे वग कांई रे ॥ जोतां पुःखदायी, कारण बे वांकां मल्या होलाल ॥ १७॥ जो मांगे पग पाधरो रे, तो दीसे नहीं मागरे । लो चन उपरांठे, सम थमतो पगें आथमे होलाल || थ वले पग ज्यां संचरे रे, खेतो मारग नाग रे॥घेरणि त्यां वाधे, प्रेरण शक्ति विना पमे होलाल ॥ १७ ॥ बिहुँ वातें पुर लोकनें रे, करतो कौतुक पुःख रे ॥जई था
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(२५१) व्यो पाबो, साले मार कुचोटनी होलाल ॥ लोक स ___ मद समजावित्रं रे, थाशे हवे अनिमुक रे॥ चिंते
इम बीजी, खांचे नशा शिड कोटनी होलाल॥१५॥ वदन वलीने पाधलं रे, बेषु पाईं गम रे ॥लागी न हिं वेला, हुर्ड अंतेजर त्यां खुशी होलाल ॥ कर जो मी कहे सिडने रे, वेचाणा तुम नाम रे ॥ सुगुणा ससनेही, जोय ते मागो हसी होलाल ॥२०॥ सि छ हवे मागशे शहां रे, चौपे मलया बाल रे॥नूपति पासेयी, अरज करावी तेहशुं होलाल ॥ चोखी चो था खमनी रे, एह पन्नरमी ढाल रे ॥ नांखी रस ने ली, कांतिविजय बुध नेहशुं होलाल ॥१॥
॥दोहा॥ कुमर कहे राणी प्रत्ये, वंडित श्राप विचार ॥ जो होय चारो तुम तणो, तो देवरावो नार ॥ १ ॥ गोरमीयां गुणवंतियां, जो देवरावो वाम॥तो थोमामां प्रीउजो, सरियां मुज लख काम ॥ २ ॥ वचन सुणी राणी सवे, आवी नृपनी पास ॥ मलया मूकावण न णी, करे कोमि अरदास ॥३॥ उत्तर न दीये महीप ति, पागे कां प्रगट्ट ॥ आने काने काढतो, चिंते एम
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(२५५) नियट्ट ॥ ४॥ जाती मलया सुंदरी, राखुं किम जग दीश॥बुद्धिनको मुज ऊपजे, जेहथी फवे सदीस॥५॥
॥ ढाल शोलमी ॥ प्रणमी सद्गुरु पाय,
गायशुं राजीमती सतीजी ॥ ए देशी॥ एहवे अनल उदंग, वाजीशालामांहिं जागी जी ॥ उंचो जाल अखंम, दारुण गयणे लागीजी ॥१॥ निरखीने नरराज, सिझप्रत्ये पनणे इस्युं जी ॥ चोथु वली मुज काज, एक अड़े करवा जिस्युं जी ॥२॥ वारू पाट केकाण, एह बले हयशालमां जी ॥ काढो खेंची सुजाण, काम करो एक तालमा जी ॥ ३ ॥ रीज्यो हुँ तुज नारि, आजज सोंपुं ए घ मीजी ॥ जोतां जण दरबार, वलीयो मणिमय पाघ मी जी ॥४॥ निसुणी पुरजन लोक, नांखे ए नृप चातस्योजी ॥ पाम्यो शीक्षा रोक, तो वली श्म का पां तत्योजी ॥५॥ अति पुष्टाध्यवसाय, डोमे नहीं ए 3 मतिजी ॥करीको व्यवसाय, योग्य दीयुं शीक्षा रति जी ॥ ६॥ ध्यातो एहवं त्यांहिं, उछाहें बमणो थई जो ॥ पेसण हुतनुज मांहिं, वाजी शालें उन्नो जई जी ॥ ७॥ मनमां नृपने आप, निंदे आक्रोशे घणो जी ॥ बांध्यो कोपने व्याप, इष्ट संनारे आपणोजी॥
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(२५३) ॥७॥ संजारे तेह देव, करवा सफल मनोरथाजी ॥ ऊंपावे ततखेव, दी पतंग पझे यथाजी ॥॥ हाहा कार करंत, शोक नख्या पुरजन तदाजी ॥ यांसू व रसंत, लोचन जिम जल वारिदाजी ॥१०॥ पाम्यो नूप प्रमोद, कुमर ऊपाणो देखीनेजी॥माणे हास्य वि नोद, सचिवने साथ विशेषिनेंजी ॥ ११॥ चढियो ह य सिहराज, अगनिथीनीसरिन तवेंजी॥ दीसे जि म सुरराज, आराह्यो उच्चैःश्रवेंजी ॥ १२ ॥ दीपे तेज अपार, दीव्य वसन चूषण धस्यांजी । ऊलहल ज्यो ति तुखार, अंगें साजनला नस्याजी ॥ १३ ॥ धौ रादिक गतिपंच, (१ धौरित २ वलितं ३ प्लुतकं । उत्तरकं ५ उत्तेजितं) नेदें तुरंग रमामतोजी ॥ तन विलसित रोमांच, जननें चित्र पमामतोजी ॥ १४ ॥ देतो हर्षविषाद, लोक लपतिने पालटीजी॥ मनमां अति आल्हाद, धरतो श्म कहे उबटीजी ॥ १५ ॥ अहो अहो तीर्थनी नूमि, एह डे वंडित दायिनी जी ॥ ज्वलित हुताशन धूम, फरसें जे अघ घायि नीजी ॥ १६ ॥ पमियो हुँ यहां आज, बीजो तुरं गम ए वलीजी ॥ बलतां सिद्वतां काज, एहवा थया माग टलीजी ॥ १७ ॥ जयकी अम अंग, रोग
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(२५४) जरा नहीं संक्रमेजी॥ नहीं हुवे मरण प्रसंग, अमर हुथा बिहुं रंगमेंजी ॥ १७ ॥ सांजली वायक एह,रा जादिक सवि जूजूयाजी ॥ बलवा अगनिमां तेह, प मवाने ततपर हूबाजी ॥ १५ ॥ जो जो प्रत्यद ख्या ल, तीरथ महिमानो शिरेंजी ॥ इथा बेहु निहाल, तीर्थ प्रनावें इंणी परेंजी ॥२०॥ आपणनें इंण वा म, तन होम्यां फल बे बहूज। ॥ धरता मोटी हो हां म, आव्या नर पम्वा सहजी॥१॥ बोल्यो सिद्ध विचार, रे रे क्षण एक पाखीयेंजी ॥ आणो घृत नि रधार, अगनि जूगतिशं पूजीयेंजी ॥ २२ ॥ श्राण्या घृतना कुंज, ॐ दह दह पच पच इस्योजी ॥नणतो मंत्र सदंन, आहूति बेमन उबस्योजी ॥३॥पहे लो पेशीश हिं, हुं श्म कही नृप पेशीजी॥ पंखें सचिव संबाह, जई नप पासें बेसीजी॥२४॥ कुमरें वास्या लोक, पमता अवर हुताशनेंजी ॥पम खो परखो स्तोक, श्राववा द्यो नृप सचिवनेंजी ॥२५॥ लागी वार विशेष, राय सचिव किम नावियाजी ॥ वेला तुमनें हो रेख, लागी नहीं जब आवियाजी ॥ ॥ २६ ॥ इंम पुरलोकना बोल, सांजलीने सिझ बो लीजी ॥ कारे नूख्या अटोल, अगनि पड्यो कोण
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(२५५) जीवी जी ॥ २७ ॥ अगनि पमि हुँ आज, सुरसा निध्य यीनीसयोजीबोली सकल समाज, वैर वाल ण रूमो कस्योजी॥ २७॥ फलियो अनय कुवृक्ष, नृ प मंत्रिसुत मंत्रिनेजी॥ सामंतादिक दद, बोट्याव ती आमंत्रिनेजी ॥ २५॥ राज्य निवाहक सिद्ध, हो जो राजा आपणेजी ॥ इम कही राजा कीध, महो त्सव आमंबर घणेजी ॥ ३० ॥ मान्यो जन सिझरा ज, पाले राज्य सुनीतिथीजी ॥महिपतियां शिरता ज, राखे जनपद इतिथीजी ॥३१॥ अमके विषम काम, लेजे सुछ संनारिजी॥ आनाखी सुराम, सिझें तेह विसर्जिजी ॥ ३५ ॥ चोथा खंमनोपंग, मलय चरित्रथी संग्रहीजी॥कांति विजय मन रंग, ढा ल शोलमी ए कहीजी ॥३३॥
॥दोहां ॥ श्राव्यो देशांतर थकी, तेहवे तिहां बलसार॥लई निरुपम नेटणुं, चली आवे दरबार ॥ १॥ नृप बेटी बेठे तिहां, दीठी मलया बाल ॥ मलयायें पण पेखीठ, सारथपति ततकाल ॥२॥एक एकनें उलख्यां, थातां नयणां नेट॥मलियां शत वर्षांतरें, चतुर न जूले नेट .॥३॥ मरतो तुरतज उठी, आव्यो मंदिर आप ॥
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(२५६) चिंते हैहै आवीयां, उदय महा मुज पाप ॥४॥ अ हो महोदधि परतमें, आव्यो एहनें डोमि ॥ दैवें किम ए नूपशु, मेली सांधा जोमी ॥५॥जे की, में एहनें, अनुचित करण अन्याय ॥ कहेशे ते जो नूपर्ने, तो मु ज मरण सहाय ॥ ६॥ ॥ ढाल सत्तरमी ॥ सीता हो प्रिया सीतारा परजात' प्रणमुंहो प्रिया प्रणमुं पग नाथे करी जी ॥ए देशी ॥
मलया हो प्रिय मलया कहे सुविचार, निसुणो हो प्रिय निसुणो जे श्राव्यो वाणीयोजी॥नामें हो नि य नामें ए बलसार, तेहज हो प्रिय तेहज पापनो प्राणी योजी॥१॥ मुजने हो प्रिय मुजने दीधी जेण, वि धविध हो प्रिय विध विध पुष्ट कदर्थनाजी ॥ राख्यो हो प्रिय राख्यो नो एण, मुजसुत हो प्रिय मुजसुत करतां अच्यर्थना जी ॥ २॥णी परें हो प्रिय ण परें प्रमदा बोल, निसुणी हो नृप निसुणी ततवण कोपीयोजी॥ साह्यो हो नृप साह्यो शेठ निटोल, परि कर हो निज परिकरशुं कांवें दीयोजी ॥३॥कीधी हो नृप कीधी क्रियाणे गप, वांकज हो वम वांकज तास जणावीयोजी ॥ चित्तमां हो ते चित्तमां विमासे आप, सार्थगहोइम सार्थप चिंता जावीयोजी ॥४॥
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(२५७) बूटण हो मुज बूटण कोई उपाय, दीसे हो नहीं दीसे नहीं कोई आशरी जी ॥आवे हो वलीयावे एक दाय, वखतें हो यदि वखतें थई आवे तरीजी॥५॥ एहना होनृप एहना वैरी दोय, परिचित हो मुज परि चित शूर नृपति धुरेंजी ॥बीजो हो वली बीजो शूर समोय, धींगमहोबल धींगमवीरधवल शिरेंजी॥६॥ जीती हो तेह जीती एहने ताम, डोमण होमुज बो मण विधि करशे बहीजी ॥ अमलख हो हवे अ मलख सोवन प्राम, परठी हो तस परठी जन मूकू सहीजी ॥७॥ लक्षण हो धर लक्षणधर गज आठ, आएया हो घर आएया परदेशां थकीजी॥ तेहनो हो वली तेहनो जणाची गठ, बूटीश हो हुँ बूटीश एह नेदें थकीजी ॥ ७ ॥ समजू हो एक समजू सोमो नाम, माणस हो निज माणस सवि समजावीनंजी ॥ मू क्यो हो तिहां मूक्यो बानो ताम, वणिकें हो तिण व णिके वीरधवल कनेंजी ॥ ए॥ जातां होमग जातां अधमग मांहि, मलिया हो बिहुँ मलिया बिहुं ते राज वीजी ॥ उर्गम हो अति पुर्गम तिलक गिरित्यांहि, नीषण हो जिहां जीषण जिहां रुघाटवीजी॥ १० ॥ निसुणी हो नृप निसुणी जूठी वात, एहवी हो धुर ए
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( २५८ )
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हवी जनमुखथी कहीजी ॥ पछी हो तिए पछीपति किम जाति, जीमें दो वन जीमें मलयानें ग्रहीजी ॥ ११ ॥ व्या हो तिहां आव्या बेहु नरिंद, निज निज हो जन निज निज जनपदथी वही जी ॥ डुर्ज य हो तेण दुर्जय भीम पुलिंद, रमतो हो रण रमतो रण बांध्यो ग्रहीजी ॥ १२ ॥ जोतां हो तिहां जोतां मलया बाल, दीवी हो नहीं दीवी नहीं किए थानके जी ॥ वलीया हो नृपवलीया नृप लिए काल, मलियो हो जई मलियो सोम अचानकेंजी ॥ १३ ॥ वीरप हो नृप वीरपनो आदेश, पामी हो वर पामी वर तिम वनवेजी ॥ सार्थप हो तेह सार्थपनो संदेश, सुणतां हो नृपसुतां अंगीकरे सवेजी ॥ १४ ॥ श्रधुं दो ध न धुं देतो वीर, आखे हो विधि याखे शूर प्रत्यें ह सीजी ॥ शूरो हो नृप शूरो नृप शमीर, लोनें हो बहु खोजें वात पदे धसीजी ॥ १५ ॥ नृपकुल हो एह नृपकुल साधें द्वेष, चाल्युं दो नित्य चान्युं यावे या पणजी ॥ बेठो हो कोइ बेठो नूतन एष, तेहने हो हवे तेहने दवे दणशुं रणेंजी ॥ १६ ॥ सर्वस्व हो तस सर्वस्व लेशुं खूंटि, सार्थप हो वली सार्थपनें मूकावशुंज ॥ थाशे दो श्रम थाशे यशनी बूटि, रिनो हो वली रिनो
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(२५ए) गम चूकावशुंजी ॥ १७॥ मंत्री होम मंत्री दोय नरेश, करवा होरण करवा सिझ नरिंदगुंजी ॥ चाल्या हो धकि चाट्या कटक निवेश, करता हो पथ करता पथ स्वछंदशुंजी ॥२०॥ उदधि हो जिम उदधितिलक पुर पास, आव्या हो धर अाव्या धर कंपावताजी॥वा दल हो दल वादल उंच आकाश, दीधा हो तिहां दीधा मेरा फावताजी ॥ १५ ॥ बे नृप हो हवे बे नृप मूकी पूत,आगम हो निज आगम हेतु जणावशेजी ॥सा हमो हो नृप साहमो सेन संजुत्त, करवा हो रण क रवा रसमां आवशजी ॥ २०॥चोथे हो एह चोथे खंमें ढाल, नांखी हो म नांखी सत्तरमीनावथीजी॥ सुणतां हो घर सुणतां मंगलमाल, आवे हो नित्य आवे कांतें सुहावती जी ॥ २१॥
॥दोहा॥ ॥ वीरप शूर बन्ने मली, शीखावी अदनूत ॥सि छ नरेसर उपरें, मूके उर्दम पूत ॥ १॥अवसर विद वाचाल मुख, साहसिक निर्लोन ॥ स्वामीजक्त हित मग कथक, परखद मांहे अदोन ॥॥ दीर्घदर्शी दीरघगति, सर्वसह मतिवंत॥ नीति निपुण प्राहक पिशुन, ( शत्रुनो चामिल ) ए गुण पूत वहंत ॥
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( २६० )
॥ ३ ॥ सवास्यो केकाण रथ, पस्यो जाब गुलिम्म ॥ सिद्धराय जवनांगणें, जर पोहोतो जालिम्म ॥ ४ ॥ द्वारपाल नृप वीनवी, दीधो जवन प्रवेश ॥ करी स लाम सिद्धरायनें, जांखे इम संदेश ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ढारमी ॥ उदया ते पुररो मांवो रे, गढ अरबुदरी जान महाराजा ॥ ए देशी ॥ ॥ पुहवी गणनो राजी रे, शूरपालण शूरपाल | महाराजा ॥ दम दांतोने फोज लेइनें रुमेज। श्रावे ॥ चं द्रावती नगरी धणी रे, वीरधवल बोगाल महाराजा ॥ द० ॥ १ ॥ ए बेदु एकमतुं यया रे, रूठो तोपर या ज म० ॥ ५० ॥ खेलि रण रस खांतसुं रे, लेशे ताहारुं राज म० ॥ द० || २ || सारथपतिनें रो कियो रे, नामें जे बलसार म० ॥ ५० ॥ ते साथै बे भूपति रे, राखे स्नेह अपार म० ॥ ५० ॥ ३ ॥ दा ता जग व्यवहारीयो रे, सहुनें बांधव तुल्य ॥ म० ॥ ॥ ० ॥ शकसी करता जली रे, मागे नहीं कांइ मूल्य स० ॥ द० ॥ ४ ॥ पुत्रपणे बांधव परें रे, जाणे एहनें भूप म० ॥ द० ॥ तो ते किम सदेशे प ड्यो रे, देखी दुःखने कूप म० ॥ ५० ॥ ५ ॥ ए जाते यावते रे, कीधो श्रमशुं नेह म० ॥ द० ॥ तु
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(२६१) म नगरें वासो बसे रे, ते जणी मूको एह म०॥द०॥ ॥६॥ कहेवामयुं महारे मुखें रे, अम नूपें श्म तु ऊ म ॥ द॥ सत्कारी मूको परो रे, पालो राज्य सखुज म ॥ द०॥७॥ खमिये पण एकवारनो रे, कीधो वरांसे वंक म ॥ द॥ पमिया पण मुख में ग्रह्या रे, दंत फिरि निज अंक म ॥ द०॥७॥ वाहाली पाटु गायनी रे, जो श्रापे पयपूर म॥ ॥ द०॥ मीग माटे खाश्ये रे, एवं पण मामूर म॥ ॥द० ॥ ए॥ धनपति कदिहिक पांतरे रे, तोते कि म न खमाय म० ॥ द० ॥ खिरतो पण दल अंगणे रे, फलियो तरु न कपाय म०॥ द० ॥ १० ॥ श्र म पें बांहें ग्रह्यो रे, ते पुःखीयो किम थाय म॥ ॥ द०॥ गूंजे जे वन केसरी रे, त्यां कुंजर न वसा य म ॥ द० ॥ ११ ॥ शूर अडे तुं साहेबा रे, पण तुज कटक अलप्प म० ॥ द.॥ सायरमां जिम सा थुङ रे, थाश्श त्यां तुं गमप्प म० ॥ द०॥ १२ ॥ ते एहनें मूकावशे रे, तुजने शिक्षा देशमः ॥०॥ एह वातें मत आणजे रे, शंका बल उमहेश्म० ॥ ॥द०॥ १३ ॥ थाश्श मां तुं आकलो रे, जुजबल में विशवास म०॥ द० ॥ बे जण उषध एकनुं रे, ए
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दवो जगत प्रकाश म० ॥ ५० ॥ १४ ॥ म पमीश माता मोहमां रे, लंकेश्वर जिम मूंज म० ॥ ८० ॥ उ चित हितारथ धारियें रे, आणी मननी सूज म०८०॥१५ ॥ नूत वचन सुणी लहे रे, आव्या सुसरो तातं म० ॥ ८० ॥ मनमांहे हरख्यो घणुं रे, बोल्यो फेरवी धा त म० ॥ ० ॥ १६ ॥ सैन्य घणुं जो नूपनें रे, तो शुं नहीं जुज दोय म० ॥ ५०॥ एक एक देह नहीं किश्युं रे, केवल नर नहीं होय म० ॥ ५० ॥ १७ ॥ एकलको प दिण्यरु रे, तेज तो अंबार ॥ म० ॥ ५० ॥ को मिग मे तारातएं रे, हरे महातम सार ॥ म० ॥ द० ॥ ॥ १८ ॥ फलतो आना लगें रे, मानीमां शिरदार म० ॥ ० ॥ एकाकी पण केशरी रे, गाले गजमद जार ० ॥ ० ॥ १७ ॥ तिम हुं जो पण एकलो रे, ते नृप ते बल साज म० ॥ ८० ॥ बाणे रणमां ते होनी रे, फेमीश जुजनी खाज म० ॥ द० ॥ २० ॥ वा हलो पण अन्याईयो रे, शीखवीयें सुत आप म० ॥ द० ॥ अन्यायें थाता पखू रे, लाज्या नही अद्याप म० ॥ ० ॥ २१ ॥ जो नेही बे नूपनो रे, तो श्रम केहो लाज म० ॥ ५० ॥ अम सायें तो बेरुतां रे, न रशे बायां आज मं० ॥ ५० ॥ २२ ॥ न दीयें शिक्षा
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(२६३) पुष्टनें रे, न गणे साजन शर्म म० ॥ द ॥तो अ म सरिखानें रहे रे, केहो नृपनो धर्म म०॥द॥३॥ अन्यायी तुज राजिया रे,आव्या जेह उमंग॥म० ॥ ॥ द. ॥ तेहने पण समजावणुं रे, खग साखें रण जंग म० ॥ द॥२४॥ सर्व मनोरथ एहुना रे, पू रीश हुं शणवार म० ॥ द.॥जा कहेजे तुज पूलें रे, आव्यो हुं निरधार माद०॥२५॥त गयो पालो वही रे, चोथे खंमें अनुप म ॥ द०॥ढाल कही ए श्रढारमी रे, कांतिविजय करी चूंप म०॥द०॥२६॥
॥दोहा॥ ॥सिंहासनथी ऊठियो, बहि मंझपमा आय॥ढ का तिहां संग्रामनी, वजमावे सिकराय ॥१॥ रणरा तो मातो मदें, तातो क्षत्रीय तेज ॥आव्यो नृप मल या कन्हे, कहेवा रहस्य सहेज ॥२॥महुलामांमल या नणी, ये रहेवा निर्देश ॥ चतुरंगी सेना सजी,ध रे श्राप रणवेश ॥३॥असवारी कीधी गजें, रण रं गे शणगार ।। नीसरियो पुरथी महा, धिंग कटक वि स्तार ॥४॥ नवल दमामा गमगड्या, वागा वम र
तर ॥ रसिया नाद जेनेरिया, अमिंग उलट्यो शर ॥ ५॥ उपां ये करवालने, टोपां कै पहेरंत ॥ तोपां
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केता सह करे, धोपां केई धरंत ॥ ६ ॥ गज गाजे हय देषणें, रथ चितकार अखंग ॥ सिंहनाद शूरा तो, बधिर हू ब्रह्मं ॥ ७ ॥ कवच हरा आयुधधरा, पूरा रण खेलाम || रणथंजे जई वागियां, फोजां तणां कमा म ॥ ८ ॥ वे दल आमा साहमां, कामियां आई सवा हिं ॥ ताम लियणपेठा वही, तारू जमरा मांहिं ॥ ए ॥ || ढाल योगणीशमी ॥ कमखानी देशी ॥ ॥ सजे फोज छाति चोज नृप बे जमे सिद्धशुं, रण तथा दाव रमता न चूके | उनक वनना महा मद क्या हाथिया, जेम गिरिवर ताई के || ॥ सजे० ॥ १ ॥ गज चढ्यो जेह ते गज चढ्याथी अमे, रथ चढ्यो रथचढ्याथी न मूंजे ॥ तुरंगधर तुरं गधर साथ ऊपटां लीये, पायचर पायगां संग जूजे ॥ सजे० ॥ २ ॥ वजत शरणाईयां राग सिंधु शिरे, गुहिर निशाण चोसाल गुंजे ॥ पूर रणतूर व वीर जैरव ज पी, युद्ध रस निरखवा जई प्रयुजे ॥ स० ॥ ३ ॥ सु एत रणनाद उनमाद रस पूरिया, देह ससनेह ज्यों द्विगुण फूलें || टक टकी पमे कवच जींचां तणां,
दीयां तिखण रोमांच शूलें ॥ स० ॥ ४ ॥ शस्त्र चिलकार ऊबकार जलनो जिस्यो, गादी यो गयणवर
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पुंरीकें ॥ खमग कल्लोल नृपदंस खेले तिहां, फेर न ह्रीं जलधि रणमां रतीकें ॥ स० ॥ ५ ॥ सुहरु वच नोपरि वचन प्रतिहत करे, सिंहनादें महा सिंहनादं ॥ नुजयुगा फाल जुज युगा फालता, करत रण नयें लीला विवादं ॥ स०॥ ६ ॥ वीर शिरवाल रण चालमां उत्सुक्या, ऊर्ध्वमुख तास रुचि तेम शोजी ॥ ज्वलित मन रोप पावकथकी नीसरे, धूम धोरणी जिसी गग न थोजी ॥ स० ॥ ७ ॥ करत ललकार हलकार जम को पिया, चलत धमकारशुं शेष मोले । कर. ग्रही ढाल धुंताल धुंकल रसें, बयल बंबाल करवाल तोले ॥ स० ॥ ॥ ८ ॥ जाति जुज वीर्य गुण वंश उदभावता, बंदिजन प्रबल शूरां जगामे ॥ उमगिया योध बल बोध करि आपणा, रण तणी सबल बाजी फबामे ॥ स० ॥ ॥ ५ ॥ अश्व खुरताल पकतालथी ऊपमी, खेह अं बर चढी सूर बायो || दिशि हुई धुंधली अरुण रंगें धरा, जाणे विण काल वरसाल आयो । स० ॥ १० ॥ सगग शर धार वरषण लगी चिहुं दिशें, बगग बरठी चले अगग गेमी || रण रणकार नली (फरसी ) तणा वागिया, सिल सुहमाण नाखे उथेमी ॥ स० ॥ ॥ ११ ॥ खमग खटकार गजदंत ऊपर पमें, जरर
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(२६६) जरहर करे अगनि बुंदा ॥ तप तप्या शुंढ सित्कार जल वर्षणे, तुरत शीतल करे ते गयंदा ॥ स० ॥ ॥१२॥ सबल हाथाल जूजाल मोगर ग्रही, जोरशुं वैरी सनमुख उबालें ॥ वहत नन शस्त्र देखी सुर खेचरा, वज्रशंकायें नासे विचालें ॥ स० ॥ १३ ॥ प्रोश्या सुजट के गांजमे गगनमां, ऊरध कीधा जि स्या नट्ट वंशें ॥ उमत आकाश आयास विण गृध्र नें, बलि महोत्सव हुउँ तास मंसें ॥ स ॥ १४ ॥ अमम अममाट करि बूटीयां शतधनी, धुमल धूआं धुखें धुम्मरोला ॥अगनिकण खिरत तग तगत ताता घणा, दश दिशे चालीया लोह गोला ।। स० १५ ॥ दमा परनाल ज्यों खाल रुहिरा वहे, कमम नर को परी खंग फूटें ॥ गमम गेवरि गमें नालि मुख आह एया, खमम खग खाटकें फलक त्रूटें ॥ स० ॥ १६ ॥ कलह खय काल सरिखो हुन आकरो, सिद्ध नृप सै न्य नाणु दिगंतें ॥ थिर करी बल हवे आप समरंग णे, आवियो राय रोषाल खंतें ॥ स॥ १७ ॥ हाक तो सुनटने युद्ध मंमें तिहां, सिक रणरंग गज बेसी ताजे ॥ विश्व नूषण गजें शूर चढि धाश्यो, वीर संग्राम तिलकें विराजें ॥ स॥ १७ ॥ देखि पर
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(२६७) दल महा पूर्व परिचित तिहां, अमर संजारियो सिद्ध रायें ॥ आवियो करण साहाय्य वेगें वही, नूप हित हेत लागो उपायें ॥ सः॥ १५ ॥ आवता वैरी हथियार अध मारगें, लेय सिहरायनें देव आपे॥ सिफ शर धार वरसी घणा नूपनें, मोरचाथी परा दूर थापे ॥ स० ॥२०॥ कौतुकीबई चंबान बाणे करी, शूरनां वीरनां बत्र बेदें॥ चम चम नेजा धजा मांहिं मूरत वमा, तोमियां चिन्ह नृपनां उमेदें ॥ ॥ स० ॥ २१॥ कर ग्रहे नूप (बहुं शस्त्र जे नांखवा, तेह पण सिद्ध शस्त्रे विखंभे ॥ करत यतना घणी बेहंना देहनी, समरनो खेल इंम वारु मंगे॥ स०॥ ॥ २२ ॥ नूप जांखा पड्या चित्त संकल्पता, समर जना रह्या शस्त्र नांखी ॥ खंग चोथे नली ढाल उंग णीशमी, जाति कमखा तणी कांतें नांखी ॥ स॥३॥
॥दोहा॥ ॥दीन वदन शोकातुरा, जोतां नीची देठ॥ नि रख्या सिद्धे महीपति, नाख्या जाणे वेठि ॥१॥ इम इंम कारज साधना, करवी ते सुरराय॥ईम सम जावीने लिखे, लेख एकतिण गय॥॥बाण मुखें उ वी लेख ते, मूक्यो गुण संधेव ॥ नरपति कुल खो
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(२६७) लावतो, चल्यो गगन ततखेव ॥ ३॥पोहवी हेगे ऊ तरी, करे प्रदक्षिण तीन ।। शूरनृपतिने पाखती, ते शर थई बाधीन ॥ ॥ पय प्रणमी लोटेंगणे, मूके लेख तुंरत ॥सिफ नरीद कन्हे वही, फरी आव्यो उमगंत ॥ ५॥चारत निहाल। बाणना, विस्मित हा नरी द ॥ देव सगति विण किम हुवे, अचरिज एह अमंद ॥६॥ निश्चेतन चेतन तणा, खेले खेल कदापि ॥ प रमारथ एहनो हां, किम जाणीशुं श्राप ॥ ७॥ एम कही निज कर ग्रही, तुरत उखेमे लेख॥ जोतो अदा र मालिका, लहे परम उद्देख ॥ ७॥ लोक सकल मलिया तिहां, सुणवा पत्र उदंत ॥ हरख वशंवद पत्र त्या, वांच वसुधा कत ॥ ए॥ ॥ ढाल वीशमी ॥ थाराने माहारा करहला,
वरता नदीने तीर हमीरा ॥ ए देशी॥ स्वस्तिश्री जिनपद नमी, नक्त्या श्रीमती तंत्र ॥ सनेही॥शूरप नृप चरणांबुजें,सुत महबल लिखिपत्र॥ सनेही॥१॥कुशल संदेशो पाग्वे, अमने सुखशात ॥स०॥ तात शरीर नीरोगता, चाहुं हुं दिनरात॥सण कु.२॥ वीरधवल सुसरा नणी, प्रणति करुं कर जोमि॥ स०॥तात श्वसुर सुपसायथी, पाम्यो यशनी
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(२६ए) कोमि ॥ स० ॥ कु० ॥ ३॥ निज दयिता पामी ति हां, लाधुं वली नृपराज्य ॥ स० ॥ पूज्य चरण शुन चिंतने, कीg सबल साहाज्य ॥स० ॥ कु०॥४॥ में नुज वीरज दाखीउ, करवा बाल विलास॥स०॥ खमजो अविनय माहरो, करजो कोप विनाश॥स०॥ ॥ कु० ॥ ५ ॥ तात चरण नेट्या तणी, चाद हती निज नित्य ॥ स ॥ ते शुजदैवें माहरी, पूरी श्रा ज अचिंत्य ॥ स ॥ कु० ॥६॥ कई विषाद करो हवे, पउधारो पुरमांहिं ॥ स०॥ वाचत लेख ईस्यो सुणी, पूख्या हर्ष उबाहिं ॥ स० ॥ कु० ॥ ७॥ पर मानंद महारसें, सिंच्या नृप सरवंग॥स ॥ सैनिक समद कहे अहो, अहो अहो ए दिन चंग॥ स०॥ ॥ कुण् ॥ ७॥ कुमरीशुं सुतरत्नजी, मलियो महब ल आई॥ स० ॥ जीवित सफल थयुं हवे, जीवा ड्या महारा॥ स ॥ कु० ॥ ए॥ उहरिया पुःख खाणथी, उहिलममां लहि आथ ॥ स० ॥ काढ्या नरक निवासथी, पमतां साह्या हाथ ॥स०॥ कु०॥ ॥ १० ॥ शूरपाल नृप श्म कही, वीरधवल खेई सं ग॥ स० ॥ महबल साहमो चालियो, धरतो बहुल उमंग ॥ स० ॥ कु०॥ २१ ॥ पूज्य बिनें साहमा
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( 230 )
पगें, दीग यावत तेरा ॥ स० ॥ सहसा हरखें सामो हो, वे आप रसे ॥ स० ॥ कु० ॥ १२ ॥ मलि या हेजें हरखता, टाली वैर विरोध || स० ॥ मांहो मांहि प्रकाशी, पूरण प्रेम निबोध ॥ स० ॥ कु० ॥ ॥ १३ ॥ हर्ष तणे यांसू जलें, गयो विरह हुताश || स० ॥ नेह नवांकुर पल्लव्या, वाध्या रंग विलास ॥ स० ॥ कु० ॥ १४ ॥ जगमां चंदन सीयसुं, तेथी शशिकर योग || स० ॥ शशिकरथी पण शीयलो, वा हालानो संयोग || स० ॥ कु० ॥ १५ ॥ ण एक इ ष्ट कथारसें, निरवाहे सुख शील ॥ ॥ स०॥ वैतालिक जाटचारणादिक) बोल्या तिसें न सहे वासर ढील ॥ स० ॥ कुः ॥ १६ ॥ सिद्धनृपें निजपुर प्रत्यें, पध राव्या नृप दोय ॥ स० ॥ विंट्या निज निज परिक रें, आव्या जवनें सोय ॥ स० || कु० ॥ १७ ॥ रोती दुःख संजारीनें, राणी मलया ताम ॥ स० ॥ बोला वी सुसरादिकें, चादर देय प्रकाम ॥ स० ॥ कु० ॥ १८ ॥ तुरत करावी महाबलें, अशनादिकनी नक्ति ॥ स० ॥ सैनिक सर्व संतोषियां, नूपाखें जली युक्ति ॥ स० ॥ ॥ कु० ॥ १७ ॥ तात श्वसुर यादें सहु, बेगं सुखमां त्यांहिं ॥ स० ॥ रुद्धि निहाली कुमरनी, चित्र लदे
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(२७१) चित्तमांहिं ।। स०॥ कु०॥ २०॥ सुत आगे जनका दिके, नांखि निज निज वात ॥ स०॥मलयायें कुम रें वली, नांख्या तिम अवदात ॥ स० ॥ कु० ॥१॥ चोथे खमें वीशमी, लांखी अनुपम ढाल ॥ स० ॥ कांतिविजय कहे सांजलो, आगल वात रसाल ॥ ॥ स० ॥ कु० ॥१२॥
॥ दोहा ॥ ॥वीरधवल पुत्री तणां, निसुणी पुःख विरतंत ॥ विषम कर्मगति नावतो, तनुजाने पत्नणंत ॥१॥ है है नृपकुल ऊपनी, पोषी लाम विलास ॥ रखनी दि शिदिशि रंक ज्यौं, पमी कर्ममें पास ॥ ॥ सह्यां विविध पुःख आकरां, कोमल अंगें एम॥ व्यसन म होदधि उस्तरें, तरी तरी परें केम ॥३॥ ॥ ढाल एकवीशमी ॥ नगर रतनपुर जाणीयें॥ ए देशी॥अथवा, उही नावना मन धरो ॥ ए देशी॥
॥सूरपतिमहीपति बोले ए, पमिया मामा मोलें ए, खोले ए, निज मन फुःखनी गांठमी ए॥१॥हा पुत्री हा पापीयो, कुमति दशायें व्यापीयो, थापीयो, कूमो कलंक ताहरे शिरें ए॥२॥ काज कां में अण जा एयु, जल पीधुं ते विण बाण्यु, अतिताएयु, तुज सायें
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(२७) में उर्मति ए॥ ३॥ गुनहो ते सवि माहरो, खम जो गुणवंती खरो, आफरो, मननो हवे पूरे करो ए ॥४॥ जित कोपा तुं सुंदरी, था रलियायत गुणनरी, दिलवरी, करीये ते हियमे धरो ए॥५॥ परमारथ नी ज्ञापिका, निर्मलकुलनी दीपिका, वापिका, तुंसत्य शील कमल तणी ए॥६॥ वचन सुणी सुसरा त णां, मलया ते धरी धारणा, कारणां, कुःखनां तुरत विसारीयां ए ॥ ७॥ धन्य धरामां तुजमती, साहस करुणा रात उती, धृतिगति, सूरिम शुनकृत तुजन सां ए॥७॥ श्म महाबल गुण लांखता, नूपादिक यश दाखता, जण किता, सलहें महबलने तिहां ए ॥ए ॥ जनकः दिक पूजे तिहां, वत्स कहो सुत ने कि हां, लीधो शहां, पापी जे वाणीयें ए ॥ १० ॥ पुत्र कहे वाणिज घरे, बानो किहां किण उबरे, पण खरें, खबर नहीं ले ते तणी ए ॥ ११॥ तेनीने पूगं खरो, ऊतरशे नहीं पाधरो, आकरो, करतां ते देखामशे ए ॥ १॥ ततहण सुनटे आणियो, पग बांधीने ता णीयो, वाणीयो, पुःख पीड्यो रोवे घणुं ए॥ १३ ॥ कहे रे फुर्मति शुं कस्यो, पुत्र लेख्ने किहांधस्यो,जाशे कस्यो. किम तुजथी अम नंदनो ए ॥ १४ ॥कर घ
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(२३) टशे तुज शिरें, तेतो करऐहिज खरे, पण अवसरे, सु त, जावा देशुं नहीं ए॥१५ ॥ बीहीनो ते कहे तो श्रा पुं, पुत्र तुमारो करी थापु, फुःख टापुं, माहरो जो रे करो ए ॥ १६ ॥ बोको मुज सकुटुंबनें, जो न वि पा मो विटंबनें, तो मुनें, देतां वेला नहीं ए ॥१७॥ हरख्या तस वचनें सवे, मान्यं वचन तथा तवें. ति ण लवें, पुत्र आणीने सोपियो ए ॥ १७ ॥ निरख्यो बालक सुंदरु, रूपे जाणे पुरंदरु, मंदिरु, सौम्य कला नो कलकतो ए ॥१ए । नूपादिक सवि हरखीया, पुत्र रतन गुण परखीया, निरखीया, अंग सकल लक्षण नस्यां ए॥ २० ॥राय कहे बलसारनें, कहेरे सी निर धारिनें, कुमारने, कीधी नामनी थापना ए ॥२१॥ ते कहे बल इति थापना, कीधी करी कल्पना, उल्हापना, चित्त माने ते कीजीयें ए॥२॥एहवे नंदन रसग्रह्यो, तात तणे खोले रह्यो, गह गह्यो, लेवा धननी गांठमी ए ॥३॥ दादाने कर गांठमी, सो दीनारनी दीठमी, ऊथमी, बालक ते खांची लीये ए ॥ २४ ॥ जोराथी गाढी ग्रही, मूकाव्यो मूके नही, दादे वही, शतबल नाम त्यां थापीयु ए ॥ २५ ॥ सारथपतिने बोमीयो, घरवाखर छूटी लीयो, जीवित दीयो, निज जाषित
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(१४) परिपालवा ए ॥ २६ ॥ शूर कहे वरषांतरे, मलया प्रीतमशुं खरे, इणिपुरें. निश्चयशुं दीसे मली ए॥२७॥ हानी वचन साचुं मत्युं, वरषांतें दुःख निर्दट्यु, दूरें टट्यु, संकट सघर्बु श्राजथी ए॥२७॥ राज्य ग्रां को तूहलें, सिक नृर्षे जुजनें बलें, ते तिण वेलें, तातन रणी प्राप्युं वही ए ॥ २५ ॥ सकुटुंबा बे महीपति, व हेता स्नेह रसोन्नति, शुजमति, राज काज करता वहे ए ॥ ३० ।। चोथे खमें मीठमी, एकवीशमी रस पूक ची, यमी, ढाल कही कांतें चली ए॥३१॥
॥दोहा॥ ॥ ते कालें तेणे समे, करता उग्रविहार || पारस जिनना शिष्य मुनि, चंडयशा अणगार ॥ १॥ ते पु रखरने उपवनें, समवसस्या गुरु राज॥ केवलधर सुर नर नम्या, वींट्या साधु समाजः॥२॥ उपगारी त्रि हु लोकने, पूज्य कृपारस सिंधु ॥ नव अनंत नांखे यथा, रूपें श्रीजगबंधु ॥३॥ वनपालक जई वीनव्या, बिहुं नूपतिने वेग ॥ पुरजन वृदे परिवख्या, आवे नूप सतेग ॥ ४॥ पंचालिगमन साचवी, प्रणमी जिननें जेम ॥ धर्मकथा सुणवा बन्हे, बेग विनयी तेम ॥५॥
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(२१५)
ढाल बावीशमी ॥ वणजारानी देशी॥ ॥ चित्त बूजो रे कांई बांगो मोहनी निंद, जागो घि षयघारिणीथकी, नवि बूजो रे ॥चि॥ एतो विषमो काल पुलिंद, बल जोवे बानो तकी ॥०॥१॥चि ॥ थेंतो सांकमे उरामांही, सूता काल अनादिना ॥ न ॥ चि० ॥ बोध न पाम्योत्यांहिं,खोया फोकट के ६ दिना॥न० ॥२॥चि०॥वरजो विषय कषाय, ए हमा स्वाद न को अ॥०॥चि॥रहेशो जो ल पटाय, परतावो होशे पडें ॥न० ॥३॥चि॥वों हिंसा पूर, सत्य वदो परधन तजो।नचि०॥ मो मैथुन नूर, परिग्रह मूर्नामति जजो |न०॥४॥ ॥ चि०॥क्रोधादिक रिपुचार, संगति एहनी बांमजो ॥ ज० ॥ चि० ॥ प्रेम नाव संचार, तजजोद्वेष नमा मजो ॥न ॥ ५॥ चि०॥ कलहने अन्याख्यान, चा मी रति अरति तजो ॥नः॥चि०॥पर परिवादादा न, न करो माया मषा रजो ॥ न॥६॥चि० ॥ मि थ्यामति मय साल, काढी नाखो चित्तथी॥ज. ॥ ॥ चि० ॥ कुगति तणा ए जाल, गण अढारह नित्य थी॥ न०॥ ॥ चि०॥जीतो इंजिय गाम, मन मां कमबुं वश करो ॥ ज० ॥ चि॥ वावो वित्त सुगम,
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( २५६)
शील सुरंगो आदरो ॥ ज० ॥ ८ ॥ चि० ॥ परचो योगा ज्यास, यह निशि जावो जावना ॥ ज० ॥ चि० ॥ मुगति दीये विलास, कारण एता पावनां ॥ ज० ॥ ए॥ चि०॥ क त्रिम ए संसार, तनधन यौवन का रिमां ॥ ज० ॥ चि० ॥ जात न लागे वार, जिम कायरनो शूरमां ॥ ज० ॥ १० ॥ ॥ चि० ॥ कुण के हनो जगमांहि, स्वारथनां सहुको सगां ॥ ज० ॥ चि० ॥ स्वारथ विण नर प्रांहि, वालानें श्रापे दगां ॥ ज० ॥ ११ ॥ चि० ॥ पुण्याने वली पाप, एहि ज साधें वशे ॥ ज० ॥ चि० ॥ जोगवशे दुःख आ प, तिहां नहिं को वेचावशे ॥ ज० ॥ १२ ॥ चि० ॥ म त जिम बाण, नरजव धर्म विना तिस्यो ॥ ज० ॥ || चिं० ॥ सुलहा जवजव प्राणि, धर्म नहीं मलशे इ स्यो ॥ ज० ॥ १३ ॥ च० ॥ दश दृष्टांत पुलंन, मा नव जव पुण्यें लही ॥ ज० ॥ चि० ॥ पाम्या योग सु लं, सफल करो हवे ते वही ॥ ज० ॥ १४ ॥ चि०॥ थावो अति उजमाल, अवसर फिर नहीं शे ॥ ज० ॥ चि० ॥ लाख गये जंजाल, धर्म मारग वि च थावशे ॥ ज० ॥ १५ ॥ चि० ॥ चेतो चित्तमां या प, कहेशो पढ़ी जाएयुं नहिं ॥ ज० ॥ चि० ॥ ॥ टालो जव संताप, शिव कारण संयम ग्रही ॥ ज० ॥ १६ ॥
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(२१७) ॥चि० ॥ धर्म तणो उपदेश, चंडयशाये इम दीयो ॥ ज० ॥ चि० ॥ रीज्या दोय नरेश, पुरजन सघलो हरखियो ॥ ज० ॥१७॥ चि० ॥ चोथा खंमनी ढा ल, एह कही बावीशमी ॥ न चि०॥कांतिवि जय जयमाल, वरिये सुणतां मनगमी॥ ज० ॥१०॥
॥दोहा॥ ॥ शूरनरेशर अवसरें, पूछे गुरुनें एम ॥ जगवन् मलया जलथकी, ऊखें उतारी केम ॥१॥ सुख शा तायें जलधिथी, थाणी उतारी कंठ ॥ कारण ते सु णवा तणो, ने अमने उतकंग ॥२॥ केवलनाण दि वायरू, महिमावंत महंत ॥ चंऽयशा सूरीश्वरू, श्म कारण पनणंत ॥ ३ ॥
॥ ढाल त्रेवीशमी ॥ तीरथ ते नमुं रे ॥ए देशी॥ .॥सुण राजेसर चित्त धरी, जलनिधि तरी रे, म खया मीन सहाय, कारण ते कहूं रे ॥ वेगवती ना में इती, जेह पाखती रे, बालाने धाय माय ॥का ॥ ॥१॥ मुर्त्याने कालेमरी, ते श्रवतरी रे ॥ जलनिधि मा गजमान ॥का० ॥ पमता सारममुखथकी, आत कुःखयकी रे, श्रीनवकारमा लीन || का० ॥२॥ गज मलने वांसे पमी, जाणे चढी रे, कमला गजने पूंव
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(290)
॥ का० ॥ गाढें नवपद त्यां जयां, श्रवणें सुण्या रे, मीनें मनमां तूठ ॥ का० ॥ ३ ॥ ईहापोह करया थकी, मीनें चकी रे, दीगे गत जव व्याप ॥ का० ॥ ग्रीवा वाली नि रखतां, मन हरखतां रे, वाध्यो प्रेमनो व्याप ॥ का० ॥ ॥ ४ ॥ जोतां मलया उलखी, पुत्री दुःखी रे, लागो विचारण मीन ॥ का० ॥ हैहै दुःखें अवघमी, एहमां पकी रे, दुर्विधिनें आधीन ॥ का० ॥ ५ ॥ मुजथी कां ई न नीपजे, नवि संपजे रे, उपकारकनां काम ॥ का० ॥ तोपण मूकुं हां थकी, रुरुं तकी रे, जिहां होवे वस तीनुं गम ॥ का० ॥ ६ ॥ यदपि कदाचित् ए वली, दुःखथी टली रे, पामे वचनं योग ॥ का० ॥ ईम चिं ति तेथे माडलें, धरी पाउलें रे, मूकी थल संयोग ॥ ॥ का० ॥ ७ ॥ कंधर वाली निरखतो, एहनें कितो रे, दुःख धरतो ऊख राय ॥ का० ॥ नेहें हियमे सूरतो, जल पूरतो रे, पाठो जलमां जाय ॥ का० ॥ ७ ॥ गतजव देखी जागीयो, सोजागीयो रे, माछो पामी विवेक ॥ का० ॥ फास आहार आहारतो, मन धारतो रे, श्री नवपदनी टेक ॥ का० ॥ ए ॥ पूरी ऊख आयुष तिहां, सुगति इहां रे, ऊपजशे लघु कर्म ॥ का ० ॥ कालें परिणति पाकशे, जव थाक
८.
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( २५० )
शेरे, आराधि जिनधर्म ॥ का० ॥ १० ॥ सदगुरु वचनें सहदे, साधुं कहे रे, भूपादिक जविलोग ॥ ॥ का० ॥ वेगवती जब सांजली, कहे एम वली रे, अहो हो जावी जोग || का० ॥ ११ ॥ लोक कड़े एक एक प्रत्यें, जूर्ज म बतें रे, पाल्यो जननी प्रेम ॥ का० ॥ दाव्यो पप लोहारिकें, अधिकाधिकें रे, वानी धारे देम ॥ का० ॥ १२ ॥ मलया चरिच सुहामं, रलियाम रे, कदेतां बाधे प्रीति ॥ का० ॥ ढाल वीशमी ए सही, मन गह गही रे, कांतिवि जय शुज रीति ॥ का० ॥ १३ ॥ ॥ दोहा ॥
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॥ पूढे वली नर राजिर्ज, जगवन् करुणावंत || मलया महबल पूर्वजव, जांखो स्वामी सुतंत ॥ १ ॥ बालायें वली महबलें, श्यां श्यों की धां कर्म ॥ जे थकी यौवन समे, साधां दुःख दिए मर्म ॥ २ ॥ सूरि जणे महीपति सुणो, थिरकरी चित्र बनाव || मलयाने म हबल तपा, जांखुं गत जवजाव ॥ ३ ॥
ढाल चोवीशमी ॥ हस्तिनागपुर वर जलु, ॥ जिहां पांगु राजा सार रे ॥ ए देशी ॥ ॥ पुहवी गए तुज पुरखरें, एक गृहपति हुतो स
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( २७० )
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मृद्ध रे || प्रिय मित्र नामें पुत्रि, धनवंतो पूर्वे प्रसि करे । धनवंतो पूर्वे प्रसिद्ध, पूरवजव केवली, ईम जॉ खे रे ॥ १ ॥ ए यांकणी ॥ त्रण दयिता तेहने हूती, रुद्रा वली जड़ा नाम रे ॥ त्रीजी तिम प्रियसुंदरी, नामें तस प्रीतिनुं गम रे ॥ ना० ॥ २ ॥ बढेन संगी धुरनी बिन्हें, मांहो मांहे धारे नेह रे || बिहुं उपर प्रिय मित्रनें, नधि बेगे प्रेमनो नेह रे ॥ नवि० ॥ ३ ॥ प्रियसुंदरी साथै पिउ, अनुकूल रहे निश दीश रे ॥ निरखी ते बेदु अंगना, पोषे मनमां प्रति दोष रे ॥ पो० ॥ ४ ॥ प्रियसुंदरी प्रिय मित्रथी, बिहुं कलह करे नित्यमेव रे । प्राहिं सोकलमी तणी, दीसे जग एहवी टेव रे ॥ दी ० ॥ ५ ॥ मदन प्रिय नामें तिहां, प्रिय मित्रनें हुतो मित्र रे || प्रियसुंदरी साधें तेणें, मांझी रतिप्रीति वि चित्र रे ॥ मां० ॥ ६ ॥ काम महारस याचना, छाब खाने करतो ते रे ॥ प्रियमित्रे दीठो तिढां, तव जा ग्यो कोप वेद रे ॥ त० ॥ ७ ॥ निज बांधव श्रागें कही, तस चरित्र रहस्यनुं तेण रे ।। पुरबाहिर का यो परो, निळंबी कोप वशेष रे ॥ नि० ॥ ८ ॥ बो ख्या तिहां के वालिया, जाणे तेह गुह्यनी वात रे ॥ नहीं ए अजाणी श्रमश्रकी, पण न करूं कोइ परतां
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() त रे॥ ५० ॥ ए॥ निज मोटा गुण खघु करे, परगुण अणु मेरु करत रे ॥ धन्य धरामां ते नरा, विरला को जननी जणंत रे ॥ वि०॥ १० ॥ मदनवदन जांखं करी, नागे दिशिधारी एकरे॥पुर्वह अटवी मां पड्यो, नूख्यो वली तरस्यो डेक रे ॥०॥११॥ पार लह्यो अटवी तणो, त्रीजे दिन तेथे नेठ रे ॥
आव्यो वही एक गोकुलें, दीग पशुपालक देह रे ।। दी० ॥१२॥ महिषी कुल वन चारता, बेग तरु बा या गम रे ॥ भोजननो अरथी धसी, थाव्यो तेह पा सें ताम रे ॥ श्रा० ॥ १३॥ पय याच्यां गोवालीया,
आपे पय महिषी दोहि रे ॥पामर जन पण आचरे, करुणा रस अवसर मोहि रे ॥ क० ॥ १४ ॥ खीर त णुं नाजन ग्रही, पशुपालक अनुमति लेय रे ॥ श्रा वे समीप सरोवरें, शीतल जल थानक केय रे॥शी॥ ॥ १५॥ पंथे वहेतो अनुक्रमें, चिंते चित्त एम सुहब रे।। कोश्कने आपी जमुं, होय तो मुज जनम कयबरे ॥ हो० ॥ १६ ॥ चिंतवतां श्म सामुदो, मलीयो मुनि पुण्य पसाय रे ॥ मास तणो उपवासियो, पारण दिन टाणे श्राय रे ॥पा०॥ १७॥ मुनि निरखी मन हर खियो, अहो सफल दिवस मुज श्राज रे ॥ प्रतिला
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(२७२) नी एह साधुनें, सारं मुज वंबित काज रे ॥ सा॥ ॥ २७ ॥ धारी मनशुं एहवं, कर जोमी आगल आय रे ॥ पत्नणे साधु प्रत्यें इस्यो, पय शुरु अ मुनिराय रे॥ ५० ॥ १ए ॥ मुज उपर करुणा करी, वोहोरो फासु पय एह रे॥अव्यादिकनी शुद्धता, निरखे मु नि वोहोरे तेह रे ॥ नि०॥ २०॥बांध्यु अनर्गल ना वथी, मदनें शुज कमे विशेष रे॥ मुनिन प्रणमाया वियो, सरपाले लई पय शेष रे ॥ स० ॥१॥ आप कृतारथ मानतो, पीवे पय शेष तिकोय रे ॥ विषम तटें सरोवर तणे, जल पीवा बेठो सोय रे॥ज० ॥२५॥ पग लपट्यो तिहाथीखशी, पनियोजल ऊमे जाय रे॥ मरण लही ए पुरवरें, मदनप्रिय दान पसाय रे ॥ म० ॥ २३ ॥ विजय नरेशरने घरें, सुत रत्न पणे उ त्पन्न रे ॥ कंदर्प नामे थापियो, तस तात मरण संपन्न रे ॥ त०॥ २४ ॥ पाट पितानो आक्रमी, थई बेगे पृथिवीपाल रे ॥ चोथे खंमें ए कही, कांतें चो वीशमी ढाल रे ॥ कां० ॥ २५॥ ..... ... ॥दोहा॥
॥ सुंदरीशं प्रिय मित्र त्यां, विलसंतो एकतान॥ प्रा नना नारिशें, बांधे वैर निदान॥१॥ अन्य दिने
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(२३) प्रिय मित्रने निज ललनां लेइ लार ॥ यद धनंजय ने टवा, चाल्यो सपरीवार ॥२॥ पंथें वदेतो अधमगें, व्यो ज्यां वमहे ॥क मुनि साहमो आवतो, देखे त्यां निज जेठ ॥३॥ आपणने साहमो मल्यो, अशु न सुकृत ए मुंम यात्रा थाशे निःफला, एहथी श्र शुल अखंग ॥४॥ इम कहेती प्रियसुंदरी, जन वा हन थोनाम ॥ करे परिसह साधुनें, पापिणी रांग कुहामि ॥५॥ ॥ ढाल पच्चीशमी ॥ सोदानें गोरीमें ढोला, पमीरे नगारारी गेर ढोला; नाग मजा जे
रे रणसिंघ नागोरा ॥ए देशी॥ ॥ उदय आव्यो मजने हां हांजी. परिसह मो टो एह हांजी, चिंति एहवुरे, मुनि काउस्सग्ग गवे ।। त्रिविधं धारी रे, श्रातम वो सिरावे ॥ श्रा॥अन्न उससियादिकें हांजी, श्रागारें निरवेह ॥ चि०॥१॥ पद अंगुष्ट नखें बबी हांजी, लोचन तारा धार हांजी, ध्या न महोदधि लहेरमां हांजी, जीले मुनि अविकार हां जी॥ चि॥२॥बांधी श्रमशुबाकरी हांजी, ऊनो ए हठ मामि हांजी, कहेती एहवं रे, कोपी मराठी ॥ कुमतें व्यापी रे, आचरणें काली॥श्रा०॥ कहे सुंदरी
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सेवक प्रत्यें हांजी, मर्यादा वट बांकि हांजी ॥ क० ॥ ३ ॥ साइमां ए इंटवादथी हांजी, जारे लाव हुताश हां जी, ए पापीनें मां जियें हांजी, जिम होये अशुभ वि नाश हांजी ॥ क० ॥ ४ ॥ अशुकन फल एहनें हुवे हांजी, फीटे वली अहंकार हांजी, सुंदरी सेवक एह वां हांजी, निसुणी वचन विचार हांजी ॥ क० ॥ ५ ॥ कहे में चरणे पाडुका हांजी, पहेरी बे नहीं याज हांजी, इटामां कुण जायशे हांजी, विषम थलें विए काज हांजी ॥ क० ॥ ६ ॥ मूकी कदाग्रह एहवो हां जी, चालो में सदीस हांजी, वचन सुणी पीठ दासनां हांजी, बोल्यो चढावी रीश हांजी ॥ क० ॥ ७ ॥ कहेतां एवं रे, कोप्यो मबरालो ॥ कुमतें व्याप्यो रे, श्राचरणें कालो ॥ अहो सेवक सुंदरी तथा दांजी, बांध्यो वमशुं पाय हांजी, भूमी जिहां लागे नहीं हां जी, वली कंटक नज जाय हांजी ॥ कप ॥ ८ ॥ वा हनथ प्रियसुंदरी हांजी, ऊतरे देवी तुरंत हांजी ॥ मुनिवर पासें आइनें हांजी, निठुर ईम पजयंत हां जी ॥ क० ॥ ए ॥ ई अपशुकनें श्रमतो हांजी, कदिमत होजो वियोग दांजी ॥ विरह हजो ताहरे स दा हांजी, वाहालानो वली सोग हांजी ॥ क० ॥ १० ॥
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(२५) पाखंभी तु पापी हांजी, राक्षसनो अवतार हांजी ॥ सब नयंकर सत्वनें हांजी, पुर्जग तुज श्राकार हांजी ॥क० ॥ ११ ॥ नितुर श्म आक्रोशथी हांजी, तप सीने त्रणवार हांजी, पाषाणे करी आहगे हांजी, करती कोप अपार हांजीकण॥१२॥उघो मुनिना हाथ थी हांजी, ऊम्पी लीये निरलस हांजी ॥ निज वाह नमा थापीने हांजी, टाले कुशुकन कहा हांजी॥०॥ ॥ १३ ॥ कुशुकन फल एहनें हुई हांजी, चालो ह वे निहचिंत हांजी ॥म कहेतां परिवारने हांजी,सुखें दंपती पंथे वहंत हांजी ।। क० ॥ १४ ॥ यद जवन पोहोतां वही हांजी, पूज्यो धनंजय देव हांजी, बेग करजोमी बिन्हें हांजी, सारे विधिशु सेव हांजी ॥ क. ॥ १५ ॥ रागिणी श्रीजिनधर्मनी हांजी, तस घर दासी एक हांजी ॥ एहq बोली रे, सुंदरी सुगुणा ली ॥ सुमते व्यापी रे,आचरणा वाली०॥कर जोमी दंपती प्रतें हांजी, समजावे श्म बेक हांजी॥ए।॥१६॥ पापकरम बांध्यु महा हांजी, आज तुमें विण काज हांजी, उपशम धर तेहवो घणुं हांजी, संताप्यो क विराज हांजी 1) ए० ॥ १७ ॥ हासे पण जो को क रे हांजी, एहवा ऋषिनी जेह हांजी ॥ श्ह नव परनव
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(२७६.) मां बहे हांजी, दारिख पुःख अजेह हांजी ॥ए०॥ ॥ २७ ॥ श्रीअरिहंतें सूत्रमा हांजी, वेष को बंद नीक हांजी, आदर करतो वेषनें हांजी,आणे मुगति नजीक हांजी ॥ एक ॥ १५ ॥ दासी वचनें तेहवां हांजी, पाम्यां ते प्रतिबोध हांजी॥दुर्गति पुःखथी बीह नां हांजी, थरक्या थई गतक्रोध हांजी ॥ए ॥२०॥ पळतावो करता हीये हांजी, करतां लोचन नीर हां जी, दीन मना थर आपने हांजी, नींदे वली वली धीर हांजी ॥ ए. ॥१॥ निजदासीने प्रशंसता हां जी, पाबां आवे धाम हांजी, तेहिज मुनिपासे जर हांजी, वंदे पग शिर नाम हांजी, ॥ ए॥२२॥ चो था खंग तणी हुई हांजी, ए पणवीशमी ढाल हांजी, कांति कहे धन्य ते नरा हांजी, मन वाले ततकाल हांजी ॥ ए० ॥२३॥
॥दोहा॥ ॥ जो धर्मध्वज आज हुँ, पाडो फरी पामेश ॥ तोहिज ए थानक थकी, कानस्सग्ग पारेस ॥१॥ क री प्रतिज्ञा एहवी, तिमहीज उन्नो तेह ॥ राग दोष परिणति तजी, पेठगे उपशम गेह॥॥गुण निरखी संयम तणा, स लहे दंपती तास ॥ धर्मध्वज पालो दि
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( २८७ )
ये, करता स्तुति श्रन्यास || ३ || निजकृत कुचरित चेष्टना, संजारी सवि राग ॥ गदगद कंठें वीनवें, ध रतां दुःख ताग ॥ ४ ॥
॥ ढाल बीशमी ॥ मारुजी केणे थांने चा ब्योजी चालयो, किणे यांने दीधी शीख मारा लोजी || वारीहो दक्षिणरी हो राजन चाकरी ॥ ए देशी ॥
॥ साधुजी तो यांने चालोजी चालव्यो, म्हेंतो यांशु कीधी जेम महारा साधु, वारी हो सुगुण रे हो जाउं जाम साधुजी ॥ राज रुकी जांति हो चादरी, कोप नाख्यो दूरें फेमी ॥ मा० ॥ १ ॥ मेंतो थारी कीध हो अवगना, पमीयां मोहें बेदु आप ॥ मा० ॥ जव उप ग्राही इहां याकरूं, अलवें बांध्यं जुंरुं पाप ॥ मा० ॥ ॥ २ ॥ खमजो महोटी एह विराधना, करुणामें रूमे म नवालि ॥ मा० ॥ ताता कूता पूछें हो जो जसे, पण गज न पमे तेहने ख्याल | मा० ॥ ३ ॥ जंबुक उजो कूके हो रोशमां, जोरे सोरें मुखमानें पास || मा० ॥ तोही जो दी मातो हो केसरी, मांगे नहीं हणवानो क्यास ॥ मा० ॥ ४ ॥ दोष पोष्यां जारी हो यतमा, थाशे केहा अमचा हवाल ॥ मा० ॥ जो कोई हेतु हो दाखीयें, बू
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( ज) टांजेथी पातक जाल ॥माण ॥५॥पारी काउस्सग्ग त्यां होईम कहे, कोपां जो में एम अकंम॥ लोला प्रा णी, वारी हो संयमनां हो लीजें नांमणां प्राणीजी॥ जावे कोई नाहीं हो लोकमां, थाशे साधु धरम शत खम ॥ नो० ॥६॥थेतो खेलो शुद्ध विवेकशु, पालो रूमो जिननोधर्म ॥जो० ॥बांगो रेंगाढी ए मूढता. बेदो जवनां पोषक कर्म ॥लो० ॥७॥पामी सूधी शि क्षा हो साधुथी, श्रद्धा आणी साचे चित्त ॥जो॥बार व्रत नावें हो उच्चस्यां, समकित शुद्ध जाचाचि चित्त॥ नो० ॥ ॥जक्ते पाने मुनिने आमंत्रिने, श्राव्यां गेहें दंपती हर्षे ॥ चो० ॥ लीना जीना सार संवेगमां, नाखी मनथी कुमति निकर्षे॥ नो०॥ए॥आवे पुरमा साधु ते गोचरी, नमतो जमतो घर घर बार॥नो ॥तेहनें गेहें व्या पुण्यथी, देहाधारी उपशम सार॥नो ॥१०॥ निरखी बेह साधनें हरखियां, मानें आतम ने सुकय ॥ जो० ॥ फांसु आपे हो असना जावद्यु, दंपति मनमां रीजी तब ॥ नो० ॥ ११ ॥ पाले बारे व्रत त्यां हो निरमलां, मिथ्यामत अल्गो त डोम ॥ नो ॥ चोथे खंमें चावी बवीशमी, कांतें जां खी ढाल मन कोम ॥ नो० ॥ १५ ॥ .
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(200) ॥ दोहा ॥ ॥ रुद्रा जड़ा नारिनें, शोक्याने पिउ साथ ॥ म हा कलह एक दिन हुर्ज, तेणें निभृंबी नाथ ॥ १ ॥ शोक्य धरम जगमां निपख, साले साल समान ॥ स हे मरण पण नवि सहे, शोक्योमां ापमान ॥ २ ॥ धिग धग जीवित आपणुं जनम निरर्थक कीध ॥ कलह ले नहीं को दिनें, हग पणे पिठ दीध ॥ ३ ॥ यथाशक्ति दानादिकें, कीधां परजव क ॥ मरण श रण हवे यादरी, नांखां दुःखशिर रत ॥ ४ ॥ एक मनी बे बेहेनमी, चिंती एम एकांत ॥ बानें जई कूवे पमी, करवा दुःख विश्रांत ॥ ५ ॥
॥ ढाल सत्तावीशमी ॥ नायतानी देशी | ॥ रुद्रा मरण तिहां लही, जयपुर नृप श्रीचंदपाल रे लाल || तेहने घर पुत्री पणे, थई कनकवती इति बाल रे लाल ॥ ॥ १ ॥ जांखे गत जव केवली, निसु प रषद धरी कान रे लाल ।। वैर न करशो केहथी, जो होय हियमे कांई शान रे लाल ॥ जां० ॥ २ ॥ वीरध वल ईणे राजिये, परणी ते प्रेम रसेण रे लाल ॥ जड़ा मरी थई व्यंतरी, बीजी परिणाम वशेष रेला ल ॥ जां० ॥ ३ ॥ जमती ते वन व्यंतरी, एकदिन
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( २० )
पुर पृथिवीवा रे लाल ॥ यावी देखे विलसता, प्रि यसुंदरी प्रियनें टा रे लाल ॥ जां० ॥ ४ ॥ देखी वै र संना रियुं, कोपें कलकलती चित्त रे ॥ लाल ॥ सुतां वि हूं ऊपर जई, नाखे निशिमां घरजिं ति रे लाल ॥ जां० ॥ ॥ ५ ॥ शुभ परिणामें दंपती, तिहां पामे मरण का द रे लाल || प्रियमित्र जीव ए ताहरो, थयो पुत्र महाबल बाल रे लाल || जां० ॥ ६ ॥ प्रियसुंदरीनो जीव ते, हुई मलयसुंदरी ए बाल रे लाल ॥ वीरधवलनी नंदनी, तुज सुत दयिता सुकुमाल रे लाल || जां० ॥ ॥ ७ ॥ मलयायें तुज नंदने, परजवें जे बांध्युं वैर रे लाल ॥ रुद्रा नद्रा नारिशुं तस फल इहां लाधां घेर रे लाल ॥ ज० ॥ ७ ॥ पूरव वैर संजारती, तेह असुरी अवघें जाए रे लाल || महबलनें दसवा वली, रस मांगे जयम आए रे बाल ॥ जां० ॥ ए ॥ पुण्य प्र जावें एहनें, न सकी कांई करण निष्टरे लाल ॥ सू तो निशि देखी गृहें, करती उपसर्गह पृष्ट रे लाल ॥ ॥ ज० ॥ १० ॥ वस्त्र विभूषण कुमरनां, हरियां णे क्रोधें व्याप रे लाल || वट कोटरमां मूकीयां, लाधां ते कुमरनें आप रे लाल ॥ जां० ॥ ११ ॥ प्रथम मि नमें पिछे, कायें कुमरनें हार के लाल ॥ लख
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( १०१ ) मीपुंज मनोहरू, सुखनमाला अनुकार रे लाल ॥ ॥ ज० ॥ १२ ॥ सूतो निरखी कुमरनें, तेह पण ह रियो निशिमांहिं रे लाल ॥ व्यंतरीयें मंदिरथकी, संजारी वैर थाह रे लाल || जां० ॥ १३ ॥ गतज व बहिनी प्रीतथी, थाप्यो जई कनका कंठ रे लाल ॥ कोमी जवें पण रस दीये, है विषमी प्रेमनी गंव रे लाल ॥ ज० ॥ १४ ॥ चोथे खंसे सुंदरू, घई सत्तावी शमी ढाल रे लाल || कांति कहे हवे पूशे, इहां वी रधवल भूपाल रे लाल ॥ ज० ॥ १५ ॥
||
दोहा अवसर विस्मित हीये, वीरधवल भूपाल ॥ पूढे म केवल प्रत्यें, थापी करतल जाल ॥ १ ॥ स्वयंवर मंरुप विना, महबल प्रथम कदाच ॥ मध्यो नहीं मलया प्रत्यें, तो हार दियो क्रिम राच ॥ २ ॥ हसे. कुमर कुमरी मनें, निज चरित्रगत जाणि ॥ ज्ञातचरित्र विचित्र ते, जांखे गुरु तेणें वाणः ॥ ३ ॥ कुमर मली. पहेलो जई, चाव्यो पानी हार ॥ कनकायें जब वैर थो, विरच्यो कूरु प्रकार ॥ ४ ॥ मलया पुत्री उपरें, कोपाव्यो नृप व्यर्थ ॥ इत्यादिक धुरनी कथा, आखे सुगुरु सह ॥ ५ ॥
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(२)
॥ ढाल श्रद्वावीशमी ॥ जीरे जीरे स्वामी ॥ ॥ समो सख्या ॥ एदेशी ॥
॥
॥ वचन सुणी केवली तयां, बोल्या परषद लोको रे || कंदल कंद वधारवा, विष जलधर जोको रे ॥ १ ॥ धिग धिग चित्त नारी तणुं, अनरथ फल आपे रे || कुमति कदाग्रह पोषीनें, रस रीतें उच्चापे रे ॥ धि० ॥ २ ॥ कहे वली या केवली, महबल निशि मांहीं रे ॥ व्यं तरीयें इणवा जणी, अपहारयो नष्ठाहीं रे ॥ धि० ॥ ॥ ३ ॥ महबल मूर्ती श्रहणी, नागे विकराली रे ॥ विषम चरिता व्यंतरी, न करे वली आली रे ॥ धि० ॥ ४ ॥ सेवक सुंदर ते मरी, थयो नूत उदंगो रे ॥ बाहिर पुहवी गणने, ते वममां प्रचको रे ॥ धि० ॥ ५ ॥ जमतो महबल विधिवशे, आव्यो वरुतरु देव रे ॥ ते नूतें तिहां उलव्यो, निरखी गतजव देव रे ॥ धि ॥ ६ ॥ वम कालें पग एहना, बांध्यो माथे नीचे रे ॥ जिम धरणी के नहीं, कंटक नवि खुंचे रे ॥ ॥ ७ ॥ वचन संजारी एहवं, प्रिय मित्रनुं तेणें रे ॥ क रवा पीमा कुमरनें, संच मांन्यो एणें रे ॥ धि० ॥ ८ ॥ शवना मुखमां अवतरी, इंभ बोल्यो हसंतो रे ॥ मूढ इसे कां मुझनें, देखी बांध्यो एकतो रे ॥ धि० ॥ ॥
धि०
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(२३) तुं पण ए हिज वमतलें, आगामिणी रातें रे ॥ बंधाशे उंचे पगें, नीचे शिर थातें रे ॥ धि० ॥ १०॥सहेशे बहु फुःख पापथी, टांग्यो जिम चोर रे ॥ तेपण ते हिज महबलें, सह्यां फुःख कगेर रे ॥ धि०॥११॥ रुषायें एकण दिने, लोनें लही लागो रे ॥ चोरी पि उनी मुखिका, गतनवमां श्रागो रे ॥ धिम्॥ १२ ॥ मुडा सुंदर सेवकें, दीठी लेतां लाने रे॥ जोतो पियु मुजा प्रत्ये, समजाव्यो शाने रे ॥ धि० ॥१३॥ रुज्ञ पासें मुश्किा, दीगी में ले जा रे॥मांगी लीयो म हलफल्या, आकुल कां था रे ॥ धि०॥ १४ ॥व चन सुणी सुंदर तगा, रुशमन रूठी रे ॥सुंदर सा थे चोरटी, समवाने ऊठी रे ॥ धि० ॥ १५ ॥कोपा कुल बोली इस्युं, जूठ श्म कां नांखे रे ॥धुर्मति काप्या नाकना, कांश शरम न राखे रे॥धि० ॥१६॥ मुश में लीधी किहां, आल एम चढावे रे॥ मुज स रखी जूंमी नथी, जाणे हे तुं चावे रे॥धि० ॥१७॥ मौन करी सुंदर रह्यो, बीहीतो मनमांहिं रे ॥ प्रिय मित्र करी तामना, लीधी मुज्ञ त्यांहिं रे॥धि०॥१७॥ लघुता कीधी शोक्यमां, रुश अपमानी रे ॥ दीन व दन जांखी थई, रही बापमी बानी रे॥धि०॥१५॥
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(ए४) पुर्वचनें बांध्यां जिके, रुखा नवें पापो रे ॥ जोगवियां फल तेहनां, कनका थईबापो रे॥ धि०॥२०॥ सूति पणे ए सुंदरी, नव वैरिणी जाणी रे ॥ कनकवतीनी नासिका, सीधी मुखें ताणी रे॥धि ॥१॥ हसतां बांधे जे जीवमो, तेह रोतां न बूटे रे ॥ अनरस ना वें परिणमी, चिरकालें ते खूटे रे॥धि ॥२२ ॥ ढाल कही अमवीशमी, चोथे खंमें ए चावी रे ॥ कांति कहे मन उबसी, सुणो श्रोता नावी रे॥धि०॥३॥
॥ दोहा ॥ __ कहे सुगुरु नूपति जणी, शेष कथा विरतंत ॥ सावधानता आदरं, परषद सकल सुणत ॥१॥ म दन धरंतो गतनवें, प्रियसुंदरीशं राग॥ कंदर्प नव तेहथी हु, मलयाशुं रस लाग ॥॥पूर्वे मलया महबलें, लही संकल मर्म ॥ दीधुं दान सुसाधुने, पाल्यो श्रीजिनधर्म ॥३॥ तेहथी सुकुलादिक तणी, सामग्री लही हिं। आराधि विहमे नहीं, सुकृत कमाई क्यांहिं ॥४॥ जवतारक जिनधर्मनें, रीजि नजो अह खीज ॥ उलटो पण सवलो फलें, नूमि पड्यां जो बीज ॥५॥
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(२५) ॥ ढाल गणत्रीशमी ॥ आसणरा योगी ॥ ए देशी॥ ___॥ प्रियसुंदरी मुनिवरनें देखी, आप कुलवट कां णि उवेखी रे ॥ हुई साधुनी द्वेषी ॥ बंधु वियोग ह जो नित्य ताहरे, तुंतो दीसे राक्षस जाहरे रे॥ हु०॥ ॥१॥ रूपें तुं दीसे जयकारी, प्राण जूतनें दे पुःख जारी रे ॥ हु० ॥ तुज मुख जोतां पुण्य पणासे, म ल मलीन वपुष तुज वासें रे ॥ हु ॥ ॥ श्म क हीने पाषाण प्रहारें, हण्यो मुनिवरनें त्रण वारें रे ॥ ॥ हु०॥ महबल पण तिहां मौन करीने, अनुमोदे दृष्टि धरीने रे ॥ हु० ॥३॥ बेदु जणे महापातक बांध्यु, जीषण नव बंधन सांध्यु रे ॥ हु ॥ पड़ता वो करतां वली पावें, बहु खेपव्युं समजी था रे ॥ हु०॥४॥ खपवतां दल ऊगस्या जेहवं, शहां फ ल लद्यु तेथी तेहवु रे ॥ हु०॥ त्रिहुँ वारे लह्या वधु वियोगो, न मटे पूरवकृत लोगो रे॥ हु० ॥५॥ कनकाथी लाधो अंतिवको, एणी रात्रिचरनो (राद सीनो ) कलंको रे ॥ हु०॥ वंक विना मूकी वन सी में, रखमी गिरि गहन तटीमें रे ॥ हुण् ॥ ६॥ देश विदेश सह्यां पुःख केतां, पार थावे न कहे तेतां रे ॥ हु० ॥ बिहुँ जण कर्म तणे अनुसारें, सह्यां संक
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(शए६) ट विविध प्रकारें रे॥हु० ॥७॥ऊमपी मुनि रयह रणुं ली ,मलयायें तिम वली दीधुं रे॥दु०॥ तेहथी पुत्र वियोग लहीने, फरी पामी संयोग बहीने रे॥ हुए ॥७॥करी उपसर्ग सुसाधु विराध्यो, अंतें तिम जे आराध्यो रे ॥ हु० ॥ तेहिज हुँ उद्मस्थ टलीने, हुर्ड केवली तपसीने रे ॥हु०॥ ए॥ बिहुँ जणनो बीजो नव एही, महारे नव एकज तेही रे॥ हु०॥ वचन सुणी मनमां कमखाणो, वली बोल्यो श्म महीराणो रे ॥ हु० ॥ १० ॥ जगवन् कनकवती तेम असुरी, तव वैर विरोध प्रसरी रे ॥ हु० ॥ करशे एहुनें वली कांई मा, किंवा वैर पुरातन घा रे ॥ हु० ॥११॥ सूरि नणे असुरी कर तामी, गई वैर विरोध विजांनी रे ॥ हु० ॥ कनकवती नमती हां आवी, विषमो एक दाव जपावी रे॥हु ॥१२॥ एक उपञ्व करशे कोपें, तुज सुतनें वैराटोपें रे॥ हुए ॥ कनका असुरी पुरित पुरंता, जमशे लव काल अनंता रे ॥ हु० ॥ ॥ १३ ॥ मलया महबलनो लव लांख्यो, एहमां अव शेष न राख्यो रे ॥ दु०॥ गणत्रीशमी चोथे खंमें, कांतें कही ढाल उमंगें रे ॥ हु० ॥१४॥
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(ए)
॥ दोहा॥ ॥ मलया महबलनुं तिहां, निसुणी चरित विशा खानव निस्पृह परषद हई, धरी वैराग्य रसाल ॥१॥ दंपति सहगुरु मुखथकी, निसुणी आप चरित्त ॥ अति वैरागें श्रादरें, बारे व्रत सुपवित्त ॥२॥ मुनि सेवा करशुं सदा, आणी जक्ति विशेष ॥ ग्रहे अनि ग्रह एहवो, सुगुरु मुखें निष॥३॥ केता संयम आ दरे, श्रावकनां व्रत केय ॥ नमक नावी केई हुआ, रा गादिक नाखेय ॥४ ॥ चरित आप संताननां, सांन लीने बिहुँ नूप ॥ नवनिरुक थई ऊमह्या, संयम ग्र हण अनूप ॥ ५॥ ॥ढालत्रीशमी। जिनवचनें वैरागीयोहो धन्ना॥ एदेशी।
॥जिनवचनें वैरागी हो राया, इंम कहे बे कर जोम ॥ राज्य चिंता करि बापणी हो सामी, तुम पासे मन कोम रे हो मोरा सामी, संयम लेगुं बे ॥ १॥ संयम रस पीयूषमां हो सामी, केलि करण म न इंस॥ विषयादिक लागे तिसा हो सामी, जेहवा कटुक थल तूसरे ॥ हो ॥२॥ अवसरविद नाणी कहे हो राया, माप्रतिबंध करेह ॥ तहत्ति करी जव्या बिन्दे हो राया,आव्या निजनिज गेह रे॥ होण्॥३॥पो
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(ए) हवीगण तणो कीयो हो राया, सूरे महबल राय ॥ सागरतिलकें थापियो हो राया, शतबल अनिषेका य रे॥हो ॥४॥ वीरधवल वसुधाधवें होराया, मल यकेतु अनिधान ॥ आप तणे पाटें उव्यो हो राया, तिहांहिज देई सनमान रे॥होण॥५॥ पद चिंता था पापणी हो राया, कीधी जनपद हेत॥संयम ले वा संचरे हो राया, निज निज नारी समेत रे॥ हो । ॥६॥ ते केवली पासें जई हो राया, संयम ट्ये श्री कार ॥ रूमे हितशिक्षा ग्रहे हो साधु, चरण करण गु णधार रे॥ हो मोरासाधु, संयम पाले बे॥७॥ संयम झूषण टालवा हो साधु,शम दम शौच पवित्र ॥ तृण मणिनें सरिखा गणे हो साधु, गणे समा रिपु मित्र रे॥हो०॥७॥ गुरु पासें हुआ अन्यसी हो साधु, हा दश अंगी जाण || बह अहम आदें घणां हो साधु, करता तप शुज जाण रे॥हो॥ए ॥ महासती पासें
वी हो साधु, नृपराणी दे दीख ॥ सामायिक आदें ग्रहे हो साधु, शिवपद साधन शीख रे॥हो०॥ १० ॥ दिन केता तिहां रही हो साधु, उपगारी गुरु राय॥ विहार करे वसुधा तलें हो साधु, बिहुं मुनि सेवे पाय रे॥हो ॥११॥शोषी तन तप थाकरे हो साधु,
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P
(ए) सघला ते व्रत पाल ॥ सुरलोकें थया देवता हो साधु, संलेषण संजालि रे॥हो ॥१५॥ महाविदेहें सिऊशे हो साधु, कर्मतणो करी नाश ॥ अक्षय श्रव्याबाह नुं हो साधु, लहेशे पद सविलास रे ॥ हो० ॥१३॥ चोथे खंमें त्रीशमी हो साधु, ढाल कही श्रनिराम ॥ कांति विजय कहे माहरो हो साधु, ते मुनिने होजो प्रणाम रे ॥ हो ॥४॥
॥दोहा॥ ॥जगिनी पति नगिनी प्रत्ये, बापूजी अति प्री ति ॥ आवे श्राप पुरे वही, मलयकेतु वझरीति॥१॥ सागर तिलकपुरे ठवी, सेनानी निनंग ॥ महबल आवे निजपुरे, शतबल सुत लेई संग ॥२॥ पाले रा ज्य महाबली, गाले अरियण मान ॥ सेवे श्री जिन धर्मने, सकुटुंबो महिराणं ॥३॥ ॥ ढाल एकत्रीशमी ॥ मयणरेहा सती ॥ ए देशी॥
॥ते व्यंतर साहायथी रे हां, महबल देश अने क॥ साधे महाबली ॥ श्रीजिन वचनां धर्मनी रेहा, करे महोन्नति एक ॥ सा०॥१॥ पुरपाटण संबाहणे रेहां, थापी जिण प्रासाद ॥ सा॥ करे चक्ति मुनि वर तणी रेहां, बॉमी पच प्रमाद ॥ सा० ॥२॥बी
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( ३००) जो सुत महबल तणो रेहां, हु सहसबल नाम ॥ सा० ॥ वर लदण गुण सायरू रेहां, वंश वधारण मान ॥ सा० ॥३॥ एक दिने रयणी समे रेहां, मह बल मलया नारि ॥सा० ॥ श्लोक पुरातन चित्त धरे रेहां, अन्वय अर्थ विचार ॥ सा ॥४॥विधिपदनी वक्तव्यता रेहां, नांखी अदृष्ट सरूप ॥ सा०॥ धर्मा धर्म पदार्थनो रेहां, कथकदृष्ट अनूप ॥ सा॥५॥ स्वर्ग मुक्ति गति साधना रेहां, हेतु प्रथमपद वाच्य ॥ सा० ॥ नरकादिक गति कर्षणे रेहां, बीजो हेतु अवा च्य ॥ सा ॥ ६॥ कारण जुगपदनो कह्यो रेहां, एकज पद पर्याय ॥ सा०॥ नावि प्रमुख अनेक ने रेहां, ते हना वाचक प्राय ॥सा० ॥७॥परिपाको रस ते दीये रेहां, चिंतित होये अकयब ॥ सा ॥ शुन्न अशुजा दिक नावथी रेहां, ये परिणत फल सब॥सा०॥७॥ अवश्यपणाथी तेहनी रेहां, शक्ति कही बलवंत ॥ सा० ॥ पूरवपद विचारतो रेहां, हुश् निज वश तेह तंत ॥ सा०॥ ए ॥ विषय कषाय वशे पड्या रेहां, ते न लहे तस व्यक्ति ॥सा०॥ न्यायें अशुज विनावनी रेहां, चाखे रस परिपक्ति॥ सा०॥ १०॥ जाणो न वेखे आपथी रेहां, सहज प्रत्ये परतीर ॥ सा०॥ अ
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( ३०१ ) हो हो जननी मूढता रेहां, पीवे विष तजी खी र ॥ सा० ॥ ११ ॥ आज लगें नवि उलख्यो रेहां, नि र्मल सहज स्वभाव ॥ सा० ॥ जूली जमी जवमां घं रेहां, जिम जलनिधिमां नाव ॥ सा० ॥ १२ ॥ दाव नहिं चूकुं हवे रेहां, करवा निज उचितार्थ ॥ सा० ॥ जीनी परम संवेगमां रेहां, धारी म श्लोकार्थ ॥ सा० ॥ १३ ॥ महबल पण तव ऊजग्यो रेहां, जवथी विषय विमुक ॥ सा० ॥ परिणति संयम सारनी रे हां, हुइ बिदुने अनिमुरक ॥ सा० ॥ १४ ॥ विद्या शीखे शैशवें रेहां, यौवन साधे जोग ॥ सा० ॥ वृद्ध पणे व्रत आदरे रेहां, अंते अणसण योग ॥ सा० ॥ ॥ १५ ॥ नीति पुराणें एहवं रेहां जांख्युं नृप कर्त्त व्य ॥ सा० ॥ महबल मन धारी इश्युं रेहां, सजग हु मन जव्य ॥ सा० ॥ १६ ॥ पुत्र सहसबलनें ठवे रेहां, निजपाटें धरी प्रेम ॥ सा० ॥ सागर तिलकें थापी रेहां, पहेलो शतबल जेम ॥ सा० ॥ १७ ॥ मलया साथें उबवें रेहां, आवे सुगुरु समीप ॥ सा० ॥ पंच महाव्रत उच्चस्यां रेहां, विधिपूर्वक व्यवनी ॥ सा० ॥ ॥ १८ ॥ ढाल हूइ एकत्री शमी रेहां, चोथे खंके दो
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( ३०२ )
पं ॥ सा० ॥ कांति कहे रस पोष ॥ सा० ॥ १७ ॥
सुणतां दुवे रेहां, अध्यातम
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॥ दोहा ॥
॥ डुविदा शिक्षा पालतां, बिहुं जण तप जप ली न ॥ कहे विहार महीतलें, थया सुगुरु आधीन ॥ १ ॥ गुरु प्रादेशें बिहुं जणां, ज नंदननें पास ॥ वारे व्यसनथकी सदा, श्री जिनधर्म प्रकाश ॥ २ ॥ आप कृतारथ मानता, बे बांधव नृप पूत ॥ मांहो मांहि सुशीखथी, थया नेह संजुत्त ॥ ३ ॥ विदुनी श्री जिन धर्मयी, जेदी साते धात ॥ बीजानें पण शीखवे, मा रंग ते अवदात ॥ ४ ॥ राजऋषि मढ़वल हवे, वढेतो व्रत सिधार ॥ श्रागमविद गीतार्थमां, दु शिरोमणि सार ॥ ५ ॥ एकाकी विचरण जणी, मार्गी गुरु या देश | कुरकी संबल महामुनि, विचरे देश विदेश ॥ ६ ॥ ॥ ढाल बत्री शमी ॥ रमतां फाटो घाघरो रे । ए देशी ॥ ॥ उपशमधर मुनि सेहरो रे, सुरगिरि थिर परें चि त रे राजे ॥ सौम्यें रे जेह यागें पूरण चंद्रमा रे ला जे ॥ १ ॥ सर्व सहे वसुधा समोरे, प्रतिहत वा युनें रे तोलें ॥ जे रे परिसदथी जेहवो केसरी अ मोनें ॥ २ ॥ आलंबन हे नहीं
निरपे
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( ३०३ )
क्ष रे यापें ॥ दीपे रे रवि कींपे ताजा तेजने प्रतापें ॥ ३ ॥ व्रतनो जार उपारवा रे, समरथ शक्त जेह बोरे धोरी ॥ जाजे रे रागादिकना गढ सिंधुरा बल फो री ॥ ४ ॥ पंकज पत्र तणी परें रे, रहे निर्लेप सदैव रे रूमो ॥ दरियो रे गांजीयें जेहनें आगलें न जंको ॥ ५ ॥ अंजन लेश धरे नहिं रे, निर्मल जेदवो शंख रे बाजे || आवे रे उपसर्गे सूरिम आदरी रे गाजे ॥ ६ ॥ विहरंतो मुनि एकलो रे, सांज समय एक दि सनें रे टांगे ॥ आव्यो रे पुर सागर तिलकें उद्या ॥ ७ ॥ शतवल सुत ऋषि रायनो रे, राज करे तिढां राजवी रे शूरो ॥ वारे खड्ग धारें अरिनें न्यायमां पूरो ॥ ८ ॥ ते कृषि निरखी उलखी रे, हर्ष जस्यो वनपाल रे दोगी ॥ आव्यो रे नूपतिने प्रणमी वीन वे कर जोगी || || देव महाबल साधुजी रे, आज जनक तुम पुण्यथी रे आव्या ॥ वनमां रे एकाकी सं यम योगमां रे जाव्या ॥ १० ॥ शतबल नृपति सुणी इश्युं रे, हरषवरों रोमांचशुं रे व्यापे ॥ प्रीतें रे वनपा लकनें मणिभूषणां त्यां च्यापे ॥ ११ ॥ अवनीपति चिं ते इश्युं रे, आज हुई बे असूर रे माटे ॥ काले रे वां दीशुं युक्त ऋषिने रे पायें ॥ १२ ॥ धन्य धरा हुई मा
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( ३०४ )
हरे रे, पावन ए पुर लोक रे वारू ॥ दीधो रे जे पु ये जनकें त्र्याइने दी दारु ॥ १३ ॥ एम कही पद पा डुका रे, मूकीनें नरनाथ रे वंदे ॥ त्यांहि रे यति जक्तें रातो पापनें निकंदे ॥ १४ ॥ तात चरण युग नेटिनो रे, लोजी ते निशि दुःखथी रे काढें || प्रगको रे हवे प्रगट्यो दियर दी पियो प्रगाढें || १५ || ढाल हुई वत्रीशमी रे, चोथे खंदें एढ रे चोखी ॥ कांतें रे शुभ शांतें जांखी रंगमां रस पोखी ॥ १६ ॥
॥ दोहा ॥
"
॥ कनकबती हवे ते समे, जनपद पुर जटकंत॥ दैवयोगथी डुरकणी, तिए पुर यावी रहंत ॥ १ ॥ तेहि दिन संध्या सभे, काननमां गई काम ॥ दृष्टि पड्यो महबल मुनि रह्यो काउस्सग्ग ताम ॥ २ ॥ नि रखी रूमें उलखी, हुई महा जय जीती ॥ तेहिज ए सुत शूरनो, महबल मुनि अवनीत ॥ ३ ॥ मूलथ की ए माहरां, जाणे सकल चरित ॥ करशे प्रगट इहां कदे, तो माहारे कुण मित्त ॥ ४ ॥ तेह जण विरचुं हां, तेहवो कोई उपाय || जेहथी को जाणे नहिं, मुज कुचरित पलाय ॥ ५ ॥ करुं उपेक्षा किम हवे, अ नरथ चांपुं पाय || नहिं मुज जीवत अन्यथा, वली
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(३०५ )
ई पुर न वसाय ॥ ६ ॥ दुष्ट चरित्रा एहवं, धारी मन मां पाप ॥ कारज व्यवसर परखती, जई बेटी घर थाप ॥ ढाल तेत्री शमी ॥ वीर वखाणी राणी चेलणाजी॥एदेश ॥ ॥
सांज विहाणी पमी रातमीजी, व्यापि घोर अं धार ॥ तग तग्या गगनमां तारकाजी, लाग्या फिर ण निशिचार || सां० ॥ १॥ एकरूपें यया विश्वनाजी, जुजुया वस्तु समुदाय ॥ श्राक्रम्या श्याम अलिकुलस मेजी, तमगुणें आप बल पाय ॥ सां० ॥ २ ॥ खेलता सुररमणी रसेंजी, जेद मधुपान रसलीन ॥ व्यसनर्थ । तेह अल बांधियाजी, कमल काराघरें दीन ॥ सां० ॥ ॥ ३ ॥ लोक निज निज घर विश्रमेजी, वली मट्या मार्ग संचार || तेह समे निसरी गेहथीजी, रहस्य प ो तेह जिम जार ॥ सां० ॥ ४ ॥ अगनी धुवंती ग्रही दाथमांजी, यावी जिदां मुनिवर ते ॥ मूर्त्तिधर धर्म ज्यों थिर रह्योजी, काउस्सग्गे फलकंते देह ॥ सां० ॥ ॥ ५ ॥ पोलिये द्वार पुरनां जड्यांजी, संत व्यवहार विधिमा || जाणे निज नेत्र मख्यां पुरेंजी, जावि मु नि कष्ट मन जाण ॥ सां० ॥ ६ ॥ लोकसंचार नहीं बाहिरेंजी, निरखीयो शून्य वन जाग ॥ दुष्ट कनका लही आपणोजी, साधवा कार्यनो लाग ॥ सां० ॥ ७ ॥
२०
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(३०६) काष्ट अंगारनें कारणेजी, किणहीकें था पिया आण॥ गतदिने सीममा सहजथीजी, सामटा ते मल्या टां ण ॥ सां०॥ ॥ तेह कावें करी पापिणीजी, आवरे साधुनें तेम।चिहुं दिसें निरखतां साधुनुंजी, अंग दीसे नहीं जेम ॥ सां०॥ए ॥ विंटतां साधुने काठझुंजी,
आणी हत्या महा व्याप ॥चजगश्पुरक संसारनेजी, विंटीयो तेणी आप ॥ सां०॥ १० ॥ पूर्व नव वैरथी तेणीयेंजी. निर्दयायें महाघोर ॥अगानिसलगानीयो चिहुं दिसेंजी, पवनथी जागीयो जोर ॥सां०॥११॥ मुनिवरें कालस्सग्ग ध्यानमांजी, देखी उपसर्ग मरणां त ॥ कीधी आराधना चित्तथीजी, तेम रह्यो योग रस शांत ॥ सां०॥ १२ ॥ खंग.चोथे खरी खांतशुंजी, एह तेत्रीशमी ढाल ॥ कांतिविजय कहे हवे शहांजी, साधशे साधु जयमाल ॥ सां० ॥ १३ ॥
॥दोहा॥ ॥ उद्दीप्यो वनदव समो, ज्वाल जिव चनफेर ॥ मुनि वरनें तन पाखतें, खातो घूमणिधेर॥१॥कोमल तनु क पिरायर्नु, बाले वन्हि तपंतामूलथकी कनका तणां, जा पे सुकृ । दहंत॥२॥विकटोपत्र पीमता, सहेतोश्री ऋषियोधातागो निजातम प्रत्ये, देवाश्म प्रतिबोध॥
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(३७) ॥ढालचोत्रीशमी॥रागबंगाल॥राजा नहीं नमे ए देशी
॥रेजीउ क्रोधकू पूरे मारि, शांतिदशासौं आप कौं तार ॥ ज्ञानी आतमा ॥ हारे तेरे घरका रूप सं नार ॥ मेरे आतमा॥ हारे रागादिककी संग निवार ॥ तेरे नातमा ॥ ए आंकणी॥ आय मिल्या हे तर न उपाव, मत लूले तुं अबको दाव ॥ झा० ॥१॥ काल अनादिका लटक्या अनंत, अजुश्र न पाया न वजल अंत ॥ ज्ञा० ॥ चूकेगा जो आजका खेल, तो फिरि न मिले पैसा मेल ॥ झा ॥२॥ चढिके श्रा
नाव जिहाज, तर ले नवसागर बिनु पाज॥झा॥ नावमहा प्रवहनकौं फेर, ध्यान पवनसौं तैसें प्रेर ॥ झा०॥३॥ कुशल स्वजावें करिकें करार, जैसें प, 4 जवतटपार ॥ ज्ञा०॥ कुःख पाय ते नरक निगोद करत बसेरा कर्मकी गोद ॥झा॥ ४॥ ता पुःख श्रा गें या पुःख कौन, घटमें बिचारिकें देखत कौन ॥ ॥ ज्ञा० ॥ या महिलाको कबुथ न दोष, मत कर न उपर तुं रोष ॥ ज्ञा० ॥ ५ ॥ कर्म महावन काट न आयु, आश् नई हे साची सहायु॥झा ॥ बाहि र तनकुंजारेंगी आगि, अत्यंतर तन नहीं इन ला गि ॥ ज्ञा०॥६॥ कहा दहेगी अगनि सबोल, अ
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( ३०८ )
खय खजाना तेरा अमोल ॥ ज्ञा० ॥ मैत्री मैरे सब सौं होय, जीउ सकलसौं बैर न कोय ॥ ज्ञा० ॥ ७ ॥ आप खमाजं दोषरती, मोसौं खमहो सिगरे जीउ ॥ ज्ञा० ॥ असे धरे मुनि निर्मल ध्यान, रूपकावली कै चढी सोपान ॥ ज्ञा० ॥ ८ ॥ घाति करमकौं प्रजारे निदान, उपज्यो तबदी केवलज्ञान ॥ ज्ञा० ॥ शुक्ल ध्यानानलको प्रयोग, अंतर बाहिर अगनि संयोग ॥ ॥ ज्ञा० ॥ ए ॥ तिनसौं जब उपग्राही कर्म्म, जस्म करें । बनु मैं तजी जर्म ॥ ज्ञा० ॥ अंतगम केवली व्हे के साध, पायो मुगतिपद जयो दे अबाध ॥ ज्ञा० ॥ ॥ १० ॥ जनम जरा मृतके दुःख टार, जवकौं जलां जलि दै निरधार ॥ ज्ञा० ॥ चोथे खंकें राग बंगाल, चौतीसमी पूरी जइ ढाल ॥ ज्ञा० ॥ कांति विजय कहे देख हुं खेल, समतासौं जयो कर्म उखेल ॥ ज्ञा० ॥ ११ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ ज्वलित प्राय हुताशनें, हुई जिव्हारें तेथ ॥ नाठी कनका पापिणी, बीहिती केथ अनेथ ॥ १ ॥ यो पुष्टता नारिनी, विधि विरची विष सींची ॥ मा रेलवें परनें, तस रस सरवस खींचि ॥ २ ॥ म ति जेहनी पग हेग्ले, दाबी रहे सदाय ॥ अनरथ
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( ३०५ )
करतां तेहनें, वासें कुण समजाय ॥ ३ ॥ एक साधु हणतां हुवे, जीव अनंत विनाश || जांख्यो आगम मां इस्यो, तिछंकरें प्रकाश ॥ ४ ॥ भृष्ट हुई शुभ क मेथी, पुष्ट पाप रस लीन ॥ कष्ट सदेशे नवनवां, छा ष्ट कर्मवेश दीन ॥ ५॥
॥ ढाल पांत्री शमी ॥ विनता विइसी रे वीनवे ॥ ए देशी ॥ ॥ यणि विहाणी प्रह थयो, दिायर कीध प्रकाशो रे ॥ बहु परिवारें परिवस्यो, अवनीपति सविलासो रे ॥ १ ॥ यावे मुनिनें रे वांदवा, शतबल जक्ति विलु को रे ॥ जनक वदन जोवा जणी, उत्कंठित मन सू धो रे ॥ ० ॥ २ ॥ अति उत्सव आबरें, काननमा जव आयो रे || निरखे तेहवे रे साधुनो, देह जस्म मय गयो रे ॥ ० ॥ ३ ॥ असमंजस जोयाथकी, महीपति दुःखमांहें न कियो रे ॥ नक्तें प्रीतें रे जोल व्यो, धसके धरा तल पकियो रे ॥ श्र० ॥ ४ ॥ मोहें जास्यो रे राजवी, मूर्च्छाणो मन ऊणो रे । सजग हुने उ पचारथी, पामे तव दुःख ठूलो रे ॥ श्र० ॥ ५ ॥ प रिकर दुःखियो रे नृपडुःखें, रोवे विलवे अनेको रे, शोकनृपतिनें रे सुयें, करता पट अनिषेको रे ॥ ॥ ० ॥ ६ ॥ भूपति पजणे रे पापीये, किले ए की
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(३१०) धुं अकाजो रे ॥ निर्जय निःकारण वैरीयें, उपसर्यो मुनिराजो रे ॥ आ॥ ७॥ जवज्रमणथी रे धर्मति, बीहीनो नहीं लवलेशो रे ॥ हाहा हियर्छ रे तेहy, वज्र कठिन सुविशेषो रे ॥ श्रा०॥5 || चरण तुमा रां रे तातजी, पामीने पण पुहिलां रे ॥प्रणमी न शक्यो रे पापथी, श्रावीने हुँ पहिला रे॥ ॥ ॥ मीट तुमारी रे रस नरी, न पी माहारे अंगें रे ॥ वचन तुमरां रे नवि सुण्यां, बेशी दण एक रंगे रे॥श्रा ॥ १० ॥ सकल मनोरथ माहरा, विलय गया मनमांहिं रे ॥ कामें नाव्या रे कारिमा, जिम कूयानी गंहिं रे ॥ श्रा॥११॥ तात तणो आ गम सणी, हरख ह मज जेतो रे॥ण वेला मुज पापथी, थयो पुःखरूपी तेतो रे॥ आ ॥ १२ ॥ अशरण कीधोरे साहिबा, आजथकी हुँ अनाथो रे ॥ सुतवत्सल जातां मुन्हें, सीधो कां न साथो रे ॥ श्रा० ॥ १३ ॥ निरखी न शकुं रे तेहवी, एहश्रवस्था रे दीसे रे॥ पुण्य किहांधी माहरे, दर्शन न लद्यु दी से रे ॥ ॥ १४ ॥ शोकें पूस्यो रे जनकने, विलपे
रे ॥ कांतें चोथा रे खंगनी, कही पणती समी ढालो रे ॥ आ ॥ १५ ॥
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(३११)
॥ दोहा ॥ ॥ पूरित लोचन बांसुयें, खेदाकुल भूपाल ॥ निजन्न टनें श्म आदिसे, करिभृकुटीनो चाल ॥१॥पग अनु सारे निरखता, करो शीघ्र परगट्ट ॥ जिम पापीने पाप फल, आवे उदय विकट्ट॥२॥आप हृदय गणे ठव्यो, बीजो इष्ट परिणाम ॥ पुःप्रधर्षरस सींचतां, ऊग्युं क टक विराम ॥३॥मुनि हिंसा शाखाशतें, पाम्यो अति विस्तार ।। आशंकादिक कुसुमशु, वाध्यो चिहुं पख जार ॥ ४ ॥ प्राणनाश फल तेहy, अनिमुख हूस मद ॥ हिंसकनें फलशे हवे, पोष्यो पातक वृक्ष ॥५॥ ॥ ढाल बत्रीशमी॥ लाउलदे मात मलार ॥ ए देशी॥
वचन सुणी ततकाल, ऊठ्या नममबराल, आज हो उठा रे जण रूग जाणे कालनाजी॥१॥ जोतां इत उत नूम, मांझे सबली धूम, आज हो धारे रे अ नुसारे पगनें तेहनेंजी॥२॥पुर बाहिर एक देश, पेखत कुंज निवेश, श्राज हो दीठी रे त्रियं धीठी पेठी खाम मांजी ॥३॥ नीचे मुख जयजीत, श्याम वसन अविनीत, श्राज हो बेठी रे उपरांठी काया गोपवीजी ॥४॥ सुहमें साही केश, काढ। बाहिर देश, आज हो श्राणी रे कलुषाणी सोपी रायनेंजी ॥ ५॥ तामी
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( ३१२ )
जोर, पाऊंती मुख सोर, आज हो पूढे रे कहे शुं बे कारण वैरनुंजी ॥ ६ ॥ इणि तें महाभाग, मुनिवरनें ईणे जाग, आज हो लाखें रे तुज पाखें न करे को इ स्युंजी ॥ ७ ॥ इणी घणी जूपाल, सींची तरुनी माल, श्राज हो जांखे रे सवि दाखे करणी आपण जी ॥ ८ ॥ रूठो नूप तिवार, नानाविध देई मार, व्याज हो मारी रे तेह नारी सारी पातकेंजी ॥ ए॥ आप चरितने यो ग, पामी फलनो जोग, व्याज हो बडी रे दुःख पूर्वी न रकें ऊपनीजी ॥ १० ॥ नरक तथा संताप, सदेशे अ ति दुःख थाप, आज हो वक्रें रे जवचकें जमशे बापमी जी ॥ ११ ॥ चोथे खंमें रसाल, बत्री शमी एह ढाल ॥ आज हो कांतें रे जलि जांतें जांखी शास्त्रधीजी ॥ १२ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ भूमिपाल निज तातनो, शोक अतीव करंत ॥ समजाव्यो सचिवा दिकें, पण क्षण नवि बांगंत ॥ १ ॥ जाणी तेवुं तातंनुं, दुस्सह मरण विराम ॥ पनियो शोकसमुद्रमां, नूप सहसबल ताम ॥ २ ॥ शतबल दशशतबल बिन्हें, जनक शोक चित्त धारि ॥ लखमण राम तणी परें, तपे अर तिनें जार ॥ ३ ॥ कृष्णदेव बलिनें, द्वारावतीनें दाह ॥ शोक हु पितृनो जि
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( ३१३ )
स्यो, तिस्यो हु इहां प्रांद ॥ ४ ॥ वरति हेतु गजरा जनें, जिसी अजामी खोह ॥ साहसधरनें पण तिस्यो, विषम स्वजननो मोह ॥ एं ॥
॥ ढाल सामत्री शमी ॥ हुं दासी राम तुमारी ॥ ए देश । ॥ ॥ एहवें निर्मल चरित पवित्ता, सत्य शील संतोष विचित्ता ॥ पालती व्रत एक चित्ता, साध्वी मलया तप जुत्ता हो राज, महासती धुर शोहे ॥ श्रुतधर्मे नविपकि बोहे हो राज ॥ म० ॥ १ ॥ एकादश अंगनी जाए, पामी शुभ अवधिना ॥ जावंती थिर अप्पाण, संयम तव योग विहाण हो राज ॥ म० ॥ २ ॥ संदेह ज विकना टाले, कुमतादिकना मद गाले । एक अवसर अवघें जाले, महाबल निर्वाण निहाले हो राज || म० ॥ ३ ॥ निज नं दन प्रतिबोधेवा, जवताप पुरंत हरेवा || श्रावी ति पुरि ततखेवा, होवे साधुनें धर्मनी ठेवा हो राज॥म॥४॥ साधुयोग वसतीनें वामें, पशु पंकग रहित सुधामें ॥ साध्वीनें गए जिसमें विंटी रही थाइ सुकामें दो राज ॥ म० २५॥ शतबल भूपति यति जक्ते, वांदे श्रावकनी युक्ते ॥ समजावा साध्वी युगतें, जिलथी पामे वली मुक्तें हो राज || म॥६॥ राजेंद्र पिता तुज शूरो, उपशम संवेगें पूरो ॥ सत्य साहस शौच सनूरो, पाम्यो शिवसुखमद
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(३१४)
मूरोहो राज॥म०॥७॥उपसर्यो कनकवतीयें, न कडं मन कलुष व्रती ॥जवसागर तरतां तीयें, अवलंबन दीधुं त्रीयें हो राज॥म॥॥धन पुत्र कलत्र गृह नार, जस कारण तजीयें सार ॥ तप लोच क्रिया व्यवहार, साधीजे विविध प्रकार हो राज॥ म॥एसेवेजे गि रिवन घांटा, सहियें कटुक वचनना कांटा॥ उपसर्ग उरगनीआंटा,खमीयें ईधीरजना सांटा होराजाम ॥ १० ॥पुर्खन ते पद तातें लाधुं, नीगमीयुं नवनय बाधुं ॥ हवे कां मन शाकें दाधुं, करे कांई वपुष ए आधुं हो राज॥म ॥११॥कृतंकृत्य हु मुनिराय, ति णें हर्ष तणो ए उपाय ॥ ते माटे अहो महाराय, कांई शोक करे इंणे गय हो राज ॥म॥१२॥पोता नो वाल्हो कोई, निधि पामे सहसा सोई॥ तिहां शो कके हर्षजहोई,कहे हियमे विचारी जोई होराजमण॥" ॥ १३ ॥ विश्वानल पीमा तातें, सांसही होशे एह वा तें ॥ चिंता म करे तिलमातें, जय अरथी खिति सहे गातें हो राजम॥२४॥साधक नर विद्यासाधे, पहे ढुं तिहां पुःख सहे बाधे ॥ निज कारज सिछि आ राधे, तव आयत फल सुख लाधे हो राज ॥ म०॥२५॥ पहेडं पुःख सघले दीसे, पानें सुख संभव हीसे॥६
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( ३१५ )
म जाणीने विश्वावीशें, मन नाखे शोकमां की सें हो राज ॥ म० ॥ १६ ॥ जेट्या नहीं चरण पिताना, मत क र म जरि चिंताना | पहेली परे हवणां दाना, तु ज जक्तिना गुण नहीं बाना हो राज ॥ म०॥ १७ ॥ शोक मूकीने हवे चूप, संसारनो जावि सरूप ॥ दृढ धारी विवेक अनूप, तज डूरें ए जक्कूप हो राज ॥ म० ॥ १८ ॥ दुःख सागर ए संसार, संगम सुपना अनुकार ॥ ल खमी जिम वीज संचार, जीवित बुंद बुंद अणुहार हो राज ॥ ० ॥ १५ ॥ तुज सरिखा जो इंम करशे, शोका कुल हियमुं जरशे | बापमलो किहां संचरशे, धीरज थानक विण फिरशे हो राज ॥ म० ॥ २० ॥ म धर्म तपो उपदेश, निसुणी प्रतिबुद्ध्यो नरेश ॥ ढंके सविशोक क लेश, संवेग लह्यो सुविशेष हो राज ॥ म० ॥ २१ ॥ प्रणमे नित्य नित्य नूपाल, महत्तरिका चरण त्रिकाल ॥ सामत्री शमी एकही ढाल, चोथेखंग कांति रसाल होराज ॥ म० ॥ दोहा ॥
॥ महत्तरिकाना मुख्यकी, सुणे धर्म उपदेश | करे महोन्नति धर्मनी, धर्म धुरीण नरेश ॥ १ ॥ शत बल मुनि निर्वृतियलें, मांग्यो नवल प्रासाद ॥ ता त ती प्रतिमा तिहां, थापे तजी विषवाद ॥ २ ॥
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(३१६) उत्सव रंग वधामणां, वीवे निशिदीश ॥ ये लाहो खखमी तणो, अवसरविद अवनीश ॥ ३॥ सकल नगर लोकां प्रत्यें, करी महा उपगार ॥ नपने प्रती महत्तरा, तिहांथी करे विहार ॥ ४ ॥ पुहवीगण म हापुरे, लघु सुत बोधण काम ॥ समवसरी मलया महा, सती नमी नृप ताम ॥५॥
॥ ढाल आमत्रीशमी। जांजरीया मुनिवर
धन्य धन्य तुम अवतार॥ ए देशी ॥ ॥ पुहवीपति साधवी मुखेजी, निसणी रेश्रीश्रत धर्म ॥सपरिवार जिन धर्ममांजी, थिर थयो प्रीतीने मर्म ॥१॥ गुणवंतो रे महीपति, जावी सहसबल नाम ॥ ए श्रांकणी ॥ दिन केताश्क अंतरेंजी, शतबल नामें नरिंद ॥ महत्तरा वंदन जणीजी, थयो उतकंठ अमंद।गु०॥शलघु बांधवनाप्रेमथीजी, श्राकरष्यो उमगंत ॥ यावे तिहां परिवारशुं जी, बे बां धव त्यां मिलंत ॥ गु० ॥३॥बे बांधव दिन प्रत्ये जजी, वांदी महत्तरा पाय ॥ सुणे धरमनी देशनाजी, मन थिरजावें ठहराय ।। गु० ॥४॥ स मकितधारी व्रतधरूजी, पूजितदेव त्रिकाल ॥ दाने पोषे पात्रनेजी, जीवदया प्रतिपाल ॥ गु० ॥५॥य
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(३१७) थाशक्ति तप श्राचरेजी, साहमीनी करे नक्ति ॥ दान शाला मांगे घणीजी, वारे अधर्म प्रसक्ति । गुण॥६॥ मारि शब्द जनपद थकीजी, काढेपूर तदंत॥वीतरा ग आणा धरेजी, धारे चित्त विकसंत ॥ गु० ॥ ७ ॥ गाम नगर पुर पाटणेजी, थापे जिनना प्रासाद॥जि नजवनें जिन बिंबाजी, पूजे श्रति श्राव्दाद॥ गु०॥ ॥ ॥ अठा महोत्सव करेजी, रथ यात्रा विरचं त ॥ तीर्थ यात्रा आदें घणांजी, सुकृत अनेक करंत ॥ गु० ॥ ए ॥ धर्मजारना धुरंधरुजी, मांहो मांहि सनेह ॥ शासननी उन्नति वधीजी, करता रहे तिहां बेह ॥ गु० ॥ १० ॥ नृप अनुजा पुरतणाजी, लोक सकस सेवे धर्म ॥ लोकोत्तर धर्मे तिहांजी, ढाक्यो लौकिक नर्म ॥ गु० ॥ १९ ॥ शुभधर्ममा थापिनेंजी, पुरजनने समजाई ॥ श्रापूढी बिडं पुत्रनेजी, अने थि महत्तरा जाई ।। गु०॥ १॥ घणा वरस लगें पालीयुंजी, चारित निरतीचार ॥तपोयोगध्याने करी जी, लघु कस्या उरितना जार ॥गु०॥१३॥अंतें श्रण सण थादरेजी, श्रीमती मलया नाम। श्राराधीने छ पनीजी, अच्युत कल्पें ताम ॥ गुण ॥ २४ ॥ बावीश सागर देवीनुंजी, पालीने निरुपम आय॥ महाविदेहें
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(३१७) अनुक्रमजी, ऊपजशे शुनगय॥ गुण ॥१५॥ बोधिनाव लहेशे तिहांजी, सुगुरु संयोग लहेवि ।। शुद्ध चारित्र तिहां पमिवजीजी, लेहेशे मुगति सुखहे वि॥॥१६॥ ढाल कही अमत्रीशमीजी, चोथा खंमनी एह ॥ कांति कहे मलया श्हांजी, पामी नवतणो बेह ॥गुण॥१७॥
॥दोहा॥ ॥ एक श्लोक चिंतनथकी, पामी मलया पार ॥ ते माटे संसारमां, ज्ञान सकल शिरदार ॥ १ ॥ सुप रीक्षक सुविवेकीयें, करवो ज्ञानान्यास ॥हिलम सं कट उझरे, ज्ञान निधान प्रकाश ॥२॥संकटमांपण पालीयुं, जिम मलयायें शिल ॥ तिम वली बीजो पाल शे, ते लेदेशे शिवलील ॥३॥ महाबलें जिम सांसह्यो, माहा विषम उपसर्ग ॥ तिम वली जे सहेशे खरो, ले हेशे ते अपवर्ग॥४॥ जिम प्रथम व्रत आदस्यां, दंप तीये दृढ चित्त॥श्रादरवां तिम नावथी, बीजे पण सुप वित्त ॥५॥कीधी मुनि आशातना, दंपतीये धुर जेम॥ पुरक हेतु जाणी तिसी, करशो मां कोई तेम ॥६॥ ॥ ढाल योगणचालीशमी ॥ दीगे दीगो रे
वामाजीको नंदन दीगे॥ए देशी॥ ॥ जावे जावे रे नविकरजो शान अन्यास॥झाने
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(३१५) संकट कोमि पलाये, झाने कुमति न वाधे ॥ ज्ञानें सु जश लहे जगमांहीं, ज्ञाने शिवपद साधे रे॥नवि क रजो झा०॥१॥ यद्यपि नाणादिक समुदित इहां, मुगति हेतु जिन नांख्युं ॥ तोपण योगदेमनुं हेतु, पहेलुं ज्ञानज दाख्यु रे ॥ न० ॥॥ पासतणा नि र्वाण दिवसथी, वरिस गयां शत एक ॥ तेहवे हुई सत्य शील सलूणी, मलया सुंदरी सुविवेक रे ॥ ज० ॥३॥ श्लोक एकनो नाव विचार, तह लह। नवपार ॥ ते कारण शिवसाधन साचुं, ज्ञानज एक उदार रे॥ न० ॥४॥ शंख नरेश्वर आगें पहेलु, श्री केशीगणधारें। मलय चरित नांख्युं विस्तरथी, झानतणे अधिकारें रे ॥ न ॥५॥ तेह तणो रस सर्वस्व लेई, श्रीजय तिलक सूरीदें ॥ नूतन मलंयचरित्त संपें, नांख्यु अति आनंदें रे ॥०॥६॥झान रत्नव्याख्या इति नामें, त्रण अधिकारें प्रसिझो ॥ तेहमांहि इंम संबं ध सूधो, धुर अधिकारें लीधो रे ॥ न०॥७॥श्रीत पगण गणनायक गिरुया, श्रीविजयप्रन सूरि ॥ गुण वंता गौतम गुरु तोलें, महीमा महिमा सनूर रे ॥न ॥॥ तास शिष्य कोविदकुल मंगन, प्रेम विजय बु ध राया॥ कांतिविजय तस शिष्ये शणि परें, विध विध
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( ३२० )
जाव बनाया रे ॥ ज० ॥ ए ॥ संवत सर मुनि मुनि वि धु ( १७१५) वर्षे, रही पाटण चोमास ॥ श्री विजयक्ष मा सूरीश्वर राज्यें, गाई मलया उल्लास रे ॥ ज० ॥ १० ॥
खात्री तो शुभ दिवसें, रास हुई सुप्रमाण || बालककी मानी परें माही, हांसी न करशो सुजाण ॥ ज० ॥ ११ ॥ श्रीजय तिलक वचनथी जे में, न्यूना धिक कांई जांख्युं ॥ संघ सकलनी साखें तेहनुं, मि छाम दाख्युं रे ॥ ज० ॥ १२ ॥ उत्तमना गुरु परिचय करतां, होय सम कितनो शोध ॥ उत्तर लाज अधिक वली पामे, श्रोता जे प्रतिबोध रे ॥ ज० ॥ १३ ॥ पाटण नगरनो संघ विवेकी, तस आग्रहथी सीधी ॥ चिहुं खंमें थई सर्व संख्यायें, ढाल एकाएं कीधी रे ॥ ज० ॥ १४ ॥ जे जवि जावें जशे गुणशे, लेदेशे ते जयमाल || जंगुणचाली शमी कही कांतें, चोथा खंग नी ढाल रे || ज० ॥ १५ ॥ सर्व श्लोक संख्या ॥ ३४८८ ॥
古孟孟建建
॥ इति श्री ज्ञानरत्नोपाख्यानापरनाम्नि श्रीमलयसुं दरीचरित्रेपं मितकां ति विजयग णि विरचितेप्राकृतप्रबंधे शीलावदातपूर्वजववर्णनोनामाचतुर्थखंमः परिसमाप्तः॥
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