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अनुजावें चंपक माला, थइ बेठो ते नारी हो || प्र० ॥ १५ ॥ रूप निहाली निज जननीनुं, कुमरी अचर ज जारी हो ॥ प्र० ॥ जांजी तालुं नरवर आव्यो, दे खे सुताने नारी हो ॥ प्र० ॥ १६ ॥ नृप बोल्यो क नका मुख देखी, कूरुं इंम कां जांखेहो ॥ प्र० ॥ श्रल वे घाल देई पर उपर, कां पुरगति फल चाखे हो ॥ ॥ प्र० || १७ | कोसी विलखी यई कुमरें, बोला वी इसी आगें हो ॥ प्र० ॥ कहो बहेनी पीठ को या के, हां व्या किए वागें हो ॥ प्र० ॥ ॥ १७ ॥ पुरनो लोक अनादर वयणे, कनका में निर धाने हो ॥ प्र० ॥ कहे कनका जो हुं हुं जूठी, तो कि हां हार देखाने हो ॥ प्र० ॥ १७ ॥ छल जननी निज कंटकी ते, उंचो हार उल्लाले हो ॥ प्र० ॥ नूप प्रमु खसने देखा, कनकानो मद गाले हो ॥ प्र० ॥ २० ॥ ति वेला कुमरीनी जननी, जर निद्रामांहें हूंती हो ॥ प्र० ॥ सुख निद्रायें निज पुत्रीनी, विगत लदे नहीं सूती हो ॥ प्र० ॥ २१ ॥ फरी याव्या हसंतां निज थाने, जूपादिक सविलोक हो ॥ प्र० ॥ कनकवती नी निंदा करतां, लोक वदन कह्यां बोक हो ॥ प्र० ॥ ॥ २२ ॥ कूमी पमी कनका महाबलनो, विघन थयो
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