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________________ ( ७६ ) ही बानें हो ॥ प्र० ॥ रीसाणी चिंते ए धूरत, लागो कन्याने कानें हो ॥ प्र० ॥ ७ ॥ क संकेत मध्यो ए एहनें, मुज कारज नवि सीधुं हो ॥ प्र० ॥ दोमीने दादरने द्वारें, बानेंसें तालुं दी धुं हो ॥ प्र० ॥ ८ ॥ कुमरी कहे मुज एह विमाता, मुज मातानी शो कि हो ॥ प्र० ॥ कनकवती ईणे कपट करीनें, राख्यांबे बिहुं रोकी हो ॥ प्र० ॥ ॥ व्यतिकर सर्व सुएयो रीसाली, अनरथ करसे प्राहिं हो ॥ प्र० ॥ कुमर जणे एहनें हुं कूदे, वंची व्यो हिं हो ॥ प्र० ॥ १० ॥ वात करे जई म ते वेला, कनकवर्ती नृप पासें हो ॥ प्र० ॥ श्रावी प्रकाशे मुख रस वाही, दीवी वात उल्लासे हो ॥ प्र० ॥ ११ ॥ कोपें लोचन रातां कीधां, ढणवाने मन खुं हो ॥ प्र० ॥ शुजट घटा वींट्ये नरनायें, कन्या मं दिर घेतुं हो ॥ प्र० || १२ || कहे कुमरी हैहै विष कन्या, हुं सरजी कां नायें हो || प्र० ॥ मुज कारण नरथ लहेसे, ए यो परायें दायें हो ॥ प्र० ॥ १३ ॥ कुमर जणे शुजगे कां बीहो, एहथी नहीं मुज पी का हो ॥ प्र० ॥ परघर पेसे तेतो किदां किणे, राखे बलबल बींगा हो ॥ प्र० ॥ १४ ॥ म कहीं आप शि खाथी काढी, गुटिका मुखमां धारी हो ॥ प्र० ॥ तस्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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