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(२७२) नी एह साधुनें, सारं मुज वंबित काज रे ॥ सा॥ ॥ २७ ॥ धारी मनशुं एहवं, कर जोमी आगल आय रे ॥ पत्नणे साधु प्रत्यें इस्यो, पय शुरु अ मुनिराय रे॥ ५० ॥ १ए ॥ मुज उपर करुणा करी, वोहोरो फासु पय एह रे॥अव्यादिकनी शुद्धता, निरखे मु नि वोहोरे तेह रे ॥ नि०॥ २०॥बांध्यु अनर्गल ना वथी, मदनें शुज कमे विशेष रे॥ मुनिन प्रणमाया वियो, सरपाले लई पय शेष रे ॥ स० ॥१॥ आप कृतारथ मानतो, पीवे पय शेष तिकोय रे ॥ विषम तटें सरोवर तणे, जल पीवा बेठो सोय रे॥ज० ॥२५॥ पग लपट्यो तिहाथीखशी, पनियोजल ऊमे जाय रे॥ मरण लही ए पुरवरें, मदनप्रिय दान पसाय रे ॥ म० ॥ २३ ॥ विजय नरेशरने घरें, सुत रत्न पणे उ त्पन्न रे ॥ कंदर्प नामे थापियो, तस तात मरण संपन्न रे ॥ त०॥ २४ ॥ पाट पितानो आक्रमी, थई बेगे पृथिवीपाल रे ॥ चोथे खंमें ए कही, कांतें चो वीशमी ढाल रे ॥ कां० ॥ २५॥ ..... ... ॥दोहा॥
॥ सुंदरीशं प्रिय मित्र त्यां, विलसंतो एकतान॥ प्रा नना नारिशें, बांधे वैर निदान॥१॥ अन्य दिने
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