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() त रे॥ ५० ॥ ए॥ निज मोटा गुण खघु करे, परगुण अणु मेरु करत रे ॥ धन्य धरामां ते नरा, विरला को जननी जणंत रे ॥ वि०॥ १० ॥ मदनवदन जांखं करी, नागे दिशिधारी एकरे॥पुर्वह अटवी मां पड्यो, नूख्यो वली तरस्यो डेक रे ॥०॥११॥ पार लह्यो अटवी तणो, त्रीजे दिन तेथे नेठ रे ॥
आव्यो वही एक गोकुलें, दीग पशुपालक देह रे ।। दी० ॥१२॥ महिषी कुल वन चारता, बेग तरु बा या गम रे ॥ भोजननो अरथी धसी, थाव्यो तेह पा सें ताम रे ॥ श्रा० ॥ १३॥ पय याच्यां गोवालीया,
आपे पय महिषी दोहि रे ॥पामर जन पण आचरे, करुणा रस अवसर मोहि रे ॥ क० ॥ १४ ॥ खीर त णुं नाजन ग्रही, पशुपालक अनुमति लेय रे ॥ श्रा वे समीप सरोवरें, शीतल जल थानक केय रे॥शी॥ ॥ १५॥ पंथे वहेतो अनुक्रमें, चिंते चित्त एम सुहब रे।। कोश्कने आपी जमुं, होय तो मुज जनम कयबरे ॥ हो० ॥ १६ ॥ चिंतवतां श्म सामुदो, मलीयो मुनि पुण्य पसाय रे ॥ मास तणो उपवासियो, पारण दिन टाणे श्राय रे ॥पा०॥ १७॥ मुनि निरखी मन हर खियो, अहो सफल दिवस मुज श्राज रे ॥ प्रतिला
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