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(२३) प्रिय मित्रने निज ललनां लेइ लार ॥ यद धनंजय ने टवा, चाल्यो सपरीवार ॥२॥ पंथें वदेतो अधमगें, व्यो ज्यां वमहे ॥क मुनि साहमो आवतो, देखे त्यां निज जेठ ॥३॥ आपणने साहमो मल्यो, अशु न सुकृत ए मुंम यात्रा थाशे निःफला, एहथी श्र शुल अखंग ॥४॥ इम कहेती प्रियसुंदरी, जन वा हन थोनाम ॥ करे परिसह साधुनें, पापिणी रांग कुहामि ॥५॥ ॥ ढाल पच्चीशमी ॥ सोदानें गोरीमें ढोला, पमीरे नगारारी गेर ढोला; नाग मजा जे
रे रणसिंघ नागोरा ॥ए देशी॥ ॥ उदय आव्यो मजने हां हांजी. परिसह मो टो एह हांजी, चिंति एहवुरे, मुनि काउस्सग्ग गवे ।। त्रिविधं धारी रे, श्रातम वो सिरावे ॥ श्रा॥अन्न उससियादिकें हांजी, श्रागारें निरवेह ॥ चि०॥१॥ पद अंगुष्ट नखें बबी हांजी, लोचन तारा धार हांजी, ध्या न महोदधि लहेरमां हांजी, जीले मुनि अविकार हां जी॥ चि॥२॥बांधी श्रमशुबाकरी हांजी, ऊनो ए हठ मामि हांजी, कहेती एहवं रे, कोपी मराठी ॥ कुमतें व्यापी रे, आचरणें काली॥श्रा०॥ कहे सुंदरी
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