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सेवक प्रत्यें हांजी, मर्यादा वट बांकि हांजी ॥ क० ॥ ३ ॥ साइमां ए इंटवादथी हांजी, जारे लाव हुताश हां जी, ए पापीनें मां जियें हांजी, जिम होये अशुभ वि नाश हांजी ॥ क० ॥ ४ ॥ अशुकन फल एहनें हुवे हांजी, फीटे वली अहंकार हांजी, सुंदरी सेवक एह वां हांजी, निसुणी वचन विचार हांजी ॥ क० ॥ ५ ॥ कहे में चरणे पाडुका हांजी, पहेरी बे नहीं याज हांजी, इटामां कुण जायशे हांजी, विषम थलें विए काज हांजी ॥ क० ॥ ६ ॥ मूकी कदाग्रह एहवो हां जी, चालो में सदीस हांजी, वचन सुणी पीठ दासनां हांजी, बोल्यो चढावी रीश हांजी ॥ क० ॥ ७ ॥ कहेतां एवं रे, कोप्यो मबरालो ॥ कुमतें व्याप्यो रे, श्राचरणें कालो ॥ अहो सेवक सुंदरी तथा दांजी, बांध्यो वमशुं पाय हांजी, भूमी जिहां लागे नहीं हां जी, वली कंटक नज जाय हांजी ॥ कप ॥ ८ ॥ वा हनथ प्रियसुंदरी हांजी, ऊतरे देवी तुरंत हांजी ॥ मुनिवर पासें आइनें हांजी, निठुर ईम पजयंत हां जी ॥ क० ॥ ए ॥ ई अपशुकनें श्रमतो हांजी, कदिमत होजो वियोग दांजी ॥ विरह हजो ताहरे स दा हांजी, वाहालानो वली सोग हांजी ॥ क० ॥ १० ॥
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