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(२५) पाखंभी तु पापी हांजी, राक्षसनो अवतार हांजी ॥ सब नयंकर सत्वनें हांजी, पुर्जग तुज श्राकार हांजी ॥क० ॥ ११ ॥ नितुर श्म आक्रोशथी हांजी, तप सीने त्रणवार हांजी, पाषाणे करी आहगे हांजी, करती कोप अपार हांजीकण॥१२॥उघो मुनिना हाथ थी हांजी, ऊम्पी लीये निरलस हांजी ॥ निज वाह नमा थापीने हांजी, टाले कुशुकन कहा हांजी॥०॥ ॥ १३ ॥ कुशुकन फल एहनें हुई हांजी, चालो ह वे निहचिंत हांजी ॥म कहेतां परिवारने हांजी,सुखें दंपती पंथे वहंत हांजी ।। क० ॥ १४ ॥ यद जवन पोहोतां वही हांजी, पूज्यो धनंजय देव हांजी, बेग करजोमी बिन्हें हांजी, सारे विधिशु सेव हांजी ॥ क. ॥ १५ ॥ रागिणी श्रीजिनधर्मनी हांजी, तस घर दासी एक हांजी ॥ एहq बोली रे, सुंदरी सुगुणा ली ॥ सुमते व्यापी रे,आचरणा वाली०॥कर जोमी दंपती प्रतें हांजी, समजावे श्म बेक हांजी॥ए।॥१६॥ पापकरम बांध्यु महा हांजी, आज तुमें विण काज हांजी, उपशम धर तेहवो घणुं हांजी, संताप्यो क विराज हांजी 1) ए० ॥ १७ ॥ हासे पण जो को क रे हांजी, एहवा ऋषिनी जेह हांजी ॥ श्ह नव परनव
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