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(२७६.) मां बहे हांजी, दारिख पुःख अजेह हांजी ॥ए०॥ ॥ २७ ॥ श्रीअरिहंतें सूत्रमा हांजी, वेष को बंद नीक हांजी, आदर करतो वेषनें हांजी,आणे मुगति नजीक हांजी ॥ एक ॥ १५ ॥ दासी वचनें तेहवां हांजी, पाम्यां ते प्रतिबोध हांजी॥दुर्गति पुःखथी बीह नां हांजी, थरक्या थई गतक्रोध हांजी ॥ए ॥२०॥ पळतावो करता हीये हांजी, करतां लोचन नीर हां जी, दीन मना थर आपने हांजी, नींदे वली वली धीर हांजी ॥ ए. ॥१॥ निजदासीने प्रशंसता हां जी, पाबां आवे धाम हांजी, तेहिज मुनिपासे जर हांजी, वंदे पग शिर नाम हांजी, ॥ ए॥२२॥ चो था खंग तणी हुई हांजी, ए पणवीशमी ढाल हांजी, कांति कहे धन्य ते नरा हांजी, मन वाले ततकाल हांजी ॥ ए० ॥२३॥
॥दोहा॥ ॥ जो धर्मध्वज आज हुँ, पाडो फरी पामेश ॥ तोहिज ए थानक थकी, कानस्सग्ग पारेस ॥१॥ क री प्रतिज्ञा एहवी, तिमहीज उन्नो तेह ॥ राग दोष परिणति तजी, पेठगे उपशम गेह॥॥गुण निरखी संयम तणा, स लहे दंपती तास ॥ धर्मध्वज पालो दि
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