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________________ ( १३० ) ते तोपण तुज उपरोधथी, करशुं हुं ए काज ॥ ना० ॥ मुज रातें मेलवे, जिम करूं काढण साज ॥ ना० ॥ च० ॥ ६ ॥ गणीकायें प्रति आदरें, जोजन मुजने दीध ॥ ना० ॥ रातें एकांतें मुने, कनका मेलवी सीध ॥ ना० ॥ च० ॥ ७ ॥ मुज साधें रागें जरी, वदती मीठा बोल ॥ ना० ॥ जोग जणी मुज प्रारथे, करती नय कोल || ना० ॥ च० ॥ ८ ॥ में जांख्युं तेहने ईस्युं, मुज वालो ने एक ॥ ना० ॥ ते अति रथी नारीनो, मनमथ रूपें बेक ॥ ना० ॥ च० ॥ ए॥ प ण कामें गानें गयो, आज करी संकेत ॥ ना० ॥ मु ज मलशे देवी घरें, रातें काले सहेत ॥ ना० ॥ च० ॥ १० ॥ मुज साधें तुं श्रवजे, देशुं जोग बनाय ॥ ना० ॥ नहींतो पण ए आपणी, प्रीति कीहां नहीं जाय ॥ ना० ॥ च० ॥ ११ ॥ कहे कनका क्यांथी तुमें, आव्या कुंण तुम जात ॥ ना० ॥ में कह्युं बिहुं त्री में, चाल्या विदेश सुखात ॥ ना० ॥ च० ॥ ॥ १२ ॥ मुज वचनें ते वीशमी, जांखे निज अवदात ॥ ना० ॥ गोष्टि करंतां रातकी, वीती थयो परजात ॥ ना० ॥ च० ॥ १३ ॥ पूब्धुं प्रपंचें में वली, तेह ने प्रजातें तांई ॥ ना० : बे तुज पासें के नहीं, या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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