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( १३१ ) जरणादिक काई ॥ ना० ॥ च० ॥ १४ ॥ तव मुजने देखामीयां, आभूषण तेणें का ढि ॥ ना० ॥ इंसतां में क थोमल, ते कहे इम रस चाढि ॥ ना० ॥ च० ॥ १५ ॥ हार माहारे वली, नामें लखमीपुंज ॥ ना० ॥ गुप्त धरयो ते काढतां, घ्यावे बे मुज ज ॥ ना० ॥ च० ॥ १६ ॥ में पूब्धुं ते क्यां धरयो, ते कहे चहुटा मांहिं ॥ ना० ॥ शूना घर पासें वनो, कीर्त्ति थं बे त्यांहिं ॥ ना० ॥ च० ॥ १७ ॥ ते नीचें जंगारीयो, ते हम मूक्यो काट ॥ ना० ॥ न शकुं जावा वासरें, मर ती हुं तिए वाट ॥ ना० ॥ च० ॥ १८ ॥ रातें आज जई तिहां, आणी तेह बिपाई ॥ ना० ॥ जाई शके जो तुं तिहां, तो लेई आव तकाई ॥ ना० ॥ च० ॥ ॥ १ ॥ नहीं तो सांजे मुतनें, कहेजे जेवुं होय ॥ ना० ॥ इम थालोच कस्यो घणो, मांहोमांहें रस ढो य ॥ ना० ॥ च० ॥ २० ॥ मालकी हुं उतरी, या वी मगधा नाल ॥ ना० ॥ बीजे खंमें अढारमी, कांतें जणी ईम ढाल ॥ ना० ॥ च० ॥ २१ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ मगधा कहे मुजने हसी, कहो केती बे ढील ॥ में क ए तुज घर थकी, काढी बे अमखील ॥ १ ॥
सं
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