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________________ (१२ए) तुम थकी, न रहे बानी नेट ॥ कहो बिपायो किहां बिपे, दाई आगल पेट ॥ ४ ॥ बने कपट करवो ति हां, जिहां कपटनो लाग ॥ कोईक दिन तेहवो मले, काढे सघलो ताग ॥५॥ सुईबिड करे तिता, पूरण धागा साख ॥ सजान सहेजे गुण करे, ढांके अवगुण लाख ॥ ६ ॥ एहथी मुज पार्नु पम्यु, तेतो पूरव जो ग॥ गले ग्रहीने काढवा, हवे बन्यो ने जोग ॥ ७॥ ॥ ढाल अढारमी ॥चंदनरी कटकी नली ॥एदेशी ॥ ॥ वीरधवलनी गोरमी, कनकवती नामेण ॥नाणि मा हो राज, चरित्र सुणो एहवी नारीनां ॥ कपट करी ने नृपनंदनी, कूपे नखावी एण ॥ ना॥ च ॥१॥ कूम कपट जाणी नृपे, रोकीती निज गेह ॥ ना ॥ नासी निशि आवी रही, मुज घर पूरव नेह ॥ ना॥ च०॥२॥ बलती जेहवी गामरी, पेठी घरने खूण ॥ना ॥ मुज घरथी काढो परी, करीने कांश्क हूंण || नाग॥ च ॥३॥ मानीश हुं उपगारमो, बीजो ए गुण जोई ॥ ना० ॥ पारथीयां होये स्वारथी, स्वारथ . विण जग कोय ॥ना॥च॥४॥ तव में मगधा में कडं, काढुं जो करी ख्याल ॥ना ॥वैर वधे तो बेहुमां, जाण्यो पण जंजाल ॥ ना० ॥ च ॥ ५ ॥ Jain Educa Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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