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________________ (१५ ) सारे तिहाथी, चाख्यो हुं वन माहे । रो० ॥४॥॥श्रा गल जातें दीगेजी॥ नं० ॥ करी पावक अंगीठोजी ॥नं०॥ सोवन पुरिसोईकोजी॥ नं०॥ साधे एक नर बेगेजी॥ नं ॥ ते कहे मुजने साहमो श्रावी, श्रा वोजी वमजाग ॥ आ ॥५॥ मंत्र इहां आराधुंजी ॥ नं० ॥ सोवन पुरिसो साधुंजी ॥ नं ॥ सहायक नवि लाधुंजी ॥ नं ॥ तेहथी काचूं बाधुंजी॥०॥ उत्तर साधक तुंमाहरे, जिम होये कुशलें सिक॥मं. ॥६॥ मन उपगार जरीनेजी॥०॥ न शक्यो बोली फरीनेजी।नं०॥ वचन प्रमाण करीनेजी॥नं॥हाथें खड्ग धरीनेजी ॥०॥उपसाधक थई बेठगे पासे, कर तो कोमी यतन्न ॥ म० ॥ ॥ कहे योगी अवधारी जी॥नं०॥ जिहां रोवे हे नारीजी ॥ नं०॥ तिहांडे वमतरु नारीजी ॥ नं०॥ करो कुमर हुशीयारी जी ॥ नं० ॥ चोर सुलक्षण शाखें बांध्यो, ते आणो जई वेग ॥क०॥॥वचन सुणी हुं चाल्योजी॥ नं० ॥ उग्र ख मग कर जाख्योजी ॥ नं०॥ उनें रही जव चाख्यो जी॥ नं० ॥ बांध्यो चोर निहाल्योजी॥ नं० ॥ चोर तलें विरले स्वर रोती, दीठी तिहां एक नारि॥वणाणा में प्रयुं कां रोवेजी ॥ नं०॥ कां फुःख देह विगोवे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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