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(१५७) काढे नृप करुणाल ॥ ४ ॥ वचन हीण पीमित तनु, वींजे शीतल वाय ॥ चेत वली बेगे हजे, बोलाव्यो तव माय ॥५॥
॥ ढाल नही ॥ मारगमामां जोजी,
आवे प्यारो कान ।। ए देशी॥ माता सुतने नांखेजी ॥ नंदनजी गुणवंत ॥कहो मननीअनिलाजी।नं॥किहां विचस्यो श्रम पाखें जी॥नं० ॥ बांध्यो किण वमसाखेंजी ॥ नं० ॥ कहे सुख दुःख तें किहां किहां लाधुं, करतेहार विशुरु॥ ॥माण॥ क० ॥ कि० बां० ॥१॥ निंददशा नि रधारीजी ॥ नं ॥ निरखे नयण ऊघामीजी ॥०॥ बेठी आगल मामीजी ॥ नं० ॥ठे मलया लामीजी ॥ ॥ निजव्यतिकर ते कहेवा लागो, सुस्थ थई नृपनंद ॥ निं० ॥२॥आव्यो कर आवासेंजीन॥ गोंख थई मुज पासेंजी ॥ नं ॥ हुँ बेगे तस वांसें जी ॥ नं०॥ उड्यो ते श्राकाशेंजी।नं०॥ईम इत्या दिक कदली वन आव्या, तिहां सुधी कही वात ॥ श्रा० ॥३॥रोती कोश्क नारीजी ॥ नं०॥ निसुणी में वनचारीजी॥५०॥ कदलीवन बेसारीजी।नं० ॥ तुम वहुअर निरधारीजी ॥ नं0 || आक्रंदने अनु
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