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________________ ( १६० ) जी ॥ नं० ॥ एकाकी किम होवेजी ॥ नं० ॥ एह सा दमुं शुं जोवेजी ॥ नं० ॥ घन जीषम वननें शमशानें, बेवी तुं कि काम ॥ ० ॥ १० ॥ तव ते वदन उघामी जी ॥ नं० ॥ जोती अवली आमीजी ॥ नं० ॥ मूकी लाज कमामीजी ॥ नं० ॥ बोली इंम पट कामीजी ॥ नं० ॥ शुं दुःख जाखुं हुं तुज आगें, जाग्य र हितमां ली ह ॥ ० ॥ ११ ॥ बांध्यो जे वम मालेंजी ॥ नं०॥ शैल व विचालेंजी ॥ नं० ॥ रहेतो कंदर नालेंजी ॥ नं० ॥ हरतो पुरधन आलेंजी ॥ नं० ॥ चोर पुरातन पाप दशाथी, ए आव्यो नृप हाथ || बां० ॥ १२॥ा लोन सार ईनामेंजी ॥ नं ० ॥ वी तक श्री जे यामेंजी ॥ नं० ॥ संध्यायें वि माजी ॥ नं० ॥ बांधी ही गमेंजी ॥ नं० ॥ मुज प्रीतम बे हुं धण पहनी, रोखुं हुं दुःख ते ॥ लो० ॥ १३ ॥ नेह नवल मुज खटकेजी ॥नं०॥ चिंता चित्तमां चटकेजी ॥ नं० ॥ विरह अगनि जिम जट केजी ॥ नं० ॥ प्राण कंठमां अटकेजी ॥ नं० ॥ आज प्रजातें कर मेलावो, हुई तो एह साथ ॥ ० ॥ ॥ १४॥ करवा चोरी निकस्योजी ॥ नं० ॥ गयो नेहनो तरश्योजी ॥ नं० ॥ मुज संगें नवि विलस्योजी ॥ नं०॥ earer मुज विकस्योजी ॥ नं० ॥ चंदन लिंपी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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