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(ज) ज सामिनी; पण नवि देखे कोइ, किहां अवगुण क णी॥६॥ नृप पुत्री नर रूप, रही पूछे इस्युं, ते सायें ईम रोष, तणुं कारण किस्युं ॥ कुमर कहे संतान, हो वे जो शोक्यनां, शोक्यतणे मनशाल, समा हुए सहेज नां ॥७॥नारी जणे ए साच, कह्यो रे जेहवो; जो तां तेहनां बिख, समय केतो हवो ॥ आजूनी श्रधरा त, थ कौतुक कथा, दीदी कहुं तुज आगें, नही ते अन्यथा ॥७॥ नामे लखमी पूंज, गले कनका तणें; हार उव्यो किण आश्, गगनथी चुंग पणे ॥ कुमर विचारे हार, उव्यो तणे व्यंतरी; निश्चय कोश्क नेह, कारणथी ऊतरी॥ ए॥ पामी नहिं में शुद्ध, किहां हमणां लगें; ते पाम्यो हवे वात, सवे होसे व गें॥सोमा कहे मुज हार, देखामी श्रीमुखें; वारी हु ए लान, किहां कहती रखे ॥१०॥हार रयण ब हु मूल, दुपामी एकमने; मुजनें साथें लेश, गनू पति कनें ॥ अवसर देखी दोष, ऊघामे अतिषणा; विरस पणे एम पाल, लवे मलया तणा॥ ११ ॥ स्वा मी सुणो अवदात, कहुं पुत्रीतणा; नयणे दीग श्रा ज, निपट असुहामणा। पुहवी गण नगरनो, नूप वखाणियें; सूरपाल तस पुत्र, महाबल जाणियें ॥१५
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