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(७) ॥ ढाल ठही ॥ नदी यमुनाके तीर, उ
में दोय पंखीया ॥ए देशी॥ ॥ कुमर कहे तुं श्राहिं, वी कुंण एकली; किम के पे तुज गात, चिंतातुर का वली ॥ कुण तटनी एचूप, कवण नगरी किसी; शहां पाम्या सुखशात, अमें मन मां वसी ॥१॥ नारी नणे ए नीर, नदी गोला वहे; चंद्रावती उपकंठ, पुरि अति गहगहे॥ दशदिशि पस री जास, महा कीरति ध्वजा; वीरधवल शूपाल, इंहां पाले प्रजा ॥ कुमर विचारे जेथ, श्रावण चाहतो, पमतो परतो तेथ, यो नन्न गाहतो ॥ हो मुज पुण्य प्रमाण, प्रसन्न डे जगपती; जस मुखें पेठी नारि, मली जे जीवती ॥३॥ कहे वली श्रा गल वात, नारि अचरिज नरी; पुत्री हुश् ते नृपने, मलया सुंदरी ॥ मंगप मांगयो तास, स्वयंवर नूपतें; मूक्या त निमंत्रणे, नृप नंदन प्रतें ॥४॥ आज थकी विवाह, होसे त्रीजे दिन कीधी सामग्री सर्व, अगाउ मेलीनें ॥ नृपने बीजी नारि, अडे कनकाव ती; मलया साथें रोश, वहे ते धर्मति ॥५॥ सोमा माहरूं नाम, हुं तास महोलणी; सर्व रहस्यन ग म, घणु विसवासणी॥ मलयानां केश विस, जोवे मु
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