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हीर फिरती
( १९७१ ) थमती, किया कर चढशे रकती है ॥ ॥ स० ॥ के कोई निर्दय श्वापदसायें, कीधी हशे नि ज हायें दे || स० ॥ ६ ॥ मुज बिरहें जय जंगुर म हिला, सहेती संकट पुहिलां हे | स० ॥ यूथ टली वनहरणी सरखी, मरशे भूखी तरसी हे ॥ स० ॥ ॥ ७ ॥ भुज साधें यावंती प्यारी, पापीयके में वारी हे || स० ॥ सुखमांहेथी दुःखमांहे नाखी, दीन वद न हरिणाखी हे || स० || ८ || गोरी तो विरहो ज चाटें, करवत नें काटे हे ॥ स० ॥ मुज ही अमुं पत्र
॥ ॥
रथी काउं, ईणी वेला नवि फाऊं हे ॥ स० ॥ ॥ सुकु लिणी तुं चतुर चकोरी, थे द रिसण गुण गोरी हे ॥ स० ॥ देई विठोहोल जारी, न करो प्रीत ठगोरी हे॥सण ॥ १० ॥ संजारी इंस गुण संदोहो, विलवे कुमर स मोहो हे || स० ॥ णीयालां जालां ज्यौं खटके, हि यमे विरहो जटके हे ॥ स० ॥ ११ ॥ मात पीता स मजावे लेखें, सुतने वचन विशेष हे ॥ स० ॥ पण सुत रति पड्यो नवि समजे, विषम विरह्मां ालजें
॥ स ० ॥ १२ ॥ वचन निमित्ततयुं चित्त धारी, कुमर निररकण नारी हे ॥ स० ॥ ग्रही खभग बानो नली जातें, निकल्यो माजिम रातें है ॥ स० ॥ १३ ॥ हूई प्रजात त
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