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________________ (१७) नूयें पुरुष, मूक्या चिहुंदिशि नूर ॥ निरखण लागा तेह पण, देश देशंतर दूर ॥३॥ समजावी निज तनु जनें, जूप जमाने जाम ॥ कंवें उतरतां कवल, पगपग व्ये विश्राम ॥ ४॥केते दिन निरखी धरा, धरापालनी पास ॥श्राव्या नर कर जोनीने, पजणे एम प्रकाश ॥५ ॥ढाल पंदरमीमदनेसर मुख बोल्यो त्रटकीए देशी॥ ॥सुण महीपति शुकिन पानी, फरि डाव्या स वि वामी हे ॥ ससनेही रे गोरी, दीनी नहीं मलया किहां ॥ देश नगर गढ कुंगर मोह्या, जलथल वट अ वरोह्या हे ॥ ससलूणी रे गोरी, दीवी॥ १ ॥ पुर पाटण संबाहण पाटें, दुर्घट विषली काटें हे॥सण॥ फरिया उलट अटवी घाटें, मलया जोवा माटे हे ॥ सः॥ ॥ कुमर सुणी म चिंता जुत्तो, चिंते मन फुःख खुत्तो हे ॥ स ॥ पूर्व महापातक मुज विकस्यां, सुचरित संचय निकस्यां हे ॥स० ॥३॥ निर्गमशुं किम दिन छातिलंबा,, जोटयो फुःखनी कुंवा हे ॥ स०॥हले वियोग प्रियाशुं माहरे, वात नदीसे आरे हे॥ सः॥४॥हैहै शून्य महावन मांहिं, दम खादर अवगाही हे ॥ स ॥ मुई हशे हळु आफा ली, दापिता मुज लुगुणाली हे ॥ सय ॥ ५॥ वनग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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