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( १९७२ )
नुजन विदी से, शुं की धुं, जगदीशें हे ॥ स० ॥ कुमर गयो जोवा दयिताने, ईम कहे पीउ प्रमदानें हे ॥ स० ॥ ॥ १४ ॥ लेहेशे यापद दुःख किम सदेशे, पग पालो कि म वदेशे दे || स० ॥ भूमि शयन करशे किम बालो, नंदन ति सुकुमालो दे ॥ स० ॥ १५ ॥ वधू सहि त सुत मुखकुं जोस्यां, तदीयें कृतारथ दोस्यां दे ॥ ॥ स० ॥ मात पिता ईम चिंता दाहें, दोहिले दिवस निवा दे || स० ॥ १६ ॥ नूख गई सुख निद्रा था की, नृप नंदन एकाकी हे ॥ स० ॥ गामागर पुर क रत प्रवेशा, निरखे देश विदेशा दे || स० ॥ १७ ॥ श्री पंचासर पास प्रसादें, ज्ञान कथा संवादें हे || स० ॥ पन्नरमी मीठी रसनाला, पूरण कीधी ढाला हे ॥ स०॥ ॥ १८ ॥ पूरण त्रीजो खंक वखाएयो, मलय चरित्र थी आयो हे ॥ स० ॥ मलया सरस कथा ईम जां खी, कांति वचन श्रुत साखी है || स० ॥ १५ ॥
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इतिश्री ज्ञानरत्नोपाख्यानापरनाम नि श्री मलयसुंद रीचरित्रे पंमित श्री कांति विजयम णिविरचिते प्राकृत प्रबंधे मलयसुंदरी श्वसुरकुलसमागमनामा तृतीयः खंगः संपूर्णः ॥ ३ ॥
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