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(१९३) ॥ अथ श्रीचतुर्थखंड प्रारंभः ॥
॥ दोहा ॥ ॥ स्वस्तिश्री मोहनलता, वान वधारण मेह॥ जि न सद्गुरु शारद तणा, नमुं चरण ससनेह ॥ १॥ सु णतां मलयानी कथा, टले व्यथानी कोमि॥ कहेतां जस मन अन्यथा, वृथा तेह पशु जोमि ॥२॥ म सय कथा उचितारथा, · करे व्यथानो ह ॥ कथे विचे विकथान्यथा, वृथा यथा सस तेह ॥३॥ त्रीजो खंग कह्यो शहां, सरस वचन रस कुंग || उछाहें था दर करी, कहेशुं चोथो खंग ॥४॥ हवे महाबल वा खही, मूकी निशि वन गर॥कणे कठिन श्वापद त णा, सुणे शब्द अतिघोर ॥ ५॥ थरथरती मरती हिये, करती आंसू नयण ॥ श्रारमती पमती कहे, विरहालां इंम वयण ॥६॥
॥ ढाल पहेली|अम्मां मोरी अम्मां हे,अम्मां मोरी पाणीमां गश्ती तलाव हे, हे मारुमे मेहेवासी मेरा ताणीया ॥ ए देशी॥ ॥अम्मां मोरी अम्मां हे, सुसरे न पूज्यो मुज को वंक हे, हे कोपेंने कलकलियो राणो मोपरे हे
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