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( २४२ )
पूढशो कांई ॥ सि० ॥ सा० ॥ कदेतो ईम जन वीं टीयो रे मित्ता, नृप जवनें गयो धाई ॥ सि० ॥ २०॥ ॥ सा० ॥ श्यामवदन राजा दूठे रे मित्ता, बीदीनो निरखी चित्त ॥ सि० ॥ सा० ॥ बोल्यो तेहवे मंत्रवी रे मित्ता, कुशल्यो किम तुंमित्त ॥ सि० ॥ २१ ॥ ॥ सा० ॥ महीज इति मुख बोलतो रे मित्ता, मूके
बकरं ॥ सि० ॥ सा० ॥ कहे ए ब्यो खाउं सहू रे भित्ता, पित्त समावो उदंग ॥ सि० ॥ २२ ॥ सा० ॥ बीहीना हाकें बापमा रे मित्ता, भूप प्रमुख करे मून ॥ सि० ॥ सा० ॥ बे ऋण तेह करंथी रे भित्ता, सिद्ध ग्रहे फल धून ॥ सि० ॥ २३ ॥ सा० ॥ नृपनें पूठी संचरे रे मित्ता, मलया पास हसत ॥ सि० ॥ ॥ सा० ॥ सा घनथी जिम मोरमी रे मित्ता, पीठ दीवे विकसंत ॥ सि० ॥ २४ ॥ सा० ॥ सकल उचित वि धि साचवी रे भित्ता, बेठी पीठ संग बाल ॥ सि० ॥ ॥ सा० ॥ पंमितजी रे चोथे खं तेरमी रे मित्ता, कां तें कही ए ढाल ॥ सि० ॥ २५ ॥ सा० ॥ इति ॥ ॥ दोहा ॥
॥ कर जोमी कामिनी कहे, जांखो कंत उदंत ॥ गत दिन गत आगम कथा, तब महबल पजयंत ॥
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