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हाहारव लोकां तो रे मित्ता, गिरि कूड़े नवि मात ॥ सि० ॥ १३ ॥ सा० पकबंद्यो गिरिकंदरें रे मि त्ता, हाहारख ततखेव ॥ सि० ॥ सा० ॥ जाएं साह स देखीनें रे मित्ता, बोल्यो तिम गिरिदेव ॥ सि० ॥ ॥ १४ ॥ सा० ॥ पकतो वेगें शृंगथी रे भित्ता, थे खे चरनी ब्रांति ॥ सि० ॥ सा० ॥ अदृश्य हुई जन देखतां रे मित्ता, जिम यारों नृप खांति ॥ सि० ॥ ॥ १५ ॥ सा० ॥ श्रहह अनय ए करो रे मित्ता. हाहा पाप प्रचंम ॥ सि० ॥ सा० ॥ पकतां एहना दामनो रे मित्ता, जमशे कहो किहां खंग ॥ सि० ॥ ॥ १६ ॥ सा० ॥ पुरजन एहवं जांखतां रे मित्ता, नृपपुर शिव कहत ॥ सि० ॥ सा० ॥ निज निज घर आया वही रे मित्ता, तस साहस स लहंत ॥ ॥ सि० ॥ १७ ॥ सा० ॥ सुहमें सकल सुखावियुं रे मित्ता, नृप मंत्री विरतंत ॥ सि० ॥ सा० ॥ याप कृतारथं मानता रे मित्ता, निवढे रात निरंत॥ सि० ॥ ॥ १८ ॥ सा० ॥ सिद्ध प्रजातें यात्रियो रे मित्ता, लै सहकार करंग ॥ सि० ॥ सा० ॥ पग पग जन देखी कहे रे मित्ता, चाव्या केम अखंग ॥ सि० ॥ १९॥ ॥ सा० ॥ सिद्ध कड़े कदेशुं पढ़ें रे भित्ता, हवणां म
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