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________________ ( १४० ) मोकल्यो, कदेवानें रे व्यतिकर सवि तेह ॥ भू० ॥ ॥ १७ ॥ हयगय सुनट रथ साजशुं, ते कुमर निय त प्रयाण || कुशलें मलशे नूपनें, होशे रूमा रे इहां कोमी कल्याण || नू० ॥ १८ ॥ ढाल एह एकवीश मी, इम कही कांति रसाल ॥ जुगतें बीजा खंगनी, जतां होये रे घर घर मंगल माल ॥ भू० ॥ १५ ॥ ॥ चोपाई ॥ खं खं रस बे नवनवा, सुणतां मीठा शाकर लवा || निर्मल मलय चरित्र जग जयो, बी जो खंग संपूरण थयो ॥ २० ॥ ॥ इति श्री ज्ञानरत्नोपाख्यान द्वितीयनाम्नि मलय सुंदरिचरित्रे पंगितकांतिविजयगणिविरचिते प्राकृत प्रबंधे मलय सुंदरी पाणी ग्रहणप्रकाशको नामाद्वितीयः खंगः संपूर्णः ॥ २ ॥ सर्व गाथा ॥ २७५ ॥ ॥ अथ तृतीय खंड प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ बीजो खंग घमंशुं, पूरण कीध प्रगट्ट | हवे त्री जो कहेवा जणी, उमग्यो रंग गरह ॥ १ ॥ प्रेमें प्रणमी शारदा, कहेशुं शेष चरित्र ॥ अति रसशुं श्रोता सुणी, करजो करण पवित्र ॥ २ ॥ दवे कुमर For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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