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मोकल्यो, कदेवानें रे व्यतिकर सवि तेह ॥ भू० ॥ ॥ १७ ॥ हयगय सुनट रथ साजशुं, ते कुमर निय त प्रयाण || कुशलें मलशे नूपनें, होशे रूमा रे इहां कोमी कल्याण || नू० ॥ १८ ॥ ढाल एह एकवीश मी, इम कही कांति रसाल ॥ जुगतें बीजा खंगनी, जतां होये रे घर घर मंगल माल ॥ भू० ॥ १५ ॥
॥ चोपाई ॥ खं खं रस बे नवनवा, सुणतां मीठा शाकर लवा || निर्मल मलय चरित्र जग जयो, बी जो खंग संपूरण थयो ॥ २० ॥
॥ इति श्री ज्ञानरत्नोपाख्यान द्वितीयनाम्नि मलय सुंदरिचरित्रे पंगितकांतिविजयगणिविरचिते प्राकृत प्रबंधे मलय सुंदरी पाणी ग्रहणप्रकाशको नामाद्वितीयः खंगः संपूर्णः ॥ २ ॥ सर्व गाथा ॥ २७५ ॥
॥ अथ तृतीय खंड प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥
॥ बीजो खंग घमंशुं, पूरण कीध प्रगट्ट | हवे त्री जो कहेवा जणी, उमग्यो रंग गरह ॥ १ ॥ प्रेमें प्रणमी शारदा, कहेशुं शेष चरित्र ॥ अति रसशुं श्रोता सुणी, करजो करण पवित्र ॥ २ ॥ दवे कुमर
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