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________________ ॥ ( १४१ ) वनमां जई, मलयानें पजगत | फिर निशि सम शानमां, नारीनें न घटंत ॥ ३ ॥ ते माटे नर रूप तुज, करुं कही इंम जाल । तिलक कस्युं आंबार सें, गोली घसी ततकाल ॥ ४ ॥ नारी रूपें नर हुर्ज, थयां बेहु संबंध || देवी गृहनां शिखरथी, काढे चोर निरुद्ध ॥ ५ ॥ कहे इस्युं रे गत दिनें, गया चोर तुज देख ॥ जा कुशलें जिहां रुचि होवे, तिहुनो पंथ उवेख ॥ ६॥ प्राण लाज धनलाज में, तुम पसायें लद्ध ॥ इम कही ते नमते घणुं, तेणे पयाएं कीध ॥ ७ ॥ बिहुं जुव नयी ऊतरी, आवे वतलें आप || तब तिहां गयणे गेबनो, सुण्यो नूत आलाप ॥ ८ ॥ कुमर मरंतो नू तथी, करवा यतन प्रकार ॥ ततक्षण कामिणी कंठ थी, लीए उतारी हार || ए || रहे रहे बानी सल क मां, सांजल देइ कान ॥ वरुमां नूत वदे किस्युं, कुमर करे इंम शान ॥ १० ॥ बानां वम पोलाशमां, बिहुं वेगं थिरगात ॥ सावधान या सांजले, भूत तणी म वात ॥ ११ ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ सहेर जलो पण सांकको रे, नगर जलो पण दूर रे ॥ हठीला वयरी ॥ ए देशी ॥ an शिखरे इंम बोली रे, भूताने एक जूत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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