SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १३ए) जानी कोर ॥ नू०॥ ॥ कुमर कुमरी रूपें करी, ब्रांति मुज मन घालि ॥ मरण थकी वारी गयां, करु णालां रे केश अथवा विचालि ॥ नू ॥ ए॥ शुं करूं केहने कडं, कुंण लहे मुज मन पीक ॥ ईम कहेतो गलहथ करी, नप बेगे रे पडयोचिता नीम ॥ ॥ ॥१०॥ वेगवती वेगें कहे, प्रनु धरो मनमा धीर ॥ तेहिज मलया ए हती, तेह हुतो रे एह महबल वीर ॥४०॥११॥ पण रातमां जातां वनें, बल तस्यां ततखेव ॥ कोश्क वैरी विरोधथी, संनवियें रे हरि या किणे देव ॥ नू० ॥ १२ ॥ देशाउर पुर पर्वतें, वननूमि विषम प्रदेश || मूकी नर विशवासिया, जो वरावो रे तजी अपर किलेश ॥ नू॥ १३ ॥ प्रथम पुहवीगण पुर दिशि, तुरत करवी शोध॥ किणहीक कारणथी कदे, नारी लेई रे गयो होय तिहां योध ॥ ॥ २४ ॥ सूरपाल नरिंदनें, एह सयल जणावो वात ॥ ते पण खबर करे वली, करतां श्म रे सविधा वशे धात ॥ नू०॥ १५ ॥ नटुं नबुं नूपति कहे, तें कह्यो साहु उपाय ॥ वेगवतीने सराहतो, तिम कर वा रे नरपति सज थाय ॥ नू० ॥ १६ ॥ मलयकेतु निजपुत्रनें, देई शीख नृप ससनेह ॥ सूरपाल दिशि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy