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(२३५) पुर्खन उषध ताहरूं, करवू में निरधार ॥ तुं पण प्रम दा आपतां, मत करजे विचार ॥ हुं ॥ १७ ॥ फो गट गाल फुलाविनें, कहे नूप हसंत ॥ उपकारकनें
आपतां, कहो शुं खटकंत॥हुं०॥१॥कठिन हृदय नरराजियो, हरख्यो मन पापिष्ट ॥ राखे दंपती जूजू यां, जण थापी निःकृष्ट ॥ हुँ॥२०॥ मंदिर आये मलपतो, करतो रस चाल ॥ दशमी चोथा खंगनी, कांतें कही ढाल ॥ हुं० ॥ १॥ इति ॥
॥दोहा॥ ॥ कुमर हवे नृपनें कहे, करवा उचित विधान ॥ काठ शकटनरि जोतरी, मूके ज्यां समशान ॥ १ ॥ निरखी विषम कर्त्तव्यता, पुःखियां पूस्यां लोक ॥हाहा नरमणि विषसशे, इम कहे थोके थोक ॥२॥ हलां आनूषण धरी, वीट्यो राज सुजट्ट ॥ पछिम पो होरें पितृवनें, पोहोचे कुमर प्रगट्ट ॥ ३ ॥ व्यतिकर लोकथकी लहे, मलया पियुनो आप ॥संतापी विर हानलें, विधविध करे विलाप ॥४॥ - ॥ ढाल अगीयारमी ॥ ऊठ कलालणी नर घं .. मो हे, दारुमारो मूल सुणाय॥ ए देशी॥
॥ धिग मुज यौवन रूपनें हे, धिग मुज जनम थ
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