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(२३३) काय ॥ आपद पमियो जेथी हे, मोहें लोनाणोना थ ॥प्राण प्यारो बलवा हे कां जाय॥१॥ पहेलो दुःख सागरथकी हे, तरियो तुं समरब ॥ए वेलामां साहेबा हे, कुंण ग्रहशे तुज हब॥प्रा०॥२॥काठ कुठी मां नीमियो हे, पंजरमां जिम कीर ॥नीसरशेक्यां थी तदा हे, मुज नणदीरो वीर॥प्रा०॥३॥कर सा ही नूपतिनमें हे, खेप्यो तुं चयमांहि ॥ सहेशे कि म पीमा घणी हे, कीधी पावक दाहि ॥प्रा०॥४॥ क्यां आव्यो इहां मोहना हे, मलियोकांमुजाय॥ कांई जीवामी पापिणी हे, हुं हुश् जे फुःखदाय ॥ ॥प्राण ॥ ५॥ विरहो ताहरो प्रीतमा हे, हियके ये घसि घाव ॥ नेह नितुर नाहर थयो हे, खेले कग्नि कुदाव ॥प्राण ॥ ६॥ आशाथी तें त्रोमीयां हे, ए वेला जगदीश ॥ तरबामा अधमारगे हे, काढ। पूर। राश ॥प्रा०॥७॥प्रीतमलीहीयमेवसी हे, लांगें मीठीगा ढ ॥ साले बूटी अधरसें हे, जिम तीखी यमदाढ ॥ ॥ प्राण ॥ ॥ पमज़ो शिल शिर तेहनें हे, · पाड्यो जेणे वियोग ॥ पारजन तेहनां रखमजो हे, जिम का प्यां थल फोग ॥ प्रा० ॥ ए॥ विलपत प्रमदा खीज ती हे, दुःख पूरी महे मूर ॥ पीयु. लोयण आंसुयें
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