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( २३५ )
हे, ये जल अंजली पूर ॥ प्रा० ॥ १० ॥ निरखुं नय नाइलो हे, तो मुज जोजन वात || बेठी एहवं आदरी हे, करवा आतम घात ॥ प्रा० ॥ ११ ॥ नृप नंदन समशानमां है, इहां तिहां निरखी ठगेर ॥ खमके इछित थानकेंदे, मोहोटी चय एक कोर ॥ प्रा० ॥ १२ ॥ साहस देखी तेह है, पुर जण मलिया धाय ॥ दिल गिरी धरता हिये हे, भूपतिनें कहे श्राय ॥ प्रा० ॥ || १३ || देव विचारया विए ईस्यो दे, मांड्यो कवण अन्याय || राख मिशें पशुनी परें हे, हवियें नहीं सि कराय ॥ प्रा० ॥ १४ ॥ मलया नापो तो जलें हे, पण मारो को एह || ाम वचनें मूको दवे हे, करी क रुणा गुणगेह || प्रा० ॥ १५ ॥ नूप जणें ए नामि नी दे, मुजने नवि निरखंत || उपरांठी काठी दुवे दे, जो नर ए जीवंत ॥ प्रा० ॥ १६ ॥ ए बाला विए मा हरे है, न पके जक पल मात ॥ मत पकजो ए वात मां दे, सो वातें एक वात ॥ प्रा० ॥ १७ ॥ निर्दय तब तिहां बोली यो दे, जीवो नामें प्रधान ॥ शी एहनी तुमनें पमी दे, मेलो बो इहां तान ॥ प्रा० ॥ १८ ॥ पोतानें पायें पची हे, मरशे जो दुःख आणि नगरीमा केहनें है, ए होशे घर दाणी ॥ प्रा० ॥
॥ तो
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