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(२३५) राजाने मंत्री हां हे, मझिया पापी दोय ॥ तो ते हवा नररत्नने हे,कुशल किहांथी होय ॥ प्रा०॥२०॥ बार मिशे आरंनियो हे, अनरथ विश्वा वीश ॥सहि पुर्मति ए बेहुनें हे, बारज पम्शे शीश ॥प्रा०॥१॥ गलतां माखी जीवती हे, को करे एहवं काम ॥ अन्योन्य कहेतां जण तिके हे, पोहोता निज निज गम ॥प्रा० ॥२२ ॥ अकल कला कोई केलवी हे, पियु लेहेशे जयमाल ॥ चोथे खंमें अग्यारमी हे, कांतें पत्नणी ढाल ॥ प्राण ॥२३ ॥ इति ॥
॥दोहा॥ ॥ष्ट संजारी आपणो, परवरियो लमबंद ॥ द क्षिण करें प्रदक्षिणा, चय पाखलि नृपनंद ॥१॥ पु रजन मुख हाहा रखें, आपूस्यो आकाश ॥ लोक हृद य कसणे करे, शोक परीक्षा ज्यास ॥२॥ सहसा तृ पसुत उतपात, पम चितामा जाम ॥ ततक्षण पुर जन नेत्रथी, पसस्यां आंसू ताम ॥ ३ ॥ ॥ढाल बारमी॥ तमाकेत्तोमी डे पुःख मालाए देशी॥ ____॥निरखे सुचट विकट चयमांहि, पेठगे कुमर जि वारें॥चिहुं दिशि प्रबल अनल सलगाड्यो, पसरी जाल तिवारें ॥१॥ ऊबाकें जलकी डे दिगमाला,
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