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(२४७)
असमंजसें होलाल || श्रम जोतां वली नूपनें रे, कां दुःख ये बे पीर रे ॥ मरमी गलनामी, कांई मरे वाह्यो रसें होलाल ॥ ए ॥ राज सज्जामां वाधीयो रे, सबलो हालको रे ॥ देखी नृप विरुर्ज, लोक मख्या ल ख धाईनें होलाल || जन मुखथी लही बातमी रे, पमियो महाडुःख जोल रे ॥ राजानी राणी, बींद ती व उजाईनें होलाल ॥ १० ॥ दुःखीयो दीन दयामणोरे, रूपें पूर्वाकार रे ॥ भूपतिनें देखी, द शांगुली वदनें वे होलाल || पमती रमती सिद्ध नां रे, प्रणमी चरण उदार रे ॥ अबला सुकुलीणी, दीन स्वरें तिहां वीनवे होलाल ॥ ११ ॥ मूको कोप कृपा करी रे, थार्ज सुप्रसन्न चित्त रे ॥ साहेब गुणवं ता, श्रम अबला साहामुं जू होलाल || पति निक्षा अमनें दी रे, दातारां शिर बत्र रे ॥ साधक करुणा ला, ताएयो न खमे तांतु होलाल ॥ १२ ॥ जेहवो हतो तेहवो करो रे, धुरनुं रूप बनाय रे ॥ साचा उ पगारी, जश लेतां न करो गई होलाल ॥ थाशे कारज एटलुं रे, तो अम लाख पसाय रे ॥ मोहन रंगीला, न हीं होय तो गणजो मूई होलाल ॥ १३ ॥ शीक्षा दीधी करी रे, राखी नहीं कांई खोट रे ॥ माणस जो हो
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