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(२४७) त्रीजुं काम करे हवे रे, तो महिला संजाल रे ॥ आदी ए तुजनें, वचन थकी हुँ न मोलीयो होलाल ॥४॥ निज नयणे निरखं सदा रे, पुंठि विना मुज अंगरे॥ तेमाटे वांसो, देखुं हुं तेदवो करो होलाल ॥ मुज उपर करुणा करी रे, पूरो एह उमंग रे ॥ सुगु णा सोलागी, मानीश पाम यहां खरो होलाल ॥५॥ नृपनंदन चीते इस्यो रे, एह श्यो सोंपे काम रे ।। नृप हसवा सरिखो, कुमति कदाग्रह केलवी होलाल ॥ रीशाणो कहे रायने रे, ए श्यो मांमयो उधाम रे ॥ ए हथी कहीं आगे, सिफिकिशी ताहरे नवी होलाल॥ ॥६॥पुंठ जोवे कोण आपणी रे, जो पण होय लख हाम रे॥ईम कहीने खांचे, नामी नृप ग्रीवा तणी हो लाल ॥ उलटी मुख वांकू वद्युं रे, आव्युं ग्रीवाने ग म रे।। ग्रीवा मुख ठगमें, आवी रही तव आफणी होलाल ॥७॥पूंठ निहालो खंतशुरे, काम थयु तुज ठीक रे॥ पति गुण मानो, वचन सुणी श्म तेहवे होलाल ॥ सचिव नवो रोषे नस्यों रे, बोल्यो थई साहसिक रे ।। सुण धूरत धीठा, लाज नहीं तुज ने हवे होलाल ॥6॥जनक हएयो तें माहरो रे, जीवो नामें वजीर रे॥ खुनी अन्यायी, बीहितो नहीं
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