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(२५०) शे, तो थई ने एटले घणी होलाल ॥ सिक विमासी ए हर्बु रे, बोल्यो एह जो दोट रे ॥ पाये अणुवाणे, वनमां जिन प्रणमे थुणी होलाल ॥ १४॥ श्रीजिन अजित जुहारीने रे, पायें आवे यांहिं रे ॥तो थाशे साजो, बीजो उपाय नहीं तिश्यो होलाल || असमरथू पण राजियो रे, कहे हवे चालो त्यांहिं रे ॥साजो जो थालं, तो मुज अजर अडे किश्यो होलाल ॥ १५ ॥ लोक कहे निज पापथी रे, वलगो आवी वींग रे॥नू पतिनें पू, करशे नहीं हवे खोजणी होलाल ॥ रूप बन्युं जोवा जिश्यु रे, प्रत्यक्ष जिम जोटींग रे॥दीसे डे कोई, खेधे लत पाम्यो घणी होलाल ॥ १६ ॥ पुर जन जोवा पेखणुं रे, चढिया गोखें धाय रे ॥ तिहां होमा होमें, ठगमें गमें टोलें मयां होलाल ॥ चाल ण मांझे नूपति रे, पण न पमे वग कांई रे ॥ जोतां पुःखदायी, कारण बे वांकां मल्या होलाल ॥ १७॥ जो मांगे पग पाधरो रे, तो दीसे नहीं मागरे । लो चन उपरांठे, सम थमतो पगें आथमे होलाल || थ वले पग ज्यां संचरे रे, खेतो मारग नाग रे॥घेरणि त्यां वाधे, प्रेरण शक्ति विना पमे होलाल ॥ १७ ॥ बिहुँ वातें पुर लोकनें रे, करतो कौतुक पुःख रे ॥जई था
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