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म जाणीने विश्वावीशें, मन नाखे शोकमां की सें हो राज ॥ म० ॥ १६ ॥ जेट्या नहीं चरण पिताना, मत क र म जरि चिंताना | पहेली परे हवणां दाना, तु ज जक्तिना गुण नहीं बाना हो राज ॥ म०॥ १७ ॥ शोक मूकीने हवे चूप, संसारनो जावि सरूप ॥ दृढ धारी विवेक अनूप, तज डूरें ए जक्कूप हो राज ॥ म० ॥ १८ ॥ दुःख सागर ए संसार, संगम सुपना अनुकार ॥ ल खमी जिम वीज संचार, जीवित बुंद बुंद अणुहार हो राज ॥ ० ॥ १५ ॥ तुज सरिखा जो इंम करशे, शोका कुल हियमुं जरशे | बापमलो किहां संचरशे, धीरज थानक विण फिरशे हो राज ॥ म० ॥ २० ॥ म धर्म तपो उपदेश, निसुणी प्रतिबुद्ध्यो नरेश ॥ ढंके सविशोक क लेश, संवेग लह्यो सुविशेष हो राज ॥ म० ॥ २१ ॥ प्रणमे नित्य नित्य नूपाल, महत्तरिका चरण त्रिकाल ॥ सामत्री शमी एकही ढाल, चोथेखंग कांति रसाल होराज ॥ म० ॥ दोहा ॥
॥ महत्तरिकाना मुख्यकी, सुणे धर्म उपदेश | करे महोन्नति धर्मनी, धर्म धुरीण नरेश ॥ १ ॥ शत बल मुनि निर्वृतियलें, मांग्यो नवल प्रासाद ॥ ता त ती प्रतिमा तिहां, थापे तजी विषवाद ॥ २ ॥
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