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________________ (३१४) मूरोहो राज॥म०॥७॥उपसर्यो कनकवतीयें, न कडं मन कलुष व्रती ॥जवसागर तरतां तीयें, अवलंबन दीधुं त्रीयें हो राज॥म॥॥धन पुत्र कलत्र गृह नार, जस कारण तजीयें सार ॥ तप लोच क्रिया व्यवहार, साधीजे विविध प्रकार हो राज॥ म॥एसेवेजे गि रिवन घांटा, सहियें कटुक वचनना कांटा॥ उपसर्ग उरगनीआंटा,खमीयें ईधीरजना सांटा होराजाम ॥ १० ॥पुर्खन ते पद तातें लाधुं, नीगमीयुं नवनय बाधुं ॥ हवे कां मन शाकें दाधुं, करे कांई वपुष ए आधुं हो राज॥म ॥११॥कृतंकृत्य हु मुनिराय, ति णें हर्ष तणो ए उपाय ॥ ते माटे अहो महाराय, कांई शोक करे इंणे गय हो राज ॥म॥१२॥पोता नो वाल्हो कोई, निधि पामे सहसा सोई॥ तिहां शो कके हर्षजहोई,कहे हियमे विचारी जोई होराजमण॥" ॥ १३ ॥ विश्वानल पीमा तातें, सांसही होशे एह वा तें ॥ चिंता म करे तिलमातें, जय अरथी खिति सहे गातें हो राजम॥२४॥साधक नर विद्यासाधे, पहे ढुं तिहां पुःख सहे बाधे ॥ निज कारज सिछि आ राधे, तव आयत फल सुख लाधे हो राज ॥ म०॥२५॥ पहेडं पुःख सघले दीसे, पानें सुख संभव हीसे॥६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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