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स्यो, तिस्यो हु इहां प्रांद ॥ ४ ॥ वरति हेतु गजरा जनें, जिसी अजामी खोह ॥ साहसधरनें पण तिस्यो, विषम स्वजननो मोह ॥ एं ॥
॥ ढाल सामत्री शमी ॥ हुं दासी राम तुमारी ॥ ए देश । ॥ ॥ एहवें निर्मल चरित पवित्ता, सत्य शील संतोष विचित्ता ॥ पालती व्रत एक चित्ता, साध्वी मलया तप जुत्ता हो राज, महासती धुर शोहे ॥ श्रुतधर्मे नविपकि बोहे हो राज ॥ म० ॥ १ ॥ एकादश अंगनी जाए, पामी शुभ अवधिना ॥ जावंती थिर अप्पाण, संयम तव योग विहाण हो राज ॥ म० ॥ २ ॥ संदेह ज विकना टाले, कुमतादिकना मद गाले । एक अवसर अवघें जाले, महाबल निर्वाण निहाले हो राज || म० ॥ ३ ॥ निज नं दन प्रतिबोधेवा, जवताप पुरंत हरेवा || श्रावी ति पुरि ततखेवा, होवे साधुनें धर्मनी ठेवा हो राज॥म॥४॥ साधुयोग वसतीनें वामें, पशु पंकग रहित सुधामें ॥ साध्वीनें गए जिसमें विंटी रही थाइ सुकामें दो राज ॥ म० २५॥ शतबल भूपति यति जक्ते, वांदे श्रावकनी युक्ते ॥ समजावा साध्वी युगतें, जिलथी पामे वली मुक्तें हो राज || म॥६॥ राजेंद्र पिता तुज शूरो, उपशम संवेगें पूरो ॥ सत्य साहस शौच सनूरो, पाम्यो शिवसुखमद
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