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कृष्णागरुना धूम धूखंत, व्याकारों घण थइ वरखंत ॥ मो० ॥ ० ॥ ११ ॥ तोरण माला काक जमाल, घर घर व धवल धमाल || मो० ॥ बीजे खंदे चौदमी ढाल, कांति कहे सुणो वचन रसाल ॥ मो० ॥ ० ॥ १२ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ राज जवनमां रसनरें, प्रगट्या रंग अपार ॥ निव शोजायें कस्यो, लीलायें संचार ॥ १ ॥ करे विलेपन कुंकुमें, साजन मांहोमांहिं ॥ देह घरी बाहिर रह्यो, जाणे राग उहांहिं ॥ २ ॥ कुलदेवी पूजी विधें, वजमाव्यां नीशाण ॥ प्रशन वसन तांबूलनां, लहे गुरु जन सनमान ॥ ३ ॥ नृत्य करे वारांगना, विध विध अंग वह || सोहे मीन कुटुंबनी, लेती जेम पलट्ट ॥ ४ ॥ बांध्या जलके चंदुआ, जरतारी जर बाफ ॥ जेम कालें युग तिनी, संध्या फूली साफ ॥ ५ ॥ शणगारें सारी सबल, सधवा सुंदर तेह ॥ कोकिल कंठे कामिनी, धवल दिये घरी नेह ॥ ६ ॥ मले जम लशुं जानीया, खमकंते केकाण | सोंधे जीना सा मठा, गाहिक जरया जुवा ॥ ७ ॥
॥ ढाल पंदरमी ॥ करमो तिहां कोटवाल ॥ एदेशी ॥ ॥ महाबल मलया बाल, चंदन चर्चित सोह्या नू
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