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(१०५) ॥ हारेवारी कुंअर कहे वसुधाधिप कां अकुलायजो, किहांएक रे मलया डे निश्चें जीवती रेलो ॥ हारेवा री निमित्ततणे बल जाण्यु में महारायजो, मतिबलेरे कहुं बुं हुं तुमने ते वली रेलो ॥ १७ ॥ हारेवारी हवे नृप पू मलया केरी वातजो, करशे रे अति कौतुक महाबल इंहां वली रेलो ॥ हारेवारी बीजे खंमें ए थ ३ दशमी ढाल जो, नांखी रे इंम कांति विजय रंगें जली रेलो ॥ १७ ॥
॥दोहा॥ ॥ नूप कहे सुण निमित्तिया, पुःखियो हुँ विण ना ग ॥ देखुं मलया जीवती, एवमो किहां मुज लाग्य ॥१॥ काल कूदी सम कूपमां, नाखीन मरे केम ॥ अहो देवनी चित्रता, न मुश्नांखे एम ॥॥ शो धी पण लाधी नहीं, जिम निर्धन धन कोमि॥ पुष्ट किणे जल थलचरें, खाधी होशे मरोमि ॥३॥ तह जणी मुजनें सुखें, होजो अग्नि सहाय ॥ वचन सुणी श्म नूपनां, बोल्यो कुमर बनाय ॥४॥ ... .. ॥ ढाल अगीधारमी ॥ सूवटियाला॥ए देशी ॥
॥ नूपतिजी रूमा, सांजल चतुर सुजाण होरेहां ॥ वात न नाखुं कूशमी ॥ नू ॥आजदिवस सुख ग
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