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(१६) ण होरेहां ॥ बारश तिथि थ रूअमी ॥ नू॥१॥ आजथी त्रीजे दिवसें होरेहां, दोय पोहोर वासर च ढे ॥ नू० ॥ बेग सहु अवनीश होरेहां, मंझप आ मंबर मढे ।। नू ॥२॥ शोनित तनु शणगार होरे हां, कुमरी दरिशण आपशे ॥ नू॥देखीस सहसा कार होरेहां, अचरज सहुने व्यापशे ॥ नू० ॥ ३ ॥ रचि स्वयंवर शुज एह होरेहां, बावत नृपमत वारजे ॥ ॥ जो डे तुज संदेह होरेहां, तो अहिनाणी ए धारजे ॥ नू ॥४॥ मलया मुधिरयण होरेहां, का लें तुम कर वशे ॥ नू ॥ तो साचां मुज वयण होरेहां, वेद वाणी गुण पावशे ॥ नू० ॥ ५ ॥ चौद शने परजात होरेहां, पूरव दिशि पुर बाहिरें॥नू॥ नृपनां बल मन खांत होरेहां, परखावण तुज कुलसुरी ॥ नू० ॥६॥षट करणो एक थंन होरेहां, पोल समी थापशे ॥ नू ॥ लहेता लोक अचंन होरेहां, देख त रंग न धापशे ॥ नू ॥७॥ ते लेश्तेणिवार होरे हां, थिरथापे मंझप तलें ॥ नू० ॥ नेदशे यांनो ते ह होरेहां, (धनुष वज्रसार होरेहां,) बाण सहित पूजा जलें ॥ नू ॥ ७॥ थापे थांजा बेह होरेहां, जे नर तेह चढानें ॥ ॥ जेदशे यांनो तेह हो
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