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(१७) रेहां, होशे वर तुज जानें ॥०॥ ए ॥ अनोपम डे अतितांति होरेहां, पूजा विधि ते थंननी॥ नू॥ जांख्या ए अवदात होरेहां, निमित्त कलायें अनुम नी॥ नू ॥१०॥ मलसे ए अहिनाण होरेहां, नि मित्त बलें लांख्यां अडे ॥०॥ न मले जो निरवा ण होरेहां, मन मान्युं करजे पवें ॥ पंमितजी रूमा ॥१९॥ लोक कहे शिरनाम होरेहां, अम लाग्ये तुं आवियो ॥ पं० ॥झानी तुं जस पाम होरेहां, उप कारें धुर गवियो॥५०॥ १२ ॥ ताहारा ए उपका र होरेहां, वीसरशे नहीं जीवते ॥ पं० ॥ श्राप्यो ए अधिकार होरेहां, जगदीसें तुज गुण बते ॥ ५० ॥ १३ ॥ आले हरख निधान होरेहां, कंचन मणि नू षण बहु ॥ पं0॥ ते कहे जो ट्युं दान होरेहां, तो उपकार किस्यो कहुं ॥५॥ १४ ॥ करजे तुंहिज ते ह होरेहां, थंन तणी पूजा वमी ॥५०॥ नृप वचन
हमें एह होरेहां, बांधे शुकननी गांठमी ॥६॥ २५ ॥ नृप कहे कन्या कंत होरेहां, किण नामें होसे कहो ॥ पं० ॥ आगम निगम अनंत होरेहां, प्रगट पणे शास्त्रे लहो ॥ पं०॥ १६ ॥ पोहवीपुर सूरपाल होरेहां, महाबल नंदन परवमो ॥ पं० ॥ वरशे ते तु
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