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(१७) ज बाल होरेहां, कुमर कहे एम परगमो॥५०॥ १७ ॥ दिवस थयो मध्यान्ह होरेहां, नृप आवे नगरीन णी ॥५॥ कुमर घणुं सनमान होरेहां, साथें ले पुरनो धणी ॥ ५० ॥ १७ ॥ सामंबर महाराय होरे हां, थायो मंदिर ऊजमें ॥ ५० ॥ कुमर नृपति ति णगय होरेहां, साथ वली नोजन जमे ॥ ५ ॥१५॥ वीती करतां वात होरेहां, अरध दिवसने ते निशा ॥५०॥ गह मह हुश् परजात होरेहां, रवि ऊगे प्रवदिशा ॥ नू॥२०॥ बीजे खंभे एह होरेहां, पूरण ढाल इग्यारमी ॥ ॥ कांति कहे ससनेह होरेहां, सुणतां श्रोताने गमी ॥ ॥१॥
॥दोहा॥ ॥ पहेला नृप मूक्या जिके, गालण गजनुं गण ॥ तेह प्रनातें श्राविया ॥ सेवक जिहां महिराण ॥१॥ करजोमी कौतिक नस्या, बोल्या तिहां एम वयण ॥ लाधुं गजमल गालतां, ए प्रजु मुखा रयण ॥२॥ तृ प लीधी ते,मुडिका, रजस पणे ससखूण ॥ वांचत नाम सुता तणुं, इंम बोल्यो शिर धूण ॥३॥ अहो अचंनो मुखिका, किम श्रावी गज पेट ॥ वली निमि त्त ए कारणे, मलतो दीसे नेट ॥४॥तव बोल्यो ज्ञा
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