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( 200 ) नी ईस्युं, निमित्त विकल नवि हुंत ॥ कुलदेवी कार हां, संज वियें खितिकंत ॥ ५ ॥ हख्यो नूप वि शेषथी, करे स्वयंवर काज ॥ लोक कहे कुमरी विना, स्यो मांगे नृप साज || ६ || कथन थकी किम रा चियें, होये जूठ के साच ॥ पेटें पड्यां पतीजीयें, ईम बोले केई वाच ॥ ७ ॥ कन्या विण लघुता घणी, लहेसे नृप नृप मांहिं, मव्ल्या जूप विलखा थई, धुक ल करसे प्रांहिं ॥ ८ ॥ सांज समय तेरस दिनें, या व्या नृपना नंद ॥ श्राप्यां मंदिर जूजूत्र, त्यां उतस्था नरिंद ॥ ॥
॥ ढाल बारमी ॥ रहो रहो रहो वालदा ॥ ए देशी ॥ ॥ ज्ञानी कहे इम रायने, जो आपो म सीख लाल रे ॥ मंत्र अर्द्ध में साधि, ते साधुं मन ईष लाल रे ॥ १ ॥ सगुण सनेहा सांजलो ॥ ए कणी ॥ जो नवि साधुं ए समे, तो वलतुं न सधाय लाल रे ॥ कोई विधन शुभ काममां, ण जाण्या व्हराय लाल रे ॥ सु० ॥ २ ॥ श्राजूनी एक रातनो, थापो जो व काश लालरे || साधी मंत्र प्रजातमां, आवीश हुं तुम पास लालरे ॥ सु० ॥ ३ ॥ शीख देई नृप इंम कहे, मंत्र साधनने काज लाल रे । जोईयें ते आपुं हजी,
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